लेखक के पड़ोस में कौन रहते हैं? उनके बारे में क्या बताया गया है?
लेखक के पड़ोस में एक महानुभाव रहते हैं जिनको लोग भगत जी कहते हैं। चूरन बेचते हैं। यह काम करते, जाने उन्हें कितने बरस हो गए हैं लेकिन किसी एक भी दिन चूरन से उन्होंने छ: आने पैसे से ज्यादा नहीं कमाए। चूरन उनका आस-पास सरनाम है। और खुद खूब लोकप्रिय हैं। कहीं व्यवसाय का गुर पकड़ लेते और उस पर चलते तो आज खुशहाल क्या मालामाल होते! क्या कुछ उनके पास न होता! इधर दस वर्षों से लेखक देख रहा है, उनका चूरन हाथों-हाथ बिक जाता है पर वह न उसे थोक देते हैं, न व्यापारियों को बेचते हैं। पेशगी आर्डर कोई नहीं लेते। बँधे वक्त पर अपनी चूरन की पेटी लेकर घर से बाहर हुए नहीं कि देखते-देखते छ: आने की कमाई उनकी हो जाती है। लोग उनका चूरन लेने को उत्सुक जो रहते हैं। चूरन से भी अधिक शायद वह भगत जी के प्रति अपनी सद्भावना का देय देने को उत्सुक रहते हैं। पर छ: आने पूरे हुए नहीं कि भगतजी बाकी चूरन बालकों को मुफ्त बाँट देते है। कभी ऐसा नहीं हुआ है कि कोई उन्हें पच्चीसवाँ पैसा भी दे सके। कभी चूरन में लापरवाही नही हुई है, और कभी रोगी होता भी लेखक ने उन्हें नहीं देखा।
इतना निश्चय मालूम होता है कि इन चूरन वाले भगतजी पर बाजार का जादू नहीं चल सकता।