परम्परागत वर्षा जल संग्रहण की पद्धतियों को आधुनिक काल में अपना कर जल संरक्षण एवं भंडारण किस प्रकार किया जा रहा है।
आज भी भारत के कई ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में जल संग्रहण और भंडारण का तरीका प्रयोग में लाया जाता है-
(i) पश्चिमी भारत में छत वर्षा जल संग्रहण की विधि प्रचलित है। छत वर्षा जल को पी.वी.सी. पाइप द्वारा एकत्र किया जाता है। रेत और ईंट प्रयोग करके जल का छानन किया जाता है। भूमिगत पाइप द्वारा जल हौज तक ले जाया जाता है जहाँ इसे तुरंत प्रयोग में किया जाता है। अतिरिक्त जल को कुएँ तक ले जाया जाता है।
(ii) कर्नाटक के मैसूर जिले में स्थित एक सुदूर गाँव में गंडाथूर के ग्रामीणों ने अपने घर में जल आवश्यकता पूर्ति छत वर्षा जल संग्रहण की व्यवस्था की हुई है। गाँव के लगभग 200 घरों में यह व्यवस्था है और इस गाँव में वर्षा जल संपन्न गाँव की ख्याति अर्जित की है। इस गाँव में हर वर्ष लगभग 1,000 किलोमीटर वर्षा होती है और 10 भराई के साथ यहाँ संग्रहण दक्षता 80 प्रतिशत है। यहाँ हर घर लगभग प्रत्येक वर्ष 50,000 मीटर जल का संग्रह और उपयोग कर सकता है। 20 घरों द्वारा हर वर्ष लगभग 1000,000 लीटर जल एकत्रित किया जाता है।
(iii) तमिलनाडु देश एक मात्र राज्य है जहाँ पूरे राज्य में हर घर में छत वर्षाजल संग्रहण धातु का बनाना आवश्यक कर दिया गया है। इस संदर्भ में दोषी व्यक्ति पर कानूनी कार्यवाही हो सकती है।
(iv) मेघालय की राजधानी शिलांग में छत वर्षा जल संग्रहण प्रचलित है। चेरापूंजी और मॉनिनराम विश्व की सबसे अधिक वर्षा होती है। शिलांग में 55 किलोमीटर की दूरी पर ही स्थित है और यह शहर पीने के जल की कमी की गंभीर समस्या का सामना करता है। शहर के लगभग हर घर में छत वर्षा जल संग्रहण की व्यवस्था है। घरेलू जल आवश्यकता की कुल माँग के लगभग 15-25 हिस्से की पूर्ति जल संग्रहण व्यवस्था से ही होती है।