शीतयुद्ध से हथियारों की होड़ और हथियारों पर नियंत्रण - ये दोनों ही प्रक्रियाएँ पैदा हुई । इन दोनों प्रक्रियाओं के क्या कारण थे?
शीतयुद्ध के दौरान विश्व के सामने अनेक संकट आए तथा उसी दौरान खूनी लड़ाइयाँ भी लड़ी गई, लेकिन हम तीसरे विश्वयुद्ध से बचे रहे। मध्यस्थ के माध्यम से युद्ध को कई बार टाला गया। अंत में यह बात उभरकर सामने आई कि किसी भी तरह से युद्ध को टालना जरूरी है। इसी वजह से दोनों महाशक्तियों ने अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए उचित व्यवहार पर बल दिया।
हालाँकि शीतयुद्ध के दौरान दोनों ही गठबंधनों के बीच प्रतिद्वंदिता समाप्त नहीं हुई थी। इसी कारण एक-दूसरे के प्रति शंका की हालत में दोनों गुटों ने भरपूर हथियार जमा किए और लगातार युद्ध के लिए तैयारी करते रहे। हथियारों के बड़े जखीरे को युद्ध से बचे रहने के लिए जरूरी माना गया।
दोनों देश लगातार इस बात को समझ रहे थे कि संयम के बावजूद युद्ध हो सकता है। दोनों पक्षों में से कोई भी दूसरे के हथियारों की संख्या को लेकर गलत अनुमान लगा सकता था । दोनों गुट एक-दूसरे की मंशा को समझने में भूल कर सकते थे।
इसके अतिरिक्त सवाल यह भी था कि कोई परमाणु दुर्घटना हो गई तो क्या होगा? यदि किसी सैनिक ने शरारत कर दी या कोई गलती से परमाणु हथियार चला देगा तो फिर क्या होगा? इस प्रकार की गलती को शत्रु देश क्या समझेगा तथा उसे वह विश्वास कैसे दिलाया जाएगा कि यह भूलवश हुआ है। इस कारण, समय रहते अमरीका और सोवियत संघ ने कुछेक परमाण्विक और अन्य हथियारों को सीमित या समाप्त करने के लिए आपस में सहयोग करने का फैसला किया।
इसके चलते दोनों महाशक्तियों ने शस्त्रीकरण की होड़ को रोकने के लिए मानव-जाती की भलाई के लिए विभिन्न समझौते किए।