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(क) पाठ-तुम कब जाओगे, अतिथि, लेखक-शरद जोशी।
(ख) कैलेंडर शब्द द्वारा लेखक अतिथि को यह अहसास दिलाना चाहता है कि मेहमानबाजी करवाते हुए अधिक दिन हो गए है। अब उसे चले जाना चाहिए।
(ग) अंतरिक्ष यात्री भी चांद पर अधिक -दिनों की यात्रा करने के उपरान्त भी वहाँ पर नहीं रूके थे।
(घ) अनेक उपाय करने के पश्चात् भी अतिथि के न लौटने पर अपनी विवशता व्यक्त करना ही उस शब्दावली की व्यंग्यात्मकता है।
(क) पाठ- तुम कब जाओगे,अतिथि, लेखक-शरद जोशी।
(ख) मेहमान के आते ही लेखक का हृदय किसी अज्ञात आशंका से धड़क उठा। उसे डर लगा कि यह आदमी न जाने कब तक ठहरेगा। इसे न चाहते हुए भी झेलना पड़ेगा। उसका बटुआ भी काँप उठा। मेहमान को खुश रखने के लिए पैसा खर्च करना लेखक को असहनीय लगा।
(ग) लेखका तथा उसकी पत्नी अचानक अतिथि के आ जाने से प्रसन्न नहीं थे। फिर भी उन्होंने स्नेहपूर्वक उनका स्वागत किया। लेखक उसे प्रेमपूर्वक गले मिला और पत्नी ने सादर नमस्ते की।
(घ) मेहमान का शानदार स्वागत करने के लिए रात्रि भोज को ‘डिनर’ जैसा शानदार बनाया गया। दो-दो सब्जियाँ बनाई गई रायता बनाया तथा एक मीठा भी बनाया। इस प्रकार उसका शानदार स्वागत किया गया।
(क) पाठ - तुम कब जाओगे,अतिथि, लेखक-शरद जोशी।
(ख) लेखक का अतिथि अनचाहे रूप से दो दिन ठहर चुका था। तीसरे दिन उसे चले जाना था परन्तु जाने की बजाय उसने धोबी से कपड़े धुलवाने की इच्छा प्रकट की। यह समाचार लेखक के दिल पर आघात की तरह था उसे आशा नहीं थी कि वह इस तरह आकर जम जाएगा।
(ग) लेखक को इस बात का अनुमान ही नहीं था कि यह अतिथि एक बार आने के बाद जाने का नाम नहीं लेगा। उसकी रहने की अवधि अचानक बढ़ती चली जाएगी।
(घ) भारतीय परम्परा के अनुसार अतिथि को देवता के समान माना जाता है। यदि अतिथि थोड़ी देर के लिए आए और सम्मानपूर्वक विदा हो जाए तो वह देवता होता है। परन्तु लंबे समय तक जम जाने के कारण वही देवता तुल्य अतिथि राक्षस प्रतीत होने लगता है।
(क) पाठ-तुम कब जाओगे,अतिथि, लेखक-शरद जोशी।
(ख) लेखक अपने घर पर टिके मेहमान से बहुत परेशान है। उसने सोचा था कि वह एकाध दिन ठहर कर चला जाएगा परन्तु जब चार दिन बाद भी उसने जाने का नाम नहीं लिया तो वह परेशान हो उठा।
(ग) अपने घर को ‘स्वीट होम’ इसलिए कहा जाता है। क्योंकि वहाँ सब हमारे अपने होते है, किसी प्रकार की औपचारिकता, शालीनता या बोरियत नहीं होती, मनुष्य अपने स्वभाव के अनुसार वहाँ उठ बैठ और खा-पी सकता है।
(घ) लेखक चार दिनों से अपने घर जमे मेहमान को 'गेट आउट' कहने की धमकी दे रहा था क्योंकि वह मेहमान के अनचाहे रूप से टिकने के कारण बहुत परेशान है।
(क) पाठ-तुम कब जाओगे, अतिथि, लेखक-शरद जोशी।
(ख) लेखक खर्राटों का प्रसंग उठाकर यह कहना चाहता है कि उसके घर आया हुआ मेहमान बड़े आराम से मजे लूट रहा है। उसे घर जाने की चिन्ता नहीं है। वह मानो उसे अपना घर मानकर वही बस गया है।
(ग) लेखक अतिथि से अपेक्षा करता है। कि वह शीघ्र ही उसका घर छोड़कर चला जाए। उसे रहते हुए चार दिन हो चुके हैं। पाँचवे दिन की सुबह होते ही उसे अपने घर चले जाना चाहिए।
(घ) देवता थोड़े समय के लिए दर्शन देकर चले जाते है। मनुष्य उनका सम्मान करते है। मनुष्य अधिक देर तक देवता को झेल नहीं पाता। इसी प्रकार अतिथि भी थोड़े समय के लिए ही तो अच्छा लगता है। अधिक समय तक वह उसे झेल नहीं पाता।
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जब अतिथि चार दिन तक नहीं गया तो लेखक के आतिथ्य में कमी आ गई। लंच और डिनर की विविधता कम हो गई। वह उसके जाने की प्रतीक्षा करने लगे। कभी कैलेंडर दिखाकर तो कभी नम्रता की आँखे दिखाकर। स्नेह-भीगी मुस्कुराहट कुछ ही दिनों में गायब हो जाती है। घर की शांति गड़बड़ाने लगती है। समीपता दूरी में बदलने लगती है। वे उसे स्टेशन तक छोड़ने जाना चाहते हैं परन्तु अतिथि है कि जाने का नाम नहीं लेता। लेखक के व्यवहार में निम्न परिवर्तन आए-
1. खाने का स्तर डिनर से गिरकर खिचड़ी तक आ पहुंचा।
2. वह गेट आउट कहने को भी तैयार हो जाता है।
3. लेखक को अतिथि राक्षस के समान लगने लगता है।
4. अब अतिथि के प्रति सत्कार की कोई भावना नहीं बनी रहती।
5. भावनाएँ अब गालियों का स्वरूप ग्रहण करने लगती हैं।
चाँद - चंद्रमा, शशि
जिक्र - पूछना, कहना
आघात - चोट, प्रहार
उष्मा - गर्मी, ऊर्जा
अंतरंग - घनिष्ठ, गहरा
'अतिथि देवो भव ' उक्ति की व्याख्या करें तवा आधुनिक युग के सदंर्भ में इसका आकलन करें?
दूसरे दिन मन में आया कि बस इस अतिथि को अब और अधिक नहीं झेला जा सकता।
- तीसरे दिन उसका देवत्व समाप्त हो गया वह राक्षस दिखाई देने लगा।
- चौथे दिन मुस्कान फीकी पड़ गई। बातचीत रूक गई। डिनर की बजाय खिचड़ी, बन गई। मन में आया कि उसे ‘गेट आउट’ कह दिया जाए।
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