टूटे-फूटे खंडहर, सभ्यता और संस्कृति के इतिहास के साथ-साथ धड़कती जिंदगियों के अनहुए समयों का भी दस्तावेज होते हैं-इस कथन का भाव स्पष्ट कीजिए।
सिंधु घाटी की खुदाई में मिले स्तुप, गढ़, स्नानागार, टूटे-फूटे घर, चौड़ी और कम चौड़ी सड़के, गलियाँ, बैलगाड़ियाँ, सीने की सुइयाँ, छोटी-छोटी नावें किसी भी सभ्यता एवं संस्कृति का इतिहास कही जा सकती हैं। इन टूटे-फूटे घरों के खंडहर उस सभ्यता की ऐतिहासिक कहानी बयान करते हैं। मिट्टी के बर्तन, मूर्तियाँ, औजार आदि चीजें उस सभ्यता की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को नापने का बढ़िया औजार हो सकते हैं परंतु मुअनजोदड़ों के ये टूटे-फूटे घर अभी इतिहास नहीं बने हैं। इन घरों में अभी धड़कती जिंदगियों का अहसास होता है। संस्कृति और सभ्यता से जुड़ा सामान भले ही अजायबघर में रख दिया हैं परंतु शहर अभी वहीं हैं जहाँ कभी था अभी भी आह इसे शहर की किसी दीवार के साथ पीठ टिका कर सुस्ता सकते हैं। वे घर अब चाहे खंडहर बन गए हों परंतु जब आप इन घरों की देहरी पर कदम रखते हैं तो आप थोड़े सहम जाते हैं क्योंकि यह भी किसी का घर रहा होगा। जब किसी के घर में अनाधिकार में प्रवेश करते हैं तो डर लगना स्वाभाविक है। आप किसी रसोई की खिड़की के साथ खड़े होकर उसमें पकते पकवान की गंध ले सकते हैं। अभी सड़कों के बीच से गुजरती बैलगाड़ियों की रुन-झुन की आवाज सुन सकते हैं। ये सभी घर टूट कर खंडहर बन गए हैं परंतु इनके बीच से गुजरती सांय-सांय करती हवा आपको कुछ कह जाती है। अब ये सब घर एक बड़ा घर बन गए हैं। सब एक-दूसरे में खुलते हैं। लेकिन मानना है कि “लेकिन घर एक नक्शा ही नहीं होता। हर घर का एक चेहरा और संस्कार होता है। भले ही वह पांच हजार साल पुराना घर क्यों न हो।” इस प्रकार लेखक इन टूटे-फूटे खंडहरों से गुजरते हुए इन घरों में किसी मानवीय संवेदनाओं का संस्पर्श करते हैं। इस प्रकार कहा जा सकता है कि टूटे-फूटे खंडहर, सभ्यता और संस्कृति के इतिहास होने के साथ-साथ धड़कती जिंदगी के अनछुए समयों का भी दस्तावेज होते हैं।



