भारत और समकालीन विश्‍व 2 Chapter 8 उपन्यास,समाज और इतिहास
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    NCERT Solution For Class 10 सामाजिक विज्ञान भारत और समकालीन विश्‍व 2

    उपन्यास,समाज और इतिहास Here is the CBSE सामाजिक विज्ञान Chapter 8 for Class 10 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 10 सामाजिक विज्ञान उपन्यास,समाज और इतिहास Chapter 8 NCERT Solutions for Class 10 सामाजिक विज्ञान उपन्यास,समाज और इतिहास Chapter 8 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 10 सामाजिक विज्ञान.

    Question 1
    CBSEHHISSH10018564

    इनकी व्याख्या करें:
    ब्रिटेन में आए सामाजिक बदलावों से पाठिकाओं की संख्या में इज़ाफा हुआ। 

    Solution

    ब्रिटेन में 18वीं सदी में आए निम्नलिखित सामाजिक बदलावों की वजह से पाठिकाओं की संख्या में इज़ाफा हुआ-

    (i) उपन्यास से सम्बंधित सबसे भली बात तो यह हुई की महिलाएँ उससे जुड़ीं। अठारहवीं सदी में मध्यवर्ग और संपन्न हुए।
    (ii)महिलाओं को उपन्यास पढ़ने और लिखने का अवकाश मिल सका। अत: उपन्यासों में महिला जगत को, उसकी भावनाओं, उसके तज़ुर्बे, मसलों और उसकी पहचान से जुड़े मुद्दों को समझा-सराहा जाने लगा।
    (iii) कई सारे उपन्यास घरेलू ज़िन्दगी पर केंद्रित थे। इनमें महिलाओं को अधिकार के साथ बोलने का अवसर मिला। अपने अनुभवों को आधार बनाकर उन्होंने पारिवारिक जीवन की कहानियाँ रचते हुए अपनी सार्वजनिक पहचान बनाई।

    Question 2
    CBSEHHISSH10018565

    इनकी व्याख्या करें:

    रॉबिंसन क्रुसो के वे कौन से कृत्य हैं, जिनके कारण वह हमें ठेठ उपनिवेसकार दिखाई देने लगता है।         

    Solution

    (i) वह गैर-गोरे लोगों को बराबर का इंसान नहीं बल्कि अपने से हीनतर जीव मानता है।
    (ii) वह एक 'देसी' को मुक्त कराकर अपना गुलाम बना लेता है।
    (iii) वह औपनिवेशिक लोगों को आदिमानुस, बर्बर और इन्सान से कमतर मानता है और उन्हें सभ्य और पूर्ण इन्सान बनाना अपना कर्तव्य मानता है।

    Question 3
    CBSEHHISSH10018566

    इनकी व्याख्या करें:

    1740 के बाद गरीब लोग भी उपन्यास पढ़ने लगे।

    Solution

    प्रकाशन के आरंभिक सालों में उपन्यास बहुत महँगे थे और वे समाज के गरीब तबके की पहुँच से बाहर थे। हेनरी फ़ील्डिंग का टॉम जोंस (1749) छह खण्डों में प्रकाशित हुआ और प्रत्येक खंड की कीमत तीन शिलिंग थीं, जो कि एक औसत मज़दूर के सप्ताह भर की कमाई होती थी।

    लेकिन जल्द ही 1740 में किराए पर चलनेवाले पुस्तकालयों की स्थापना के बाद लोगों के लिए किताबें सुलभ हो गईं। तकनीकी सुधार से भी छपाई के ख़र्चे में कमी आई और मार्केटिंग के नए तरीक़ों से किताबों की बिक्री बढ़ी। फ्रांस में प्रकाशकों को लगा कि उपन्यासों को घंटे के हिसाब से किराये पर उठाने से ज़्यादा लाभ होता है। अत: समाज के गरीब तबके के लोगों को बिना अधिक खर्च किए उपन्यास पढ़ने की सुविधा उपलब्ध हो गई।  


    Question 4
    CBSEHHISSH10018567

    इनकी व्याख्या करें:

    औपनिवेशिक भारत के उपन्यासकार एक राजनीतिक उद्देश्य के लिए लिख रहे थे।  

    Solution

    उन्नीसवीं सदी के अग्रणी उपन्यासकारों ने किसी न किसी उद्देश्य को लेकर उपन्यास रचे। उपनिवेशवादी शासकों को उस समय की भारतीय संस्कृति कमतर नज़र आती थी। वही भारतीय उपन्यासकारों ने देश में आधुनिक साहित्य का विकास करने के उद्देश्य से लिखा - ऐसा साहित्य जो लोगों में राष्ट्रीयता की भावना और उपनिवेशी शासकों से बराबरी का अहसास जगा सके।     

    Question 5
    CBSEHHISSH10018568

    तकनीक और समाज में आए उन बदलावों के बारे में बतलाइए जिनके चलते अठारहवीं सदी के यूरोप में उपन्यास पढ़ने वालों की संख्या में वृद्धि हुई।     

    Solution

    तकनीक और समाज में आए बदलाव:

    (i) तकनीकी सुधार से छपाई के ख़र्चे में कमी आई और मार्केटिंग के नए तरीक़ों से किताबों की बिक्री बढ़ी।

    (ii) उन्नीसवीं सदी में यूरोप ने औद्योगिक युग में प्रवेश किया। फैक्टरियाँ आईं, व्यवसाय में मुनाफे बढ़े, अर्थव्यस्था फैली।

    (iii) उपन्यास मध्यवर्गीय लोगों, जैसे दुकानदार और क्लर्क के साथ-साथ अभिजात तथा भद्र समाज के लिए भी आकर्षण का केंद्र बने।

    (iv) उपन्यासों ने महिलाओं से जुड़े हुए अनेक मामलों; जैसे प्रेम और विवाह, नर-नारी के लिए उपयुक्त आचरण के सामाजिक बिंदुओं को छुआ जिससे महिलाएँ उपन्यासों की ओर आकर्षित हुईं।
    (v) 1740 ई. में किराए पर चलने वाले पुस्तकालयों की स्थापना की गई। ये पुस्तकालय पाठकों को बहुत काम किराए पर पुस्तकें उपलब्ध कराते थे। अत: उपन्यासों को पढ़ने के प्रति लोगों का रुझान बढ़ गया ।

    Question 6
    CBSEHHISSH10018569

    निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखें-

    उड़िया उपन्यास 

    Solution

    उड़िया उपन्यास:
    1877 -78 में नाटककार रामशंकर राय ने सौदामिनी के नाम से पहले उड़िया उपन्यास का धारावाहिक प्रकाशन शुरू किया लेकिन वे इसे पूरा नहीं कर पाए। 30 साल के भीतर उड़ीसा में फकीर मोहन सेनापति (1843-1918) के रूप में एक बड़ा उपन्यासकार पैदा किया। उनके एक उपन्यास का नाम छ: माणो आठौ गूंठौ (1902) था जिसका शाब्दिक अर्थ है - छह एकड़ और बत्तीस गट्टे ज़मीन। यह उपन्यास मिल का पत्थर साबित हुआ और इसने साबित कर दिया कि उपन्यास के द्वारा ग्रामीण मुद्दों को भी गहरी सोच का प्रमुख भाग बनाया जा सकता है। यह उपन्यास लिखकर फकीर मोहन ने बंगाल तथा अन्य स्थानों पर बहुत सारे लेखकों के लिए द्वार खोल दिया था।

    Question 7
    CBSEHHISSH10018570

    निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखें-

    जेन ऑस्टिन द्वारा औरतों का चित्रण 



    Solution
    जेन ऑस्टिन द्वारा औरतों का चित्रण:
    जेन ऑस्टिन के उपन्यासों में हमें उन्नीसवीं सदी के ब्रिटेन के ग्रामीण कुलीन समाज की झाँकी मिलती है। हमें ऐसे समाज के बारे में सोचने की प्रेरणा मिलती है जहाँ महिलाओं को धनी या जायदाद वाले वर खोजकर 'अच्छी' शादियाँ करने के लिए उत्साहित किया जाता था। जेन ऑस्टिन के उपन्यास प्राइड एंड प्रेज्यूडिस की पहेली पंक्ति देखें:' यह एक सर्वस्वीकृत सत्य है कि कोई अकेला आदमी अगर मालदार है तो उसे एक अदद बीवी की तलाश होगी।' इस बयान से हम ऑस्टिन के समाज को समझ सकते हैं, कि उनके उपन्यासों की औरतें क्यों हमेशा अच्छी शादी  और  पैसे की फ़िराक़ में रहती हैं। 
    Question 8
    CBSEHHISSH10018571

    निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखें:

    उपन्यास परीक्षा-गुरु में दर्शायी गई नए मध्यवर्ग की तसवीर     

    Solution

    उपन्यास परीक्षा-गुरु दिल्ली के श्रीनिवास दास द्वारा लिखी गई। इसका प्रकाशन 1882 में हुआ था। इस उपन्यास में खुशहाल परिवारों के युवाओं को बुरी संगत के नैतिक खतरों से आगाह किया गया।
    परीक्षा -गुरु से नव-निर्मित मध्यवर्ग की भीतरी व बाहरी दुनिया का पता चलता है। उपन्यास के चरित्रों को औपनिवेशिक शासन से क़दम मिलाने में कैसी मुसीबतें आती हैं और अपनी सांस्कृतिक अस्मिता को लेकर वे क्या सोचते हैं, यह इस उपन्यास का कथ्य है। औपनिवेशिक आधुनिकता की दुनिया उनको एक साथ भयानक और आकर्षक मालूम पड़ती है। उपन्यास पाठक को जीने के 'सही तरीके' बताता है और प्रत्येक 'विवेकवान' इंसान से यह आशा करता है कि वे समाज-चतुर और व्यावहारिक बने पर साथ ही अपनी संस्कृति और परम्परा में जमे रहकर सम्मान और गरिमा का जीवन जिएँ।

    Question 9
    CBSEHHISSH10018572

    उन्नीसवीं सदी के ब्रिटेन में आए ऐसे कुछ सामाजिक बदलावों की चर्चा करें जिनके बारे में टॉमस हार्डी और चार्ल्स डिकेन्स ने लिखा है।   

    Solution

    चार्ल्स डिकेन्स:
    चार्ल्स डिकेन्स ने लोगों के जीवन व चरित्र पर औद्योगीकरण के दुष्प्रभावों के बारे में लिखा। उनके उपन्यास हार्ड टाइम्स (1854) में वर्णित कोकाटाउन एक उदास काल्पनिक औद्योगिक शहर है, जहाँ मशीनों की भरमार है, धुआँ उगलती चिमनियाँ हैं, प्रदूषण से स्याह पड़ी नदियाँ हैं, और मकान सब एक-से। मज़दूरों को यहाँ 'हाथ' की संज्ञा से जाना जाता है, और मशीन चलाने के अलावा उनकी कोई और अस्मिता नहीं।

    उनका ओलिवर ट्विस्ट (1838) एक ऐसे अनाथ की कहानी कहता है, जिससे छोटे-मोटे अपराधियों और भिखारियों की दुनिया में रहना पड़ा। एक निर्मम वर्कहॉउस या कामघर में पलने-बढ़ने के बाद ओलिवर को अंतत: एक अमीर ने गोद ले लिया और वह सुख से रहने लगा।

    थॉमस हार्डी:
    उन्नीसवीं सदी के उपन्यासकार थॉमस हार्डी ने इंग्लैंड के तेज़ी से ग़ायब होते देहाती समुदायों के बारे में लिखा। यह वही समय था, जब बड़े किसानों ने अपनी ज़मीनों को बाड़ाबंद कर लिया था, और मशीनों पर मज़दूर लगाकर उन्होंने बाज़ार के लिए उत्पादन शुरू कर दिया था।

    Question 10
    CBSEHHISSH10018573

    उन्नीसवीं सदी के यूरोप और भारत, दोनों जगह उपन्यास पढ़ने वाली औरतों के बारे में जो चिंता पैदा हुई उसे संक्षेप में लिखें। इन चिंताओं से इस बारे में क्या पता चलता है कि उस समय औरतों को किस तरह देखा जाता था?

    Solution

    19वीं सदी में यूरोप में जब औरतों ने उपन्यास पढ़ने शुरु किए तो लोगों को इस बात की चिंता होने लगी कि अब घर कौन संभालेगा। उन्हें चिंता होने लगी कि अब औरतें पत्नी माँ तथा बहन का कर्तव्य नहीं निभा पाएँगी। वे अपने सामाजिक रीति- रिवाजों को भूल जाएँगी। परंतु उपन्यासों में महिला जगत को उसकी भावनाओं, उनके तजुर्बों मसलों और उसकी पहचान से जुड़े मुद्दों को समझा-सहारा जाने लगा। इसी तरह से 19वीं सदी में भारत में भी लोग उपन्यास पढ़ने वाली औरतों के बारे में चिंतित थे। उनमें से कुछ ने पत्र- पत्रिकाओं में लेख लिखकर लोगों से अपील की कि वे उपन्यासों के नैतिक दुष्प्रभाव से बचे। यह निर्देश मुख्य रूप से महिलाओं और बच्चों को लक्षित था। ऐसी धारणा थी की उन्हें बड़ी आसानी से बहकाया जा सकता है। उन लोगों का मानना था कि उपन्यास महिलाओं की जिंदगी बर्बाद कर देते हैं। वे लोग कहते थे कि औरतें घर पर ही रहकर अपना कर्तव्य निभाएँ। महिलाओं को उपन्यास के लिए पागल होने की आवश्यकता नहीं है । उपन्यास पढ़ने से बीमारियाँ व्याधियाँ हो जाती हैं। कई सारे मर्द महिलाओं द्वारा उपन्यास लिखने या पढ़ने के चरण को शक की नज़र से देखते थे। उस समय औरतों को बहुत छोटी नज़र से देखा जाता था। लोग चाहते थे कि औरतें केवल घर तक ही सीमित रहें। वे औरतों को केवल माँ, बहन, पत्नी और बेटी के रूप में ही देखना चाहते थे।

    Question 11
    CBSEHHISSH10018574

    औपनिवेशिक भारत में उपन्यास किस तरह उपनिवेशकारों और राष्ट्रवादियों, दोनों के लिए लाभदायक था?

    Solution

    उपनिवेशकारों को लाभ: (i)औपनिवेशिक सरकार को उपन्यासों में देसी जीवन में रीति-रिवाज़ से जुड़ी जानकारी का बहु मूल्य स्त्रोत नज़र आया। विभिन्न प्रकार के समुदायों व जातियों वाले भारतीय समाज पर शासन करने के लिए इस तरह की जानकारी उपयोगी सिद्ध हुई।

    (ii) कई अंग्रेज़ उपन्यासकारों ने अपनी कृतियों में भारतीयों को कमजोर, विवादित तथा अयोग्य सिद्ध करने का प्रयास किया और उन्होंने यह सिद्ध करने की कोशिश की कि भारतीयों को सभ्य बनाना और उन्हें योग्य शासन उपलब्ध कराना अंग्रेजों का उत्तरदायित्व है।

    राष्ट्रवादियों को लाभ:

    (i) हिंदुस्तान ने उपन्यासों का प्रयोग समाज में फैली बुराइयों की आलोचना करने और उन बुराइयों को दूर करने के इलाज सुलझाने के लिए किया।

    (ii) चूँकि उपन्यासों में एक ही तरह की भाषाएँ थीं, इन्होंने एक भाषा के आधार पर एक अलग किस्म की सामूहिकता की भावना पैदा की।

    (iii) उपन्यासों के प्रकाशन के कारण पहली बार भाषाई विविधताएँ (स्थानीय, क्षेत्रीय) छपाई की दुनिया में दाखिल हुई।

    (iv) जिस तरह से चरित्र उपन्यास में बोलते थे उससे उनके क्षेत्र, भाषा या जाति का अनुमान लगाया जा सकता था। इस प्रकार, उपन्यास के जरिए लोगों को पता चला कि उनके इलाके के लोग उनकी भाषा किस तरह अलग ढंग से बोलते हैं।

    (v) नील दर्पण और आनंदमठ जैसे उपन्यासों ने भारतीयों के दमन की सही तस्वीर को उभरा तथा अंग्रेज़ो के खिलाफ़ राजनीतिक आंदोलनों को खड़ा करने में पोषक का कार्य किया।

     

    Question 12
    CBSEHHISSH10018575

    इस बारे में बताएँ कि हमारे देश में उपन्यासों में जाति के मुद्दे को किस तरह उठाया गया। किन्हीं दो उपन्यासों का उदहारण दें और बताएँ कि उन्होंने पाठको को मौजूदा सामाजिक मुद्दों के बारे में सोचने को प्रेरित करने के लिए क्या प्रयास किए। 

    Solution

    18वीं और 19वीं शताब्दियों में भारतीय समाज जातियों में बुरी तरह विभाजित था। समाज की निम्न जातियाँ तथाकथित उच्च जातियों के उत्पीड़न का शिकार थीं। कुछ उपन्यासकारों ने पीड़ित जातियों के दुख को समझा और अपने उपन्यासों के माध्यम से उसे समाज के सामने रखा।

    उदहारण 1: इंदुलेखा एक प्रेम कहानी थी। लेकिन यह 'उच्च जाति' की एक वैवाहिक समस्या से भी रू-ब-रू- थी जिस पर इसके लिखे जाने के वक़्त वाद-विवाद चल रहा था। इंदुलेखा जो उच्च जाति के एक मूर्ख जमीदार सूर्य नंबूदरी से शादी करने से मना कर देती है और अपनी ही जाति के एक युवक माधवन से शादी कर लेती है। इस उपन्यास में चंदू मेलन चाहते हैं कि पाठक नायक-नायिका द्वारा अपनाए गए नए मूल्यों को सराहें।

    उदहारण 2: उत्तरी केरल की 'निम्न' जाति के लेखक पोथेरी कुंजाम्बु ने 1892 में सरस्वतीविजयम नमक उपन्यास लिखा, जिसमें जाति-दमन की कड़ी निंदा की गई। इस उपन्यास का 'अछूत' नायक ब्राह्मण ज़मींदार के ज़ुल्म से बचने के लिए शहर भाग जाता है। वह ईसाई धर्म अपना लेता है, पढ़-लिखकर जज बनकर, स्थानीय कचहरी में वापस आता है। इसी बीच गाँव वाले यह सोचकर कि ज़मींदार ने उसकी हत्या कर दी है, अदालत में मुकदमा कर देते हैं। मामले की सुनवाई के अंत में जज अपनी असली पहचान खोलता है और नंबूदरी को अपने किए पर पश्चाताप होता है, वह सुधर जाता है। इस तरह सरस्वतीविजयम निम्न जाति के लोगों की तरक्क़ी के लिए शिक्षा के महत्व को रेखांकित करता है।


     

    Question 13
    CBSEHHISSH10018576

    बताइए कि भारतीय उपन्यासों में एक अखिल भारतीय जुड़ाव का अहसास पैदा करने के लिए किस तरह की कोशिशें की गई। 

    Solution

    भारतीय उपन्यासकारों ने अपने उपन्यासों द्वारा अखिल भारतीय जुड़ाव का अहसास पैदा करने के लिए निम्न प्रयास किए-
    (i) उन्होंने मराठो और राजपूतों की वीरतापूर्ण कारनामों तथा देश भक्ति द्वारा लोगों में एक राष्ट्र होने का भाव उत्पन्न किया।
    (ii) भारतीय उपन्यासों में अंग्रेज़ी शासन के उत्पीड़न को उजागर किया गया। इस उत्पीड़न का शिकार भारत के लगभग सभी वर्ग थे। इससे भारतीयों में अखिल भारतीयता का अहसास उत्पन्न हुआ।
    (iii) उन्होंने अपने उपन्यासों में जिस राष्ट्र की कल्पना की वह साहस, वीरता और त्याग से ओत-प्रोत था। इस कल्पना ने भारतियों में इसी तरह के वास्तविक राष्ट्र का सपना जगाया।
    (iv) उपन्यासों में गौरवमय अतीत का गुणगान किया गया जिससे एक साझे राष्ट्र की भावना को लोकप्रिय बनाने में मदद मिली। 
    (v) भारतीय उपन्यासों में समाज के प्रत्येक वर्ग और प्रत्येक समुदाय के चरित्रों को प्रस्तुत किया गया। इससे लोगों को यह पता चला की ये सभी वर्ग तथा समुदाय एक ही राष्ट्र का अंग है। यही सोच अखिल भारतीयता का मजबूत आधार बनी।   

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