निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये:-
उछलते-कूदते, एक-दूसरे को धकियाते ये लोग गली में किसी दुमहले मकान के सामने रुक जाते, “पानी दे मैया, इंदर सेना आई है।” और जिन घरों में आखीर जेठ या शुरू आषाढ़ के उन सूखे दिनों में पानी की कमी भी होती थी, जिन घरों के कुएँ भी सूखे होते थे, उन घरों से भी सहेज कर रखे हुए पानी में से बाल्टी-बाल्टी या धड़े भर-भर कर इन बच्चों को सर से पैर तक तर कर दिया जाता था। ये भीगे बदन मिट्टी में लोट लगाते थे, पानी फेंकने से पैदा हुए कीचड़ में लथपथ हो जाते थे। हाथ, पाँव, बदन, मुँह, पेट सब पर गंदा कीचड़ मल कर फिर हाँक लगाते “बोल गंगा मैया की जय” और फिर मंडली बाँधकर उछलते-कूदते अगले घर की ओर चल पड़ते बादलों को टेरते, “काले मेधा पानी दे।” वे सचमुच ऐसे दिन होते जब गली-मुहल्ला, गाँव-शहर हर जगह लोग गर्मी में मून- भुन कर त्राहिमाम कर रहे होते, जेठ के दसतपा बीत कर आषाढ़ का पहला पखवारा भी बीत चुका होता पर क्षितिज पर कहीं बाबल की रेख भी नहीं दीखती होती, कुएँ सूखने लगते, नलों में एक तो बहुत कम पानी आता और आता भी तो आधी रात को भी मानो खौलता हुआ पानी हो। शहरों की तुलना में गाँव में और भी हालत खराब होती थी। जहाँ जुताई होनी चाहिए वहाँ खेतों की मिट्टी सूख कर पत्थर हो जाती, फिर उसमें पपड़ी पड़ कर जमीन फटने लगती, लू ऐसी कि चलते-चलते आदमी आधे रास्ते में लू खाकर गिर पड़े। ढोर-उंगर प्यास के मारे मरने लगते लेकिन बारिश का कहीं नाम निशान नहीं, ऐसे में पूजा-पाठ कथा-विधान सब कर के लोग जब हार जाते तब अंतिम उपाय के रूप में निकलती यह इंदर सेना।
1. इंदर सेना कौन थी? यह क्या करती थी?
2. लोग इनको कौन- सा पानी देते थे और ये क्या करते थे?
3. उस समय गाँव में कैसा वातावरण उपस्थित रहता था?
4. खेतों की क्या दशा होती थी?
1. गाँव के 10-15 वर्ष के लड़कों की मंडली को इंदर सेना कहा जाता था। ये लड़के एक-दूसरे को धकियाते, उछलते-कूदते गली-गली में घूमकर मकानों के सामने रुककर पानी माँगते थे। वे कहते-’पानी दे मैया, इंदर सेना आई है’।
2. जेठ-आषाढ़ के महीनों में सूखा पड़ता था और उन दिनों पानी का भयंकर अकाल पड़ जाता था। तब लोग घरों मे घड़े या बाल्टी में पानी सहेज कर रखते थे। उसी पानी को वे इन लड़कों के ऊपर फेंकते थे। ये भीगे बदन मिट्टी में लोट लगाते थे और कीचड़ में लथपथ हो जाते थे। फिर गंगा मैया की जय लगाते थे।
3. उस समय गाँव में लोग गर्मी से भुन कर त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रहे होते थे। आकाश में कही भी बादल दिखाई नहीं देते थे। कुएँ सूख गए होते। नलों में बहुत कम पानी आता था।
4. उन दिनों खेतों की मिट्टी सूखकर पत्थर हो जाती थी फिर पपड़ी पड़कर जमीन फटने लगती थी। लू के मारे लोग गश खाकर गिर पड़ते थे।