समावेश के क्रियान्वय के कुछ तरीकों का वर्णन करों।
विद्यालयी शिक्षा और उसके परिसर में समावेशी शिक्षा के कुछ तरीके निम्न हो सकते हैं:
- स्कूल के वातावरण में सुधार: स्कूल का वातावरण किसी भी प्रकार की शिक्षा में बड़ा ही योगदान रखता है। यह कई चीजों की शिक्षा बच्चों को बिना सिखाए भी देता है। अत: समावेशी शिक्षा हेतु सर्वप्रथम उचित तथा मनमोहक स्कूल भवन का प्रबन्धन जरूरी हैं। इसके अलावा स्कूलों में आवश्यक साज-सामान तथा शैक्षिक सामिग्री का भी समुचित प्रबंध जरूरी है।
- दाखिले की नीति में परिवर्तन: जो विद्यार्थी चीजों को स्पष्ट रूप से देख पाने में सक्षम नहीं है, या आशिक रूप से अपाहिज है ऐसे विद्यार्थियों को स्कूल में दाखिला देकर हम समावेशन को बढ़ावा दे सकते हैं जिसके लिए विद्यालय के दाखिला की नीति में परिवर्तन किया जाना चाहिए।
- रूचिपूर्ण एवं विभिन्न पाठ्यक्रम का निर्धारण: किसी विद्वान ने सच ही कहा है कि ''बच्चों को शिक्षित करने का सबसे असरदार ढंग है कि उन्हें प्यारी चीजों के बीच खेलने दिया जाए।''अत: सभी विद्यालयी बच्चों में समावेशी शिक्षा की ज्योति जलाने हेतु इस बात की भी नितांत आवश्यकता है कि उन्हें रूचियों के अनुसार संगठित किया जाए और पाठ्यक्रम का निर्माण उनकी अभिवृतियों, मनोवृतियो, आकांक्षाओं तथा क्षमताओं के अनुकूल किया जाए।
- प्रावैगिक विधियों का प्रयोग: समावेशी शिक्षा हेतु शिक्षकों को इसकी नवीन विधियों का ज्ञान करवाया जाए तथा उनके प्रयोग पर बल दिया जाए। समावेशी शिक्षा के लिए विद्यालय के शिक्षकों को समय-समय पर विशेष प्रशिक्षण-विद्यालयों में भेजे जाने की नितांत आवश्यकता है।
- स्कूलों को सामुदायिक जीवन का केन्द्र बनाया जाए: समावेशी शिक्षा हेतु यह प्रयास भी किया जाना चाहिए कि स्कूली को सामुदायिक जीवन का केन्द्र बनाया जाए ताकि वहाँ छात्र की सामुदायिक जीवन की भावना को बल मिले जिससे वे सफल एवं योग्यतम सामाजिक जीवन यापन कर सके।
इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु समय-समय पर विद्यालयों में वाद-विवाद, खेल-कूद तथा देशाटन जैसे मनोरंजक कार्यक्रयों का आयोजन किया जाना चाहिए। - विद्यालयी शिक्षा में नई तकनीक का प्रयोग: समावेशी शिक्षा को लागू करने के लिए शिक्षा-प्रद फिल्में, टी. वी. कार्यक्रम, व्याख्यान, वी. सी. आर. और कम्प्यूटर जैसे उपकरणों को प्राथमिकता के आधार पर विद्यालय में उपलब्धता और प्रयोग में लाई जाने की क्रांति की आवश्यकता है।
- मार्गदर्शन एवं समुपदेशन की व्यवस्था: भारतीय विद्यालयों में समावेशी शिक्षा के पूर्णतया लागू न होने के कई कारणों में से एक कारण विद्यालय में मार्गदर्शन एवं समुपदेशन की व्यवस्था का न होना भी है। इसके अभाव में विद्यालय में समावेशी वातावरण का निर्माण नहीं हो पाता है।
अत: समावेशी शिक्षा देने के तरीको में यह भी होना चाहिए कि विद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों और उनके अभिभावकों हेतु आदि से अंत तक सुप्रशिक्षित, योग्य एवं अनुभवी व्यक्तियों द्वारा मार्गदर्शन एवं परामर्श प्रदान करने की व्यवस्था होनी चाहिए।



