निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
इन बातों को आज पचास से ज्यादा बरस होने को आए पर ज्यों-की-त्यों मन पर दरज हैं। कभी-कभी कैसे-कैसे संदर्भों में ये बातें मन को कचोट जाती हैं, अंग्रेज चले गए पर क्या हम आज भी सच्चे अर्थों में आजाद हो पाए। क्या उनकी रहन-सहन, उनकी भाषा, उनकी संस्कृति से आजाद होकर अपने देश के संस्कारों को समझ पाए। हम आज देश के लिए करते क्या हैं? माँगे हर क्षेत्र में बड़ी-बड़ी हैं पर त्याग का कहीं नाम-निशान नहीं है। अपना स्वार्थ आज एकमात्र लक्ष्य रह गया है। हम चटखारे लेकर इसके या उसके भ्रष्टाचार की बातें करते हैं पर क्या कभी हमने जाँचा है कि अपने स्तर पर अपने दायरे या उसके भ्रष्टाचार के अंग तो नहीं बन रहे हैं? यही कारण है कि रोज हम पढ़ते हैं कि यह हजार करोड़ की योजना बनी, वह चार हजार करोड़ की योजना बनी, पर यह अरबों-खरबों की राशि कहाँ गुम हो जाती है? काले मेघा दल के दल उमड़ते हैं, पानी झमाझम बरसता है, पर गगरी फूटी की फूटी रह जाती है, बैल पियासे के पियासे रह जाते हैं? आखिर कब बदलेगी यह स्थिति?
1. लेखक की चिंता किस बात को लेकर है?
2. आज किस भावना का नामो-निशान नहीं है?
3. भ्रष्टाचार के बारे में क्या कहा गया है?
4. आज देश की हालत क्या है?
1. लेखक की चिता इस बात को लेकर है कि आजादी को मिले 50 से ज्यादा साल बीत गए, पर हम सच्चे अर्थो मे आजाद नहीं हो पाए।
2. आज देश के लिए त्याग करने की भावना का नामोनिशान तक नहीं है। हम अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं। हम अपने देश के संस्कारों को नहीं समझ पाए हैं।
3. देश में सर्वत्र भ्रष्टाचार है। हम चटखारे लेकर भ्रष्टाचार की बातें तो करते हैं, पर इस समस्या पर कभी गंभीरता से सोचते नहीं। क्या हम भ्रष्टाचार के अंग नहीं बनते जा रहे है? यह प्रश्न विचारणीय है।
4. आज देश की हालत यह है कि अरबों-खरबों की राशि न जाने कहाँ गुम हो जाती है। योजनाएँ तो बनती हैं, पैसों की व्यवस्था भी की जाती है पर भ्रष्टाचार सारी राशि को निगल जाता है। गाँवों की हालत वहीं की वहीं रह जाती है।