मियां कुछ देर सोच में खोए रहे । सोचा पकवान पर रोशनी डालने को है कि नसीरुद्दीन साहब बड़े रुखाई से बोले- 'यह हम न बतावेंगे । बस, आप इत्त समझ लीजिए कि एक कहावत है कि न की खानदानी नानबाई कुएं में भी रोटी पका सकता है । कहावत जब भी गढ़ी गई हो, हमारे बुजुर्गो के करतब पर ही पूरी उतरती है । '
मजा लेने के लिए टोका- 'कहावत यह सच्ची भी है कि.. .... ।'
मियाँ ने तरेरा- 'और क्या झूठी है? आप ही बताइए, रोटी पकाने में झूठ का क्या काम! झूठ से रोटी पकेगी? क्या पकती देखी है कभी! रोटी जनाब पकती है आँच से, समझे! 'A.
मियाँ नसीरुद्दीन किस सोच में पड़ गए? बाद में उन्होंने क्या उत्तर दिया?
B.
मियाँ नसीरुद्दीन के उत्तर से उनकी किस विशेषता का पता चलता है?
C.
गद्याशं के अत में मियाँ किस बात का दावा करते हैं?
A. जब मियाँ नसीरुद्दीन से उसके बुजुर्ग द्वारा बादशाह के लिए बनाये गये पकवान का नाम पूछा तो वे कुछ सोच में पड़ गए । वास्तविकता यह थी कि ऐसा कोई पकवान बनाया ही नहीं गया था । अत : वे क्या नाम बताते । बाद में उन्होंने यह उत्तर दिया-हम यह नहीं बताएँगे । खानदानी नानबाई कुएँ में भी रोटी पका सकता है । |
B. मियाँ नसीरुद्दीन के उत्तर से उनकी चतुराई तथा सोचने की और अभिव्यक्ति की कला का पता चलता है । उन्हें किसी भी बात का उत्तर देने में महारत हासिल है । |
C. गद्यांश के अंत में मियाँ इस बात का दावा करते हैं कि खानदानी नानबाई कुछ भी पकाकर दिखा सकता है । रोटी पकाने में झूठ बोलने का कोई काम नहीं होता । रोटी झूठ से नहीं पकती बल्कि आँच से ही पकती है । |



