'गुट-निरपेक्ष आंदोलन अब अप्रासंगिक हो गया है'। आप इस कथन के बारे में क्या सोचते हैं। अपने उत्तर के समर्थन में तर्क प्रस्तुत करें।
दूसरे विश्वयुद्ध का अंत समकालीन विश्व-राजनीति का एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद समस्त विश्व मुख्य दो शक्ति गुटों में विभाजित हो गया था। दोनों शक्ति गुटों का नेतृत्व दो महाशक्तियों सोवियत संघ तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के द्वारा क्रमश: साम्यवादी तथा गैर साम्यवादी विचारधारा के आधार पर किया जा रहा था जिसे विश्व राजनीति में शीत युद्ध का नाम दिया गया।
इस शीत युद्ध के दौरान दोनों महाशक्तियाँ विश्व के अन्य राष्ट्र को अपने-अपने गुट में शामिल करने के प्रयास में लग गई। इसी समय विश्व राजनीति में गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने जन्म लिया।
परन्तु दिसंबर, 1981 में सोवियत संघ के विघटन के पश्चात शीत युद्ध का अंत हो गया था। परिणामस्वरूप अमेरिका ही महाशक्ति के रूप में बचा अर्थात संसार एक ध्रुवीय हो गया। ऐसी स्थिति में यह प्रश्न किया जाने लगा कि गुटनिरपेक्षता का उद्देश्य शीतयुद्ध के संदर्भ में हुआ था और आज शीत युद्ध का अंत हो जाने के कारण गुटनिरपेक्षता की कोई प्रासंगिकता नहीं रही है, किन्तु ऐसे लोगों का विचार उचित नहीं है क्योंकि विश्व राजनीति में गुट-निरपेक्षता अपना महत्व स्थाई रूप में धारण कर चुका है। इसके महत्व एवं भूमिका के संदर्भ में निम्नलिखित बातें देखि या सुनी जा सकती है:
- आज भी बहुसंख्यक गुट-निरपेक्ष राष्ट्र आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए हैं और विकसित राष्ट्रों तथा बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा उनका नव-औपनिवेशिक शोषण किया जा रहा है। इस स्थिति से उन्हें बचाने के लिए यह अनिवार्य है कि विकसित एवं विकासशील देशों के बीच सार्थक वार्ता के लिए दबाव डाला जाए और 'गुटनिरपेक्ष आंदोलन' द्वारा विकासशील देशों के बीच आपसी सहयोग मज़बूत एवं सक्रिय किया जाए।
- गुट निरपेक्षता स्वतंत्र हुए देशों के लिए एक जुड़ाव का माध्यम हैं और यदि ये देश एक साथ आ जाएँ तो यह एक बहुत बड़ी शक्ति का रूप ले सकता हैं।
- आज विश्व के राष्ट्रों के समक्ष आतंकवाद, नि:शस्त्रीकरण, मानवाधिकार एवं पर्यावरण जैसी अनेक समस्या चुनौतियों के रूप में विराजमान है। इन सबके समाधान के लिए भी इस आंदोलन के मंच को अपनाना होगा।
- गुट-निरपेक्ष आंदोलन का महत्व इस बात से भी रहा हैं की यह एक ऐसा आंदोलन रहा है जो विश्व भर में मौजूदा असमानताओं से निपटने के लिए एक वैकल्पिक विश्व-व्यवस्था बनाने के संकल्प पर टिका रहा हैं।
उपरोक्त सभी विवरणों के आधार पर यह निष्कर्ष निकला जा सकता हैं कि 'गुट-निरपेक्ष आंदोलन' कि प्रासंगिकता आज भी कम नहीं हुई हैं।