तुलसीदास - राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

Question
CBSEENHN10002023

दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं समझना चाहिए। इस शीर्षक को ध्यान में रखते हुए एक कहानी लिखिए।

Solution

घने जंगल में एक खरगोश उछलता-कूदता तेज चाल से भागा जा रहा था। वह बड़ा प्रसन्न था और मन ही मन सोच रहा था कि उस से तेज तो कोई भी नहीं भाग सकता था। सोचते-सोचते और भागते-भागते उसका ध्यान अपने आस-पास नहीं था। बिना ध्यान भागते हुए वह धीरे-धीरे चलते एक कछुए से टकरा गया। उस के पाँव पर हल्की-सी चोट लगी और वह रुक गया। वह कछुए से बोला-अरे, तुझे चलना तो आता नहीं पर फिर भी मेरे रास्ते में रुकावट बनता है।

कछुआ बोला- भगवान् ने चलने की जितनी क्षमता मुझे दी है, मेरे लिए वही काफी है। मेरा इतनी गति से ही काम चल जाता है।

खरगोश ने व्यंग्य से कहा-नहीं, नहीं। तू तो बहुत तेज भागता है। तू तो मुझे भी दौड़ में हरा सकता है-दौड़ लगाएगा मेरे साथ? कछुए ने कहा-नहीं भाई। मैं तुम्हारे सामने क्या हूँ? तुमसे दौड़ कैसे लगा सकता हूँ?

खरगोश ने उसे उकसाते हुए कहा-अरे, हिम्मत तो कर। एक ही रास्ते पर हम दोनों जा रहे हैं। चल देखते हैं कि बड़े पीपल के पास तालाब तक पहले कौन पहुँचता है। यदि तू जीत गया तो मैं तुम्हें ‘सुस्त’ कभी नहीं कहूँगा। कछुए ने धीमे स्वर में कहा-अच्छा, चल तू। मैं कोशिश करता हूँ। यह सुनते ही खरगोश तेजी से तालाब की दिशा में भागा। बिना पीछे देखे वह लगातार भागता ही गया फिर उसने पीछे मुड़ कर देखा। कछुए का कोई अता-पता नहीं था। खरगोश एक छायादार पेड़ के नीचे बैठ गया। उसने सोचा कि कछुआ तो शाम होने तक उस तक नहीं पहुँच पाएगा। यदि वह इस छाया में कुछ देर सुस्ता ले तो फिर और तेज भाग सकेगा। बैठे-बैठे उसे नींद आ गई। जब उसकी आँख खुली तो हल्का-हल्का अँधेरा होने वाला था। वह तेज गीत से तालाब की ओर भागा। पर जब तालाब के किनारे पहुँचा तो कछुआ वहाँ पहले से ही पहुँच कर उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। उसे देख कछुआ धीरे से मुस्कराया।

खरगोश खिसिया कर बोला- अरे, तू पहुँच गया। मेरी जरा आँख लग गई थी।

कछुआ बोला-कोई बात नहीं। ऐसा हो जाता है पर याद रखना कि तुम्हें दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं समझना चाहिए। ईश्वर ने सबको अलग-अलग गुण दिए हैं।

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Some More Questions From तुलसीदास - राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Chapter

परशुराम ने अपने विषय में सभा में क्या-क्या कहा, निम्न पद्‌यांश के आधार पर लिखिए-
बाल ब्रह्‌मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
      मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।
      गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।

लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताई?

साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर है। इस कथन पर अपने विचार लिखें।

भाव स्पष्ट कीजिये- 
बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पहारू।।

भाव स्पष्ट कीजिये- 
इहाँ कुम्हड़बतिआ कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं।।
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।

भाव स्पष्ट कीजिये-
गाधिसू नु कह ह्रदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ   
अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ ।

पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।

इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य है। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।

निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचान कर लिखिए-
बालकु बोलि बधौं नहि तोही।

निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचान कर लिखिए-
कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।