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भवानी प्रसाद मिश्र

Question
CBSEENHN11012291

कविता के आधार पर कवि के पिता के व्यक्तित्व का शब्दचित्र खींचिए।

Solution

कवि भवानीप्रसाद मिश्र ने कविता में पिता को याद करके उनका शब्दचित्र चित्रित किया है। कवि भवानी प्रसाद मिश्र के पिताजी सरल व्यक्तित्व के धनी और बहादुर प्रकृति के व्यक्तित्व हैं। उनकी भुजाएँ व्रज-सी शक्तिशाली हैं, परन्तु उनका हृदय तो मक्खन के समान कोमल है। वे अभी भी भाग-दौड़ सकते हैं और हँसी के ठहाके लगा सकते हैं। अभी भी उन पर वृद्धावस्था का कोई प्रभाव नहीं है। वे शेर से भी नहीं डरते हैं और उनकी आवाज में भारी दम है। वे प्रतिदिन गीता पाठ करते हैं तथा शारीरिक व्यायाम में दो सौ साठ दंड लगाते हैं। उनका हृदय बरगद के वृक्ष की भाँति कोमल और भावुक है। वे किसी का वियोग सहन नहीं कर पाते हैं। वे सभी का विशेष ध्यान रखते हैं। इसलिए कवि उनकी भावुक प्रकृति को समझकर उन्हें कोई कष्ट नहीं देना चाहता। कवि की इच्छा है कि वे सदैव प्रसन्न और सुखी बने रहें। इसीलिए हरे- भरे सावन से उन्हें धीरज देने की बात कहता है। उन्हें सभी संतानें प्रिय हैं इसीलिए किसी को अलग नहीं देख सकते।

Some More Questions From भवानी प्रसाद मिश्र Chapter

आज पानी गिर रहा है,
बहत पानी गिर रहा है,
रात भर गिरता रहा है,
प्राण मन घिरता रहा है,
बहुत पानी गिर रहा है
घर नजर में तिर रहा है
घर कि मुझसे दूर है जो
घर खुशी का पुर है जो

घर कि घर में चार भाई
मायके मे ‘बहिन आई,
बहिन आई बाप के घर
हाय रे परिताप के घर!
घर कि घर में सब जुड़े हैं
सब कि इतने कब जुड़े हैं
चार भाई चार बहिने
भुजा भाई प्यार बहिने

और माँ बिन - पड़ी मेरी
दु:ख में वह गढ़ी मेरी
माँ कि जिसकी गोद में सिर
रख लिया तो दुख नहीं फिर
माँ कि जिसकी स्नेह- धारा
का यहाँ तक भी पसारा
उसे लिखना नहीं आता
जो कि उसका पत्र पाता।

पिता जी जिनको बुढ़ापा,
एक क्षण भी नहीं व्यापा
जो अभी भी दौड़ जाएँ,
जो अभी भी खिलखिलाएँ
मौत के आगे न हिचकें,
शेर के आगे न बिचकें,
बोल में बादल गरजता
काम में झंझा लरजता
आज गीता-पाठ करके
दंड दो सौ साठ करके,
खूब मुगदर हिला लेकर
मूठ उनकी मिला लेकर

जब कि नीचे आए होंगे
नैन जल से छाए होंगे,
हाय, पानी गिर रहा है,
घर नजर में तिर रहा है,
चार भाई चार बहिनें,
भुजा भाई प्यार बहिनें,
खेलते या खड़े होंगे,
नजर उनको पड़े होंगे।
पिता जी जिनको बुढ़ापा
एक क्षण भी नहीं व्यापा,
रो पड़े होंगे बराबर,
पाँचवें का नाम लेकर

पाँचवाँ मैं हूँ अभागा,
जिसे सोने पर सुहागा
पिता जी कहते रहे हैं,
प्यार में बहते रहे हैं,
आज उनके स्वर्ण बेटे,
लगे होंगे उन्हें हेटे
क्योंकि मैं उनपर सुहागा
बँधा बैठा हूँ अभागा,

और माँ ने कहा होगा,
दुःख कितना बहा होगा,
आँख में किस लिए पानी
वहाँ अच्छा है भवानी
वह तुम्हारा मन समझकर,
और अपनापन समझकर,
गया है सो ठीक ही है,
यह तुम्हारी लीक ही है,
पाँव जो पीछे हटाता,
कोख को मेरी लजाता,
इस तरह होओ न कच्चे,
रो पड़ेंगे और बच्चे,
पिता जी ने कहा होगा,
हाय, कितना सहा होगा,
कहाँ, मैं रोता कहाँ हूँ,
धीर मैं खोता कहाँ हूँ,

हे सजीले हरे सावन,
हे कि मेरे पुण्य पावन,
तुम बरस लो वे न बरसें,
पाँचवें को वे न तरसें,
मैं मजे में हूँ सही है,
घर नहीं हूँ बस यही है,
किंतु यह बस बड़ा बस है,
इसी बस से सब विरस है,

किंतु उनसे यह न कहना
उन्हें देते धीर रहना,
उन्हें कहना लिख रहा हूँ,
उन्हें कहना पढ़ रहा हूँ।
काम करता हूँ कि कहना,
नाम करता हूँ कि कहना,
चाहते हैं लोग कहना,
मत करो कुछ शोक कहना,

और कहना मस्त हूँ मैं,
कातने में व्यस्त हूँ मैं,
वजन सत्तर सेर मेरा,
और भोजन ढेर मेरा,
कूदता हूँ, खेलता हूँ,
दू:ख डट कर ठेलता हूँ,
और कहना मस्त हूँ, मैं,
यों न कहना अस्त हूँ मैं,
हाय रे, ऐसा न कहना,
है कि जो वैसा न कहना,
कह न देना जागता हूँ,
आदमी से भागता हूँ,