राजस्थान के अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में वर्षा जल संग्रहण किस प्रकार किया जा सकता है? व्याख्या कीजिए।
जल संग्रहण प्रणाली सामाजिक,आर्थिक और पर्यावरणनीय रूप में एक महत्वपूर्ण उपाय है। प्राचीन समय में भी लोग वर्षा प्रदेश, मृदा की बनावट तथा वर्षा जल संग्रहण की प्रक्रिया से पूरी तरह परीचित थे। पर्वतीय क्षेत्रों में पश्चिमी हिमालय प्रदेश में लोग कृषि के लिए 'गुल' अथवा 'कुल्स' (नालियों) का निर्माण करते थे। राजस्थान में छत पर वर्षा जल संग्रहण करते थे। शुष्क तथा अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों में खेतों को वर्षा वाले भंडारण क्षेत्र में बदल दिया जाता था। इससे उनमें पानी भरा रहता था जो मृदा को आर्द्र बनाए रखता था। जैसलमेर में खादिन और अन्य भागों में 'जोहड़' इसके उदाहरण है।
राजस्थान के अर्ध-शुष्क और शुष्क क्षेत्रों विशेषकर बीकानेर, फलोदी और बाड़मेर में, लगभग हर घर में पीने का पानी संग्रहित करने के लिए वहाँ भूमिगत टैंक अथवा 'टाँका, हुआ करते थे। इसका आकार एक बड़े कमरे जितना हो सकता है। फलौदी में एक घर में 6.1 मीटर गहरा, 4.27 मीटर लंबा और चौड़ा टाँका था। टाँका यहाँ सुविकसित छत वर्षा जल संग्रहण तंत्र का अभिन्न हिस्सा होता है जिसे मुख्य घर के आंगन में बनाया जाता था। वे घरों की ढलवाँ छतों से पाइप द्वारा जुड़े हुए थे। छत से वर्षा का पानी इन नालो से होकर भूमिगत टाँका तक पहुंचता था जहां इसे एकत्रित किया जाता था। टाँका में वर्षा जल अगली वर्षा ऋतु तक संग्रहित किया जा सकता है। यह इसे जल की कमी वाली ग्रीष्म ऋतु तक पीने का जल उपलब्ध करवाने वाला जल स्रोत बनाता है।