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तुलसीदास - राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद
लक्ष्मण ने परशुराम के अभिमानपूर्ण स्वभाव पर व्यंग्य किया है। वीर वह होता है जो वीरता का प्रदर्शन करे न कि व्यर्थ में डींगें हांके। जब परशुराम ने यह कहा था कि उन्होंने अपनी भुजाओं के बल से कई बार पृथ्वी के क्षत्रिय राजाओं को मिटा कर उनके राज्य ब्राह्मणों को दे दिए थे और उन्होंने सहस्रबाहु की भुजाओं को काट डाला था तो लक्ष्मण ने मुस्करा कर कहा था कि मुनीश्वर तो अपने आप को बहुत बड़ा योद्धा समझते थे और बार -बार कुल्हाड़ी दिखा कर डराना चाहते थे। वे तो फूंक मार कर पहाड़ उड़ाने का कार्य करना चाहते थे। भाव है कि राम और लक्ष्मण ऐसे क्षत्रिय वीर नहीं थे जो सरलता और सहजता से परशुराम से हार जाते।
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परशुराम ने अपने विषय में सभा में क्या-क्या कहा, निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए-
बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।
लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताई?
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