पाठशाला में आनंदा का पहला अनुभव कैसा रहा?
दत्ता जी के कहने पर आनंदा फिर से पाँचवीं कक्षा में जाकर बैठने लगा। उसके नाम के आगे पाँचवीं ‘नापास’ की टिप्पणी लगी हुई थी। पहले दिन उसे उन्हीं लड़कों ने पहचाना जो उसी की गली के थे। आनंदा को यह सब बुरा लगा। उसने सोचा कि उसे उन लड़कों के साथ बैठना पड़ेगा जिन्हें वह मंदबुद्धि समझता था। उसके साथ के सभी लड़के अगली कक्षाओं में चले गए थे। वह स्वयं को अकेला महसूस करने लगा। इस प्रकार आनंदा का पाठशाला में पहला अनुभव अच्छा नहीं रहा।