अमृतसर में साफिया को जो कस्टम अफसर मिला वह कहाँ का रहने वाला था? उसने किताब दिखाकर क्या बात बताई?
अमृतसर में साफिया को जो कस्टम अफसर मिला वह ढाका का रहने वाला सुनील दास गुप्त था। उसे 1946 में उसके दोस्त शमसुलइ सलाम ने एक किताब प्यार के साथ भेंट की थी। गुप्त ने जो बात बताई वह यह थी-”जब डिवीजन हुआ तभी आए, मगर हमारा वतन ढाका है, मैं तो कोई बारह--तेरह साल का था। पर नजरुल और टैगोर को तो हम लोग बचपन से पड़ते थे। जिस दिन हम रात यहाँ आ रहे थे उसके ठीक एक वर्ष पहले मेरे सबसे पुराने, सबसे प्यारे, बचपन के दोस्त ने मुझे यह किताब दी थी। उस दिन मेरी सालगिरह थी-फिर हम कलकत्ता (कोलकाता) रहे, पढ़े, नौकरी भी मिल गई, पर हम वतन आते-जाते थे।”