‘आत्म-परिचय’ कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
‘आत्म-परिचय’ शीर्षक कविता में कवि अपना परिचय देता है। उसका कहना है कि वह समाज (जग) का अंग होते हुए भी उससे अलग व्यक्तित्व का स्वामी है। स्वयं को जानना इस संसार को जानने से भी अधिक कठिन है। समाज से व्यक्ति का नाता खट्टा--मीठा तो होता ही है, पर जगजीवन से पूरी तरह निरपेक्ष रहना संभव नहीं है। यह सही है कि यह दुनिया हमें अपने व्यंग्य बाणों से तथा अपने व्यवहार से हमें काफी कष्ट पहुँचाती है, पर फिर भी हम इससे पूरी तरह कटकर नहीं रह सकते। व्यक्ति की अस्मिता एव पहचान इस दुनिया के कारण ही है। इस दुनिया के साथ हमारा द्विधात्मक एवं धात्मक संबंध है। कवि दुनिया में रहकर इसी से संघर्ष करता है। इस जीवन को अनेक विरोधाभासों के मध्य जीना पड़ता है। कवि इन विरोधाभासों के साथ सामजस्य बिठाते हुए जीवन में मस्ती उतार लाता है।