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उपन्यास परीक्षा-गुरु में दर्शायी गई नए मध्यवर्ग की तसवीर
उपन्यास परीक्षा-गुरु दिल्ली के श्रीनिवास दास द्वारा लिखी गई। इसका प्रकाशन 1882 में हुआ था। इस उपन्यास में खुशहाल परिवारों के युवाओं को बुरी संगत के नैतिक खतरों से आगाह किया गया।
परीक्षा -गुरु से नव-निर्मित मध्यवर्ग की भीतरी व बाहरी दुनिया का पता चलता है। उपन्यास के चरित्रों को औपनिवेशिक शासन से क़दम मिलाने में कैसी मुसीबतें आती हैं और अपनी सांस्कृतिक अस्मिता को लेकर वे क्या सोचते हैं, यह इस उपन्यास का कथ्य है। औपनिवेशिक आधुनिकता की दुनिया उनको एक साथ भयानक और आकर्षक मालूम पड़ती है। उपन्यास पाठक को जीने के 'सही तरीके' बताता है और प्रत्येक 'विवेकवान' इंसान से यह आशा करता है कि वे समाज-चतुर और व्यावहारिक बने पर साथ ही अपनी संस्कृति और परम्परा में जमे रहकर सम्मान और गरिमा का जीवन जिएँ।