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जीवन के लिए वायुमंडल क्यों आवश्यक है?
वायुमंडल में ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, कार्बन डाइऑक्सइड, ओजोन आदि जैसी गैसें पायी जाती हैं, जो हमारे जीवन के लिए आवश्यक होती हैं। वायुमंडल औसत तापमान बनाए रखता है जो जीवों के अस्तित्व के लिए उपयोगी हैं। वायुमंडल दिन में ताप में अचानक हुई वृद्धि को रोकता है। कार्बोन डाइऑक्सइड पेड़-पौधों द्वारा प्रकाश संश्लेषण के लिए इस्तेमाल होता है, ऑक्सीजन जीवों द्वारा स्वांस लेने के लिए आवश्यक होती है , ओज़ोन हानिकारक पराबैंगनी विकिरणों से हमारा बचाव करती है।
जीवन के लिए जल क्यों ज़रूरी है?
जीवन के लिए जल ज़रूरी है क्योंकि-
1) सभी कोशिकीय प्रक्रियाएँ जलीय माध्यम से होती हैं।
2) स्थलीय जीवों को जीवित रहने के लिए शुद्ध जल की आवश्यकता होती है।
3) पदार्थों का शरीर के एक भाग से दूसरे भाग तक संवहन घुली हुई अवस्था में होता है।
जीवित प्राणी मृदा पर कैसे निर्भर है? क्या जल में रहने वाले जीव संपदा के रूप में मृदा से पूरी तरह स्वतंत्र हैं?
1) जीवित प्राणी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मृदा पर निर्भर है क्योंकि खाद्य पदार्थों और ऊर्जा के लिए वे पेड़-पौधों पर निर्भर हैं। माँसाहारी जीव जो अपने भोजन के लिए शाकाहारी जीवों पर निर्भर हैं, परोक्ष रूप से पेड़-पौधों पर निर्भर हैं और पेड़-पौधों के जीवन के लिए मृदा आवश्यक है क्योंकि मृदा से उन्हें पोषक तत्त्व मिलते हैं।
2) यह कहना उचित नहीं है कि जल में रहने वाले जीव संपदा के रूप में मृदा से पूरी तरह स्वतंत्र हैं। जल में रहने वाले जीव अपने पोषण और ऊर्जा के लिए हरे पौधों पर निर्भर हैं। जलीय हरित पौधे जल निकायों से घुले खनिज प्राप्त करते हैं, और जल निकाय मृदा से खनिज, नदिओं और वर्षा के जल द्वारा प्राप्त करते हैं। पत्थरों में बंद खनिज तब तक प्राप्त नहीं किया जा सकता जबतक वह मृदा के छोटे कणों में परिवर्तित नहीं हो जाता।
अपने टेलीविज़न पर और समाचारपत्र में मौसम संबंधी रिपोर्ट को देखा होगा आप क्या सोचते हैं कि हम मौसम के पूर्वानुमान में सक्षम हैं?
वायु पैटर्न के अध्ययन से वर्षा पैटर्न का पता चलता है और इस प्रकार मौसम का पूर्वानुमान लगाया जाता है। जिन क्षेत्रों में हवा का दाब कम या अधिक होता है, वे उस क्षेत्र के वर्षा पैटर्न का संकेत करते हैं।
हम जानते हैं कि बहुत से मानवीय गतिविधियाँ वायु, जल एवं मृदा के प्रदूषण के स्तर को बढ़ा रहे हैं। क्या आप सोचते हैं कि इन गतिविधियों को कुछ विशेष क्षेत्रों में सीमित कर देने से प्रदूषण के स्तर को घटाने में सहायता मिलेगी?
मानवीय गतिविधियों को कुछ विशेष क्षेत्रों में सीमित कर देने से प्रदूषण के स्तर को घटाने में सहायता नहीं मिलेगी। वायु, जल, और मृदा प्राकृतिक सम्पदाएँ हैं और अंतर्संबंधित भी। एक के प्रदूषित हो जाने से दूसरे पर प्रभाव अवश्य पड़ेगा। और तो और, प्रदूषण कभी एक क्षेत्र तक सीमित नहीं रहता, उदहारण के लिए कार्बन डाइऑक्सइड, जो अधिक मात्रा में उस क्षेत्र की हवा को अत्यधिक गर्म कर देगा और जैसा कि हम जानते हैं कि गर्म हवा ऊपर उठती है तो इस प्रकार वह आस-पास के क्षेत्रों में फ़ैल जाएगी। ऐसे ही यदि एक क्षेत्र की हवा में नाइट्रोजन और सल्फर की मात्रा बढ़ जाएगी तो वह वायुमंडल को प्रभावित करेगी और आस पास के क्षेत्र भी प्रभावित हो जाएँगे।
यदि एक क्षेत्र की मृदा प्रदूषित हो जाएगी तो वहाँ के शाकाहारी पशु भूखे मर जाएँगे और इसी प्रकार माँसाहारी पशु भी विलुप्त हो जाएँगे क्योंकि पेड़-पौधें जो शाकाहारियों का आहार होते हैं और आश्रय के लिए भी उपयोगी होते हैं, वे सभी नष्ट हो जाएँगे।
यदि एक क्षेत्र का जल निकाय प्रदूषित हो जाए तो वहाँ के जलीय पौधे और पशु मारे जाएँगे जिससे आहार श्रृंखला विक्षुब्ध हो जाएगी।
जंगल वायु, मृदा और जलीय स्रोत की गुणवत्ता को कैसे प्रभावित करते हैं?
1) वायु: जंगल में पेड़ों, झाड़ियों की संख्या अधिक होती हैं जो कार्बन डाइऑक्सइड लेते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं और इसी प्रकार जंगल वायुमंडल में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्सइड की सघनता को बनाए रखने का काम करता है।
2) मृदा: जंगल में पेड़-पौधों के ज़्यादा संख्या में होने से वे अपनी जड़ों द्वारा मृदा के कणों को मज़बूती से पकड़े रहते हैं और मृदा के कटाव को रोकते हैं। वे उपजाऊ मृदा को ढ़कने का कार्य करते हैं।
3) जल: जंगल में पेड़-पौधों के ज़्यादा संख्या में होने से वे जलवाष्प बनाने में अत्यधिक मददगार साबित होते हैं। जलवाष्प बादलों में परिवर्तित होते हैं जो अवक्षेपण पर वर्षा करते हैं।
शुक्र और मंगल ग्रहों के वायुमंडल से हमारा वायुमंडल कैसे भिन्न है?
पृथ्वी पर जीवन है, शुक्र और मंगल ग्रह पर नहीं। शुक्र और मंगल ग्रहों के वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्सइड मुख्य घटक है। इसकी मात्रा 95 से 97 प्रतिशत है और पृथ्वी के वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्सइड की मात्रा 0.03 प्रतिशत है।
वायुमंडल कंबल की तरह कैसे कार्य करता है?
वायुमंडल पृथ्वी के औसत तापमान को दिन के समय और पूरे विश्वभर लगभग नियत रखता है। वायुमंडल दिन में तापमान को अचानक बढ़ने से रोकता है और रात के समय ऊष्मा को अंतरिक्ष में जाने की दर को कम करता है। यह सूर्य से आने वाली विकिरणों से पृथ्वी की रक्षा करता है।
वायु प्रवाह (पवन) के क्या कारण हैं?
स्थलीय भाग से सौर विकिरणें परावर्तित होती हैं। जिससे उसके ऊपर की वायु गर्म हो जाती है और वे ऊपर की ओर उठती हैं। इसके कारण वहाँ कम दाब का क्षेत्र बन जाता है। चूँकि जल की अपेक्षा स्थल जल्दी गर्म होता है, स्थल के ऊपर के क्षेत्र में हवा का दाब समुद्र की अपेक्षा कम होगा। समुद्र के ऊपर की वायु कम दाब वाले क्षेत्रों की ओर प्रवाहित होती हैं। इस प्रकार एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र तक वायु की गति पवनों का निर्माण करती हैं।
बादलों का निर्माण कैसे होता है?
जल संसाधनों और जैविक क्रियाओं से जल वाष्प बनकर गर्म हवाओं के साथ ऊपर की ओर उठती है। वायुमंडल में आने के बाद ये फैलती है और ठंडी हो जाती है तथा सघनित होकर बादलों का रूप ले लेती है।
मनुष्य के तीन क्रियाकलापों का उल्लेख करें जो वायु के प्रदूषण में सहायक हैं?
1) अजैव निम्नीकरणीय पदार्थों का निरंतर उपयोग।
2) वनों की कटाई।
3) औद्योगिक संस्थानों की स्थापना।
जीवों को जल की आवश्यकता क्यों होती है?
1) सभी कोशिकीय प्रक्रियाऍं जलीय माध्यम में होती हैं।
2) पदार्थों का संवहन घुली अवस्था में होता है।
3) जलीय जीव, पानी में घुली ऑक्सीजन का उद्धरण कर पाते हैं।
जिस गाँव/शहर/नगर में आप रहते हैं पर वहाँ पर उपलब्ध शुद्ध जल स्रोत क्या है?
नगर निगम द्वारा क्षेत्र में आने वाले जल टैंक।
क्या आप किसी क्रियाकलाप के बारे में जानते हैं जो इस जल के स्रोत को प्रभावित कर सकता है?
1) जैविक कचरे को नदियों, तालाबों में फेंकना।
2) नदियों के समीप औद्योगिक संस्थानों का निर्माण।
मृदा (मिट्टी) का निर्माण किस प्रकार होता है?
1) सूर्य: सूर्य दिन के समय पत्थर को गर्म कर देता है जिससे वे प्रसारित हो जाते हैं। रात को ये पत्थर ठंडे और होकर संकुचित हो जाते हैं। इस प्रकार पत्थरों में दरार पड़ जाती है और बड़े पत्थर टूटकर छोटे कानों में विभाजित हो जाते हैं।
2) जल: जल इन पत्थरों की दरारों में भर जाते हैं और इनकों और चौड़ा कर देते हैं। बहता जल पत्थरों को तोड़ देता है और अपने साथ बहा ले जाता है। पत्थर आपस में टकराकर छोटे कणों में विभाजित हो जाते हैं।
3) हवा: तेज़ हवाएँ भी पत्थरों को तोड़ देती हैं और प्रवाहित हवा बालू को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाती है।
4) जीव: जीव भी मृदा के बनने में सहायता करते हैं। लाइकेन पत्थरों की सतह पर उगते हैं वे एक पदार्थ छोड़ते हैं जिससे पत्थर की सतह चूर्ण हो जाती है।
मृदा अपरदन क्या है?
जल या वायु द्वारा उपरिमृदा का एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाना अपरदन कहलाता है। मृदा के कण प्रवाहित जल एवं वायु अपने साथ ले जाते हैं।
अपरदन को रोकने और कम करने के कौन-कौन से तरीके हैं?
अपरदन को रोकने और कम करने के निम्नलिखित तरीके हैं-
1) वृक्षारोपण: वृक्षों का मिट्टी के अपरदन को काफ़ी हद तक कम करने में बहुत बड़ा योगदान होता है। वे मिट्टी के कणों को अपनी जड़ों द्वारा बाँधे रखते हैं।
2) भूमि को उपजाऊ बनाना: अपरदन बंजर भूमि में अधिक होता है। मृदा में खाद अथवा उर्वरक मिश्रित कर उसे कृषि योग्य बनाया जा सकता है।
3) वनों का संरक्षण: वनों की कटाई के कारण उपरिमृदा का अपरदन होता है। वनों के संरक्षण से कईं गुना मृदा अपरदन रोका जा सकता है।
4) समोच्च खेती: पहाड़ों में खेतों को सीढ़ीनुमा करके खेती करने से अपरदन कम होता है।
5) वायुरोधक पौधे लगाना: वायु द्वारा अपरदन को रोकने के लिए वृक्षों को पंक्तियों में उगाने से मृदा अपरदन कम हो सकता है।
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जल चक्र के क्रम में जल की कौन-कौन सी अवस्थाएँ पाई जाती हैं?
1) जल (तरल अवस्था)
2) वाष्प (गैस अवस्था)
3) बर्फ (ठोस अवस्था)
जैविक रूप से महत्त्वपूर्ण दो यौगिकों के नाम दीजिए जिनमें ऑक्सीजन और नाइट्रोजन दोनों पाए जाते हैं?
न्यूक्लिक ऐसिड एवं प्रोटीन।
मनुष्य की किन्हीं तीन गतिविधियों को पहचानें जिनसे वायु में कार्बन डाइऑक्सइड की मात्रा बढ़ती है।
1) जीवाश्म ईंधनों का दहन।
2) वनों की कटाई व दहन।
3) इमारतों का निर्माण।
ग्रीन हॉउस प्रभाव क्या है?
कुछ गैसें पृथ्वी की ऊष्मा को वायुमंडल के बहार जाने से रोकती हैं जिससे पृथ्वी का औसतन तापमान बढ़ जाता है। इस प्रभाव को ग्रीन हॉउस प्रभाव कहते हैं। जो गैसें यह कार्य करती हैं उन्हें ग्रीन हॉउस गैसें कहा जाता है, उदहारण के लिए- कार्बन डाइऑक्सइड, मीथेन आदि। ठंडे मौसम में उष्ण कटिबंधीय पौधों को गर्म रखने के लिए आवरण बनाने की प्रक्रिया में इस अवधारणा का उपयोग किया जाता है। इस प्रकार के आवरण को ग्रीन हाउस कहते हैं।
वायुमंडल में पाए जाने वाले ऑक्सीजन के दो रूप कौन-कौन से हैं?
1) द्विपरमाणुक अणु (O2)
2) ओज़ोन (O3)
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