अमेरिका में 2004 में आई एक रिपोर्ट के अनुसार वहाँ के समाज में असमानता बढ़ती जा रही है। आमदनी की असमानता लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विभिन्न वर्गों में की भागीदारी घटने-बढ़ने के रूप में भी सामने आई। इन समूहों की सरकार के फैंसलों पर असर डालने की क्षमता भी इससे प्रभावित हुई है। इस रिपोर्ट की मुख्य बातें थी-
सन 2004 में एक औसत अश्वेत परिवार की आमदनी 100 डॉलर थी जबकि गोरे परिवार की आमदनी 162 डॉलर। औसत गोर परिवार के पास अश्वेत परिवार से 12 गुना ज़्यादा संपत्ति थी।
राष्ट्रपति चुनाव में 75,000 डॉलर से ज़्यादा आमदनी वाले परिवारों के प्रत्येक 10 में से 9 लोगों ने वोट डाले थे। यही हम लोग आमदनी के हिसाब से समाज के ऊपरी 20 फीसदी आते हैं।
दूसरी और 15,000 डॉलर से कम आमदनी वाले प्रत्येक 10 में से सिर्फ 5 लोगों में ही वोट डाले आमदनी के हिसाब से ये लोग सबसे निचले 20 के हिस्से में आते हैं।
राजनीतिक दलों का करीब 95 फीसदी चंदा और आमिर परिवारों में से ही आता हैl इससे उन्हें अपनी राय और चिंताओं से नेताओं को अवगत कराने का अवसर मिला है। यह सुविधा देश के अधिकांश नागरिकों को उपलब्ध नहीं है।
जब गरीब लोग राजनीति में कम भागीदारी करते हैं। तो सरकार भी उनके चिताओं पर कम ध्यान देती है - गरीबी दूर करना, रोजगार देना, उनके लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और आवाज की व्यवस्था करने पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता जितना दिया जाना चाहिए। राजनेता अक्सर अमीरों और व्यापारियों की चिंताओं पर ही नियमित रूप से गौर करते हैं।
इस रिपोर्ट की सूचनाओं को आधार बनाकर और भारत के उदाहरण देते हुए 'लोकतंत्र और गरीबी' पर एक लेख लिखे l
लोकतंत्र और गरीबी
लोकतंत्र का उपयोग आज कल सिमित हो गया है। आज कल लोकतंत्र के फायदों का उपयोग केवल वे लोग कर रहे है जिसके पास धन, शिक्षा और संसाधन है। भारत में अमीरों और गरीबों के बीच का अंतर तेजी से रहा है। गरीब ओर गरीब होता जा रहा है जबकि अमीर ओर अमीर हो रहा है। सरकार द्वारा दी गई सुविधाओं का लाभ अमीर उठा रहे है जबकि गरीब इससे वंचित रह जाते है।
राजनीति को लोगों ने व्यवसाय बना लिया है। लोग अब जनता की समस्याओं का हल निकालने के लिए राजनीति में नहीं जाना चाहते बल्कि अपने व्यक्तिगत तथा वर्गीय फायदे के लिए राजनीति से जुड़ते है।
गरीबी दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। भारत की आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा गावों में बस्ता है। उनके लिए कागज पर बड़ी-बड़ी योजनाएं बनाई जाती है और विकास की राशि नेताओं, व्यपारियों और ठेकेदारो में बाँट ली जाती है।
जनता के पास यह शक्ति होनी चाहिए कि वह जब चाहे अपने प्रतिनिधि को वापस बुला सकती है। साथ ही चुनावों में धन के प्रयोग पर रोक लगानी चाहिए तभी लोकतंत्र का सही रूप सामने आएगा और आम जनता की समस्या तथा देश के विकास की ओर भी नेताओं का ध्यान जाएगा।



