समता का औचित्य यहीं पर समाप्त नहीं होता। इसका और भी आधार उपलब्ध है। एक राजनीतिज्ञ पुरुष का बहुत बड़ी जनसंख्या से पाला पड़ता है। अपनी जनता से व्यवहार करते समय राजनीतिज्ञ के पास न तो इतना समय होता है, न प्रत्येक के विषय में इतनी जानकारी जिससे वह सबकी अलग-अलग आवश्यकताओं तथा क्षमताओं के आधार वांछित व्यवहार अलग-अलग कर सके। वैसे भी आवश्यकताओं और क्षमताओं के आधार पर भिन्न व्यवहार कितना भी आवश्यक तथा औचित्यपूर्ण क्यों न हो, मानवता के दृष्टिकोण से समाज दो वर्गों और श्रेणियों में नहीं बाँटा जा सकता।
A.
राजनीतिज्ञ जनता की इच्छाओं की पूर्ति क्यों नहीं कर पाता?
B.
‘समता’ से क्या आशय है? उसकी क्या आवश्यकता है?
C.
राजनीतिज्ञ जनता को खुश रखने के लिए क्या कर सकता है?
D.
समाज को दो वर्गों में क्यों नहीं बाँटा जा सकता?
A. राजनीतिज्ञ जनता की इच्छाओं की पूर्ति इसलिए नहीं कर पाता क्योंकि एक ओर बहुत बड़ी जनसंख्या है और दूसरी ओर वह समयाभाव के कारण वह प्रत्येक की आवश्यकता और क्षमता को नहीं पहचान पाता। |
B. ‘समता’ से यह आशय है-मानवमात्र के प्रति समान व्यवहार। मानवता के लिए जाति, धर्म, संप्रदाय से ऊपर उठना सामाजिक विकास के लिए आवश्यक। |
C. राजनीतिज्ञ जनता को खुश करने के लिए समता के आधार पर सबको प्रसन्न कर सकता है। मानवता की स्थापना कर सकता है। |
D. समानता का आधार है सबके साथ समान व्यवहार। आवश्यकता और क्षमता होने या न होने के आधार का वर्गीकरण मानवता के दृष्टिकोण से ठीक नहीं है। अत: समाज को दो वर्गों में नहीं बाँटा जा सकता। |