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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
बिछड़न-समय बड़ा करुणोत्पादक होता है। आपको बिछड्ते देखकर आज हृदय में बड़ा दु:ख है।. माइ लॉर्ड। आपके दूसरी बार इस देश में आने से भारतवासी किसी प्रकार प्रसन्न न थे। वे यही चाहते थे कि आप फिर न आवे। पर आप आए और उससे यहाँ के लोग बहुत ही दुःखित हुए। वे दिन-रात यही मनाते थे कि जल्द श्रीमान् यहां से पधारें। पर अहो! आज आपके जाने पर हर्ष की जगह विषाद होता है। इसी से जाना कि बिछड़न-समय बड़ा करुणोत्पादक होता है, बड़ा पवित्र, बड़ा निर्मल और बड़ा कोमल होता है। वैर- भाव छूटकर शांत रस का आविर्भाव उस समय होता है।
1. बिछड़न का समय कैसा होता है?
2. भारतवासी क्या चाहते थे?
3. हर्ष की जगह विषाद क्यों होता है?
1. बिछड़न का समय बड़ा करुणोत्पदक होता है। लॉर्ड कर्जन के इस देश से बिछड़ने के समय लोगों के हृदय में बड़ा दुख है।
2. भारतवासी लॉर्ड कर्जन के इस देश में आने से प्रसन्न न थे। वे तो यही चाहते थे कि वे दुबारा यहाँ न आवे। पर वे यहाँ आए और लोग उससे बहुत दुखी हुए। वे दिन-रात यही मनाते थे कि लॉर्ड कर्जन इस देश से जल्दी-से-जल्दी चले जाएँ।
3. आपको न चाहने पर भी आपके यहाँ से जाने पर भारतवासियों के मन में हर्ष की जगह विषाद हो रहा है। इसी से पता चलता है कि बिछुड़त का समय बड़ा करुणादायक होता है।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
आगे भी इस देश में जो प्रधान शासक आए, अंत में उनको जाना पड़ा। इससे आपका जाना भी परंपरा की चाल से कुछ अलग नहीं है, तथापि आपके शासन-काल का नाटक घोर दुखांत है, और अधिक आश्चर्य की बात यह है कि दर्शक तो क्या, स्वयं सूत्रधार भी नहीं जानता था कि उसने जो खेल सुखांत समझकर खेलना आरंभ किया था, वह दुखांत हो जावेगा। जिसके आदि में सुख था, मध्य में सीमा से बाहर सुख था, उसका अंत ऐसे शोर दुख के साथ कैसे हुआ? आह! घमंडी खिलाड़ी समझता है कि दूसरों को अपनी लीला दिखाता हूँ। किन्तु पर्दे के पीछे एक और ही लीलामय की लीला हो रही है, यह उसे खबर नहीं!
1. किस परंपरा का उल्लेख किया गया है?
2. अधिक आश्चर्य की बात क्या है?
3. घमंडी खिलाड़ी क्या समझता है? पर वास्तविकता क्या होती है?
1. लेखक ने उस परंपरा का उल्लेख किया है कि जो आता है, उसे जाना ही पड़ता है। पहले भी प्रधान शासक आते रहे हैं और उन्हें भी जाना पड़ा है। लॉर्ड कर्जन भी इसी परंपरा के एक अंग थे।
2. अधिक आश्चर्य की बात यह है कि दर्शक तो क्या स्वयं सूत्रधार भी नहीं जानता था कि उसने जो खेल सुखांत समझकर खेलना आरंभ किया था, वह दुखांत हो जाएगा। लॉर्ड कर्जन का आरंभ सुखी था, मध्य सुखी था, पर अंत घोर दुख में हुआ। भला यह कैसे हो गया?
3. घमंडी खिलाड़ी यह समझता है कि वह दूसरों को लीला दिखा रहा है, किन्तु पर्दे के पीछे एक और ही लीलामय की लीला चल रही होती है। उसे इसकी खबर नहीं होती।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
इस बार बंबई में उतरकर माइ लॉर्ड! आपने जो इरादे जाहिर किए थे, जरा देखिए तो उनमें से कौन-कौन पूरे हुए? आपने कहा था कि यहां से जाते समय भारतवर्ष को ऐसा कर जाऊँगा कि मेरे बाद आने वाले बड़े लाटों को वर्षो तक कुछ करना न पड़ेगा, वे कितने ही वर्षो सुख की नींद सोते रहेंगे। किन्तु बात उलटी हुई। आपको स्वयं इस बार बेचैनी उठानी पड़ी है और इस देश में जैसी अशांति आप फैला चले हैं, उसके मिटाने में आपके पद पर आने वालों को न जाने कब तक नींद और भूख हराम करना पड़ेगा। इस बार आपने अपना बिस्तर गरम राख पर रखा है और भारतवासियों को गरम तवे पर पानी की बूँदों की भभाँतिनचाया है। आप स्वयं भी खुश न हो सके और यहां की प्रजा को सुखी न होने दिया, इसका लोगों के चित्त पर बड़ा ही दु:ख है।
1. लॉर्ड कर्जन ने बंबई उतरते समय क्या इरादा प्रकट किया था?
2. पर लॉर्ड कर्जन कर क्या गए?
3. अतंत: क्या परिणाम निकला?
1. लॉर्ड कर्जन ने बंबई में उतरते समय यह इरादा प्रकट किया कि मैं यहाँ से जाते समय भारतवर्ष को ऐसा कर जाऊँगा कि मेरे बाद आने वाले बड़े लाटों को वर्षों तक कुछ न करना पड़ेगा, वे वर्षों तक सुख की नींद सोते रहेंगे। पर बात उलटी हुई।
2. लॉर्ड कर्जन अपने कथन के विपरीत काम कर गए। लॉर्ड कर्जन इस देश में ऐसी अशांति फैला गए कि उसको मिटाने में आने वाले लाटों को नींद और भूख हराम करनी पड़ेगी उन्होंने अपना बिस्तर गरम राख पर रखा और भारतवासियों को खूब तंग रखा।
3. लॉर्ड कर्जन की कार्यवाही का अंतत: यह परिणाम निकला कि न तो वे स्वयं खुश रह सके न यहाँ की प्रजा ही रह पाई। इस बात का लोगों पर बड़ा बुरा प्रभाव पड़ा।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
इस देश के हाकिम आपकी ताल पर नाचते थे, राजा-महाराजा डोरी हिलाने से सामने हाथ बाँधे हाजिर होते थे। आपके एक इशारे में प्रलय होती थी। कितने ही राजों को मिट्टी के खिलौने की भाँति आपने तोड़-फोड़ डाला। कितने ही मट्टी-काठ के खिलौने आपकी कृपा के जादू से बड़े-बड़े पदाधिकारी बन गए। आपके एक इशारे में इस देश की शिक्षा पायमाल हो गई, स्वाधीनता उड़ गई। बंग देश के सिर पर आरह रखा गया। आह, इतने बड़े माइ लॉर्ड का यह दर्जा हुआ कि फौजी अफसर उनके इच्छित पद पर नियत न हो सका और उनको उसी गुस्से के मारे इस्तीफा दाखिल करना पड़ा, वह भी मंजूर हो गया। उनका रखाय। एक आदमी नौकर न रखा, उल्टा उन्हीं को निकल जाने का हुक्म मिला!
1. लॉर्ड कर्जन की क्या हैसियत थी?
2. लॉर्ड कर्जन ने क्या- क्या बुरे काम किए?
3. लॉर्ड कर्जन का अपमान किस प्रकार हुआ?
1. इस देश में लॉर्ड कर्जन की हैसियत बहुत ऊँची थी। राजे-महाराजे उनके आगे हाथ बाँधे खड़े रहते थे। उनके एक इशारे पर प्रलय होती थी। उनकी कृपा से कई मूर्ख भी बड़े अफसर बन गए।
2. लॉर्ड कर्जन ने कई बुरे काम किए। उन्होंने इस देश की शिक्षा-व्यवस्था को भ्रष्ट कर दिया। यहाँ की स्वाधीनता भी खत्म हो गई। बंगाल को टुकड़ों में बाँट दिया।
3. लॉर्ड कर्जन ने एक फौजी अफसर को अपनी इच्छा के पद पर रखवाना चाहा, पर उनकी बात नहीं मानी गई। गुस्से में उन्होंने इस्तीफा दे दिया, जिसे मंजूर कर लिया गया। इस प्रकार लॉर्ड कर्जन का अपमान हुआ।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
यहां की प्रजा ने आपकी जिद्द का फल यहीं देख लिया। उसने देख लिया कि आपकी जिस जिद्द ने इस देश की प्रजा को पीड़ित किया, आपको भी उसने कम पीड़ा न दी, यहाँ तक कि आप स्वयं उसका शिकार हुए। यहां की प्रजा वह प्रजा है, जो अपने दुख और कष्टों की अपेक्षा परिणाम का अधिक ध्यान रखती है। वह जानती है कि संसार में सब चीजों का अंत है। दुख का समय भी एक दिन निकल जावेगा, इसी से सब दुखों को झेलकर, पराधीनता सहकर भी वह जीती है। माई लॉर्ड! इस कृतज्ञता की भूमि की महिमा आपने कुछ न समझी और न यहां की दीन प्रजा की श्रद्धा- भक्ति अपने साथ ले जा सके, इसका बड़ा दुख है।
1. किसने, किसकी जिद्द का फल देख लिया?
2. भारत की प्रजा की क्या विशेषता बताई गई है?
3. किसे, किस बात का दुख है?
1. भारत की प्रजा ने लॉर्ड कर्जन की जिद्द का फल देख लिया। इस प्रजा ने यह देखा कि कर्जन की जिद्द ने उन्हें काफी पीड़ित किया। लॉर्ड कर्जन स्वयं भी उसी पीड़ा के शिकार हुए।
2. लेखक ने भारत की प्रजा की विशेषता बताते हुए कहा है कि यहाँ की प्रजा अपने दुख और कष्टों की अपेक्षा परिणाम का अधिक ध्यान रखती है उसे यह पता है कि संसार की सब चीजों का अंत होता है। वह यह जानकर दुखों को झेल जाती है कि दुख का समय भी एक दिन निकल जाएगा। यहाँ की प्रजा बड़ी धैर्यवान् एवं सहनशील है।
3. भारत की प्रजा को इस बात का दुख है कि लॉर्ड कर्जन ने भारत- भूमि की महिमा को नहीं समझा और न उसने भारत की दीन प्रजा की श्रद्धा- भक्ति को स्वीकार किया। वे चाहते तो प्रजा की इस श्रद्धा- भक्ति को अपने साथ ले जा सकते थे। ऐसा न होने पर भारत की प्रजा को दुख है।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
“अभागे भारत! मैंने तुझसे सब प्रकार का लाभ उठाया और तेरी बदौलत वह शान देखी, जो इस जीवन में असंभव है। तूने मेरा कुछ नहीं बिगाड़ा; पर मैंने तेरे बिगाड़ने में कुछ कमी न की। संसार के सबसे पुराने देश! जब तक मेरे हाथ में शक्ति थी, तेरी भलाई की इच्छा मेरे जी में न थी। अब कुछ शक्ति नहीं है, बो तेरे लिए कुछ कर सकूं। पर आशीर्वाद करता हूँ कि तू फिर उठे और अपने प्राचीन गौरव और यश का फिर से लाभ करे। मेरे बाद आने वाले तेरे गौरव को समझें।” आप कर सकते हैं और यह देश आपकी पिछली सब बातें मूल सकता है, पर इतनी उदारता माइ लॉर्ड में कहाँ?
1. गद्याशं के प्रारंभिक वाक्यों में क्या व्यंग किया गया है?
2. कौन क्या आशीर्वाद करता है?
3. अंतिम वाक्य से किसके चरित्र पर क्या प्रकाश पड़ता है?
1. गद्यांश के प्रारंभिक वाक्यों में यह व्यंग्य किया गया है कि लॉर्ड कर्जन ने भारत से सभी प्रकार का लाभ उठाया। इसी देश की बदौलत उसकी शान ऊँची हुई। इसके बावजूद लॉर्ड कर्जन ने भारत का बुरा करने में अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ी। यद्यपि यह देश अत्यंत प्राचीन है, पर लॉर्ड कर्जन ने कभी भी अपने मन में इसकी भलाई की बात नहीं सोची। अंत में उसके हाथों से शक्ति निकल गई।
2. लेखक अपनी ओर से कहता है कि यदि लॉर्ड कर्जन जाते समय भी इस देश को यह आशीर्वाद देता जाता है कि जिस देश को उसने पतन की ओर बढ़ाया, वह आने वाले दिनों में फिर ऊपर उठे और अपने प्राचीन गौरव को पुन: प्राप्त करे। कर्जन के बाद आने वाले लॉर्ड इस देश के गौरव की कद्र करें। पर यह हो न सका।
3. अंतिम वाक्य से लॉर्ड कर्जन के व्यक्तित्व पर यह प्रकाश पड़ता है कि वह एक जिद्दी किस्म का व्यक्ति था। यह सदा भारत का अहित सोचता और करता रहा। उसे अंतिम समय में भी अपने बुरे कामों के लिए पछतावा नहीं था। उसमें उदारता नाम की कोई चीज थी ही नहीं।
शिवशंभु की दो गायों की कहानी के माध्यम से लेखक यह कहना चाहता है कि भारत के लोग अत्यंत दयालु एवं भावुक हैं। वे स्वयं को दुख पहुँचाने वाले व्यक्ति के बिछुड़ने पर भी खुश होने के स्थान पर दुखी होते हैं। यहाँ तक कि इस देश के पशुओं में भी यही भावना पाई जाती है। भारत में बिछड़न का समय बड़ा करुणोत्पादक होता है; बड़ा पवित्र, बड़ा कोमल और बड़ा निर्मल होता है।
यहाँ बंग- भंग की ऐतिहासिक घटना की ओर संकेत किया गया है। लॉर्ड कर्जन ने अपनी जिद्द के कारण बंगाल का विभाजन कर दिया। इसके कारण बंगाल दो हिस्सों में बँट गया-पश्चिमी बंगाल और पूर्वी बंगाल। यहाँ के 8 करोड़ लोगों ने इसका कड़ा विरोध किया था, पर लॉर्ड कर्जन अपनी जिद्द पर अड़े रहे। (यही पूर्वी बंगाल आगे चलकर बँगलादेश बना)।
कर्जन को इस्तीफा क्यों देना पड़ गया?
लॉर्ड कर्जन ने एक फौजी अफसर को अपनी इच्छा के पद पर रखना चाहा था, पर ब्रिटिश सरकार ने उनकी बात नहीं मानी। इस अफसर को उनके इच्छित पद पर न रखा गया। लॉर्ड कर्जन ने गुस्से में आकर इस्तीफा दे दिया। उन्हींने सोचा कि शायद इस्तीफे की धमकी काम करा देगी। पर ब्रिटिश सरकार ने उनका इस्तीफा मंजूर कर लिया, और उनकी बात नहीं मानी। लॉर्ड कर्जन का भारी अपमान हुआ और उन्हें भारत छोड्कर जाना पड़ा।
इस कथन का आशय यह है कि यह विचारने की बात है कि लॉर्ड कर्जन की शान-शौकत सर्वोच्च स्तर पर थी। वे सबसे ऊँचे थे, शेष सभी उनसे नीचे थे। सेवा काल के अंत में उनका पतन हो गया। वे अपने ऊँचे पद से नीचे आ गिरे। उन्हें इस देश से चले जाने का हुक्म मिला। ब्रिटिश सरकार ने उनकी बात नहीं मानी। लॉर्ड कर्जन की बड़ी किककिरी हुई।
आपके से तात्पर्य लॉर्ड कर्जन से है तथा यहाँ के निवासी भारत के निवासी हैं। इनके बीच तीसरी शक्ति है-ब्रिटिश सरकार। वही इन दोनों शक्तियों (लॉर्ड कर्जन और भारत की प्रजा) को नियंत्रित कर रही थी। उस शक्ति पर न तो भारतवासियों का काबू था और न लॉर्ड कर्जन का। वह शक्ति सर्वोच्च शक्ति थी।
पाठ का यह अंश ‘शिवशंभु के चिट्ठे’ से लिया गया है। शिवशंभु नाम की चर्चा पाठ में भी हुई है। बालमुकुंद गुप्त ने इस नाम का उपयोग क्यों किया होगा?
बालमुकुंद गुप्त के समय में प्रेस की स्वाधीनता पर प्रतिबंध लगा हुआ था। भारत के लोग खुलेआम अपने नाम से ब्रिटिश सरकार और उसके अधिकारियों का विरोध नहीं कर पाते थे। बालमुकुंद गुप्त ने इसकी यह युक्ति निकाली कि वे शिवशंभु के चिट्ठे शीर्षक से अपनी बात जनता तक तथा ब्रिटिश अफसरों तक पहुचाएँ। इससे वे स्वयं सीधी कार्यवाही से बच जाते होंगे। इसीलिए उन्होंने इस नाम का उपयोग किया होगा।
नादिरशाह तानाशाह था। उसने दिल्ली की जनता का कत्लेआम करवाया था। पर उसने आसिफजाह के तलवार गले में डालकर प्रार्थना करने पर उसे कत्लेआम को उसी समय रोक दिया था। लॉर्ड कर्जन के संदर्भ में हमें यह बात कुछ उचित नहीं लगती। लॉर्ड कर्जन को नादिरशाह से भी अधिक तानाशाह बताना उचित नहीं है। लॉर्ड कर्जन जिद्दी भले ही रहा हो, पर उतना तानाशाह नहीं था। बैग- भंग का दाग उस पर अवश्य है, पर ऐसा कोई कत्लेआम नहीं हुआ जैसा नादिरशाह के समय हुआ था। लेखक ने बात को बढ़ा-चढ़ाकर कहने के लिए ही ऐसा कहा है।
इन पंक्तियों से यह ध्वनित होता है कि अपनी मनमानी चलाना ही शासन व्यवस्था है। इसमें लोगों की बात अनसुनी कर दी जाती है। इस स्थिति को कभी स्वीकार नहीं किया जा सकता। शासन व्यवस्था में शासक और प्रजा दोनों की भागीदारी होती है। प्रजा को अपनी बात कहने का पूरा हक है। शासक को उसकी बात सुननी ही चाहिए। शासक मनचाहा व्यवहार नहीं कर सकता। दोनों के सहयोग से जो व्यवस्था चलती है, वही अच्छा शासन होता है।
इस पाठ में आए अलिफ़ लैला, अलहदीन, अबुल हसन और बगदाद के खलीफा के बारे में सूचना एकत्रित कर कक्षा में चर्चा कीजिए।
अलिफलैला के अलहदीन ने चिराग रगड़कर इच्छित वस्तु पा ली थी। अबुल हसन बगदाद के खलीफा थे। उनकी शान निराली थी।
छात्र इनके बारे में और अधिक जानकारी एकत्रित करें।
विद्यार्थी इन बातों पर स्वयं गौर करें।
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यहाँ पधारें शब्द का अर्थ है-’ चले जाएँ’।
पाठ में से कुछ वाक्य नीचे दिए गए हैं, जिनमें भाषा का विशिष्ट प्रयोग (भारतेन्दु युगीन हिन्दी) हुआ है। उन्हें सामान्य हिन्दी में लिखिए-
(क) आगे भी इस देश में जो प्रधान शासक आए, अंत को उनको जाना पड़ा।
(ख) आप किस को आए थे और क्या कर चले?
(ग) उनका रखाया एक आदमी नौकर न रखा।
(घ) पर आशीर्वाद करता हूँ कि तू फिर उठे और अपने प्राचीन गौरव और यश का फिर से लाभ करे।
(क) आगे चलकर भी इस देश में जो प्रधान शासक आए, अंत में उन्हें जाना पड़ा।
(ख) आप किस काम के लिए आए थे और क्या काम कर चले?
(ग) उनके कहने से एक आदमी को नौकर न रखा गया।
(घ) मैं आशीर्वाद देता हूँ कि तू फिर उठे और अपने प्राचीन गौरव तथा यश-लाभ फिर से प्राप्त करे।
लेखक व्यंग्य में किस बात का सौभाग्य न मिलने की बात कहता है?
माइ लॉर्ड का देश देखने का इस दीन ब्राह्मण को कभी इस जन्म में सौभाग्य नहीं हुआ। इससे नहीं जानता कि वहाँ बिछुड़ने के समय लोगों का क्या भाव होता है। पर इस देश के पशु-पक्षियों को भी बिछुड़ने के समय उदास देखा है।
कैसर, जोर तथा नादिरशाह पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखें।
1. कैसर - रोमन तानाशाह जूलियस सीजर के नाम से बना शब्द, जो तानाशाह जर्मन शासकों (962 से 1876 तक) के लिए प्रयोग होता था।
2. जा़र - यह भी जूलियस सीजर से बना शब्द है जो विशेष रूप से रूस के तानाशाह शासकों (16वीं सदी से 1917 तक) के लिए प्रयुक्त होता था। इस शब्द का पहली बार बबुल्गेरियाईशासक (913 में) के लिए प्रयोग हुआ था।
3. नादिरशाह - (1688 - 1747) 1736 से 1747 तक ईरान के शाह रहे। अपने तानाशाही स्वरूप के कारण ‘नेपोलियन ऑफ परशिया’ के नाम से भी जाने जाते थे। पानीपत के तीसरे युद्ध में अहमदशाह अब्दाली को नादिरशाह ने ही आक्रमण के लिए भेजा था।
दो गायों की बात को अपने शब्दों में लिखिए।
एक बार शिवशंभु के दो गायें थीं। उनमें एक अधिक बल वाली थी। वह कभी-कभी अपने सींगों की टक्कर से दूसरी कमजोर गाय को गिरा देती थी। एक दिन टक्कर मारने वाली गाय पुरोहित को दे दी गई। देखा कि दुर्बल गाय उसके चले जाने से प्रसन्न नहीं हुई, वरंच उस दिन वह भूखी खड़ी रही, चारा छुआ तक नहीं। माई लॉर्ड! जिस देश के पशुओं के बिछड़ते समय यह दशा होती है, वहाँ मनुष्यों की कैसी दशा हो सकती है, इसका अंदाज लगाना कठिन नहीं है।
दिल्ली दरबार में लॉर्ड कर्जन की क्या शान दिखाई दी?
जो दिल्ली-दरबार में आपने देखा। आपकी और आपकी लेडी की कुर्सी सोने की थी और आपके प्रभु महाराज के छोटे भाई और उनकी पत्नी की चाँदी की। आप दाहिने थे, वह बाएँ, आप प्रथम थे, वह दूसरे। इस देश के सब रईसों ने आपको सलाम पहले किया और बादशाह के भाई को पीछे। जुलूस में आपका हाथी सबसे आगे और सबसे ऊँचा था; हौदा, चँवर, छत्र आदि सबसे बढ़-चढ़कर थे। सारांश यह है कि ईश्वर और महाराज एडवर्ड के बाद इस देश में आप ही का एक दर्जा था।
भारतवासियों को किस बात ने दुखित किया? इसमें लॉर्ड कर्जन पर क्या व्यंग्य है?
जिस प्रकार आपका बहुत ऊँचे चढ़कर गिरना यहाँ के निवासियों को दुखित कर रहा है, गिरकर पड़ा रहना उससे भी अधिक दुखित करता है। आपका पद छूट गया तथापि आपका पीछा नहीं छूटा है। एक अदना क्लर्क जिसे नौकरी छोड़ने के लिए एक महीने का नोटिस मिल गया, हो नोटिस की अवधि को बड़ी घृणा से काटता है। आपको इस समय अपने पद पर रहना कहाँ तक पसंद है-यह आप ही जानते होंगे।
नर-सुल्तान के बारे में पाठ में क्या कहा गया है ?
नर-सुल्तान नाम के एक राजकुमार का गीत गाया जाता है। एक बार अपनी विपद् के कई साल सुलतान ने नरवरगढ़ नाम के एक स्थान में काटे थे। वहाँ चौकीदारी से लेकर उसे एक ऊँचे पद तक काम करना पड़ा था। जिस दिन घोड़े पर सवार होकर वह उस नगर से विदा हुआ, नगर-द्ववार से बाहर आकर उस नगर को जिस रीति से उसने अभिवादन किया था, वह सुनिए। उसने आँखों में आँसू भरकर कहा- “प्यारे नरवरगढ़! मेरा प्रणाम ले। आज मैं तुझसे जुदा होता हूँ। तू मेरा अन्नदाता है। अपनी विपद् के दिन मैंने तुझमें काटे हैं। तेरे ऋण का बदला मैं गरीब सिपाही नहीं दे सकता। भाई नरवरगढ़! यदि मैंने जानबूझकर एक दिन भी अपनी सेवा में चूक की हो, यहाँ की प्रजा की शुभ चिन्ता न की हो, यहाँ की स्त्रियों को माता और बहन की दृष्टि से न देखा हो तो मेरा प्रणाम न ले, नहीं तो प्रसन्न होकर एक बार मेरा प्रणाम ले और मुझे जाने की आज्ञा दे!” माइ लॉर्ड! जिस प्रजा में ऐसे राजकुमार का गीत गाया जाता है।
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