उन तीन बातों का जिक्र करें जिनसे साबित होता है कि शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद अमरीकी प्रभुत्व का स्वभाव बदला है और शीतयुद्ध के वर्षो के अमरीकी प्रभुत्व की तुलना में यह अलग है।
इसमें कोई दोराहे नहीं कि शीतयुद्ध का अंत 1991 में सोवियत संघ के विघटन के साथ हो गया था और सोवियत संघ एक महाशक्ति के रूप में विश्व परिदृश्य से गायब हो गया था। यह बात सही नहीं हैं कि अमेरिकी वर्चस्व सन् 1991 के पश्चात कायम हुआ है, क्योंकि अगर विश्व राजनीती के इतिहास पर दृष्टि डाली जाए तो अमेरिकी वर्चस्व का काल द्वित्य विश्वयुद्ध (1945) से ही प्रारम्भ हो गया था, लेकिन यह बात भी सही है कि इसने अपना वास्तविक रूप 1991 से दिखाना शुरू किया था। आज पूरा विश्व अमेरिकी वर्चस्व के आश्रय में जीने को बाध्य हैं:
- अमेरिकी वर्चस्व का पहला उदहारण 1990 के अगस्त में इराक ने कुवैत पर हमला किया और बड़ी तेजी से उस पर कब्जा जमा लिया। उस समय एक शक्तिशाली और प्रभावशाली वर्चस्व के रूप में अमेरिका ने उसे समझाने का प्रयास किया और अंत में जब इराक को समझाने-बुझाने की तमाम राजनयिक कोशिशें नाकाम रहीं तो संयुक्त राष्ट्रसंघ ने कुवैत को मुक्त कराने के लिए बल-प्रयोग की अनुमति दे दी। संयुक्त राष्ट्रसंघ के लिहाज से यह एक नाटकीय फैसला था।
- प्रथम खाड़ी युद्ध भी अमेरिकी वर्चस्व के प्रभाव को दर्शाता हैं। 34 देशों की मिली-जुली और 6,60,000 सैनिकों की भारी- भरकम फौज ने इराक के विरुद्ध मोर्चा खोला और उसे परास्त कर दिया। इसे प्रथम खाड़ी युद्ध कहा जाता है। संयुक्त राष्ट्रसंघ के इस सैन्य अभियान को 'ऑपरेशन डेजर्ट स्टार्म' कहा जाता है जो एक हद तक अमरीकी सैन्य अभियान ही था। इसमें प्रतिशत सैनिक अमेरिकी ही थे। हालाँकि इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन का ऐलान था कि यह ' सौ जंगों की एक जंग ' साबित होगा लेकिन इराकी सेना जल्दी ही हार गई और उसे कुवैत से हटने पर मजबूर होना पड़ा।
- अमेरिकी वर्चस्व का एक स्वरूप यहाँ भी देखने को मिला जब अमेरिका पर आतंकवादी हमले हुए। 9/11 हमले के जवाब में अमरीका ने फौरी कदम उठाये और भयंकर कार्रवाई की। अब क्लिंटन की जगह रिपब्लिकन पार्टी के जार्ज डब्लयूं बुश राष्ट्रपति थे। क्लिंटन के विपरीत बुश ने अमरीकी हितों को लेकर कठोर रवैया अपनाया और इन हितों को बढ़ावा देने के लिए कड़े कदम उठाये। ' आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध' के अंग के रूप में अमरीका ने 'ऑपरेशन एन्डयूइरंग फ्रीडम' चलाया । यह अभियान उन सभी के खिलाफ चला जिन पर 9/11 का शक था।
इस प्रकार उपरोक्त तीनों घटनाओं के आधार पर यह स्पष्ट हो जाता है कि आज का अमेरिकी प्रभुत्व शीतयुद्ध के दौर से पूरी तरह अलग है। सोवितय संघ के विघटन के साथ ही शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद से संक्युत राज्य अमेरिका अपनी सैन्य व आर्थिक शक्ति का प्रयोग करके पूरी विश्व व्यवस्था पर अपना मनमाना आचरण थोपने लग गया जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद अमेरिका का वर्चस्व स्वरूप बदला है। शीतयुद्ध के दौरान इसका इतना प्रभाव नहीं रहा है।