भारतीय इतिहास के कुछ विषय Iii Chapter 12 औपनिवेशिक शहर
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    NCERT Solution For Class 12 इतिहास भारतीय इतिहास के कुछ विषय Iii

    औपनिवेशिक शहर Here is the CBSE इतिहास Chapter 12 for Class 12 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 12 इतिहास औपनिवेशिक शहर Chapter 12 NCERT Solutions for Class 12 इतिहास औपनिवेशिक शहर Chapter 12 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 12 इतिहास.

    Question 1
    CBSEHHIHSH12028344

    औपनिवेशिक शहरों में रिकॉर्ड्स सँभाल कर क्यों रखे जाते थे?

    Solution

    औपनिवेशिक शहरों में रिकॉर्ड्स संभाल कर रखने के निम्नलिखित कारण थे:

    1. इन रिकॉर्डों से शहरों में व्यापारिक गतिविधियाँ, औद्योगिक प्रगति, सफाई, सड़क परिवहन, यातायात और प्रशासनिक कार्याकलापों की आवश्यकताओं को जानने-समझने और उन पर आवश्यकतानुसार कार्य करने में सहायता मिलती थी।
    2. शहरों की बढ़ती-घटती आबादी के प्रतिशत को जानने के लिए भी यह रिकॉर्ड रखा जाता था।
    3. शहरों की चारित्रिक विशेषताओं के अन्वेषण के समय उन रिकॉर्डों का प्रयोग सामाजिक और अन्य परिवर्तनों को जानने के लिए किया जाता था।

    Question 2
    CBSEHHIHSH12028345

    औपनिवेशिक संदर्भ में शहरीकरण के रुझानों को समझने के लिए जनगणना संबंधी आकंड़े किस हद तक उपयोगी होते हैं।

    Solution

    औपनिवेशिक संदर्भ में शहरीकरण के रुझानों को समझने के लिए जनसंख्या के आकंड़े बहुत उपयोगी सिद्ध होते हैं:

    1. ये आँकड़े हमें शहरीकरण की गति दर्शाते हैं। उदाहरण के लिए इन आकंड़ों से हमें पता चलता हैं कि 1800 के बाद हमारे देश में शहरीकरण की रफ़्तार धीमी रहीं हैं। पूरी उन्नीसवीं सदी और बीसवीं सदी के पहले दो दशकों तक देश की कुल आबादी में शहरी आबादी का हिस्सा बहुत मामूली और स्थिर रहा।
    2. इनमें लोगों के व्यवसायों की जानकारी तथा उनके लिंग, आयु व जाती सम्बन्धी सूचनाएँ मिलती हैं। ये जानकारियाँ आर्थिक और सामाजिक स्थिति को समझने के लिए काफी उपयोगी हैं।  
    3. जनगणना संबंधी आँकड़ों से श्वेत एवं अश्वेत शहरों, शहरों के निर्माण, विस्तार, उनमें रहने वाले लोगों के जीवन-स्तर, भयंकर बीमारियों के जनता पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों आदि के विषय में भी महत्त्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध होती है।
    4. जनसंख्या के आकंड़े मृत्यु-दर तथा बीमारियों से मरने वाले लोगों की संख्या बताते हैं। ये आकँड़े स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव को भी दर्शाते हैं।

    Question 3
    CBSEHHIHSH12028346

    ''व्हाइट'' और ''ब्लैक'' टाउन शब्दों का क्या महत्व था?

    Solution

    'व्हाइट'' और ''ब्लैक'' टाउन शब्दों का महत्व:

    1. ''व्हाइट'' और ''ब्लैक'' टाउन शब्द नगर संरचना में नस्ली भेदभाव के प्रतीक थे। अंग्रेज़ गोरी चमड़ी के होते थे इसलिए उन्हें व्हाइट (White) कहा जाता था, जबकि भारतीय को काले (Black) लोग कहा जाता था।
    2. अंग्रेज़ गोरे लोग दुर्गों के अंदर बनी बस्तियों में रहते थे, वही दूसरी ओर, भारतीय व्यापारी, कारीगर और मज़दूर इन किलों से बाहर बनी अलग बस्तियों में रहते थे।
    3. अंग्रेज़ों और भारतीयों के लिए अलग-अलग मकान (क़्वार्टस) बनाए गए थे। दुर्ग के भीतर रहने का आधार रंग और धर्म था। अलग रहने की यह नीति शुरू से ही अपनाई गई थी।
    4. सरकारी रिकार्ड्स में भी भारतीयों की बस्ती को 'ब्लैक टाउन' तथा अंग्रेज़ों की बस्ती को 'व्हाइट टाउन' बताया गया हैं। नए शहरों की संरचना में नस्ल आधारित भेदभाव शुरू से ही दिखता है। यह उस समय और भी तीखा हो गया जब अंग्रेज़ों का राजनीतिक नियंत्रण स्थापित हो गया। 'व्हाइट टाउन' प्रशासकीय और न्यायिक व्यवस्था का केंद्र भी था।

    Question 4
    CBSEHHIHSH12028347

    प्रमुख भारतीय व्यापारियों ने औपनिवेशिक शहरों में खुद को किस तरह स्थापित किया?

    Solution

    प्रमुख भारतीय व्यापारी काफ़ी धनी थे। साथ ही वे पढ़े-लिखे भी थे। वे चाहते थे कि वे भी अंग्रेज़ों के समान 'व्हाइट टाउन' जैसे साफ़-सुथरे इलाकों में ही रहें और उन्हें भी समाज में उचित सम्मान प्राप्त हो। इन उद्देश्य से उन्होंने निम्नलिखित कदम उठाए:

    1. उन्होंने औपनिवेशिक शहरों अर्थात् मुंबई, कलकत्ता और मद्रास में एजेंटों तथा बिचौलियों के रूप में काम करना शुरू कर दिया।
    2. उन्होंने ब्लैक टाउन में बाजारों के आस-पास परंपरागत ढंग के दालानी मकान बनवाए। उन्होंने भविष्य में पैसा लगाने के लिए शहर के अंदर बड़ी-बड़ी ज़मीनें भी खरीद ली थीं।
    3. अपने अंग्रेज स्वामियों को प्रभावित करने के लिए वे त्योहारों के समय रंगीन दावतों का आयोजन करते थे।
    4. समाज में अपनी हैसियत साबित करने के लिए उन्होंने मंदिर भी बनवाए।
    5. मद्रास में कुछ दुभाषा व्यापारी ऐसे भारतीय थे जो स्थानीय भाषा और अंग्रेज़ी, दोनों ही बोलना जानते थे। वे भारतीय समाज तथा गोरों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाते थे।
    6. संपत्ति इकठ्ठा करने के लिए वे सरकार में अपनी पहुँच का प्रयोग करते थे। ब्लैक टाउन में परोपकारी कार्यों और मंदिर को संरक्षण प्रदान करने के कारण समाज में उनकी स्थिति काफी मजबूत थी।

    Question 5
    CBSEHHIHSH12028348

    औपनिवेशिक मद्रास में शहरी और ग्रामीण तत्व किस हद तक घुल-मिल गए थे?

    Solution
    1. औपनिवेशिक मद्रास में शहरी और ग्रामीण तत्व काफ़ी हद तक घुल-मिल गए थे। मद्रास को बहुत- से गाँवों को मिलाकर विकसित किया गया था। धीरे- धीरे भिन्न-भिन्न प्रकार की आर्थिक कार्य करने वाले कई समुदाय आकर मद्रास में बस गए।
    2. विविध प्रकार के आर्थिक कार्य करने वाले अनेक समुदाय यहाँ आए और यहीं बस गए। दुबाश, तेलुगू कोमाटी और वेल्लालार इसी प्रकार के समुदाय थे। दुबाश स्थानीय भाषा और अंग्रेजी दोनों को बोलने में कुशल थे। अतः वे भारतीयों एवं गोरों के बीच मध्यस्थ का काम करते थे।
    3. वेल्लालार नवीन अवसरों का लाभ उठाने वाली एक स्थानीय ग्रामीण जाति थी और तेलुगू कोमाटी अनाज व्यापार में लगा एक प्रभावशाली व्यावसायिक समुदाय था।
    4. 18 वीं शताब्दी से गुजराती बँकर भी यहाँ बस गए थे। पेरियार एवं वनियार गरीब श्रमिक वर्ग के अंतर्गत आते थे।
    5. धीरे-धीरे ऐसे बहुत- से समुदायों की बस्तियाँ मद्रास शहर का भाग बन गई। साथी ही बहुत- से गाँवों को मिलाने के कारण मद्रास शहर दूर-दूर तक फैल गया और इस प्रकार मद्रासी अर्थ ग्रामीण शहर जैसा हो गया।
    Question 6
    CBSEHHIHSH12028349

    अठारहवीं सदी में शहरी केंद्रों का रूपांतरण किस तरह हुआ?

    Solution

    अठारहवीं शताब्दी में शहरी जीवन में अनेक बदलाव आए:

    1. अठारहवीं शताब्दी में नगरों का स्वरूप बदलने लगा। राजनीतिक तथा व्यापारिक पुनर्गठन के साथ पुराने नगर पतनोन्मुख हुए और नए नगरों का विकास होने लगा। मुग़ल सत्ता के पतन के साथ ही उसके शासन से जुड़ें नगरों का भी पतन हो गया। मुग़ल राजधानी नगर दिल्ली और आगरा अपने राजनैतिक प्रभुत्व से वंचित होने लगे।
    2. नई क्षेत्रीय ताकतों का विकास क्षेत्रीय राजधानियों: लखनऊ, हैदराबाद, सेरिंगपटनम, पूना (आज का पुणे), नागपुर, बड़ौदा तथा तंजौर (आज का तंजावुर) का महत्व बढ़ गया।
    3. व्यापारी, प्रशासक, शिल्पकार तथा अन्य लोग पुराने मुगल केन्द्रों से इन नयी राजधानियों की ओर काम तथा संरक्षण की तलाश में आने लगे।
    4. नए राज्यों के बीच निरंतर लड़ाइयों का परिणाम यह हुआ कि भाड़े के सैनिकों को भी यहाँ तैयार रोज़गार मिलने लगा।
    5. इस काल में कुछ स्थानीय विशिष्ट लोगों एवं मुगलसत्ता से सम्बद्ध अधिकारियों द्वारा भी 'कस्बे' एवं 'गंज़' जैसी नवीन शहरी बस्तियों को बसाया गया। उल्लेखनीय है कि ग्रामीण अंचल में एक छोटे नगर को कस्बा कहा जाता था। यह सामान्य रूप से स्थानीय विशिष्ट व्यक्ति का केंद्र होता था। एक छोटे स्थायी बाज़ार को गंज के नाम से जाना जाता था। कस्बा एवं गंज दोनों कपड़ा, फल, सब्जी एवं दूध-उत्पादों से सम्बन्ध होते थे। वे विशिष्ट परिवारों एवं सेना के लिए सामग्री उपलब्ध करवाते थे।
    6. व्यापार-तंत्रों में होने वाले परिवर्तनों ने भी शहरी केन्द्रों के इतिहास को प्रभावित किया। यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों ने पहले, मुराल काल में ही विभिन्न स्थानों पर आधार स्थापित कर लिए थे : पुर्तगालियों ने 1510 मेंपणजी में, डचों ने 16०5 में मछलीपट्नम में, अंग्रेजों ने मद्रास में 1639 में तथा फ्रांसीसियों ने 1673 में पांडिचेरी (आज का पुडुचेरी) में व्यापारिक गतिविधियों में विस्तार के साथ ही इन व्यापारिक केंद्रों के आस-पास नगरों का विकास होने लगा। 
    7. अठारहवीं शताब्दी के अंत तक स्थल-आधारित साम्राज्यों का स्थान शक्तिशाली जल-आधारित यूरोपीय साम्राज्यों ने ले लिया। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, वाणिज्यवाद तथा पूँजीवाद जैसी शक्तियाँ अब समाज के स्वरूप को परिभाषित करने लगी थीं।

    Question 7
    CBSEHHIHSH12028350

    औपनिवेशिक शहर में सामने आने वाले नए तरह के सार्वजनिक स्थान कौन से थे? उनके क्या उद्देश्य थे?

    Solution

    औपनिवेशिक शहर नवीन शासकों की वाणिज्यिक संस्कृति के प्रतिबिंब थे। उनमें नए प्रकार के अनेक सार्वजनिक स्थान अस्तित्व में जो विभिन्न प्रकार के उद्देश्य को पूरा करते थे:

    1. औपनिवेशिक शहर अर्थात् मुम्बई, मद्रास और कलकत्ता में फैक्ट्रियाँ या व्यापारिक केंद्र स्थापित किए गए जहाँ पर व्यापारिक गतिविधियाँ, सामान का लेन-देन और गोदामों में उन्हें रखा जाता था। इन
      फैक्ट्रियों में कंपनी के कर्मचारी और अधिकारी भी रहते थे।
    2. इन शहरों को बन्दरगाहों के रूप में इस्तेमाल किया गया। यहाँ जहाजों को लादने और उनसे उतारने का काम होता था।
    3. शहरों के नक्शे बनवाए गए, आँकड़े इकट्टे किए गए, सरकारी रिपोर्ट प्रकाशित की गई। ये सभी दस्तावेज प्रशासनिक दफ्तरों में होते थे। शहरों के रख-रखाव के लिए नगरपालिकाएँ बनाई गई जो शहरों में जलापूर्ति, सड़क निर्माण, स्वास्थ्य जैसी सेवाएँ उपलब्ध करवाती थी तथा लोगों की मृत्यु और जन्म के रिकॉर्ड भी रखती थीं।
    4. 1853 के बाद से इन शहरों में रेलवे स्टेशन, रेलवे वर्कशाप और रेलवे कॉलोनियाँ और रेलवे लाइन के नेटवर्क बिछाए गए। इस प्रकार नए शहर बंदरगाहों, किलों, सेवा केन्द्रों और रेलवे स्टेशनों जैसे सार्वजनिक स्थानों से भर गए।
    5. 19वीं शताब्दी के मध्य में औपनिवेशिक शहरों को दो हिस्सों में बाँट दिया गया जिन्हें क्रमशः सिविल लाइन या श्वेत लोगों का क्षेत्र और देसियों के क्षेत्र या अक्षेत टाउन कहा गया। इनमें क्रमशः श्वेत रंग के यूरोपीय और दूसरे भाग में अश्वेत रंग के देसी या भारतीय लोग रहते थे।
    6. भूमिगत पाइप द्वारा जलापूर्ति की व्यवस्था करने के साथ-साथ पक्की नालियाँ भी निर्मित की गईं। इसका उद्देश्य सफाई को सुनिश्चत करना था।
    7. कुछ शहरों को औपनिवेशिक हिल स्टेशनों के रूप में विकसित किया गया; जैसे-शिमला, दार्जिलिंग, माउट आबू, मनाली। इनका उद्देश्य गर्मी के दिनों में प्रशासनिक गतिविधियों को चलाना और उच्च अधिकारियों को स्वास्थ्यवर्धक जलवायु और वातावरण वाला आवास प्रदान करना था।
    8. नए शहरों में घोडागाड़ी, ट्राम, बसें, टाउन हाल, सार्वजनिक पार्क, सिनेमा हाल. रंगशालाएँ. प्रत्येक क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले विभिन्न सेवक, कर्मचारी, शिक्षक, एकाउंटेंट और शिक्षा से जुड़ी संस्थाएँ; जैसे स्कूल, कॉलेज, लाइब्रेरी आदि उपलब्ध थे। कुछ सार्वजनिक केन्द्र या सामुदायिक भवन भी थे यहाँ समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ आदि लोगों को उपलब्ध हो सकती थीं।

    Question 8
    CBSEHHIHSH12028351

    उन्नीसवीं सदी में नगर-नियोजन को प्रभावित करने वाली चिंताएँ कौन सी थीं?

    Solution

    उन्नीसवीं सदी में नगर-नियोजन को प्रभावित करने वाली मुख्य चिंताएँ निम्नलिखित थीं:

    1. एक अन्य विद्रोह की आशंका: वास्तव में 1857 ई० के विद्रोह ने भारत में औपनिवेशिक अधिकारियों को इतना अधिक भयभीत कर दिया था कि उन्हें सदैव विद्रोह की आशंका बनी रहती थी। उनको लगता था कि शहरों की और अच्छी तरह हिफाजत करना जरूरी है और अंग्रेजों को '' देशियों'' (Natives) के ख़तरे से दूर, ज्यादा सुरक्षित व पृथक बस्तियों में रहना चाहिए । पुराने कस्बों के इर्द-गिर्द चरागाहों और खेतों को साफ कर दिया गया। '' सिविल लाइन्स '' के नाम से नए शहरी इलाके विकसित किए गए। इन इलाकों में केवल गोरों को बसाया गया। 
    2. छावनियों की सुरक्षा: छावनियों को भी सुरक्षित स्थानों के रूप में विकसित किया गया। छावनियों में यूरोपीय कमान केअंतर्गत भारतीय सैनिक तैनात किए जाते थे। ये इलाके मुख्य शहर से अलग लेकिन जुड़े हुए होते थे। चौड़ी सड़कों, बड़े बगीचों में बने बंगलों, बैरकों, परेड मैदान और चर्च आदि से लैस ये छावनियाँयूरोपीय लोगों के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल थी।
    3. रंग-भेदभाव तथा जाति-भेदभाव के आधार पर शहरों का विभाजन तथा उनमें सार्वजनिक सुविधाओं के अलग-अलग स्तर को बनाए रखना भी नगर-नियोजन की एक चिंता थी। अंग्रेज़ों की दृष्टि में भारतीय असभ्य थे। वे उन्हें अपने क्लबों और सार्वजनिक स्थानों का प्रयोग करने की अनुमति नहीं देना चाहते थे।
    4. सत्ता की ताकत का प्रदर्शन: औपनिवेशिक शासक भारतीय प्रजा पर अपनी शक्ति तथा श्रेष्ठता की धाक जमाना चाहते थे। अत: गोरी बस्तियों में भवन-निर्माण का कार्य यूरोपीय स्थापत्य शैलियों के अनुसार किया गया।
    5. नगर को समुद्र के निकट बसाना 19वीं शताब्दी के नगर-नियोजन की एक प्रमुख चिंता थी। औपनिवेशिक सरकार नगरों को समुद्र के निकट विकसित करना चाहती थी ताकि यूरोपीयों के व्यापारिक उद्देश्यों की पूर्ति भली-भाँति की जा सके। भारत का माल सरलतापूर्वक यूरोप में भेजा जा सके और यूरोपीय माल बिना किसी कठिनाई के भारत लाया जा सके।
    6. स्वास्थ्य की चिंता: शहर के भारतीय आबादी वाले भाग की भीड़-भाड़, आवश्यकता से अधिक हरियाली, गंदे तालाबों, बदबू और नालियों की खस्ता हालत आदि भी नगर-नियोजन को प्रभावित करने वाली चिंताएँ थीं। यूरोपीयों का विचार था कि दलदली जमीन एवं ठहरे हुए पानी के तालाबों से विषैली गैसें उत्पन्न होती थीं जो विभिन्न बीमारियों का प्रमुख कारण थीं।

    Question 9
    CBSEHHIHSH12028352

    नए शहरों में सामाजिक संबंध किस हद तक बदल गए?

    Solution

    औपनिवेशिक शासन में नए नगरों के सामाजिक जीवन में कई महत्वपूर्ण बदलाव आए। इनमें मुख्य बदलाव निम्नलिखित थे:

    1. यातायात के साधनों का विकास: घोड़ागाड़ी जैसे नए यातायात साधन और बाद में ट्रामों और बसों के आने से यह हुआ कि अब लोग शहर के केंद्र सेदूर जाकर भी बस सकतेथे। समय के साथ काम की जगह और रहने की जगह, दोनों एक-दूसरे से अलग होते गए । घर से दफ्तर या फैक्ट्री जाना एक नए किस्म का अनुभव बन गया।
    2. मनोरंजन तथा मिलने-जुलने के नए सावर्जनिक स्थल: नए शहरों का सामाजिक संबंध पहले के शहरों से बहुत कुछ अलग था। पुराने शहरों में लोगों में आपसी मेल-जोल कम हो चूका था। लेकिन टाउन हॉल, सार्वजनिक पार्क, रंगशालाओं और बीसवीं सदी में सिनेमा हॉलों जैसे सार्वजनिक स्थानों के बनने से शहरों में लोगों को मिलने-जुलने की उत्तेजक नयी जगह और अवसर मिलने लगे थे। शहरों में नए सामाजिक समूह बने तथा लोगों की पुरानी पहचानें महत्त्वपूर्ण नहीं रहीं।
    3. मध्यवर्ग का विस्तार: नए शहर मध्य वर्ग के केंद्र बन चुके थे। इस वर्ग में शिक्षक, वकील, डॉक्टर, इंजीनियर, क्लर्क तथा एकाउंटेंट्स इत्यादि थे। नतीजा, '' मध्यवर्ग '' बढ़ता गया। उनके पास स्कूल, कॉलेज और लाइब्रेरी जैसे नए शिक्षा संस्थानों तक अच्छी पहुँच थी। शिक्षित होने के नाते वे समाज और सरकार के बारे में अखबारों, पत्रिकाओं और सार्वजनिक सभाओं में अपनी राय व्यक्त कर सकते थे। इस प्रकार एक नया सार्वजनिक वातावरण तैयार हुआ।
    4. महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन: नई शहरी में नए अर्थतंत्र के विकास से महिलाओं के लिए नए अवसर उत्पन्न हो गए थे। सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं की उपस्थिति बढ़ने लगीं। वे घरों में नौकरानी, फैक्ट्री में मज़दूर, शिक्षिका, रंग-कर्मी तथा फिल्मों में कार्य करती हुई दिखाई देने लगीं। उल्लेखनीय है कि सार्वजनिक स्थानों पर कामकाज करने वाली महिलाओं को लंबे समय तक सम्मानित दृष्टि से नहीं देखा जाता था क्योंकि रूढ़िवादी विचारों के लोग पुरानी परंपराओं और व्यवस्था को बनाए रखने का समर्थन कर रहे थे। वे परिवर्तन के विरोधी थे।
    5. मेहनतकश, गरीबों या कामगारों में वृद्धि: शहरों में मेहनतकश गरीबों या कामगारों का एक नया वर्ग उभर रहा था। ग्रामीण इलाकों के गरीब रोजगार की उम्मीद में शहरों की तरफ आए थे। कुछ लोगों को शहर नए अवसरों का स्रोत दिखाई देते थे।

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