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आप पढ़ चुके है की 'कानून को कायम रखना और मौलिक अधिकारों को लागू करना' न्यायपालिका का मुख्य काम होता है आपकी राय में इस महत्वपूर्ण काम को करने के लिए न्यायपालिका का स्वतंत्र होना क्यों ज़रूरी है?
'कानून को कायम रखना और मौलिक अधिकारों को लागू करना' न्यायपालिका का मुख्य काम होता हैl इस महत्वपूर्ण काम को करने के लिए न्यायपालिका का स्वतंत्र होना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि नेताओं का न्यायधीश पर जो नियंत्रण रहता है उसकी वजह से न्यायधीश स्वतंत्र रूप से फ़ैसला नहीं ले पातेl स्वतंत्रता का आभाव न्यायधीश को इस बात के लिए मजबूर कर देगा कि वह हमेशा नेता के पक्ष में ही फैसला सुनाए लेकिन भारतीय संविधान में इस तरह की दखलअंदाजी को स्वीकार नहीं किया गया हैl न्यायपालिका नागरिको के मौलिक अधिकारियो की रक्षा में भी अहम भूमिका निभाती है क्योंकि अगर किसी को भी लगता है की उसके अधिकारो का उलंघन हो रहा है तो वह अदालत में जा सकता है फिर चाहे वह सेठ हो या गरीब व्यक्ति होl
अध्याय 1 में मौलिक अधिकारों की सूची दी गई है उसे फिर से पढ़ें। आपको ऐसा क्यों लगता है कि संवैधानिक उपचार का अधिकार न्यायिक समीक्षा के विचार से जुड़ा हुआ है?
संवैधानिक उपचार का अधिकार न्यायिक समीक्षा के विचार से जुड़ा हुआ है क्योंकि दोनों ही इस विचार पर सहमत है कि यदि संसद द्वारा पारित किया गया कोई भी कानून संविधान के आधारभूत ढांचे का उल्लंघन करता है तो वह उस कानून को रद्द कर सकती हैl
नीचे तीनों स्तर के न्यायालय को दर्शाया गया हैl प्रत्येक के सामने लिखिए कि उस न्यायालय में सुधा गोयल के मामले में क्या फ़ैसला दिया थाl अपने जवाब को कक्षा के अन्य विद्यार्थियों द्वारा दिए गए जवाबों के साथ मिलकर देखेंl
सुधा गोयल के मामले में तीनों स्तर के न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले इस प्रकार है-
निचली अदालत- निचली अदालत ने लक्ष्मण, उसकी मां शकुंतला और उनके जेठ सुभाष चंद्र को दोषी ठहराया और तीनों को मौत की सजा सुनाई।
उच्च न्यायालय- उच्च न्यायालय ने लक्ष्मण, शकुंतला और सुभाष चंद्र को निर्दोष बतायाl
सर्वोच्य न्यायालय- सर्वोच्य न्यायालय ने लक्ष्मण और उसकी मां को दोषी ठहराया और उन्हें उम्रकैद कि सजा दीl लेकिन सुभाष को बरी कर दिया क्योंकि उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं थेl
वे सर्वोच्चन्यालय के फैसले के खिलाफ उच्चन्यालय में चले गएl
वे निचली अदालत के फैसले के खिलाफ उच्चन्यालय में चले गएl
अगर आरोपी सर्वोच्यन्यालय के फैसले से संतुष्ट नहीं है तो दोबारा निचली अदालत में जा सकते हैl
सर्वोच्य न्यालय देश का सबसे बड़ा न्यालय हैl उसका फैसला सबको मानना पड़ता हैंl इसके फैसले से असंतुष्ट होकर निचली अदालत में नहीं जा सकतेl
आपको ऐसा क्यों लगता है कि 1980 के दशक में शुरू की गई जनहित याचिका की व्यवस्था सबको इंसाफ दिलाने के लिहाज से एक महत्वपूर्ण कदम थी?
1980 के दशक में शुरू की गई जनहित याचिका की व्यवस्था सबको इंसाफ दिलाने के लिहाज से एक महत्वपूर्ण कदम थी क्योंकि इसने उन सभी व्यक्तियों या संगठनों को उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर करने की अनुमति दी जिनके अधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा था। सर्वोच्य न्यालय ने न्याय तक ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगो की पहुँच स्थापित करने का प्रयास कियाl
ओल्गा टेलिस बनाम बम्बई नगर निगम मुक़दमे में दिए गए फ़ैसले के अंशों को दोबारा पढ़िएl इस फ़ैसले में कहा गया है की आजीविका का अधिकार जीवन के अधिकार का हिस्सा हैl अपने शब्दों में लिखिए की इस बयान से जजों का क्या मतलब है?
कोई भी व्यक्ति आजीविका के साधन के बिना जीवित नहीं रह सकता है। ओल्गा टेलिस बनाम बम्बई नगर निगम मुक़दमे में झुग्गी-झोपडी में रहने वाले लोगो को उनके स्थान से हटाने की मांग की जा रही हैl उन झुगियो में रहने वाले लोग शहर में छोटे-मोटे काम करते हैl यदि उन्हें वहां से हटा दिया गया तो उनके रोजगार के साधन ख़तम हो जायेंगेl वे अपनी आजीविका से अलग हो जायेंगे और इस प्रकार जीवन से भी वंचित हो जाएँगेl अतः यह कहा जा सकता है की जीवन की अधिकार से मतलब है- होगा की रोटी, कपडा, मकान जैसी मूलभूत आवश्यकताओ की पूर्तिl
'इंसाफ में देरी यानि इंसाफ का क़त्ल' इस विषय पर कहानी बनाइएl
श्रीमान शंकर एक सरकारी कर्मचारी थेl उन्होंने अपना पुश्तैनी मकान किराए पर दिया हुआ था और सरकारी मकान में रहते थेl नौकरी ख़तम होने के बाद जब वे दोबारा अपने पुश्तैनी मकान में रहने आये और उन्होंने किरायदार को मकान खाली करने को कहा तो उसने मकान खाली करने से इंकार कर दियाl श्रीमान शंकर को किराय के माकन में रहना पड़ाl उन्होंने कोर्ट में किरायदार के खिलाफ याचिका दायर कीlपांच साल केस चलने के बात जिला अदालत ने मकान मालिक श्रीमान शंकर के पक्ष में फैसला सुनाया और वे मुकदमा जीत गएl किरायदार ने जिला अधिकारी के फैसले से असहमत होकर हाई कोर्ट में अपील दायर कर दीl लगातार तारीखें पड़ने लगीl न्याय होने में और दस साल गुजर गएl श्रीमान शंकर को पन्द्रह साल किराय के मकान में रहना पड़ाl उन्होंने महसूस किया की न्याय में विलम्ब एक प्रकार से न्याय का निषेध ही थाl
पाठ्यपुस्तक पृष्ठ संख्या 65 पर शब्द संकलन में दिए गए प्रत्येक शब्द से वाक्य बनाइएl
बरी करना, अपील करना, मुआवजा, बेदखली, उल्लंघनl
(1) बरी करना - उच्च न्यायालय को राघव के खिलाफ हत्या का सबूत न मिलने के कारण उसे बरी करना पड़ाl
(2) अपील करना - हरी ने उच्च न्यायालय के फैसले से असंतुष्ट होकर सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर दीl
(3) मुआवजा - राज्य सरकार ने कारखाने के कर्मचारियों को काम के दौरान हुई दुर्घटना में मिली चोटों के लिए मुआवजा देने की घोषणा की है।
(4) बेदखली - किरायेदार के द्वारा किराया न मिलने पर उसे बेदखल कर दिया गयाl
(5)उल्लंघन - लाल बत्ती पर गाड़ी न रोक कर रमेश ने यातायात के नियमो का उलंघन कियाl
यह पोस्टर भोजन अधिकार अभियान द्वारा बनाया गया है।
इस पोस्टर को पढ़ कर भोजन के अधिकार के बारे में सरकार के दायित्वों की सूची बनाइए।
इस पोस्टर में कहा गया है कि "भूखे पेट भरे गोदाम! नहीं चलेगा, नहीं चलेगा !" इस व्यक्तव्य को पृष्ठ 61 पर भोजन के अधिकार के बारे में दिए गए चित्र निबंध से मिला कर देखिए।
(i) नागरिकों के भोजन के अधिकार के बारे में सरकार के निम्न दायित्व है:
(क) प्रत्येक व्यक्ति को भोजन उपलब्ध कराना।
(ख) यह सुनिश्चित करना कि किसी भी व्यक्ति को भूखा न सोना पड़े।
(ग) भूख की मार सबसे ज्यादा झेलने वाले बेसहारा, बुजुर्ग, विकलांग विधवा आदि पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
(घ) सरकार को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि कुपोषण एवं भूख से किसी भी मृत्यु न हो।
(ii) "भूखे पेट, भरे गोदाम! नहीं चलेगा, नहीं चलेगा!!" यह व्यक्तव्य पृष्ठ संख्या 65 पर दिए गए चित्र निबंध 'भोजन का अधिकार' निश्चित रूप से संबंधित है। चित्र में हम देख सकते हैं कि राजस्थान और उड़ीसा में सूखे कि वजह से लाखों लोगों के सामने भोजन का भारी आभाव पैदा हो गया था। जबकि सरकारी गोदाम अनाज से भरे पड़े थे। इस स्थिति को देखते हुए पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पि.यू.सी.एल.) नमक एक संगठन ने सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की।
याचिका में कहा गया कि संविधान के अनुच्छेद में दिए गए जीवन के मौलिक अधिकारों में भोजन का अधिकार भी शामिल है। राज्य की इस दलील को भी गलत साबित कर दिया गया कि उसके पास संसाधन नहीं है क्योंकि सरकारी गोदाम अनाज से भरे हुए थे। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को आदेश दिया कि वह नए रोजगार पैदा करे। राशन की सरकारी दुकानों के जरिए सस्ती दर पर भोजन उपलब्ध कराए और बच्चों को स्कूल में दोपहर का भोजन दिया जाए।
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