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बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर

Question
CBSEENHN12026688

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये-
जाति प्रथा पेशे का दोषपूर्ण पूर्वनिर्धारण ही नहीं करती बल्कि मनुष्य को जीवन-भर के लिए एक पेशे में बाँध भी देती है। भले ही पेशा अनुपयुक्त या अपर्याप्त होने के कारण वह भूखों मर जाए। आधुनिक युग में यह स्थिति प्राय: आतंकी है, क्योंकि उद्योग-धंधों की प्रक्रिया व टेक्निक में निरन्तर विकास और कभी-कभी अकस्मात् परिवर्तन हो जाता है, जिसके कारण मनुष्य को अपना पेशा बदलने की आवश्यकता पड़ सकती है और यदि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी मनुष्य को अपना पेशा बदलने की स्वतन्त्रता न हो तो इसके लिए भूखों मरने के अलावा क्या चारा रह जाता है? हिंदू धर्म की जाति प्रथा किसी भी व्यक्ति को ऐसा पेशा चुनने की अनुमति नहीं देती है, जो उसका पैतृक पेशा न हो, भले ही वह उसमें पारंगत हो। इस प्रकार पेशा परिवर्तन की अनुमति न देकर जाति प्रथा भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख व प्रत्यक्ष कारण बनी हुई है।

1. जाति प्रथा पेशे के बारे में क्या गलत काम करती है?
2. आधुनिक युग में यह स्थिति आतंकी क्यों है?
3. हिंदू धर्म की जाति प्रथा व्यक्ति को क्या अधिकार नहीं देती?
4. भारत में जाति प्रथा बेरोजगारी और भुखमरी का कारण क्यों बनी हुई है?



Solution

1.  जाति पेशे के बारे में यह गलत काम करती है कि वह पेशे का पूर्वनिर्धारण कर देती है और व्यक्ति को एक पेशे के साथ बाँध देती है। भले ही वह पेशा उस व्यक्ति के लिए उपयुक्त और पर्याप्त न हो।
2. आधुनिक युग में यह स्थिति इसलिए आतंकी है क्योंकि उद्योग-धंधों की टैक्निक तथा प्रक्रिया मे निरंतर विकास और परिवर्तन होता रहता है। इसके कारण व्यक्ति को अपना पेशा बदलने की आवश्यकता पड़ सकती है पर जाति प्रथा उसे ऐसा नहीं करने देती।
3. हिंदू धर्म की जाति प्रथा किसी भी व्यक्ति को ऐसा पेशा चुनने की स्वतंत्रता नहीं देती जो उसका पैतृक पेशा न हो, भले ही वह उसे करने में कुशलता प्राप्त किए हुए हो।
4. भारत में जाति प्रथा बेरोजगारी और भुखमरी का कारण इसलिए बनी हुई है क्योंकि इसमे पेशा-परिवर्तन की अनुमति नहीं है। एक व्यक्ति को अपना पैतृक पेशा ही करना पड़ता है भले वह उसके लिए उपयुक्त न हो। इससे वह बेरोजगार भी हो सकता है तथा भूखों मरने की स्थिति तक भी पहुँच सकता है।

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लेखक के मत से ‘दासता’ की व्यापक परिभाषा क्या है?

शारीरिक वंश-परंपरा और सामाजिक परंपरा की दृष्टि में असमानता संभावित रहने के बावजूद डॉ. अंबेडकर ‘समता’ को एक व्यवहार्य सिद्धांत मानने का आग्रह क्यों करते हैं? इसके पीछे उनके क्या तर्क हैं?

सही में डॉ. आंबेडकर ने भावनात्मक समत्व और मान्यता के लिए जातिवाद का उन्मूलन चाहा है, जिसकी प्रतिष्ठा के लिए भौतिक स्थितियों व जीवन सुविधाओं का तर्क दिया है। क्या इससे आप सहमत हैं?

आदर्श समाज के तीन तत्त्वों में से एक ‘भ्रातृता’ को रखकर लेखक ने अपने आदर्श समाज में स्त्रियों को भी सम्मिलित किया है अथवा नहीं? आप इस ‘भ्रातृता’ शब्द से कहाँ तक सहमत हैं? यदि नहीं तो आप क्या शब्द उचित समझेंगे?

डॉ. आंबेडकर ने जाति प्रथा के भीतर पेशे के मामले में लचीलापन न होने की जो बात की है-उस संदर्भ में ‘गलता लोहा’ पर पुनर्विचार कीजिए।

कार्य कुशलता पर जाति प्रथा का प्रभाव विषय पर समूह में चर्चा कीजिए। चर्चा के दौरान उभरने वाले बिंदुओं को लिपिबद्ध कीजिए।

आंबेडकर की पुस्तक ‘जाति-भेद का उच्छेद’ की तरह राजकिशोर की पुस्तक भी है ‘जाति कौन तोड़ेगा?’ शिक्षक की सहायता से दोनों उपलब्ध कर पढ़िए।

हिंदी स्वराज नामक पुस्तक में गाँधीजी ने कैसे आदर्श समाज की कल्पना की है, उसे भी पढ़ें।

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