भारत-अमरीका समझौते से संबंधित बहस के तीन अंश इस अध्याय में दिए गए हैं। इन्हें पढ़ें और किसी एक अंश को आधार मानकर पूरा भाषण तैयार करें जिसमें भारत- अमरीकी संबंध के बारे में किसी एक रुख का समर्थन किया गया हो।
इसमें कोई दो-राहे नहीं की यह अमेरिका के विश्वव्यापी वर्चस्व का दौर है और बाकि देशों की तरह भारत को भी फैसला करना है की वह अमेरिका के साथ किस तरह के संबंध रखना चाहता है। यद्यपि भारत में इस संबंध में तीन संभावित रणनीतियों पर बहस चल रही है:
- भारत के जो विद्वान अंतर्राष्ट्रीय राजनीति को सैन्य शक्ति के संदर्भ में देखते-समझते हैं, वे भारत और अमरीका की बढ़ती हुई नजदीकी से भयभीत हैं। ऐसे विद्वान यही चाहेंगे कि भारत वाशिगंटन से अपना अलगाव बनाए रखे और अपना ध्यान अपनी राष्ट्रीय शक्ति को बढ़ाने पर लगाए।
- कुछ विद्वान मानते हैं कि भारत और अमरीका के हितों में तालमेल लगातार बढ़ रहा है और यह भारत केलिए ऐतिहासिक अवसर है' ये विद्वान एक ऐसी रणनीति अपनाने की तरफदारी करते हैं जिससे भारत अमरीकी वर्चस्व
का फायदा उठाए। वे चाहते हैं कि दोनों के आपसी हितों का मेल हो और भारत अपने लिए सबसे बढिया विकल्प ढूँढ सके। इन विद्वानों की राय है कि अमरीका के विरोध की रणनीति व्यर्थ साबित होगी और आगे चलकर इससे भारत को नुकसान होगा। - कुछ विद्वानों की राय है कि भारत अपनी अगुआई में विकासशील देशों का गठबंधन बनाए। कुछ सालों में यह गठबंधन ज्यादा ताकतवर हो जाएगा और अमरीकी वर्चस्व के प्रतिकार में सक्षम हो जाएगा।
अत: भारत-अमरीकी संबंधों के सन्दर्भ में व्यक्त तीनो विचारों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि दोनों देशों के बीच संबंध इतने जटिल है कि किसी एक रणनीति पर निर्भर नहीं रहा जा सकता। अमरीका से निर्वाह करने के लिए भारत को विदेश नीति की कई रणनीतियों का एक समुचित मेल तैयार करना होगा।