दत्ता जी राव से पिता पर दबाव डलवाने के लिए लेखक और उसकी माँ को एक झूठ का सहारा लेना पड़ा। यदि झूठ का सहारा न लेना पड़ता, तो आगे का घटनाक्रम क्या होता? अनुमान लगाएँ।
लेखक पाठशाला जाने के लिये तड़पता है। उसके पिता ने उसे स्कूल जाने से रोक दिया है। पिता को मनाने में लेखक और उसकी माँ सफल नहीं हो पाते हैं। गाँव के सबसे अधिक प्रभावशाली व्यक्ति दत्ताजी राव अंतिम उपाय थे। लेखक और उसकी माँ उनके पास जाते हैं। उनसे दबाव डलवाने के लिये उनको एक झूठ का सहारा लेना पड़ता है। इसके बाद दत्ताजी राव के कहने पर लेखक के पिता उसको पढ़ाने के लिए तैयार हो जाते हैं। लेखक पाठशाला जाना शुरू कर देता है। वहाँ दूसरे लडुकों से उसकी दोस्ती होती है। वह पढ़ने के लिए हर तरह का प्रयास करता है। मराठी के एक बहुत अच्छे अध्यापक के प्रभाव में वह कविता भी रचने लगता है। अगर वह झूठ नहीं बोला जाता तो ये सारे घटनाक्रम घटित ही नहीं होते।
झूठ न बोलने से दत्ता जी राव उसके पिता के ऊपर दबाव नहीं दे पाते। उसके पिता अपनी तरह से लेखक के जीवन को ढालता। लेखक का संबंध पढ़ाई-लिखाई से नहीं हो पाता। उसके संघर्ष की कहानी ही नहीं बन पाती। आज जो कहानी हमें जूझने की प्रेरणा देती है, वह आज हमारे सामने नहीं होती। इस तरह झूठ का सहारा लेने से जीवन और सपनों का विकास होता है जिसके आधार पर लेखक अपनी आत्मकथा लिख पाता है।