Question
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।
गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।
पद में निहित भाव को स्पष्ट कीजिए।
Solution
लक्ष्मण को अपना अपमान करते देख-सुनकर परशुराम ने अपने फरसे को सुधार कर हाथ में ले लिया पर गुरु विश्वामित्र के समझाने पर वे मान गए पर परशुराम अपनी वीरता की डींग हाँकने की आदत का फिर से परिचय दे दिया जिसे सुनकर विश्वामित्र मन ही मन मुस्करा दिए कि ये नहीं समझते कि राम-लक्ष्मण सामान्य क्षत्रिय वीर नहीं थे।