चीन और भारत की उभरती अर्थव्यवस्थाओं में मौजूदा एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था को चुनौती दे सकने की क्षमता है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं ? अपने तर्कों से अपने विचारों को पुष्ट करें।
आज यह तर्क लोगों के द्वारा दिया जाता है कि भारत और चीन उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में मौजूद एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था को चुनौती दे सकने की पूरी क्षमता रखते हैं। इस विचार के समर्थन में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं:
- भारत व चीन दोनों विकासशील देश हैं तथा वर्तमान समय में ये उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएँ भी हैं। दोनों देश नई अर्थव्यवस्था, मुक्त व्यापार नीति, उदारीकरण, वैश्वीकरण और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के पक्षधर हैं। इसी कारण दोनों देशों की अर्थव्यवस्था विश्व स्तरीय अर्थव्यवस्था में अपना प्रभाव स्थापित कर रही हैं। इनकी ऐसी स्थिति ही अमेरिका वर्चस्व को चुनौती दे रही है।
- दोनों देशो की सैन्य क्षमता अपार हैं। चीन के पास विश्व की सबसे बड़ी विशाल सेना है तो भारत के पास भी एक विशाल सेना है। इतना ही नहीं दोनों देश आधुनिक शस्त्रों के भंडार से परिपूर्ण हैं अथवा दोनों ही परमाणु क्षमता से युक्त है। ऐसी सैन्य क्षमता जहां दोनों देशों को विश्व व्यवस्था में मैत्रीपूर्ण संबंधों की स्थापना में सहायक है वह अमेरिका के बढ़ते प्रभाव एवं उसके अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में मनमाने आचरण पर अंकुश लगाने में व्यवसायिक मानी जाती है।
- आज दोनों (चीन और भारत) देशों के बीच प्रौद्योगिक संबंधों में जो प्रगाढ़ता आई है वह इस बात का संकेत है कि वे आश्चर्यजनक रूप से प्रगति कर सकते हैं। दोनों देश (चीन और भारत) मिलकर अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से ऋण लेकर अमरीका जैसे शक्तिशाली देश का प्रभाव कम कर सकते हैं।
- चीन और भारत तस्करी रोकने, नशीली दवाओं के उत्पादन, विनिमय, वितरण, प्रदूषण फैलाने में सहायक कारकों और आतंकवादियों की गतिविधियों में पूर्ण सहयोग देकर भी विश्व व्यवस्था की चुनौती को कम कर सकते हैं, क्योंकि इन क्षेत्रों में सहयोग से कीमतों में होने वाली बढ़ोतरी पर रोक लगाई जा सकती है।
- चीन व भारत की जनसंख्या 200 करोड़ से भी ज्यादा है। जहाँ अमरीका के अधिकतर माल की खपत होती है। अधिक जनसंख्या होने के कारण इनके नागरिक विश्व के हर देश में पाए जाते हैं। इसके अलावा सस्ते श्रमिक भी इन्हीं देशों द्वारा दिए जाते रहे हैं।
- संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् में चीन की स्थायी सदस्यता का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता हैं। वही भारत विश्व के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश की शक्ति के रूप में विश्व व्यवस्था में एक सक्रिय एवं प्रभावी भूमिका निभाने की क्षमता रखता है। इस तरह दोनों देशों की बढ़ती राजनीतिक क्षमता निश्चित ही अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती देने कि क्षमता रखती है।