नागार्जुन - यह दंतुरित मुसकान
कवि का भाव है कि फसल के केवल मनुष्य के परिश्रम का परिणाम नहीं है। सूर्य की किरणें इसे प्रकाश देती हैं, अपनी ऊष्मा, ऊर्जा प्रदान करती हैं जिससे फसलें उत्पन्न होती हैं। प्रकृति से अपना भोजन प्राप्त करती है और बढ़ती हैं। हवा उन्हें थिरकन प्रदान करती है तभी उसमें बीज बनता है और दानों के रूप में हमें फसल प्राप्त होती है।
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