मियाँ नसीरुद्दीन
मीरा के देवर ने उन्हें मारने के लिए विष का प्याला भेजा ताकि उसे पीकर मीरा मर जाए और उनका कुल अपमान से बच जाए।
मीरा उस विष के प्याले को पीते हुए हँस रही थी अर्थात् कटाष्टा कर रही थी कि तुम मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। मीरा किसी की परवाह नहीं करती, उसे अपने प्रिय पर पुरा भरोसा है।
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साहबो, उस दिन अपन मटियामहल की तरफ से न गुजर बाते तो राजनीति, साहित्य और कला के हजारों-हजार मसीहों के धूम- धड़क्के में नानबाइयों के मसीहा मियां नसीरुद्दीन को कैसे तो पहचानते और कैसे उठाते लुप्त उनके मसीही अंदाज का!
हुआ यह कि हम एक दुपहरी जामा-मस्जिद के आड़े पड़े मटियामहल के गढ़ैया मुहल्ले की ओर निकल गए । एक निहायत मामूली अंधेरी-सी दुकान पर पटापट आटे का ढेर सनते देख ठिठके । सोचा, सेवइयों की तैयारी होगी, पर पूछने पर मालूम हुआ खानदानी नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन की दुकान पर खड़े हैं । मियां मशहूर हैं, छप्पन किस्म की रोटियां बनाने के लिए ।
मियाँ नसीरुद्दीन ने औंखों के कंचे हम पर फेर दिए। फिर तरेरकर बोले- 'क्या मतलब? पूछिए साहब-नानबाई इल्म लेने कहीं और जाएगा? क्या नगीनासाज के पास? क्या आईनासाज के पास? क्या मीनासाज के पास? या रफूगर, रंगरेज या तेली-तंबोली से सीखने जाएगा? क्या फरमा दिया साहब-यह तो हमारा खानदानी पेशा ठहरा । हाँ, इल्म की बात पूछिए तो बो कुछ भी सीखा, अपने वालिद उस्ताद से ही । मतलब यह कि हम घर से न निकले कि कोई पेश। अख्तियार करेंगे । जो बाप-दादा का हुनर था वही उनसे पाया और वालिद मरहूम के उठ जाने पर आ बैठे उन्हीं के ठीये पर!'
मियां कुछ देर सोच में खोए रहे । सोचा पकवान पर रोशनी डालने को है कि नसीरुद्दीन साहब बड़े रुखाई से बोले- 'यह हम न बतावेंगे । बस, आप इत्त समझ लीजिए कि एक कहावत है कि न की खानदानी नानबाई कुएं में भी रोटी पका सकता है । कहावत जब भी गढ़ी गई हो, हमारे बुजुर्गो के करतब पर ही पूरी उतरती है । '
मजा लेने के लिए टोका- 'कहावत यह सच्ची भी है कि.. .... ।'
मियाँ ने तरेरा- 'और क्या झूठी है? आप ही बताइए, रोटी पकाने में झूठ का क्या काम! झूठ से रोटी पकेगी? क्या पकती देखी है कभी! रोटी जनाब पकती है आँच से, समझे! 'मियाँ नसीरुद्दीन की आँखें लमहा- भर को किसी भट्टी में गुम हो गई । लगा गहरी सोच में हैं -फिर सिर हिलाया- 'क्या आँखों के आगे चेहरा जिन्दा हो गया! हाँ हमारे वालिद साहिब मशहूर थे मियां बरकत शाही नानबाई गढै़यावाले के नाम से और उनके वालिद यानी कि हमारे दादा साहिब थे आला नानबाई मियाँ कल्लन । '
'आपको इन दोनों में से किसी की भी कोई नसीहत याद हो!'
'नसीहत काहे की मियाँ! काम करने से आता है, नसीहतों से नहीं। हाँ!'
मियां नसीरुद्दीन को नानबाइयों का मसीहा क्यों कहा गया है?
लेखिका मियाँ नसीरुद्दीन के पास क्यों गई थीं?
बादशाह के नाम का प्रसंग आते ही लेखिका की बातों में मियाँ नसीरुद्दीन की दिलचस्पी क्यों खत्म होने लगी?
पाठ में मियां नसीरुद्दीन का शब्दचित्र लेखक ने कैसे खींचा है?
मियाँ नसीरुद्दीन की कौन-सी बातें आपको अच्छी लगीं?
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