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सिन्धु सभ्यता साधन सम्पन्न थी, पर उसमें भव्यता का आडम्बर नहीं था, कैसे?
उत्तर-इस लेख के आधार पर हम कह सकते हैं कि सिन्धु सभ्यता साधन सम्पन्न थी पर उसमें भव्यता का आडम्बर नहीं था। इस बात के पीछे ठोस कारण हैं। मोहन-जोदड़ो शहर का व्यवस्थित ढाँचा और मकानों की बनावट आदि से पहली नजर में यह बात सामने आ जाती है। वहाँ की सड़कों की बनावट सीधी सादी थी। सड़कें उचित रूप से चौड़ी और साफ थीं। मकान की बनावट बहुत भव्य नहीं थी। अधिकांश मकानों पर सामूहिक अधिकार था। स्नानागार, पूजास्थल सामुदायिक भवनों आदि के आधार पर यह बात प्रमाणित होती है। ताँबे का उपयोग, कपास का उपयोग, खेती करने का प्रमाण, दूसरे देशों से व्यापार आदि के माध्यम से हमें पता चलता है कि यह सभ्यता हर तरह से साधन सम्पन्न थी। हड़प्पा संस्कृति में भव्य राजप्रसाद या मंदिर जैसी चीजें नहीं मिलती हैं। इसी के साथ वहाँ न तो राजाओं से जुड़े कोई भव्य चिह्न मिलते हैं और न संतों-महात्माओं की समाधियाँ। वहाँ मकान हैं तो उचित रूप में। अगर मूर्ति शिल्प है तो छोटे-छोटे, इसी प्रकार औजार भी होते ही हैं। लेखक इन्हीं बातों के आधार पर कहता है कि मुअन जो-दड़ो सिन्धु सभ्यता का सबसे बड़ा शहर ही नहीं था बल्कि उसे साधनों और व्यवस्थाओं को देखते हुए सबसे समृद्ध भी माना गया है। फिर भी उसकी सम्पन्नता की बात कम हुई है तो शायद इसलिए कि इसमें भव्यता का आडंबर नहीं है।
सिन्धु सभ्यता की खूबी उसका सौन्दर्य बोध है जो राजपोषित या धर्मपोषित न होकर समाज पोषित था। ऐसा क्यों कहा गया?
लेखक का मानना है कि मोहन-जोदड़ों की सभ्यता साधन सम्पन्न थी। यह सभ्यता भव्यता के स्थान पर कलात्मकता पर अधिक जोर देती थी। इस तरह इस सभ्यता के लोगों की रुचि बोध कला से जुड़ा माना जाता है। वास्तुकला या नगर नियोजन ही नहीं धातु और पत्थर की मूर्तियों, मृदमांड, ऊपर चित्रित मनुष्य वनस्पति और पशु-पक्षियों की छवियाँ, सुनिर्मित मुहरें, उन पर बारीकी से उत्कीर्ण आकृतियाँ, खिलौने केश-विन्यास आभूषण और सबसे ऊपर सुघड़ अक्षरों का लिपिरूप सिन्धु सभ्यता को तकनीक सिद्ध से ज्यादा कला-सिद्ध जाहिर करता है। यह सभ्यता धर्मतंत्र या राजतंत्र की ताकत का प्रदर्शन करने वाली महलों, उपासना स्थलों आदि का निर्माण नहीं करती है। वह आम आदमियों से जुड़ी चीजों को सलीके से रचती है। इन सारी चीजों में उसका सौन्दर्य बोध उभरता है। इन्हीं बातों के आधार पर कहा गया है कि “सिन्धु सभ्यता की खूबी उसका सौन्दर्य बोध है जो राजपोषित या धर्मपोषित न होकर समाज पोषित था।” निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं : (i) सिन्धु सभ्यता-समाज पोषित संस्था का समर्थन करती थी। (ii)सभ्यता ताकत के बल पर न होकर आपसी समझ पर आधारित। (iii) सभ्यता में आडंबर न होकर सुंदरता थी। (iv) तरह से समाज स्वानुशासित। (v) समाज में सौंदर्य बोध था न कि कोई राजनीतिक या धार्मिक आडंबर।
यह पुरातत्त्व के किन चिन्हों के आधार पर आप कह सकते हैं कि “सिन्धु सभ्यता ताकत से शासित की होने की अपेक्षा समझ से अनुशासित सभ्यता थी।
सिन्धु सभ्यता के दो शहर मोहन-जोदड़ो और हड़प्पा बहुत अधिक प्रसिद्ध हैं। मोहन-जोदड़ो का नगर नियोजन बेमिसाल है। यहाँ की सड़कों और गलियों के विस्तार को यहाँ के खंडहरों को देखकर ही जाना जा सकता है। यहाँ की हर सड़क सीधी है या फिर आड़ी। यदि हम इस शहर की बनावट पर नजर डालें तो पता चलता है कि शहर से जुड़ी हर चीज अपने सही स्थान पर है। इसके लिए हम चबूतरे के पीछे ‘गढ’, उच्चवर्ग की बस्ती, महाकुंड, स्नानागार ढकी एवं व्यवस्थित नालियाँ, अन्न का कोठार सभा-भवन के तौर प्रयोग होने वाला बड़ा भवन, घरों की बनावट सब घरों का एक कतार में होना, भव्य राजप्रसादों का समाधियों का न होना आदि ऐसी चीज हैं जिनके आधार पर हम कह सकते हैं कि सिन्धु सभ्यता ताकत से शासित की अपेक्षा समझ से अनुशासित सभ्यता थी। इस सभ्यता से जुड़ी हर बात आज के विद्वानों को आश्चर्य में डालती है। यहाँ के शहर नियोजन से लेकर सामाजिक संबंधों तक में आम जीवन से जुड़े अनुशासन से व्यक्त होता है।
“यह सच है कि यहाँ किसी आँगन की टूटी-फूटी सीढ़ियाँ अब आप को कहीं नहीं ले जातीं; वे आकाश की तरफ अधूरी रह जाती हैं। लेकिन उन अधूरे पायदानों पर खड़े होकर अनुभव किया जा सकता है कि आप दुनिया की छत पर हैं, वहाँ से आप इतिहास को नहीं उसके पार झाँक रहे हैं।” इसके पीछे लेखक का क्या आशय है?
लेखक इस वाक्य का प्रयोग मुअन जो-दड़ो जाने के बाद करता है। मुअन जो-दड़ो में सिन्धु सभ्यता के खण्डहर बिखरे हैं। वास्तविकता में यह जगह केवल खंडहर वाली है। इतिहास यह बताता है कि यहाँ कभी पूरी आबादी अपना जीवन व्यतीत करती थी। पुरातात्विक या ऐतिहासिक स्थान का महत्त्व सामान्य तौर पर ज्ञान से सबंधित होता है। लेखक इस ज्ञान के अलावा भी कुछ और जानना चाहता है। जानने से अधिक वह महसूस करना चाहता है। उसे लगता है कि जिस मकान के खंडहर में वह खड़ा है, उसी मकान में जीवन भी था। लोग उस मकान में रहते थे, अपना पूरा जीवन बिताते थे। मुअन जो-दड़ो के खंडहरों के साथ उसे उसी तरह का अनुभव होता है। वह अपनी कल्पना के सहारे उस हजारों साल के पहले के जीवन को अपनी आँखों से देखने की कोशिश करता है। इन पंक्तियों का आशय यही है।
टूटे-फूटे खंडहर, सभ्यता और संस्कृति के इतिहास के साथ-साथ धड़कती जिंदगियों के अनहुए समयों का भी दस्तावेज होते हैं-इस कथन का भाव स्पष्ट कीजिए।
सिंधु घाटी की खुदाई में मिले स्तुप, गढ़, स्नानागार, टूटे-फूटे घर, चौड़ी और कम चौड़ी सड़के, गलियाँ, बैलगाड़ियाँ, सीने की सुइयाँ, छोटी-छोटी नावें किसी भी सभ्यता एवं संस्कृति का इतिहास कही जा सकती हैं। इन टूटे-फूटे घरों के खंडहर उस सभ्यता की ऐतिहासिक कहानी बयान करते हैं। मिट्टी के बर्तन, मूर्तियाँ, औजार आदि चीजें उस सभ्यता की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को नापने का बढ़िया औजार हो सकते हैं परंतु मुअनजोदड़ों के ये टूटे-फूटे घर अभी इतिहास नहीं बने हैं। इन घरों में अभी धड़कती जिंदगियों का अहसास होता है। संस्कृति और सभ्यता से जुड़ा सामान भले ही अजायबघर में रख दिया हैं परंतु शहर अभी वहीं हैं जहाँ कभी था अभी भी आह इसे शहर की किसी दीवार के साथ पीठ टिका कर सुस्ता सकते हैं। वे घर अब चाहे खंडहर बन गए हों परंतु जब आप इन घरों की देहरी पर कदम रखते हैं तो आप थोड़े सहम जाते हैं क्योंकि यह भी किसी का घर रहा होगा। जब किसी के घर में अनाधिकार में प्रवेश करते हैं तो डर लगना स्वाभाविक है। आप किसी रसोई की खिड़की के साथ खड़े होकर उसमें पकते पकवान की गंध ले सकते हैं। अभी सड़कों के बीच से गुजरती बैलगाड़ियों की रुन-झुन की आवाज सुन सकते हैं। ये सभी घर टूट कर खंडहर बन गए हैं परंतु इनके बीच से गुजरती सांय-सांय करती हवा आपको कुछ कह जाती है। अब ये सब घर एक बड़ा घर बन गए हैं। सब एक-दूसरे में खुलते हैं। लेकिन मानना है कि “लेकिन घर एक नक्शा ही नहीं होता। हर घर का एक चेहरा और संस्कार होता है। भले ही वह पांच हजार साल पुराना घर क्यों न हो।” इस प्रकार लेखक इन टूटे-फूटे खंडहरों से गुजरते हुए इन घरों में किसी मानवीय संवेदनाओं का संस्पर्श करते हैं। इस प्रकार कहा जा सकता है कि टूटे-फूटे खंडहर, सभ्यता और संस्कृति के इतिहास होने के साथ-साथ धड़कती जिंदगी के अनछुए समयों का भी दस्तावेज होते हैं।
इस पाठ में एक ऐसे स्थान का वर्णन है, जिसे बहुत कम लोगों ने देखा होगा,प्रश्न 6. इस पाठ में एक ऐसे स्थान का वर्णन है, जिसे बहुत कम लोगों ने देखा होगा, परंतु इससे आपके मन में उस नगर की एक तसवीर बनती है। किसी ऐसे ऐतिहासिक स्थल, जिसको आपने नजदीक से देखा हो का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए। परंतु इससे आपके मन में उस नगर की एक तसवीर बनती है। किसी ऐसे ऐतिहासिक स्थल, जिसको आपने नजदीक से देखा हो का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
पिछले महीने हमारे विद्यालय ने अपने छात्रों के लिए दिल्ली के ऐतिहासिक स्थानों का भ्रमण कार्यक्रम बनाया। इस कार्यक्रम में मैने काफी रुचि और उत्सुकता से भाग लिया। मैं इतिहास का विद्यार्थी हूँ लेकिन अभी तक किसी ऐतिहासिक स्थान पर नहीं गया था। इस कार्यक्रम में हम लोग लाल किला भी गये थे। इस लेख को पढ़ने के बाद मुझे लाल किले के बारे में फिर से अजीब सा अनुभव हो रहा है। लाल किले का हमारे देश के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। लाल किले का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहाँ ने कराया था। इसकी भव्यता इसको दूर से देखने से ही पता चल जाती है। यमुना नदी के किनारे बने इस महल को बनाने में लाल पत्थरों का उपयोग किया गया है। इसका परिसर बहुत बड़ा है। इसके मुख्य द्वार की शोभा देखते ही बनती है। यहाँ बता दूँ कि इसी द्वार की छत पर हमारे प्रधानमंत्री हर साल, स्वतंत्रता दिवस का झंडा फहराते हैं। इस किले के अंदर कई महल बनाये गये हैं। इन महलों को बनाने में संगमरमर का इस्तेमाल हुआ है। शाहजहाँ के जमाने में इस पर सोने से नक्काशी की गई थी। इस नक्काशी के अवशेषों को देखकर अजीब सा आनंद प्राप्त होता है। दीवाने आम से दीवाने खास की ओर जाते हुए उस युग का सारा दृश्य आँखों के सामने घूम जाता है। मुझे इतिहास या सामाजिक दृष्टि का गूढ़ ज्ञान नहीं है। फिर भी इतना कह सकता हूँ कि ऐतिहासिक स्थलों पर जाने पर हमारे भीतर कल्पना के नये रूप बनते हैं। लाल किला घूमना मेरे जीवन के सुखद अनुभवों में से एक है। मैं आगे अधिक-से-अधिक ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण करना चाहता हूँ। (नोट-इस प्रश्न का उत्तर छात्र अपने अनुभव के आधार पर अलग- अलग ऐतिहासिक स्थलों का वर्णन करते हुए दे सकता है।)
सिंधु-सभ्यता को जल-संस्कृति भी कह सकते है। इस कथन के पक्ष या विपक्ष में तर्क दीजिए।
नदी, कुएँ, स्नानागार और बेजोड़ निकासी व्यवस्था को देखते हुए अगर लेखक सिन्धु सभ्यता को जल संस्कृति कहता है तो मैं लेखक के इस विचार से पूरी तरह सहमत हूँ। आज हमारे गाँवों एवं शहरों के सामने सबसे बड़ी समस्या जल की उपलब्धता और उसकी निकासी से जुड़ी हुई है। सिन्धु सभ्यता में सामूहिक स्नान के लिए बने स्नानागार वास्तुकला के उदाहरण हैं। एक पात में आठ स्नानघर हैं जिनमें किसी के भी द्वार एक-दूसरे के सामने नहीं खुलते हैं। इसी प्रकार कुंड में पानी, ईंटों का जमाव है। कुंड के तल में और दीवारों पर ईटों के बीच चूने और चिराड़ी के गारे का इस्तेमाल हुआ है जिससे कुंड का पानी रिस न सके और बाहर का ‘अशुद्ध’ पानी कुंड में न आए। इसी प्रकार सिन्धु सभ्यता के नगरों में सड़कों के साथ बनी हुई नालियाँ पक्की ईटों से ढकी है। यह पानी निकासी का सुव्यवस्थित बन्दोबस्त है। आज भी शहरों का नियोजन करते समय इन्हीं बातों का ध्यान रखा जाता है। आधुनिक वास्तुकार सिन्धु सभ्यता की इस व्यवस्था का महत्व स्वीकार करते हैं। इस तरह यह सभ्यता ‘जल संस्कृति’ का स्तर छू लेती है।
सिन्धु घाटी सभ्यता का कोई लिखित साक्ष्य नहीं मिला है। सिर्फ अवशेषों के आधार पर ही धारणा बनाई है। इस लेख में मुअन जो-दड़ो के बारे में जो धारणा व्यक्त की गई है, क्या आपके मन में इससे कोई भिन्न धारणा या भाव भी पैदा होता है? इन संभावनाओं पर कक्षा में समूह चर्चा करें।
छात्र इस प्रश्न पर अच्छी चर्चा के लिए विभिन्न स्रोतों का सहारा ले सकते हैं। जैसे-अध्यापक की सहायता। एन. सी. ई. आर. टी. द्वारा प्रकाशित इतिहास विषय की पुस्तकों का अध्ययन किया जा सकता है।
सिन्धु सभ्यता का पता कैसे चला था
मोहनजोदड़ो कच्ची एवं पक्की ईटों से बने छोटे-बड़े टीलों पर आबाद है। ऐसे ही एक बड़े चबूतरे पर बड़ा बौद्ध स्तुप है। यह स्तुप मोहनजोदड़ो की सभ्यता बिखेरने के बाद एक जीर्ण-शीर्ण टीले पर बना। यह स्तुप पच्चीस फुट ऊँचे चबूतरे पर छब्बीस सदी पुरानी ईटों से बनाया गया था। 1922 में राखलदास बनर्जी ने इसी स्तुप की खोजबीन करने के लिए खुदाई चालू की थी। खुदाई शुरू करने के बाद ही उन्हें इस बात का ज्ञान हुआ कि इन टीलो के नीचे ईसा पूर्व के निशान हैं। बाद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक जॉन मार्शल के निर्देश पर खुदाई का व्यापक अभियान शुरू हुआ। खुदाई होने के साथ ही दुनिया को इस पुरानी सभ्यता के बारे में पता चला।
लेखक राजस्थान और सिन्ध के प्राकृतिक वातावरण का वर्णन करते हुए किस अंतर को स्पष्ट करता है?
लेखक जब सिन्ध में पहुँचता है तो उस समय जाड़े का मौसम था। उस समय दोपहर की कड़ी धूप थी। धूप सारे वातावरण को रंगीन बना रही थी। सिन्ध से रेत के टीले नहीं हैं। खेतों की हरियाली चारो ओर फैली थी। यहाँ का वातावरण लेखक को राजस्थान के वातावरण से मिलता-जुलता लगता है। वहाँ का सारा आकाश, सूना परिवेश, धूल, बबूल और गरमी सब कुछ राजस्थान जैसा ही था। लेखक के केवल धूप के मामले में दोनों जगह में अंतर लगता है। लेखक को लगता है कि सिंध की धूप चौंधियाती है जबकि राजस्थान की धूप पारदर्शी है। यहाँ की फोटो उतारने के लिए कैमरे को सही ढंग से सैट करना जरूरी हो जाता है।
निम्न वर्ग के मकानों के बारे में लेखक का क्या अनुमान है?
लेखक कहता है कि सम्पन्न समाज में वर्ग भी अवश्य रहे होंगे। सिन्धु सभ्यता में ‘उच्च वर्ग’ की बस्ती के साथ ही कामगारों की बस्ती मिलती है। यहाँ टूटे-फूटे घर ही अधिक हैं। लेखक का कहना है कि निम्न वर्ग के घर इतनी मजबूत सामग्री के नहीं रहे होंगे कि पाँच हजार साल टिक सकें। दूसरी बात यह है कि मुख्य बस्ती से उनकी बसावट दूर रही होगी। मुअन जो-दड़ो के दूसरे टीलो की खुदाई बंद हो गई है।
ला-कार्बूजिए और मोहन- जोदड़ो के बीच किस संयोग के बारे में लेखक बताता है?
मोहन-जोदड़ो की सबसे चौड़ी और मुख्य सड़क के दोनों ओर घर हैं। सड़क की ओर घरों की सिर्फ पीठ दिखाई देती है यानि कोई घर सड़क पर नहीं खुलता है। उनके दरवाजे अंदर गलियों में हैं। लेखक उससे जुड़े दिलचस्प संयोग को बताता है। वह कहता है कि ला-काबूर्जिए ने पचास साल पहले चंडीगढ़ में ठीक यही शैली अपनायी है। वहाँ भी कोई घर मुख्य सड़क पर नहीं खुलता। लेखक इसे ही संयोग कहता है। वह इसे मानवीय चेतना का ही विकास कहता है।
सिन्धु सभ्यता की सामाजिक एवं सांस्कृतिक विशेषता क्या है?
विद्वानों ने सिन्धु सभ्यता के सामाजिक वातावरण को बहुत अनुशासित होने का अनुमान व्यक्त किया है। उनका मानना है कि वहाँ का अनुशासन ताकत के बल पर नहीं था। नगर योजना वास्तुशिल्प, मुहर, पानी या साफ-सफाई जैसी सामाजिक व्यवस्था में एकरूपता से यह अनुशासन स्पष्ट होता है। सिन्धु सभ्यता में प्रमुखता या दिखावे का तेवर नहीं है। उसकी यही विशेषता इसको अलग सांस्कृतिक धरातल पर खड़ा करती है। यह धरातल दुनिया की दूसरी सभ्यताओं से अलग है।
आधुनिक शहर नियोजन पर लेखक का दृष्टिकोण बताइए?
लेखक आधुनिक शहरी नियोजन पर सकारात्मक रुख नहीं जताता। उसका मानना है कि आज हमें शहरी नियोजन के नाम पर सिर्फ अराजकता हाथ लगती है। आधुनिक सेक्टरों या कॉलोनियों में आड़ा-तिरछा और सीधा नियोजन मिलता है, परंतु इसमें नीरसता होती है। जीवन में गतिशीलता नहीं होती। यह नियोजन व्यवहार में लाया जाता है, परंतु यह शहर की विकसित नहीं होने देता।
खुदाई में मिले महाकुंड के बारे में बताइए।
लेखक ने मोहनजोदड़ो की यात्रा की है। उसने वहाँ एक महाकुंड देखा जो स्तुप के टीले के पास था। इसके दाई तरफ एक लंबी गली है। इस महाकुंड की गली का नाम दैव मार्ग रखा गया है। लेखक के अनुसार यह संयोग भी हो सकता है कि इस पवित्र कुंड का दैवीय नाम रखा जाए। महाकुंड के बारे में यह भी माना जाता है कि सिंधु घाटी के लोग इसी कुंड में सामूहिक स्नान भी किया करते थे।
कोठार किसलिए इस्तेमाल होते थे?
लेखक ने देखा कि महाकुंड के दूसरी तरफ विशाल कोठार हैं। इन कोठारों की चौकियाँ तथा हवादारी की व्यवस्था से पुरातत्त्व के विद्वान ऐसा अनुमान लगाते हैं कि कर के रूप में अनाज इकट्ठा किया जाता था जिसे इन कोठारों में भर दिया जाता था। इसके उत्तर में एक गली मिली है जिसका प्रयोग शायद बैलगाड़ियों के आने-जाने के लिए किया जाता था।
मोहनजोदड़ो की गृह-निर्माण योजना पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
लेखक ने वहाँ के घरों का निरीक्षण किया तथा पाया कि सामने की दीवार में केवल प्रवेश द्वार है। इसमें कोई खिड़की नहीं है। ऐसा लगता है कि खिड़कियाँ शायद ऊपरी दीवारों में बनाई जाती होंगी। बड़े घरों के अंदर के आँगन के चारों तरफ बने कमरों में बहुत खिड़कियाँ हैं। जिन घरों में बड़े आँगन होते थे वहाँ शायद कुछ काम किए जाते होंगे।
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लेखक ने प्राचीन लैंडस्केप किसे कहा है? इसकी क्या विशेषता है?
लेखक ने मोहनजोदड़ो में एक अच्छे बौद्ध स्तुप को देखा। उसे उसने नागर भारत का प्राचीन लैंडस्केप कहा है। जब लेखक ने उसे पहली बार देखा तो वह उसे देखता ही रह गया। यह कोई 25 फुट ऊँचे चबूतरे पर बना हुआ है। सन् 1922 में राखालदास बनर्जी ने यहाँ खुदाई शुरू की थी, तभी इसे पाया था।
मोहनजोदड़ो की नगर योजना पर टिप्पणी कीजिए।
अथवा
सिन्धु-सभ्यता के सबसे बड़े शहर मुअनजो-दड़ो की नगर-योजना दर्शकों को अभिभूत क्यों करती है? स्पष्ट कीजिए।
मोहनजोदड़ो का दौरा करते समय लेखक ने पाया कि इसका नगर नियोजन सबसे अनूठा है। यह नियोजन दुनिया में बेमिसाल है। यहाँ चौड़ी और सीधी सड़कें हैं। कुछ ही सड़कें आड़ी हैं। यहाँ की निकासी व्यवस्था अद्भुत है। चबूतरे पर खड़े होकर शहर की गलियों तथा सड़कों का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।
यहाँ की जल निकासी व्यवस्था पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
इतिहासकार और पुरातत्ववेत्ता भी जोर देकर इस शहर की ढकी हुई नालियों का उल्लेख करते हैं। पानी की निकासी का इतना सुव्यवस्थित प्रबंध पहले कभी नहीं था। घरों में नालियों में पक्की ईंटें होती थीं। फिर उन नालियों को सड़क की मुख्य नाली में जोड़ा जाता था।
सिन्धु सभ्यता का पता कैसे चला था?
मोहनजोदड़ो कच्ची एवं पक्की ईंटों से बने छोटे-बड़े टीलों पर आबाद है। ऐसे ही एक बड़े चबूतरे पर बड़ा बौद्ध स्तुप है। यह स्तुप मोहनजोदड़ो की सभ्यता बिखेरने के बाद एक जीर्ण-शीर्ण टीले पर बना। यह स्तुप पच्चीस फुट ऊँचे चबूतरे पर छब्बीस सदी पुरानी ईटों से बनाया गया था। 1922 में राखलदास बनर्जी ने इसी स्तुप की खोजबीन करने के लिए खुदाई चालू की थी। खुदाई शुरू करने के बाद ही उन्हें इस बात का ज्ञान हुआ कि इन टीलों के नीचे ईसा पूर्व के निशान हैं। बाद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक जॉन मार्शल के निर्देश पर खुदाई का व्यापक अभियान शुरू हुआ। खुदाई होने के साथ ही दुनिया को इस पुरानी सभ्यता के बारे में पता चला।
उस खास बात का विस्तार से उल्लेख कीजिए जो अजायबघर में रखे सिंधु सभ्यता के पुरातत्व के अवशेषों से सिद्ध होती है।
अजायबघर में रखे सिंन्धु् सभ्यता के पुरातत्व के अवशेषों में हथियार नहीं हैं। इनसे यह बात सिद्ध होती है कि उस समय के जीवन में कोई संघर्ष न था, लड़ाई-झगड़े नहीं थे। अजायबघर में जो चीजें प्रदर्शित की गई हैं वे हैं-काला पड़ गया गेहूँ, ताँबे और काँसे के बर्तन, मुहरें, वाद्ययंत्र, चाक पर बने विशाल मृद्-भांड, चौपड़ की गोटियाँ, दीये, माप-तौल के पत्थर, ताँबे का आइना, मिट्टी की बैलगाड़ी, खिलौने, चक्की, कंघी, मिट्टी के कंगन, पत्थरों के मनके के हार, पत्थर के औजार। यहाँ अन्य कुछ चीजें भी हैं, पर कोई हथियार नहीं है।
मुअनजोदड़ों की नगर-योजना आज के सैक्टर-मार्का कॉलोनियों के नीरस नियोजन की अपेक्षा ज्यादा रचनात्मक है-टिप्पणी कीजिए।
मोहन-जोदड़ो की नगर योजना अनूठी थी। इसका नियोजन दुनियाभर में बेमिसाल है। यहाँ चौड़ी एवं सीधी सड़कें थीं। कुछ सड़कें आड़ी हैं। चबूतरे पर खड़े होकर शहर की गलियों एवं सड़कों का अंदाजा लगाया जा सकता है। यहाँ जल-निकासी का भी बेहतर प्रबंध था। यह शहर 200 हैक्टेयर क्षेत्र में फैला था। आबादी लगभग पचासी हजार। आज के नगरों की योजना सेक्टरों में बाँटकर की जाती है। सेक्टर मार्का कालोनियों के नीरस नियोजन की अपेक्षा मुअनजो-दड़ो का नगर नियोजन रचनात्मक था। नगर से 5 किमी. दूर सिंधु नदी बहती है। उच्च वर्ग और कामगारों की बस्तियाँ है। सामूहिक स्नानघर 4 x 25 x 7 फुट का है। नालियों का जाल बिछा होता था। सारा शहर व्यवस्थित और भली प्रकार नियोजित था।
सिन्धु-घाटी सभ्यता के अवशेषों को देखकर घाटी की संस्कृति और सभ्यता के विषय में अपनी धारणा को ‘अतीत में दबे पाँव’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
‘सिंधु घाटी की सभ्यता’ के अवशेषों के आधार पर हम कह सकते हैं कि यह सभ्यता संपन्न तो थी, पर इसमें कोई आडंबर नहीं था। इस बात के पीछे कई कारण हैं। मुअनजोदड़ों शहर का व्यवस्थित ढांचा और मकानों की बनावट आदि से पहली नजर में यह बात सामने आ जाती है। वहाँ की सड़कों की बनावट सीधी सादी थी। सड़कें उचित रूप से चौड़ी और साफ थीं। मकान की बनावट बहुत भव्य नहीं थी। अधिकांश मकानों पर सामूहिक अधिकार था। स्नानागार, पूजास्थल, सामुदायिक भवनों आदि के आधार पर यह बात प्रमाणित होती है। ताँबे का उपयोग, कपास का उपयोग, खेती करने का प्रमाण, दूसरे देशों से व्यापार आदि के माध्यम से हमें पता चलता है कि यह सभ्यता हर तरह से साधन सम्पन्न थी। हड़प्पा संस्कृति में भव्य राजप्रसाद या मंदिर जैसी चीजें नहीं मिलती हैं। इसी के साथ वहाँ न तो राजाओं से जुड़े कोई भव्य-चिह्न मिलते हैं और न संतों-महात्माओं की समाधियाँ। वहाँ मकान हैं तो उचित रूप में। अगर मूर्ति शिल्प है तो छोटे-छोटे, इसी प्रकार औजार भी होते ही हैं। लेखक इन्हीं बातों के आधार पर कहता है कि मुअनजो-दड़ों सिन्धु सभ्यता का सबसे बड़ा शहर ही नहीं था बल्कि उसे साधनों और व्यवस्थाओं को देखते हुए सबसे समृद्ध भी माना गया है। फिर भी उसकी सम्पन्नता की बात कम हुई है तो शायद इसलिए कि इसमें भव्यता का आडंबर नहीं है।
मोहन-जोदड़ो के सामूहिक स्नानागार की किन विशेषताओं के कारण इसे धार्मिक स्थान माना जाता है? स्पष्ट कीजिए।
मोहन-जोदड़ो के सामूहिक स्नानागार का स्थान महाकुंड नाम से जाना जाता है। यह कुंड करीब चालीस फुट लंबा और पच्चीस फुट चौड़ा है। गहराई सात फुट है कुंड में उत्तर और दक्षिण से सीढ़ियाँ उतरती हैं। इसके तीन तरफ साधुओं के कक्ष बने हुए हैं। उत्तर में दो पात में आठ स्नानागार हैं। इनमें से किसी का द्वार दूसरे के सामने नहीं खुलता। यह वास्तुकला का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। कुडं में पक्की ईंटों का जमाव है। कुंड का पानी रिसने और बाहर का ‘अशुद्ध’ पानी कुंड में न आए, इसके लिए कुंड के तल में और दीवारों पर ईंटों के बीच चूने और चिरोड़ी के गारे का इस्तेमाल हुआ है। पानी के प्रबन्ध के लिए दोहरे घेरे वाले कुएं का इंतजाम है। कुंड से बाहर पानी बहने के लिए पक्की ईटों की ही नाली बनी हुई है। मोहनजोदड़ो व महाकुंड की इन्हीं विशेषताओं के कारण उसे धार्मिक अनुष्ठान से जुड़ा माना जाता है।
सिन्धु सभ्यता का खेती से किस तरह का संबंध था, स्पष्ट करें?
सिन्धु सभ्यता के खोज की शुरूआत में यह माना जाता रहा है कि इस घाटी के लोग अन्न नहीं उपजाते थे। अनाज संबंधी जरूरतें आयात करके पूरा करते थे। सिन्धु सभ्यता से जुड़ी नई खोजों से यह विचार अमान्य हो गया है। अब सबको मालूम है कि यहाँ उन्नत खेती होती थी। कुछ विद्वान तो सिन्धु सभ्यता को खेतिहर और पशुपालक सभ्यता मानते है। लोहा न होने के बाद भी पत्थर और ताँबे के उपकरणों का प्रयोग खेती में होता था। इतिहासकार इरफान हबीब के अनुसार सिन्धु सभ्यता के लोग रबी की फसल उगाते थे। कपास, गेहूँ, जौ, सरसों और चने की उपज के पुख्ता सबूत खुदाई में मिले हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि यहाँ ज्वार, बाजरा और रागी की उपज भी होती थी। वहाँ के लोग खजूर, खरबूजे और अंगूर उगाते थे। वहाँ कपास की भी खेती होती थी। कपास के बीज तो नहीं मिले हैं लेकिन सूती कपड़ा अवश्य मिला है। यह दुनिया के सूती कपड़ों के दो सबसे पुराने नमूनों में से एक है।
लेखक ने सिन्ध के अजायबघर में मुअन जो-दड़ो से जुड़ी किन वस्तुओं का उल्लेख किया है, इस अजायबघर की सबसे बड़ी विशेषता क्या है?
मोहन - जोदड़ो के अजायबघर में बहुत कम चीजें प्रदर्शित हैं। कम होने के बाद भी वे सिन्ध सभ्यता की झलक दिखा जाती हैं। इन चीजों में हैं काला पड़ गया गेहूँ, ताँबे और काँसे के बर्तन, मुहरें, बाँध, चाक पर बने विशाल मृद्भांड, उन पर काले-भूरे चित्र, चौपड़ की गोटियाँ, दीये, माप-नील पत्थर, ताँबे का आईना, मिट्टी की बैलगाड़ी और दूसरे खिलौने, दो पाट वाली चाकी, कंघी, मिट्टी के कंगन, रंग-बिरंगे पत्थरों के मनकों वाले हार और पत्थर के औजार आदि। वहाँ कभी सोने के गहने भी हुआ करते थे, जो चोरी हो गए हैं। अजायबघर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वहाँ औजार तो हैं लेकिन कोई हथियार नहीं है।
स्पष्ट कीजिए कि सिन्धु घाटी के लोगों में कला या सुरुचि का महत्त्व ज्यादा था?
वास्तुकला या नगर-नियोजन के साथ-साथ धातु और पत्थर की मूर्तियाँ, मृद्भांड, उन पर चित्रित मनुष्य, वनस्पति और पशुपक्षियों की छवियाँ, सुनिर्मित मुहरें, उन पर बारीकी से उत्कीर्ण आकृतियाँ, खिलौने, केश-विन्यास, आभूषण और सबसे ऊपर सुघड़ अक्षरों का लिपिरूप सिन्धु सभ्यता की कलात्मकता को अभिव्यक्त करते हैं। ये सारी चीजें तकनीकी विकास का उतना आभास नहीं देतीं, जितना कि कलात्मकता का। इन सबमें आकार की भव्यता की जगह उसमें कला की भव्यता दिखाई देती है। इसी आधार पर यह कहा जा सकता है कि सिन्धु घाटी के लोगों के लिए कला का महत्त्व ज्यादा था।
मुअन-जो-दड़ो (मोहनजोदड़ो) की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
मोहनजोदड़ो की प्रमुख विशेषताएँ: - यह एक सुनियोजित शहर था। - इस शहर की सड़कों और गलियों में आज भी घूमा जा सकता है। - यहाँ की सभ्यता अत्यंत विकसित थी। - यहाँ की सड़कें चौड़ी थीं। - पानी की निकासी, सफाई व्यवस्था, अन्नागार, महाकुंड आदि का प्रबंध था।
पर्यटक मुअनजोदड़ों में क्या-क्या देख सकते हैं? ‘अतीत के दबे पाँव’ पाठ के आधार पर किन्हीं तीन दृश्यों का परिचय दीजिए।
पर्यटक मुअनजोदड़ों में निम्नलिखित चीजें देख सकते हैं : 1. बौद्ध स्तूप : मुअनजोदड़ों में सबसे ऊँचे चबूतरे पर बड़ा बौद्ध-स्तूप है। यह स्तूप मुअनजोदड़ों के बिखरने के बाद बना था। यह 25 फुट ऊँचे चबूतरे पर बना है। इसमें भिक्षुओं के रहने के कमरे भी बने हैं। 2. प्रसिद्ध जलकुंड : यह कुंड 40 फुट लंबा तथा 25 फुट चौड़ा है। इसकी गहराई सात फुट है। कुंड के उत्तर और दक्षिण से सीढ़ियाँ उतरती हैं। इसके तीन तरफ साधुओं के कक्ष हैं। उत्तर में दो पंक्तियों में आठ स्नानागार हैं। यह सिद्ध वास्तुकला का एक सुंदर उदाहरण है। 3. अजायबघर : यहाँ का अजायबघर छोटा ही है। यहाँ काला पड़ गया गेहूँ, ताँबे और काँसे के बर्तन मुहरें, वाद्य, चाक पर बने विशाल, मृद्भांड, चौपड़ की गोटियाँ, दीये, माप-तौल के पत्थर, ताँबे का आईना, मिट्टी की बैलगाड़ी, दो पाटन वाली चक्की पत्थर के औजार आदि रखे हैं।
मोहनजोदड़ो की बड़ी बस्ती के बारे में बताइए।
लेखक ने मोहनजोदड़ो की बड़ी बस्ती के बारे में बताया है। यहाँ घरों का आकार बड़ा होता था। इन घरों के आँगन भी खुले होते थे। इन घरों की दीवारें ऊँची और मोटी होती थीं। जिन घरों की दीवारें मोटी थीं, वे शायद दो मंजिले होते थे। कुछ दीवारों में छेद भी हैं जो यह दर्शाते हैं कि दूसरी मंजिल को उठाने के लिए शायद शहतीरों के लिए जगह छोड़ी जाती होगी। सभी घर पक्की ईटों के हैं। लगभग एक आकार की ईंटें इन घरों में लगाई गई हैं। यहाँ पत्थर का प्रयोग अधिक नहीं हुआ है। कहीं-कहीं नालियों को अनगढ़ पत्थर से ढक दिया गया है। इसका उद्देश्य गंदगी फैलने से रोकना था।
मोहनजोदड़ो में खुदाई के दौरान क्या-क्या मिला?
मोहनजोदड़ो से खुदाई के दौरान बहुत अधिक चीजें मिली हैं। ऐसा अनुमान है कि यहाँ से निकली वस्तुओं की पंजीकृत संख्या पचास हजार है। अधिकतर चीजें कराची, लाहौर, दिल्ली तथा लंदन में रखी गई हैं। कुछ ही चीजें यहाँ के अजायबघर में रखी हैं। इनमें गेहूँ, ताँबे और काँसे के बर्तन, मुहरें, वाद्य यंत्र, चाक पर बने बड़े-बड़े मिट्टी के मटके, ताँबे का शीशा, दो पाटों वाली चक्की, माप-तोल के पत्थर, चौपड़ की गोटियाँ, मिट्टी के कंगन, रंग-बिरंगे मनके आदि प्रमुख हैं।
‘सिंधु घाटी की सभ्यता ‘लो प्रोफाइल’ है’-स्पष्ट कीजिए। अथवा ‘अतीत के दबे पाँव’ के लेखक ने मुअनजो-दड़ो की सभ्यता को किस आधार पर ‘लो प्रोफाइल’ सभ्यता कहा है?
लेखक ने सिंधु सभ्यता को ‘लो प्रोफाइल’ सभ्यता कहा है। संसार के अन्य स्थानों पर खुदाई करने से राजतंत्र को प्रदर्शित करने वाले महल, धर्म की ताकत दिखाने वाले पूजा स्थल, मूर्तियाँ तथा पिरामिड मिले हैं। मोहनजोदड़ो में ऐसी कोई चीज नहीं मिली है जो राजसत्ता या धर्म के प्रभाव को दर्शाती है। यहाँ किसी राजा अथवा महंत की समाधि भी नहीं मिली, यहाँ एक राजा की मूर्ति मिली है, उसके मुकुट का आकार बेहद छोटा है। यहाँ जो नावें मिली हैं उनका आकार भी बेहद छोटा है। इन आधारों पर कहा जा सकता है कि सिंधु घाटी की सभ्यता आडंबरहीन सभ्यता थी। ऐसी सभ्यता महान थी जिसकी गणना विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में की जाती है।
यह रचना ओम थानवी का लिखा एक ऐसा यात्रा-वृत्तांत है जो रिपोर्ट का भी मिला-जुला रूप दिखाई देता है। यह वर्णन भारतीय भूमि ही नहीं विश्वफलक पर घटित सभ्यता की सबसे प्राचीन घटना को उतने ही सुनियोजित ढंग से पुनर्जीवित करता है, जितने सुनियोजित ढंग से उसके दो महान नगरों मोहनजोदड़ो और हड़प्पा बसे थे। लेखक ने टीलों, स्नानागारों, मृदभंडारों, कुँओं, तालाबों व मार्गो से प्राप्त पुरातत्वों में मानव-संस्कृति की उस समझदार-भाषात्मक घटना को बड़े इत्मीनान से खोज-खोजकर हमें दिखलाया है जिससे हम इतिहास की सपाट वर्णनात्मकता से ग्रस्त होने की जगह इतिहास बोध से तर (सिक्त) होते हैं। सिंधु सभ्यता का सबसे बड़ा शहर मोहनजोदड़ो की नगर योजना अभिभूत करती है और आज के सेक्टर मार्का कॉलोनियों के नीरस नियोजन की अपेक्षा अधिक रचनात्मक है। पुरातत्व के निष्प्राण पड़े चिह्नों से एक जमाने में आबाद घरों, लोगों को उनकी सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक व आर्थिक गतिविधियों का पक्का अनुमान किया जा सकता है।
‘मोहनजो-दड़ो’ के उत्खनन से प्राप्त जानकारियों के आधार पर सिंधु-सभ्यता की विशेषताओं पर एक लेख लिखिए।
सिंधु-सभ्यता की विशेषताएँ : - सिंधु-सभ्यता साधन सम्पन्न थी, पर उसमें भव्यता का आडम्बर नहीं था। इसमें नगर बहुत सुनियोजित थे। - सिंधु सभ्यता के नगरों की सड़कें समकोण पर काटती थी। वे खुली और साफ थीं। - सिंधु-सभ्यता में पानी की निकासी की उत्तम व्यवस्था थी। नालियाँ पक्की एवं ढकी हुई थीं। - सिंधु-सभ्यता को ‘लो-प्रोफाइल’ सभ्यता कहा जा सकता है। मोहनजो-दड़ो की खुदाई में ऐसी चीजें नहीं मिली हैं जो राजसत्ता या धर्मसत्ता का प्रभाव दर्शाती हों। - इस सभ्यता में सामूहिक स्नानागार मिले हैं। - इस सभ्यता में ताँबे के उपयोग के प्रमाण मिले हैं। - खेती एवं व्यापार के प्रमाण मिले हैं। - इस सभ्यता से लोगों की कलात्मक रुचि का पता चलता है - पशु-पक्षियों की मनोहर छवियाँ, मुहरों पर बारीकी से उत्कीर्ण की गई कलाकृतियाँ, केश-विन्यास, आभूषण, सुघड़ अक्षरों की लिपि इस बात को सिद्ध करने को काफी हैं। - हर नगर में अनाज भंडार घर की व्यवस्था थी।- यहाँ की सभ्यता में पक्की ईंटों वाले घरों का पता चला है। घर छोटे-बड़े दोनों प्रकार के हैं।
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