‘काले मेधा पानी दे’ पाठ का प्रतिपाद्य दीजिए।
‘काले मेघा पानी दे’ संस्मरण धर्मवीर भारती द्वारा लिखित है। इसमें लेखक ने लोक आस्था और विज्ञान के द्वंद्व का सुंदर चित्रण किया है। विज्ञान का अपना तर्क है और विश्वास की अपनी सामर्थ्य। लेखक ने किशोर जीवन के इस संस्मरण में दिखलाया है कि अनावृष्टि से मुक्ति पाने हेतु गाँव के बच्चों की इंदर सेना द्वार-द्वार पानी माँगने जाती है लेकिन लेखक का तर्कशील किशोर मन भीषण सूखे में उसे पानी की निर्मम बर्बादी समझता है। लेखक की जीजी इस कार्य को अंधविश्वास न मानकर लोक आस्था त्याग की भावना कहती है। लेखक बार-बार अपनी जीजी के तर्को का खंडन करता हुए इसे पाखंड और अंधविश्वास कहता है लेकिन जीजी की संतुष्टि और अपने सद्भाव को बचाए रखने के लिए वह तमाम रीति-रिवाजों को ऊपरी तौर पर सही मानता है लेकिन अंतर्मन से उनका खंडन करता चलता है। पाठ के अंत में लेखक ने देशभक्ति का परिचय देते हुए देश में फैले भ्रष्टाचार के प्रति गहन चिंता व्यक्त की है तथा उन लोगों के प्रति कटाक्ष किया है जो आज भी पश्चिमी संस्कृति और भाषा के अधीन हैं तथा भ्रष्टाचार को अनदेखा कर रहे हैं।