समकालीन विश्व राजनीति Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर
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    NCERT Solution For Class 12 राजनीतिक विज्ञान समकालीन विश्व राजनीति

    शीतयुद्ध का दौर Here is the CBSE राजनीतिक विज्ञान Chapter 1 for Class 12 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 12 राजनीतिक विज्ञान शीतयुद्ध का दौर Chapter 1 NCERT Solutions for Class 12 राजनीतिक विज्ञान शीतयुद्ध का दौर Chapter 1 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 12 राजनीतिक विज्ञान.

    Question 4
    CBSEHHIPOH12041335

    नीचे कुछ देशों की एक सूची दी गई है। प्रत्येक के सामने लिखें कि वह शीतयुद्ध के दौरान किस गुट से जुड़ा था?

    (क) पोलैंड
    (ख) फ्रांस
    (ग) जापान
    (घ) नाइजीरिया
    (ङ) उत्तरी कोरिया
    (च) श्रीलंका

    Solution

    (क) पोलैंड - साम्यवादी गुट  
    (ख) फ्रांस -  पूँजीवादी गुट
    (ग) जापान - पूँजीवादी गुट 
    (घ) नाइजीरिया - गुट निरपेक्ष 
    (ङ) उत्तरी कोरिया - साम्यवादी गुट  
    (च) श्रीलंका - गुट निरपेक्ष

    Question 5
    CBSEHHIPOH12041336

    शीतयुद्ध से हथियारों की होड़ और हथियारों पर नियंत्रण - ये दोनों ही प्रक्रियाएँ पैदा हुई । इन दोनों प्रक्रियाओं के क्या कारण थे?

    Solution

    शीतयुद्ध के दौरान विश्व के सामने अनेक संकट आए तथा उसी दौरान खूनी लड़ाइयाँ भी लड़ी गई, लेकिन हम तीसरे विश्वयुद्ध से बचे रहे। मध्यस्थ के माध्यम से युद्ध को कई बार टाला गया। अंत में यह बात उभरकर सामने आई कि किसी भी तरह से युद्ध को टालना जरूरी है। इसी वजह से दोनों महाशक्तियों ने अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए उचित व्यवहार पर बल दिया।

    हालाँकि शीतयुद्ध के दौरान दोनों ही गठबंधनों के बीच प्रतिद्वंदिता समाप्त नहीं हुई थी। इसी कारण एक-दूसरे के प्रति शंका की हालत में दोनों गुटों ने भरपूर हथियार जमा किए और लगातार युद्ध के लिए तैयारी करते रहे। हथियारों के बड़े जखीरे को युद्ध से बचे रहने के लिए जरूरी माना गया।

    दोनों देश लगातार इस बात को समझ रहे थे कि संयम के बावजूद युद्ध हो सकता है। दोनों पक्षों में से कोई भी दूसरे के हथियारों की संख्या को लेकर गलत अनुमान लगा सकता था । दोनों गुट एक-दूसरे की मंशा को समझने में भूल कर सकते थे।

    इसके अतिरिक्त सवाल यह भी था कि कोई परमाणु दुर्घटना हो गई तो क्या होगा? यदि किसी सैनिक ने शरारत कर दी या कोई गलती से परमाणु हथियार चला देगा तो फिर क्या होगा? इस प्रकार की गलती को शत्रु देश क्या समझेगा तथा उसे वह विश्वास कैसे दिलाया जाएगा कि यह भूलवश हुआ है। इस कारण, समय रहते अमरीका और सोवियत संघ ने कुछेक परमाण्विक और अन्य हथियारों को सीमित या समाप्त करने के लिए आपस में सहयोग करने का फैसला किया।

    इसके चलते दोनों महाशक्तियों ने शस्त्रीकरण की होड़ को रोकने के लिए मानव-जाती की भलाई के लिए विभिन्न समझौते किए।

    Question 6
    CBSEHHIPOH12041337

    महाशक्तियाँ छोटे देशों के साथ सैन्य गठबंधन क्यों रखती थीं? तीन कारण बताइए?

    Solution

    महाशक्तियों द्वारा छोटे देशों के साथ सैन्य गठबंधन रखें के तीन कारन निम्नलिखित थे:

    1. महाशक्तियाँ छोटे देशों के भू-भाग को अपने सैनिक साधनों के रूप में प्रयोग करना चाहती थीं। इनमें विरोधी देशों पर आक्रमण करने के लिए अपने सैनिक अड्डे बनाना तथा सैनिक जासूसी करना महत्त्वपूर्ण था।
    2. महाशक्ति छोटे देशों से सैन्य गठबंधन करके युद्ध में व युद्ध की सामग्री पर होने वाले खर्च को छोटे-छोटे देशों में बाँटकर अपने खर्च के बोझ को हल्का करना चाहती थी।
    3. महाशक्ति छोटे देशों से सैन्य गठबंधन करके उन देशों के महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों जैसे खनिज व तेल आदि पदार्थों को अपने हित में प्रयोग करना चाहती थी।

    Question 7
    CBSEHHIPOH12041338

    कभी-कभी कहा जाता है कि शीतयुद्ध सीधे तौर पर शक्ति के लिए संघर्ष था और इसका विचारधारा से कोई संबंध नहीं था। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? अपने उत्तर के समर्थन में एक उदाहरण दें।

    Solution

    शीतयुद्ध के सन्दर्भ में सिर्फ ये कहना कि यह सीधे तौर पर शक्ति के लिए संघर्ष था और इसका विचारधारा से कोई संबंध नहीं था। ऐसे कहना उचित नहीं होगा क्योंकि दोनों गुटों में विचारधारा का प्रभाव स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात अमेरिका तथा सोवियत संघ दो परस्पर विचार धाराओं क्रमश: पूँजीवादी तथा साम्यवाद के रूप में उभरे जिनका कभी तालमेल नहीं हो सकता। 

    शीतयुद्ध सिर्फ जोर-आजमाइश, सैनिक गठबंधन अथवा शक्ति-संतुलन का मामला भर नहीं था बल्कि इसके साथ-साथ विचारधारा के स्तर पर भी एक वास्तविक संघर्ष जारी था। विचारधारा की लड़ाई इस बात को लेकर थी कि पूरे विश्व में राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक जीवन को सूत्रबद्ध करने का सबसे बेहतर सिद्धांत कौन-सा है। पश्चिमी गठबंधन का अगुआ अमरीका था और यह गुट उदारवादी लोकतंत्र तथा पूँजीवाद का हामी था। पूर्वी गठबंधन का अगुवा सोवियत संघ था और इस गुट की प्रतिबद्धता समाजवाद तथा साम्यवाद के लिए थी।

    लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि इसके पीछे कही न कही शक्ति को अर्जित करना भी इसकी एक मुख्या धारणा रही हैं। उदाहरण के लिए क्यूबा का संकट, बलिन संकट तथा कांगो संकट हैं। कई ऐसे क्षेत्र रहे हैं, जहाँ विरोधी गुट ने अपने प्रतिद्वंद्वी को आगे बढ़ने से रोकने या अपने गठबंधन के प्रचार व प्रसार को रोकने का प्रयास किया। उसके पीछे केवल एक ही मंशा रही हैं कि उसकी सैनिक शक्ति व क्षमता को कमज़ोर किया जाए। कही न कही दोनों गुट एक दूसरे के ऊपर खुद को महाशक्ति साबित करना चाहते थे। 

    Question 8
    CBSEHHIPOH12041339

    शीतयुद्ध के दौरान भारत की अमरीका और सोवियत संघ के प्रति विदेश नीति क्या थी? क्या आप मानते हैं कि इस नीति ने भारत के हितों को आगे बढ़ाया?

    Solution

    गुटनिरपेक्ष आंदोलन के नेता के रूप में शीतयुद्ध के दौर में भारत ने दो स्तरों पर अपनी भूमिका निभाई। शीतयुद्ध के दौरान भारत की अमरीका व सोवियत संघ के प्रति विदेश नीति दोनों गुटों में शामिल न होने की रही थी जिसके कारण भारत की विदेश नीति को 'गुट निरपेक्षता' की नीति कहा जाता है।

    भारत की नीति न तो नकारात्मक थी और न ही निष्क्रियता की थी। नेहरू ने विश्व को याद दिलाया कि गुटनिरपेक्षता कोई 'पलायन' की नीति नहीं है। इसके विपरीत, भारत शीतयुद्धकालीन प्रतिद्वंदिता की जकड़ ढीली करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मामलों में सक्रिय रूप से हस्तक्षेप करने के पक्ष में था। भारत ने दोनों गुटों के बीच मौजूद मतभेदों को कम करने की कोशिश की और इस तरह उसने इन मतभेदों को पूर्णव्यापी युद्ध का रूप लेने से रोका।

    कुछ लोगों का तर्क यह रहा है कि यह नीति अंतर्राष्ट्रीयता का एक उदार आदर्श है जो भारतीय हितों के साथ मेल नहीं खाती। यह तर्क ठीक नहीं है। यह गुट-निरपेक्षता की नीति भारत के लिए हितकारी रही है जिन्हें निम्नलिखित तर्कों से स्पष्ट किया जा सकता हैं:

    1. भारत अपनी गुट निरपेक्षता की नीति के कारण ही ऐसे अंतर्राष्ट्रीय फैसले लेने में सफल रहा, जो उसके हितो की पूर्ति में सहायक रहे न कि किसी सैनिक गुट या इन देशों की।
    2. भारत को हमेशा दोनों गुटों या देशों से लाभ मिला है, क्योंकि दोनों देश भारत को अपने करीब लाना चाहते थे। यदि कोई एक महाशक्ति भारत पर दबाव बनाना चाहती थी तो दूसरी महाशक्ति भारत की सहायता के लिए तैयार थी। इसका प्रथम लाभ भारत को यह था कि दोनों में से किसी ने भी उस पर दबाव नहीं बनाया तथा दोनों ही महाशक्तियाँ भारत के प्रति चिंतित रहीं।

    Question 9
    CBSEHHIPOH12041340

    गुट-निरपेक्ष आंदोलन को तीसरी दुनिया के देशों ने तीसरे विकल्प के रूप में समझा। जब शीतयुद्ध अपने शिखर पर था तब इस विकल्प ने तीसरी दुनिया के देशों के विकास में कैसे मदद पहुँचाई?

    Solution

    द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जब शीत युद्ध अपने चरम पर था तब गुट निरपेक्ष आंदोलन के रूप में एक नई धारणा उभरकर सामने आई।

    गुटनिरपेक्ष देश शीतयुद्ध के दौरान महज करने वाले देश भर नहीं थे उन्हें 'अल्प विकसित देशों' का दर्जा भी मिला था।  उसी वक्त पूरी दुनिया को तीन भागो में विभाजित कर दिया गया।

    1. पहली दुनिया (पूँजीवाद गुट)
    2. दूसरी दुनिया (साम्यवादी गुट)
    3. तीसरी दुनिया (अल्प-विकसित व उपनिवेशक गुट)

    इन देशों के सामने मुख्य चुनौती आर्थिक रूप से और ज्यादा विकास करने तथा अपनी जनता को गरीबी से उबारने की थी। नव-स्वतंत्र देशों की आजादी के लिहाज़ से भी आर्थिक विकास महत्त्वपूर्ण था। बगैर टिकाऊ विकास के कोई देश सही मायनों में आजाद नहीं रह सकता। उसे धनी देशों पर निर्भर रहना पड़ता। इसमें वह उपनिवेशक देश भी हो सकता था जिससे राजनीतिक आजादी हासिल की गई।

    इसी समझ से नव अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की धारणा का जन्म हुआ। 1972 में इस सन्दर्भ में सयुंक्त राष्ट्रसंघ के व्यापर और विकास से संबंधित सम्मलेन में 'टुवार्ड्स अ न्यू ट्रेड पालिसी फॉर डेवलपमेंट' शीर्षक से एक रिपोर्ट तैयार की गई, जिसमें तीसरे दुनिया के देशों के विकास के लिए निम्नलिखित सुझावों पर बल दिया गया:

    1. अल्प विकसित देशों को अपने उन प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण प्राप्त होगा जिनका दोहन पश्चिम के विकसित देश करते हैं।
    2. अल्प विकसित देशों की पहुँच पश्चिमी देशों के बाजार तक होगी; वे अपना सामान बेच सकेंगे और इस तरह गरीब देशों के लिए यह व्यापार फायदेमंद होगा।
    3. पश्चिमी देशों से मंगायी जा रही प्रौद्योगिकी की लागत कम हो जाएगी।
    4. अल्प विकसित देशों की अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थानों में भूमिका बढ़ेगी।

    अत: यह कहा जा सकता हैं की गुट निरपेक्षता का स्वरुप धीरे धीरे बदल रहा था और अब इसमें आर्थिक मुद्दों को अथिक महत्व दिया जाने लगा था। उपरोक्त सभी वर्णों से यह बात स्पष्ट हो जाती है की गुट-निरपेक्षता ने तीसरी दुनिया के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं।

    Question 10
    CBSEHHIPOH12041341

    'गुट-निरपेक्ष आंदोलन अब अप्रासंगिक हो गया है'। आप इस कथन के बारे में क्या सोचते हैं। अपने उत्तर के समर्थन में तर्क प्रस्तुत करें।

    Solution

    दूसरे विश्वयुद्ध का अंत समकालीन विश्व-राजनीति का एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद समस्त विश्व मुख्य दो शक्ति गुटों में विभाजित हो गया था। दोनों शक्ति गुटों का नेतृत्व दो महाशक्तियों सोवियत संघ तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के द्वारा क्रमश: साम्यवादी तथा गैर साम्यवादी विचारधारा के आधार पर किया जा रहा था जिसे विश्व राजनीति में शीत युद्ध का नाम दिया गया।
    इस शीत युद्ध के दौरान दोनों महाशक्तियाँ विश्व के अन्य राष्ट्र को अपने-अपने गुट में शामिल करने के प्रयास में लग गई। इसी समय विश्व राजनीति में गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने जन्म लिया।
    परन्तु दिसंबर, 1981 में सोवियत संघ के विघटन के पश्चात शीत युद्ध का अंत हो गया था। परिणामस्वरूप अमेरिका ही महाशक्ति के रूप में बचा अर्थात संसार एक ध्रुवीय हो गया। ऐसी स्थिति में यह प्रश्न किया जाने लगा कि गुटनिरपेक्षता का उद्देश्य शीतयुद्ध के संदर्भ में हुआ था और आज शीत युद्ध का अंत हो जाने के कारण गुटनिरपेक्षता की कोई प्रासंगिकता नहीं रही है, किन्तु ऐसे लोगों का विचार उचित नहीं है क्योंकि विश्व राजनीति में गुट-निरपेक्षता अपना महत्व स्थाई रूप में धारण कर चुका है। इसके महत्व एवं भूमिका के संदर्भ में निम्नलिखित बातें देखि या सुनी जा सकती है:

    1. आज भी बहुसंख्यक गुट-निरपेक्ष राष्ट्र आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए हैं और विकसित राष्ट्रों तथा बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा उनका नव-औपनिवेशिक शोषण किया जा रहा है। इस स्थिति से उन्हें बचाने के लिए यह अनिवार्य है कि विकसित एवं विकासशील देशों के बीच सार्थक वार्ता के लिए दबाव डाला जाए और 'गुटनिरपेक्ष आंदोलन' द्वारा विकासशील देशों के बीच आपसी सहयोग मज़बूत एवं सक्रिय किया जाए।
    2. गुट निरपेक्षता स्वतंत्र हुए देशों के लिए एक जुड़ाव का माध्यम हैं और यदि ये देश एक साथ आ जाएँ तो यह एक बहुत बड़ी शक्ति का रूप ले सकता हैं।
    3. आज विश्व के राष्ट्रों के समक्ष आतंकवाद, नि:शस्त्रीकरण, मानवाधिकार एवं पर्यावरण जैसी अनेक समस्या चुनौतियों के रूप में विराजमान है। इन सबके समाधान के लिए भी इस आंदोलन के मंच को अपनाना होगा।
    4. गुट-निरपेक्ष आंदोलन का महत्व इस बात से भी रहा हैं की यह एक ऐसा आंदोलन रहा है जो विश्व भर में मौजूदा असमानताओं से निपटने के लिए एक वैकल्पिक विश्व-व्यवस्था बनाने के संकल्प पर टिका रहा हैं।

    उपरोक्त सभी विवरणों के आधार पर यह निष्कर्ष निकला जा सकता हैं कि 'गुट-निरपेक्ष आंदोलन' कि प्रासंगिकता आज भी कम नहीं हुई हैं।

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