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तुलसीदास - राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

Question
CBSEENHN10002020

 “सामाजिक जीवन में क्रोध की ज़रूरत बराबर पड़ती है। यदि क्रोध न हो तो मनुष्य दूसरे के द्वारा पहुँचाए जाने बाले बहुत से कष्टों की चिर-निवृत्ति का उपाय ही न कर सके।”

आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का यह कथन इस बात की पुष्टि करता है कि क्रोध हमेशा नकारात्मक भाव लिए नहीं होता बल्कि कभी-कभी सकारात्मक भी होता है। इसके पक्ष या विपक्ष में अपना मत प्रकट कीजिए।

Solution

पक्ष में-
वास्तव में ही क्रोध की हमारे सामाजिक जीवन में अत्यधिक जरूरत पड़ती है। यदि मनुष्य क्रोध को पूरी तरह से त्याग दे तो दूसरों के द्वारा दिए जाने वाले कष्टों को वह अपने मन से कभी दूर ही न कर पाए और सदा के लिए घुट- घुट कर कष्ट उठाता रहे। सामाजिक जीवन सुखों-दुःखों से मिल कर बनता है। हमें प्राय: दुःख अपनों से ही नहीं बल्कि बाहर वालों से मिलते हैं। उस पीड़ा को तभी दूर किया जा सकता है जब हम अपने मन में छिपे भावों को क्रोध प्रकट कर के निकाल पाते हैं। जो व्यक्ति कभी क्रोध नहीं करता और जीवन में सदा सकारात्मकता हटना चाहता है लोग उसे कमजोर और कायर मानने लगते हैं। छोटे कच्चे भी क्रोध को रोकर या दुःख प्रकट कर व्यक्त करते हैं। बिना दुःख के क्रोध उत्पन्न ही नहीं होता। क्रोध में सदा बदले की भावना छिपी हुई नहीं होती बल्कि इसमें स्वरक्षा की भावना भी मिली होती है। यदि हमारा पड़ोसी रोज हमें दो-चार टेढ़ी बातें कह जाए तो उस दुःख से बचने के लिए आवश्यक है कि क्रोध करके उसे बतला दिया जाए कि उसका स्थान कौन-सा है और कहाँ है। क्रोध दूसरों में भय को उत्पन्न करता है। जिस पर क्रोध प्रकट किया जाता है यदि वह डर जाता है तो नम्र हो कर पश्चात्ताप करने लगता है तभी क्षमा का अवसर सामने आता है। क्रोध शांति भंग करता है और तत्काल दूसरे में भी क्रोध को उत्पन्न करता है।

विपक्ष में-
क्रोध एक मनोविकार है जो प्राय: दुःख के कारण उत्पनने होता है। प्राय: लोग अपनों पर अधिक क्रोध करते हैं। एक शिशु अपनी माता की आकृति से परिचित हो जाने के बाद जान जाता है कि उसे दूध उसी से प्राप्त होता है तो भूखा होने पर वह उसे देखते ही रोने लगता है और अपने कुछ क्रोध का आभास दे देता है। क्रोध चिड़चिड़ाहट को उत्पन्न करता है। प्राय: क्रोध करने वाला उस तरफ देखता है जिधर वह क्रोध करता है। क्रोध तो क्रोध को उत्पन्न करता है। यदि वह अपनी ओर देखे तो उसे क्रोध शायद आए ही नहीं। क्रोध न करने वाला व्यक्ति अपनी बुद्धि या विवेक पर नियंत्रण रखता है जिस कारण वह अनेक अनर्थों से बच जाता है। महात्मा बुद्ध, गुरु नानक देव, महात्मा गांधी आदि जैसे महापुरुषों ने अपने क्रोध पर विजय पा कर संसार भर में अपना नाम बना लिया था। क्रोध से बच कर हम अपना आत्मिक बल बढ़ा सकते हैं और आंतरिक शक्तियों को अनुकूल कार्यो की ओर लगा सकते हैं। बाल्मीकि ने क्रोध पर विजय प्राप्त कर आदि कवि होने का यश प्राप्त कर लिया था। क्रोध पर नियंत्रण पाकर वैर से बचा जा सकता है। अत: जहाँ तक संभव हो सके मनुष्य को क्रोध से बच कर जीवन-चलाने का व्यवहार करना चाहिए।

Some More Questions From तुलसीदास - राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Chapter

परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन-कौन से तर्क दिए? 

परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुई उनके आधार पर दोनों के स्वभाव की विशेषताएं अपने शब्दों में लिखिए।

लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में लिखिए।

परशुराम ने अपने विषय में सभा में क्या-क्या कहा, निम्न पद्‌यांश के आधार पर लिखिए-
बाल ब्रह्‌मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
      मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।
      गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।

लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताई?

साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर है। इस कथन पर अपने विचार लिखें।

भाव स्पष्ट कीजिये- 
बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पहारू।।

भाव स्पष्ट कीजिये- 
इहाँ कुम्हड़बतिआ कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं।।
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।

भाव स्पष्ट कीजिये-
गाधिसू नु कह ह्रदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ   
अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ ।

पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।