समकालीन विश्व राजनीति Chapter 4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र
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    NCERT Solution For Class 12 राजनीतिक विज्ञान समकालीन विश्व राजनीति

    सत्ता के वैकल्पिक केंद्र Here is the CBSE राजनीतिक विज्ञान Chapter 4 for Class 12 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 12 राजनीतिक विज्ञान सत्ता के वैकल्पिक केंद्र Chapter 4 NCERT Solutions for Class 12 राजनीतिक विज्ञान सत्ता के वैकल्पिक केंद्र Chapter 4 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 12 राजनीतिक विज्ञान.

    Question 1
    CBSEHHIPOH12041356

    तिथि के हिसाब से इन सबको क्रम दें :

    (क) विश्व व्यापार संगठन में चीन का प्रवेश
    (ख) यूरोपीय आर्थिक समुदाय की स्थापना
    (ग) यूरोपीय संघ की स्थापना
    (घ) आसियान क्षेत्रीय मंच की स्थापना

    Solution

    (ख) यूरोपीय आर्थिक समुदाय की स्थापना
    (घ) आसियान क्षेत्रीय मंच की स्थापना
    (ग) यूरोपीय संघ की स्थापना
    (क) विश्व व्यापार संगठन में चीन का प्रवेश

    Question 4
    CBSEHHIPOH12041359

    खाली स्थान भरें:

    1962 में भारत और चीन के बीच................ और ................ को लेकर सीमावर्ती लड़ाई हुई थी।

    Solution

    अरुणाचल प्रदेश के कुछ इलाकों

    ,

    लद्दाख के अक्साई चीन क्षेत्र

    Question 5
    CBSEHHIPOH12041360
    Question 9
    CBSEHHIPOH12041364

    क्षेत्रीय संगठनों को बनाने के उद्देश्य क्या हैं?

    Solution

    दूसरे विश्व युद्ध के पश्चात अमेरिका और सोवियत संघ दो महाशक्तियाँ उभरकर सामने आई और उनकी आपस की स्पर्धा के कारण संसार में असुरक्षा, अशांति, भय तथा तनाव का वातावरण बना रहा। इसी प्रकार सोवियत संघ विघटन के बाद अमेरिकी वर्चस्व शांति के लिए खतरा साबित हुआ। इसलिए ऐसी स्थिति से बचने के लिए विश्व के देश अपने क्षेत्रीय संगठन बनाते हैं।

    क्षेत्रीय संगठनों को बनाने के उद्देश्य निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त कर सकते हैं:

    1. क्षेत्रीय संगठन क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देते हैं और क्षेत्र की आर्थिक गतिविधियों में तेजी लाने की भूमिका निभाते हैं। इससे क्षेत्रीय संगठन के सदस्य देशों को आर्थिक उन्नति की अधिक आशा होती है।
    2. क्षेत्र संगठन आकार में छोटे होते हैं और उनके सदस्य देशों में एकता की भावना जल्दी मजबूत हो जाती है।
    3. क्षेत्रीय संगठन विश्व में शक्ति संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जिससे कोई भी देश या संगठन वर्चस्व प्राप्त नहीं कर पाता और संसार के देश किसी भी देश की दादागिरी से बचे रहते हैं।
    4. क्षेत्रीय संगठन सदस्यों के आपसी व्यापार को बढ़ाने में अधिक सुविधा प्रदान करते हैं क्योंकि व्यापारिक गतिविधियों पर नजदीक से और अच्छी नजर रखी जा सकती है।
    5. क्षेत्रीय संगठन के सदस्यों की संख्या अधिक नहीं होती इसलिए उन्हें अपने विवाद आपसी बातचीत से निपटने में सुविधा रहती है। साथ ही क्षेत्र संगठन के सदस्यों का एक- दूसरे से आमने-सामने के संबंध होने के कारण एक-दूसरे की बात या पड़ोसी राज्य के सुझाव जल्दी मान लेते हैं।

    Question 10
    CBSEHHIPOH12041365

    भौगोलिक निकटता का क्षेत्रीय संगठनों के गठन पर क्या असर होता है?

    Solution
    1. भौगोलिक निकटता का क्षेत्रीय संगठनों के गठन पर गहरा प्रभाव पड़ता है, क्योंकि विशेष क्षेत्र में आने वाले देशों में संगठन की भावना विकसित होती हैं। इस भावना के कारण परस्पर संघर्ष व युद्ध का स्थान शांति व सहयोग ले लेते हैं।
    2. भौगोलिक एकता के कारण विकास की संभावनाएँ ज्यादा होती हैं। राष्ट्र बड़ी आसानी से सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था करके, कम धन व्यय करके अपने लिए सैन्य बल गठित कर सकते हैं और बचे हुए धन को कृषि, उद्योग, विद्युत, यातायात, शिक्षा, सड़क, संचार, स्वास्थ्य आदि सुविधाओं को जुटाने और जीवन स्तर को ऊँचा उठाने में प्रयोग कर सकते हैं।
    3. एक क्षेत्र के विभिन्न राष्ट्र यदि क्षेत्रीय संगठन बना लें तो वे परस्पर सड़क मार्ग और रेलवे सेवाओं से बड़ी आसानी से जुड़ सकते हैं। इस प्रकार भौगोलिक निकटता के कारण क्षेत्र विशेष में आने वाले देशों में संगठन की भावना विकसित होती है।
    4. यदि क्षेत्रीय संगठनों में अच्छा सहयोग बन जाए तो वे अपना अधिक विकास कर सकते हैं। इसके कारण उनमें अपने प्राकृतिक संसाधनों का अधिकतम उपयोग करने की क्षमता विकसित होगी जिसके परिणामस्वरुप वे अपने आर्थिक विकास के मार्ग की ओर अग्रसर हो सकते हैं।
    Question 11
    CBSEHHIPOH12041366

    'आसियान विजन - 2020' की मुख्य बातें क्या हैं?

    Solution

    'आसियान विजन- 2020' की मुख्य बातें निम्नलिखित हैं: 

    1. आसियान तेजी से बढ़ता हुआ एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय संगठन है। इसके विजन दस्तावेज़ 2020 में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में आसियान की एक बहिर्मुखी भूमिका को प्रमुखता दी गई है।
    2. इस दस्तावेज़ में इस बात पर विशेष बल दिया गया हैं कि आसियान द्वारा टकराव की जगह बातचीत को बढ़ावा देने की नीति प्राथमिकता दी जाएगी। इसी के मद्देनज़र आसियान ने कंबोडिया के टकराव को समाप्त किया, पूर्वी तिमोर के संकट को सम्भाला है और पूर्व-एशियाई सहयोग पर बातचीत के लिए 1999 से नियमित रूप से वार्षिक बैठक आयोजित की है।

    Question 12
    CBSEHHIPOH12041367

    आसियान समुदाय के मुख्य स्तंभों और उनके उद्देश्यों के बारे में बताएँ।

    Solution

    2003 में आसियान ने आसियान सुरक्षा समुदाय, आसियान आर्थिक समुदाय और आसियान सामाजिक- सांस्कृतिक-समुदाय नामक तीन स्तम्भों के आधार पर आसियान समुदाय बनाने की दिशा में कदम उठाए जो कुछ हद तक यूरोपीय संघ से मिलता-जुलता है।

    1. आसियान सुरक्षा समुदाय: आसियान सुरक्षा समुदाय क्षेत्रीय विवादों को सैनिक टकराव तक न ले जाने की सहमति पर आधारित है। आसियान मुख्यत सदस्य देशों में शांति, निष्पक्षता, सहयोग, अहस्तक्षेप को बढ़ावा देने और राष्ट्रों के आपसी अंतर तथा संप्रभुता के अधिकारों का सम्मान करने का उद्देश्य रखता हैं। आसियान के देशों की सुरक्षा और विदेश नीतियों में तालमेल बनाने के लिए ही 1994 में आसियान क्षेत्रीय मंच की स्थापना की गई।
    2. आसियान आर्थिक समुदाय: आसियान आर्थिक समुदाय का उद्देश्य आसियान देशों का साझा बाजार और उत्पादन आधार तैयार करना तथा इस इलाके के सामाजिक और आर्थिक विकास में मदद करना है। इतना ही नहीं, इसका उद्देश्य इस क्षेत्र के देशों के आर्थिक विवादों को निपटाने के लिए बनी मौजूदा व्यवस्था में सुधार करना भी हैं।
    3. आसियान सामाजिक- सांस्कृतिक-समुदाय: इसका उद्देश्य हैं कि आसियान देशों के बीच टकराव की जगह बातचीत और सहयोग को बढ़ावा दिया जाए तथा इन देशों के बीच संवाद और परामर्श की व्यवस्था रहे। अत: 'आसियान' एशिया का एकमात्र ऐसा क्षेत्रीय संगठन है जो एशियाई देशों और विश्व शक्तियों को राजनैतिक और सुरक्षा मामलों पर चर्चा के लिए राजनैतिक मंच उपलब्ध कराता है।

    Question 13
    CBSEHHIPOH12041368

    आज की चीनी अर्थव्यवस्था नियंत्रित अर्थव्यवस्था से किस तरह अलग है?

    Solution

    इसमें कोई दोराहे नहीं कि आज की चीनी अर्थव्यवस्था नियंत्रित अर्थव्यवस्था से बिलकुल भिन्न हैं। आर्थिक शक्ति के रूप में चीन के उदय को विश्व भर में चीन की दीवार व ड्रैगन के रूप में देखा जाता है। अपनी तेज़ आर्थिक वृद्धि के कारण चीन जहाँ विश्व की शक्ति का तीसरा बड़ा केंद्र बन रहा हैं,वही चीन की निरंतर आर्थिक वृद्धि को देखकर विशेषज्ञों का मानना हैं की 2040 तक वह दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति, अमरीका से भी आगे निकल जाएगा।

    सन् 1970 के दशक एवं उसके बाद से कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए जिसके परिणामस्वरूप चीनी अर्थव्यवस्था विश्व की एक महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्था के रूप में विकसित हुई। चीन द्वारा किए गए आर्थिक प्रयासों को निम्नलिखित रूप में देखा जा सकता हैं:

    1. चीनी नेतृत्व ने 1970 के दशक में कुछ बड़े नीतिगत निर्णय लिए। चीन ने 1972 में अमरीका से संबंध बनाकर अपने राजनैतिक और आर्थिक एकांतवास को खत्म किया परिणाम स्वरूप उसके विदेशी व्यापर का रास्ता भी खुल गया। 1972 में चीन संयुक्त राष्ट्र संघ का स्थाई सदस्य भी बन गया।
    2. सन् 1973 में प्रधानमंत्री चाऊ एनलाई ने कृषि, उद्योग, सेना और विज्ञान-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आधुनिकीकरण के चार प्रस्ताव रखे।
    3. सन् 1978 में तत्कालीन नेता देंग श्याओपेंग ने चीन में आर्थिक सुधारों और ' खुलेद्वार की नीति' की घोषणा की। अब नीति यह हो गयी कि विदेश पूंजी और प्रौद्योगिकी के निवेश से उच्चतर उत्पादकता को प्राप्त किया जाए। बाजारमूलक अर्थव्यवस्था को अपनाने के लिए चीन ने अपना तरीका आजमाया। चीन ने 'शॉक थेरेपी ' पर अमल करने के बजाय अपनी अर्थव्यवस्था को चरणबद्ध ढंग से खोला।
    4. सन् 1982 में खेती का निजीकरण किया गया और उसके बाद 1998 में उद्योगों का। व्यापार संबंधी अवरोधों को सिर्फ 'विशेष आर्थिक क्षेत्रों' के लिए ही हटाया गया है जहाँ विदेशी निवेशक अपने उद्यम लगा सकते हैं।
    5. व्यापार के नये कानून तथा विशेष आर्थिक क्षेत्रों (स्पेशल इकॉनामिक जोन-SEZ) के निर्माण से विदेश-व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई । चीन पूरे विश्व में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए सबसे आकर्षक देश बनकर उभरा। चीन के पास विदेशी मुद्रा का अब विशाल भंडार है और इसके दम पर चीन दूसरे देशों में निवेश करता है। 
    6. चीन 2001 में विश्व व्यापार संगठन में शामिल हो गया। इस तरह दूसरे देशों के लिए अपनी अर्थव्यवस्था खोलने की दिशा में चीन ने एक कदम और बढ़ाया। अब चीन की योजना विश्व आर्थिकी से अपने जुड़ाव को और गहरा करके भविष्य की विश्व व्यवस्था को एक मनचाहा रूप देने की थी।

    क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर चीन एक ऐसी जबरदस्त आर्थिक शक्ति बनकर उभरा है कि सभी उसका लोहा मानने लगे हैं। चीन की अर्थव्यवस्था का बाहरी दुनिया से जुड़ाव और पारस्परिक निर्भरता ने अब यह स्थिति बना दी है कि अपने व्यावसायिक साझीदारों पर चीन का जबरदस्त प्रभाव बन चुका है और यही कारण है कि जापान, अमरीका, आसियान और रूस सभी व्यापार के आगे चीन से बाकी विवादों को भुला चुके हैं।

    Question 14
    CBSEHHIPOH12041369

    यूरोपीय संघ को क्या चीजें एक प्रभावी क्षेत्रीय संगठन बनाती हैं।

    Solution

    यूरोपीय संघ को एक प्रभावशाली क्षेत्रीय संगठन बनाने में कई बातों का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है, जिनका वर्णन निम्नलिखित हैं:

    1. यूरोपीय संघ की भौगोलिक स्थिति व उनकी भौगोलिक निकटता इस क्षेत्रीय संगठन को मजबूती प्रदान करती हैं।
    2. यूरोपीय संघ का अपना स्थापना दिवस, झंडा, राष्ट्रीय गान एवं 'यूरो' मुद्रा आदि से यूरोपीय देशों के एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय संगठन की पहचान प्रदान करते हैं।
    3. यूरोपीय संघ का आर्थिक, राजनैतिक, कूटनीतिक तथा सैनिक प्रभाव बहुत जबरदस्त है। विश्व व्यापार में इसकी हिस्सेदारी अमरीका से तीन गुनी ज्यादा है और इसी के चलते यह अमरीका और चीन से व्यापारिक विवादों में पूरी धौंस के साथ बात करता है। यह विश्व व्यापार संगठन जैसे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संगठनों के अंदर एक महत्त्वपूर्ण समूह केरूप में काम करता है।
    4. यूरोपीय संघ के दो सदस्य देश ब्रिटेन और फ्रांस सुरक्षा परिषद् के स्थाई सदस्य हैं। यूरोपीय संघ के कई और देश सुरक्षा परिषद् के अस्थायी सदस्यों में शामिल हैं। इसके चलते यूरोपीय संघ अमरीका समेत सभी मुल्कों की नीतियोंको प्रभावित करता है।
    5. सैनिक ताकत के हिसाब से यूरोपीय संघ के पास दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सेना है। इसका कुल रक्षा बजट अमरीका के बाद सबसे अधिक है।

    Question 15
    CBSEHHIPOH12041370

    चीन और भारत की उभरती अर्थव्यवस्थाओं में मौजूदा एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था को चुनौती दे सकने की क्षमता है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं ? अपने तर्कों से अपने विचारों को पुष्ट करें।

    Solution

    आज यह तर्क लोगों के द्वारा दिया जाता है कि भारत और चीन उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में मौजूद एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था को चुनौती दे सकने की पूरी क्षमता रखते हैं। इस विचार के समर्थन में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं:

    1. भारत व चीन दोनों विकासशील देश हैं तथा वर्तमान समय में ये उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएँ भी हैं। दोनों देश नई अर्थव्यवस्था, मुक्त व्यापार नीति, उदारीकरण, वैश्वीकरण और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के पक्षधर हैं। इसी कारण दोनों देशों की अर्थव्यवस्था विश्व स्तरीय अर्थव्यवस्था में अपना प्रभाव स्थापित कर रही हैं। इनकी ऐसी स्थिति ही अमेरिका वर्चस्व को चुनौती दे रही है।
    2. दोनों देशो की सैन्य क्षमता अपार हैं। चीन के पास विश्व की सबसे बड़ी विशाल सेना है तो भारत के पास भी एक विशाल सेना है। इतना ही नहीं दोनों देश आधुनिक शस्त्रों के भंडार से परिपूर्ण हैं अथवा दोनों ही परमाणु क्षमता से युक्त है। ऐसी सैन्य क्षमता जहां दोनों देशों को विश्व व्यवस्था में मैत्रीपूर्ण संबंधों की स्थापना में सहायक है वह अमेरिका के बढ़ते प्रभाव एवं उसके अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में मनमाने आचरण पर अंकुश लगाने में व्यवसायिक मानी जाती है।
    3. आज दोनों (चीन और भारत) देशों के बीच प्रौद्योगिक संबंधों में जो प्रगाढ़ता आई है वह इस बात का संकेत है कि वे आश्चर्यजनक रूप से प्रगति कर सकते हैं। दोनों देश (चीन और भारत) मिलकर अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से ऋण लेकर अमरीका जैसे शक्तिशाली देश का प्रभाव कम कर सकते हैं।
    4. चीन और भारत तस्करी रोकने, नशीली दवाओं के उत्पादन, विनिमय, वितरण, प्रदूषण फैलाने में सहायक कारकों और आतंकवादियों की गतिविधियों में पूर्ण सहयोग देकर भी विश्व व्यवस्था की चुनौती को कम कर सकते हैं, क्योंकि इन क्षेत्रों में सहयोग से कीमतों में होने वाली बढ़ोतरी पर रोक लगाई जा सकती है।
    5. चीन व भारत की जनसंख्या 200 करोड़ से भी ज्यादा है। जहाँ अमरीका के अधिकतर माल की खपत होती है। अधिक जनसंख्या होने के कारण इनके नागरिक विश्व के हर देश में पाए जाते हैं। इसके अलावा सस्ते श्रमिक भी इन्हीं देशों द्वारा दिए जाते रहे हैं।
    6. संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् में चीन की स्थायी सदस्यता का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता हैं। वही भारत विश्व के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश की शक्ति के रूप में विश्व व्यवस्था में एक सक्रिय एवं प्रभावी भूमिका निभाने की क्षमता रखता है। इस तरह दोनों देशों की बढ़ती राजनीतिक क्षमता निश्चित ही अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती देने कि क्षमता रखती है।

    Question 16
    CBSEHHIPOH12041371

    मुल्कों की शांति और समृद्धि क्षेत्रीय आर्थिक संगठनों को बनाने और मजबूत करने पर टिकी है। इस कथन की पुष्टि करें।

    Solution
    1. विश्व के विभिन्न मुल्कों की शांति एवं समृद्धि के लिए क्षेत्रीय आर्थिक संगठनों के गठन एवं उनकी सुदृढ़ता आवश्यक है क्योंकि ये क्षेत्रीय आर्थिक संगठन कृषि, उद्योग धंधों, यातायात, व्यापार, आर्थिक संस्थाओं आदि को बढ़ावा देते हैं।
    2. इन आर्थिक संगठनों के बनने से लोगों को अनेक क्षेत्रों में रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे, जिसके कारण इन देशों में बेरोजगारी कम होगी जो गरीबी को कम करने में एक महत्त्वपूर्ण सहायक तत्व माना जाता है। विशेष रूप में आर्थिक संगठनों के निर्माण से राष्ट्रों में समृद्धि आती है।
    3. जब लोगों में आर्थिक असमानता की धारणा घर कर जाएगी तो ऐसे में वे संगठन के माध्यम से इस आर्थिक असमानता के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाएँगे तथा इसके साथ ही श्रमिकों के शोषण को रोका जाएगा, उनको उचित मज़दूरी मिलने लगेगी, जिसके कारण उनकी क्रय-शक्ति में भी बढ़ोतरी होगी तथा वे सभी अपने परिवार के शिक्षा व स्वास्थ्य के लिए अच्छी सुविधाएँ प्रदान करेंगे।
    4. प्रत्येक देश अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए आर्थिक क्षेत्रीय संगठनों से सहयोग माँगते हैं तथा इसके बदले में उन्हें भी अपने पड़ोसी देशों को इस प्रकार का सहयोग देना होता हैं। प्रत्येक देश चाहता है कि उन्हें अपने उद्योगों के लिए कच्चा माल उपलब्ध हो तथा तैयार माल के भी खरीददार हो। क्षेत्रीय आर्थिक संगठनों के सहयोग से यह कार्य पूरा किया जाता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि क्षेत्रीय संगठनों का अंतर्राष्ट्रीय बाजारीकरण के साथ भी गहरा संबंध हैं।
    5. क्षेत्रीय आर्थिक संगठन विभिन्न देशों में पूंजी निवेश, श्रम गतिशीलता, यातायात सुविधाओं के विस्तार, शिक्षा ऊर्जा उत्पादन में सहायक होता है। यूरोप एशिया और अपने क्षेत्रीय संगठन का प्रत्येक वर्ष शिखर सम्मेलन होता है जिसमें वे विभागीय गतिशील योजनाएं बनाते हैं।
    Question 17
    CBSEHHIPOH12041372

    भारत और चीन के बीच विवाद के मामलों की पहचान करें और बताएँ कि वृहत्तर सहयोग के लिए इन्हें कैसे निपटाया जा सकता है। अपने सुझाव भी दीजिए।

    Solution

    भारत और चीन के बीच विवाद के मामले निम्नलिखित है:

    1. 1962 में चीन ने लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश पर अपने दावे को जबरन स्थापित करने के लिए भारत पर आक्रमण कर दिया था जिसकी परिणामस्वरूप 'हिंदी चीनी भाई-भाई' की भावना और एशिया के दो महान पड़ोसी देशों के सदियों पुराने चले आ रहे मित्रता के संबंधों को गहरी ठेस पहुँची।
    2. 1965 में जब पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण किया तो चीन ने उसकी मदद करके भारतवासियों की भावनाओं को ठेस पहुँचाई। स्वभाविक तौर पर दोनों देशों के संबंध और खराब हो गए।
    3. पाकिस्तान के साथ संधि करके चीन ने कश्मीर का कुछ भाग अपने अधीन कर लिया जिसे तथाकित पाकिस्तान द्वारा हड़पे गए कश्मीर का हिस्सा माना जाता है।
    4. चीन भारत की परमाणु परीक्षण परीक्षणों का विरोध करता हैं जबकि वह स्वयं परमाणु अस्त्र शस्त्र रखता है तथा पाकिस्तान को परमाणु शक्ति संपन्न चीन द्वारा ही बनाया गया है।
    5. 1950 में चीन द्वारा तिब्बत को हड़पने तथा भारत-चीन सीमा पर बस्तियाँ बसाने के निर्णय के बाद दोनों देशों के बीच संबंध बहुत बिगड़ गए।

    वृहत्तर सहयोग के लिए भारत-चीन मतभेदों को निपटाने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं:

    1. परस्पर सहयोग: दोनों देश अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यथासंभव परस्पर सहयोग देकर विकसित देशों से आर्थिक, वैज्ञानिक तथा सैनिक साज-समान की उन्नति के लिए सहयोग प्राप्त कर सकते हैं। जो भी देश आतंकवादी शिविरों का संचालन कर रहे हैं उनके विरुद्ध संयुक्त दबाव डालने की नीति अपना सकते हैं। दोनों देश पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण फैलाने वाली समस्याओं के समाधान में सहयोग दे सकते हैं।
    2. सांस्कृतिक संबंध: दोनों देशों में सांस्कृतिक संबंध स्थापित हों। भारत के कुछ लोग चीनी भाषा और चीनी साहित्य का अध्ययन करने के लिए चीन जा सकते हैं और कुछ चीनी नागरिक हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं का साहित्य के अध्ययन के लिए भारत आ सकते हैं। दोनों देशों में चित्रकला, वास्तुकला, मूर्तिकला, नृत्य-कला, फिल्मों आदि का आदान प्रदान किया जा सकता है।
    3. व्यापार को बढ़ावा: भारत और चीन में आंतरिक व्यापार को बढ़ावा दिया जा सकता है। दोनों देशों में कंप्यूटर से संबंधित सॉफ्टवेयर के आदान-प्रदान किया जा सकता हैं।
    4. शांति एवम् सद्भाव: दोनों देशों के प्रमुख नेता समय-समय पर एक दूसरे के विचारों का आदान- प्रदान करें जिससे दोनों देशों में सद्भाव और मित्रता स्थापित हो।
    5. नीतिगत बदलाव: दोनों देशों को अपना अंतरराष्ट्रीय प्रभाव बढ़ाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपने हितों एवं एशियाई क्षेत्र व हितों के दृष्टिगत समान नीतियाँ बनाने का प्रयास करना चाहिए।

    दोनों देशों की सरकारें बातचीत के द्वारा हर समस्या का समाधान निकाल सकती हैं। दोनों ही देश की एक जैसी अनेक समस्याओं जैसे जनसंख्या वृद्धि, बेरोज़गारी, निबंध भौतिक जीवन स्तर आदि से जूझ रहे हैं। दोनों ही देश एक-समान समस्याओं से ग्रस्त हैं जिसे आपसी बातचीत द्वारा सुझाया जाना चाहिए।

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    Question 18
    CBSEHHIPOH12041373

    किस तरह यूरोपीय देशों ने युद्ध के बाद की अपनी परेशानियाँ सुलझाई? संक्षेप में उन कदमों की चर्चा करें जिनसे होते हुए यूरोपीय संघ की स्थापना हुई।

    Solution

    यूरोपीय संघ की स्थापना दूसरे विश्व युद्ध का परिणाम कही जा सकती हैं। 1945 तक यूरोपीय देशों ने अपनी अर्थव्यवस्थाओं की बर्बादी तो झेली ही, उन मान्यताओं और व्यवस्थाओं को ध्वस्त होते भी देख लिया जिन पर यूरोप खड़ा हुआ था। अत: यूरोप के नेताओं ने निम्न तरीकों से अपनी परेशानियों को सुलझाया:

    1. नाटो और यूरोपीय आर्थिक संगठनों की स्थापना: 1945 केबाद यूरोप के देशों में मेल-मिलाप को शीतयुद्ध से भी मदद मिली। अमरीका ने यूरोप की अर्थव्यवस्था के पुनर्गठन के लिए जबरदस्त मदद की। इसे मार्शल योजना के नाम से जाना जाता है। अमेरिका ने 'नाटो' के तहत एक सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था को जन्म दिया। मार्शल योजना के तहत ही 1948 में यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना की गई जिसके माध्यम से पश्चिमी यूरोप के देशों को आर्थिक मदद दी गई।
    2. यूरोपीय परिषद और आर्थिक समुदाय: 1949 में गठित यूरोपीय परषिद राजनैतिक सहयोग के मामले में एक अगला कदम साबित हुई। यूरोप के पूँजीवादी देशों की अर्थव्यवस्था के आपसी एकीकरण की प्रक्रिया चरणबद्ध ढंग से आगे बढ़ी जिसके परिणामस्वरूप 1957 में यूरोपीयन इकॉनामिक कम्युनिटी का गठन हुआ।
    3. यूरोपीय पार्लियामेंट का गठन: यूरोपीयन पार्लियामेंट के गठन के बाद इस प्रक्रिया ने राजनीतिक स्वरूप प्राप्त कर लिया। सोवियत गुट के पतन के बाद इस प्रक्रिया में तेजी आयी और 1992 में इस प्रक्रिया की परिणति यूरोपीय संघ की स्थापना के रूप में हुई। यूरोपीय संघ के रूप में समान विदेश और सुरक्षा नीति, अतिरिक मामलों तथा न्याय से जुड़े मुद्दों पर सहयोग और एकसमान मुद्रा के चलन के लिए रास्ता तैयार हो गया।
    4. यूरोपीय संघ का बनना: एक लम्बे समय में बना यूरोपीय संघ आर्थिक सहयोग वाली व्यवस्था से बदलकर ज्यादा से ज्यादा राजनैतिक रूप लेता गया है। अब यूरोपीय संघ स्वयं काफी हद तक एक विशाल राष्ट्र-राज्य की तरह ही काम करने लगा है। हाँलाकि यूरोपीय संघ का एक संविधान बनानेकी कोशिश तो असफल हो गई लेकिन इसका अपना झंडा, गान, स्थापना-दिवस और अपनी मुद्रा है।

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