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ज्यूसेपे मेत्सिनी
ज्यूसेपे मेत्सिनी- ज्यूसेपे मेत्सिनी इटली का एक युवा क्रन्तिकारी था। उसका जन्म 1807 में जेनेवा में हुआ था। वह कार्बोनारी के गुप्त संगठन का सदस्य बन गया। लिगुरिया में क्रांति करने के कारण उसे बहिष्कृत कर दिया गया। इसके बाद उसने दो और भूमिगत संगठनों की स्थापना की। पहला था मार्सेई में यंग इटली और दूसरा बर्न में यंग यूरोप। इनके सदस्य पोलैंड, फ़्रांस, इटली और जर्मन राज्यों में सामान विचार रखने वाले युवा थे। ज्यूसेपे मेत्सिनी का यह विचार था कि ईश्वर की मर्ज़ी के अनुसार राष्ट्र ही मनुष्यों की प्राकृतिक इकाई थी। अतः इटली छोटे राज्यों और प्रदेशों के पेबंदों की तरह नहीं कर सकता था। मेत्सिनी खुलकर राजतंत्र का विरोध किया और प्रजातांत्रिक के स्थापना के अपने सपने से रूढ़िवादियों को हरा दिया। उसने इटली को एकीकृत गणतंत्र बनाने के लिए एक सुविचारित कार्यक्रम पेश करने की कोशिश की।
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काउंट कैमिलो दे कावूर
काउंट कैमिलो दे कावूर- पीडमॉण्ड के शासक विक्टर इमेनुएल द्वितीय का प्रमुख मंत्री था। वह न तो क्रांतिकारी था और न ही डेमोक्रेट। वह एक अच्छा कूटनीतिज्ञ था। वह इतलाबी वर्ग के अशिक्षित और अमीर वर्ग की तरह कहीं बेहतर फ्रेंच बोलता था। उसने इटली में विभिन्न क्षेत्रों को एकीकृत करने वाले आंदोलनों का नेतृत्व किया। उसने सार्डिनिया पीडमॉण्ड की फ्रांस से संधि करवाई। जिससे 1859 में सार्डिनिया-पीडमॉण्ड, आस्ट्रियाई बलों को हारने में कामयाब हुआ। इटली के एकीकरण की वजह से उसने सार्डिनिया-पीडमॉण्ड के साथ लगे दक्षिण-राज्य दो सिसिलियों को फतह करने के लिए गैरीबॉल्डी को प्रेरित किया।
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यूनानी स्वतंत्रता युद्ध
इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाओं में यूनान का स्वतंत्रता संग्राम एक महत्वपूर्ण घटना थी। इस घटना के द्वारा पूरे यूरोप के मिश्रित वर्ग में राष्ट्रीय भावना प्रवाहित हुई। पंद्रहवीं सदी से यूनान अॉटोमन साम्राज्य का ही भाग था। 1821 में यूरोप में क्रांतिकारी राष्ट्रवाद की प्रगति से यूनानियों का आज़ादी के लिए संघर्ष शुरू हुआ। इसमें पश्चिमी यूरोप के ऐसे अनेक लोगो का समर्थन यूनान के क्रांतिकारियों को मिला जो प्राचीन यूनानी संस्कृति के प्रति सहनभूति रखते थे। इस संघर्ष में अनेक कवियों और कलाकारों ने भी अपनी तरफ से पूरा योगदान दिया और संघर्ष के लिए जनमत जुटाया। लॉर्ड बायरन नाम के एक अंग्रेज कवि ने इस संघर्ष के लिए न केवल धन इकट्ठा किया बल्कि युद्ध लड़ने भी गए। जहाँ बुखार से उनकी मृत्यु हो गई। आखिरकार 1832 कुस्तुनतुनिया की संधि ने यूनान को एक स्वतंत्र राष्ट्रीय घोषित किया।
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फ्रैंकफ़र्ट संसद
यूरोप के राष्ट्रों में स्वतंत्रता हेतु 19वीं के मध्य में संघर्ष तेजी से शुरू हो गया। इसका परिणाम यह हुआ कि जर्मनी में फ्रैंकफ़र्ट ने बड़ी संख्या में मिलकर एक सर्व-जर्मन नेशनल ऐसेंबली के पक्ष में मतदान का फैसला किया। 18 मई 1848 को, 831 निर्वाचित प्रतिनधियों ने एक सजे-धजे जुलूस में जाकर फ्रैंकफ़र्ट संसद में अपना स्थान ग्रहण किया। यह संसद सेंट पॉल चर्च में आयोजित हुई। एक जर्मन राष्ट्र के लिए एक संविधान का प्रारूप तैयार किया। इस राज्य की अध्यक्षता एक ऐसे राज्य को सौंपी गई जिसे संसद के अधीन रहना था। प्रशा के राजा फ़्रेडरिख विल्हेम चतुर्थ को ताज पहनने कि पेशकश की तो उसने उसे अस्वीकार कर दिया और उन राजाओ का समर्थन किया जो निर्वाचित सभा के विरोधी थे। कुलीन वर्ग और सेना का आधार कमजोर हुआ। संसद का सामाजिक ढांचा भी कमजोर हुआ संसद में मध्य वर्ग का प्रभाव बढ़ता ही चला गया। उन्होंने मज़दूरों और कारीगरों की मांग का विरोध किया जिससे वे समर्थन खो बैठे। अंत में हालत यह हो गए कि मजबूरन सैनिकों को बुला कर एसेम्बली को भंग कर दिया गया।
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राष्ट्रीवादी संघर्षों में महिलओं की भूमिका
राष्ट्रीवादी संघर्षों में महिलओं की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। महिलओं ने राष्ट्रीवादी संघर्षों में कई रूपों में अपना योगदान दिया। 18वीं और 19वीं सदी में कलाकारों ने राष्ट्र का मानवीकरण किया और राष्ट्र को नारी वेश में प्रस्तुत किया गया। इससे राष्ट्रीवादी संघर्षो को बल मिला। इसी प्रकार नारी रूपकों का अविष्कार कलाकारों ने 19वीं सदी में किया। फ्रांस में उस एक लोकप्रिय इसाई नाम मारीआन दिया गया जिसने जन- राष्ट्रीय के विचार को रेखांकित किया। उसके चिन्ह की स्वतंत्रता और गणतंत्र के थे-लाल टोपी, तिरंगा और कलगी मारीआन की प्रतिमाओ को चौकों पर लगाया गया ताकि जनता को एकता के राष्ट्रीय प्रतीक की याद आती रहे और लोगों उससे तादात्म स्थापित कर सकें। इसी प्रकार जर्मेनिया जर्मन राष्ट्र का रूपक बन गई जो बलूत वृक्ष के पत्तों का मुकट पहनती थी क्योंकि जर्मन बलूत वीरता का प्रतीक है लेकिन महिलाओं में असंतोष था कि राष्ट्रवादी संघर्ष में सक्रिय योगदान के बाद भी उन्हें इसका श्रेय हासिल नहीं हुआ।
फ्रांसीसी लोगों के बीच सामूहिक पहचान का भाव पैदा करने के लिए फ्रांसीसी क्रांतिकारियों ने क्या क़दम उठाए?
फ्रांसीसी लोगों के बीच सामूहिक पहचान का भाव पैदा करने के लिए फ्रांसीसी क्रांतिकारियों ने निम्नलिखित कदम उठाए-
(i) पितृभूमि और नागरिक जैसे विचारों का प्रचार किया गया जिसे एक संविधान के अंतर्गत सामान अधिकार प्राप्त हो।
(ii) एक केंद्रीय प्रशासनिक व्यवस्था लागू की गई जिसमें अपने भू-भाग पर रहने वाले नागरिकों के लिए समान कानून बनाए गए।
(iii) एस्टेट जनरल का नाम बदलकर नेशनल एसेम्बली कर दिया गया जिसका चुनाव नागरिकों के समूह द्वारा किया जाने लगा।
(iv) नई स्तुतियाँ रची गई, शपथें ली गई और शहीदों का गुणगान हुआl यह सब राष्ट्र के नाम पर हुआ।
(v) फ्रांस का नया राष्ट्रध्वज चुना गया।
(vi) फ्रेंच को राष्ट्रीय भाषा के रूप में चुना गया और क्षेत्रीय बोलियों को हतोत्साहित किया गया।
(vii) आंतरिक आयात निर्यात शुल्क समाप्त कर दिए गए और भार मापने की एक समान व्यवस्था लागू की गई।
मारीआन और जर्मेनिया कौन थे? किस तरह उन्हें चित्रित किया गया उनका क्या महत्व था?
फ्रांस और जर्मनी के कलाकारों द्वारा स्वतंत्रता, न्याय तथा विचारों को प्रकट करने के लिए नारी रूपक का प्रयोग किया गया। फ्रांस में इसी नारी रूपक को मारीआन नाम दिया गया और जर्मनी में जर्मेनिया नाम दिया गया।
मारीआन- इसने जन राष्ट्रीय के विचारों को रेखांकित किया। उसके चिह्न भी स्वतंत्रता और गणतंत्र के थे-लाल टोपी, तिरंगा और कलगी। मारीआन की प्रतिमाएँ चौकों पर लगाई गई ताकि जनता को एकता के राष्ट्रीय प्रतीक की याद आती रहे और लोगों मरियान की छवि डाक टिकटों पर अंकित की गई।
जर्मेनिया- जर्मेनिया जर्मन राष्ट्र का रूपक बन गई। चाक्षुष अभिव्यक्तियों में जर्मेनिया बलूत वृक्ष के पत्तों को पहनती है क्योंकि जर्मन बलूच वीरता का प्रतीक है।
जर्मन एकीकरण की प्रक्रिया का संक्षेप में पता लगाएँ।
1848 में जर्मन के वे उदारवादी जो राष्ट्रीयवादी भावनाओं से ओत-प्रोत थे, उन्होंने प्रयास किया की जर्मन महासंघ के विभिन्न इलाकों को जोड़कर एक निर्वाचित संसद द्वारा शासित राष्ट्र-राज्य बनाए। लेकिन फ़ौज की ताकतों से उदारवादियों की यह कोशिश बेकार हो गई। उनका प्रशा के बड़े भूस्वामियों ने भी समर्थन किया।उसके बाद प्रशा ने राष्ट्रीय एकीकरण के आंदोलन का नेतृत्व संभाला। प्रशा के मुख्यमंत्री ऑटोवॉन विस्मार्क प्रशा सेना और नौकरशाही की सहायता से सात वर्षों के द्वारा ऑस्ट्रिया, डेनमार्क और फ्रांस को युद्ध में हराया। जनवरी 1871 में, वर्साय में एक समारोह में प्रशा के राजा विलियम प्रथम को जर्मनी का सम्राट घोषित किया। इस तरह जर्मन एकीकरण की प्रक्रिया पूरी हुई।
अपने शासन वाले क्षेत्रों में शासन व्यवस्था को जायदा कुशल बनाने के लिए नेपोलियन ने क्या बदलाव किए
अपने शासन वाले क्षेत्रों में शासन व्यवस्था को ज्यादा कुशल बनाने के लिए नेपोलियन ने निम्नलिखित बदलाव किए-
(i) जन्म के आधार पर विशेषाधिकार समाप्त कर उसमें कानून के समक्ष बराबरी और संपत्ति के अधिकार को सुरक्षित बनाया।
(ii) नेपोलियन ने फ्रांस में प्रजातंत्र को समाप्त करके राजतंत्र को दोबारा लागू किया।
(iii) उसने 1804 एक नागरिक संहिता तैयार कर फ्रांसीसी नियंत्रण के अधीन क्षेत्रों में भी लागू किया।इसे नेपोलियन संहिता भी कहते हैं।
उसने प्रशासनिक विभाजनों को सरल बनाकर सामंती व्यवस्था को समाप्त किया और उसमें किसानों को भू-दासत्व और जागीरदारी शुल्कों से मुक्ति दिलवाई।
(iv) उसने व्यापार को बढ़ाने के लिए व्यापारी संघ के नियंत्रण को हटाया।
(v) नेपोलियन ने यातायात और संचार सुविधा में सुधार किया।
(vi) एक राष्ट्रीय मुद्रा को लागू कर व्यापारियों को पूंजी के आवागमन में आसान किया।
(vii) एक समान मानक भार और नाप को पूरे राष्ट्र में लागू किया।
उदारवादियों की 1848 की क्रांति का क्या अर्थ लगाया जाता है? उदारवादियों ने किन राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक विचारों को बढ़ावा दिया?
मध्यवर्ग के लिए 1848 उदारवाद की क्रांति का अर्थ था व्यक्ति के लिए आज़ादी और सभी के लिए सामान कानून। उस समय यूरोप के अनेक देशों में कई किसान- मज़दूर बेरोजगारी, भुखमरी के खिलाफ विद्रोह कर रहे थे। तभी उदारवादियों द्वारा भी एक क्रांति हो रही थी। 1848 उदारवादियों में क्रांति का अर्थ राष्ट्रीय एकीकरण के लिए क्रांति माना जाता हैl उन्होंने 1848 की क्रांति में राष्ट्रीय राज्य की मांग को आगे बढ़ाया। वह राष्ट्रीय राज्य, संविधान, प्रेस की स्वतंत्रता, संगठन बनाने की आज़ादी आदि सिद्धांतों पर आधारित था। उदारवादियों की 1848 की क्रांति के निम्नलिखित विचारों को बढ़ावा दिया-
(i) राजनैतिक विचार- राजनैतिक रुप से उदारवाद एक ऐसी सरकार पर ज़ोर देता था जो सहमति से बनी हो। फ्रांसीसी क्रांति के होने के बाद उदारवाद निरंकुश शासन के विरुद्ध था। उन्होंने पादरी वर्ग के विशेषाधिकार की समाप्ति पर बल दिया। उदारवादियों ने संसद के प्रतिनिधि सरकार का समर्थन किया उनका मानना था कि मत देने का अधिकार केवल उन्ही पुरूषों को नहीं है जिनके पास सम्पति है अपितु महिलाओं को और उन पुरुषों को भी होना चाहिए जिनके पास अधिक सम्पति नहीं है या जो सम्पत्तिविहीन है। उन्होंने प्रेस की स्वतंत्रता, संगठन बनाने जैसे सिद्धांतों का समर्थन किया।
(ii) सामाजिक विचार- उदारवादियों ने नारीवाद के विचार को, महिलाओं के अधिकारों और हितों को तथा स्त्री पुरुष की सामाजिक समानता के विचार को बढ़ावा दिया।
(iii) आर्थिक विचार- आर्थिक क्षेत्र में उदारवादी राज्य द्वारा लगाई गई चीजों तथा पूंजी के आवागमन पर नियंत्रण को खत्म करने के पक्ष में था।
यूरोप में राष्ट्रवाद के विकास में संस्कृति के योगदान को दर्शाने के लिए तीन उदाहरण निम्नलिखित है:
(i) भाषा- भाषा ने पोलैंड में राष्ट्रवाद के विकास में में महत्पूर्ण भूमिका निभाई। पोलैंड में रूस के कब्जे वाले क्षेत्र में पोलिश भाषा बोलने पर सख्त रोक थी। पादरियों द्वारा रुसी भाषा बोलने से इंकार करने पर उन्हें सजा दी जाने लगी। इस प्रकार पोलिश भाषा रुसी प्रभुत्व के खिलाफ संघर्ष के प्रतीक के रूप में सामने आई।
(ii) लोक संस्कृति- जर्मन दार्शनिक योहना गॉटफ़्रीड हरडर धर्म यहां का मानना था कि सच्ची जर्मन संस्कृति उसके आम लोगों में निहित थी। उन्होंने लोक संगीत, लोक काव्य और लोकनृत्य के माध्यम से जर्मन राष्ट्र की भावना को प्रसारित किया।
(iii) संगीत- कैरोल कुर्पिसकी नाम के एक पोलिश नागरिक ने राष्ट्रीय संघर्ष में अपने औपेरा और संगीत का गुणगान किया तथा पोलेनेस और माजुरका जैसे लोक नृत्यों को राष्ट्रीय प्रतीकों में बदल दिया।
किन्हीं दो देशों पर ध्यान केंद्रित करते हुए बताएँ कि उन्नीसवीं सदी में राष्ट्र किस प्रकार विकसित हुए।
उन्नीसवीं सदी में राष्ट्रीय निम्नलिखित प्रकार से विकसित हुए-
(i) जर्मनी- 19वीं सदी के मध्य में मध्यवर्गीय या उदारवादी जर्मन लोगों में राष्ट्रवादी की भावनाएं काफी व्यापक थी। इसका परिणाम यह हुआ कि 1848 जर्मन महासंघ के विभिन्न इलाकों को एक निर्वाचित सदन द्वारा शासित राष्ट्र-राज्य बनाने का प्रयास किया गया था। परंतु राष्ट्रवादियों की यह पहल सेना द्वारा दबा दी गई। इसके बाद प्रशा ने राष्ट्रीय एकीकरण के आंदोलन का नेतृत्व किया। इस प्रक्रिया की शुरुआत प्रशा के मुख्यमंत्री ऑटो वान विस्मार्क द्वारा मानी गई। इस आंदोलन को सफल बनाने के लिए उसने प्रशा की सेना और नौकरशाही की मदद ली। प्रशा ने सात वर्षों में आस्ट्रिया, डेनमार्क और फ़्रांस से तीनों युद्ध में जीत हासिल की और एकीकरण की प्रक्रिया को पूरा किया। जनवरी 1871 मे वर्साय में होने वाले समारोह में प्रशा के राजा विलियम प्रथम को जर्मनी का सम्राट घोषित किया गया और इस नए जर्मनी राज्य में नई मुद्रा, बैंकिंग और न्यायिक व्यवस्था लागू की गई।
(ii) इटली- जर्मनी की तरह ही इटली में भी राजनितिक विखंडन का एक लम्बा इतिहास था। इटली अनेक वंशानुगत राज्यों तथा बहु-राष्ट्रीय हेस्बर्ग साम्राज्य में बिखरा हुआ था। इटली कई राज्यों में विभाजित था। इटली पर हाब्सबर्गों, पोप और बूर्बों के राजाओं के अधीन था। केवल एक-सार्डिनिया पीडमॉण्ड ने इतालवी राजघराने का शासन था। 1880 के दशक में ज्युसेपे मेत्सिनी ने एकीकृत इतावली गणराज्य में एक सुविचारित कार्यक्रम प्रस्तुत करने की कोशिश की। इसके लिए उसने एक गुप्त संगठन भी बनाया। 1831 और 1848 में क्रांतिकारी विद्रोह की असफ़लतों से युद्ध के ज़रिये राज्यों को जोड़ने की ज़िम्मेदारी सार्डिनिया पीडमॉण्ड के ऊपर आई। मंत्री प्रमुख कावूर, जिसने इटली के प्रदेशों को एकीकृत करने वाले आंदोलनों का नेतृत्व किया न तो वह क्रांतिकारी था और न ही जनतंत्र में विश्वास रखने वाला था। 1859 में सार्डिनिया पीडमॉण्ड ने एक चतुर कूटनीतिक संधि, जिसमे कावूर का हाथ था द्वारा ऑस्ट्रियाई बलो को हारने में कामियाबी पाई। 1860 में उन्होंने दक्षिण इटली और दो सिसलियों के राज्य में प्रवेश किया और स्पेनी शासकों को वहाँ से हटाने के लिए किसानों का समर्थन पाया। 1861 में इमेनुएल द्वितीय को एकीकृत इटली का राजा घोषित किया।
ब्रिटेन में राष्ट्रवाद का इतिहास शेष यूरोप की तुलना में किस प्रकार भिन्न था?
1. ब्रिटेन में राष्ट्रवाद का निर्माण एक लम्बी चलने वाली प्रक्रिया के फलस्वरूप हुआ था। ब्रिटिश द्वीप समूह पर एक साझी नस्ल के अंग्रेज़, स्कॉट, वेतश और आयरिश लोग रहते थे। इन सभी जातीय समूहों की सांस्कृतिक और राजनितिक परम्पराएँ थीं। लेकिन जैसे-2 आंग्ल राष्ट्र की धन-दौलत, शक्ति और सत्ता में वृद्धि हुई। वह द्वीपसमूह के अन्य राष्ट्रों पर अपना प्रभुत्व बढ़ाने में कामयाब हुआ। एक लम्बे टकराव और संघर्ष के बाद आंग्ल संसद ने 1688 में राजतन्त्र से ताकत छीन ली थी। इस संसद के द्वारा एक राष्ट्र-राज्य का निर्माण हुआ जिसके केंद्र में इंग्लैंड था। इंग्लैंड और स्कॉटलैंड के मध्य एक्ट ऑफ यूनियन (1707) से 'यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन' का गठन हुआ।
2. 1801 में आयरलैंड को बलपूर्वक यूनाइटेड किंगडम में मिला लिया गया। एक नए 'ब्रितानी राष्ट्र' का निर्माण किया गया जिस पर हावी आंग्ल संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया गया। नए ब्रिटेन के प्रतीक-चिह्नों, ब्रितानी झंडा (यूनियन बैंक) और राष्ट्रीय गान (गॉड सेव अवर नोबल किंग) को खूब बढ़ावा दिया गया और पुराने राष्ट्र इस संघ में केवल सहयोगी के रूप में ही रहे।
19वी सदी के अंत में राष्ट्रीयवाद तनाव बाल्कन प्रदेशों में पनपा। इसमें आधुनिक रोमानिया, बलगेरिया, बोस्त्रिया-हर्जेगोबिना, सर्बिया, स्लोवेनिया क्रोएशिया, मेसिडोनिया आदि शामिल है। इन क्षेत्रों में राष्ट्रीयवाद तनाव निम्नलिखित कारणों से पनपा:
(i) इन क्षेत्रों में राष्ट्रीयवाद तनावों के पनपने का मुख्य कारण रूमानी राष्ट्रीयवाद का उदय था। इन क्षेत्रों में भौगोलिक, जातीय और सांस्कृतिक विभिन्नताएँ थी जिससे प्रत्येक क्षेत्र अपने आप को श्रेष्ठ समझने लगा और अन्यो को निम्न।
(ii) उन्नीसवीं सदी में ऑटोमन साम्राज्य ने आधुनिकीकरण और आंतरिक सुधारों के द्वारा मज़बूत बनना चाहता था, किन्तु इसमें इसे बहुत कम कामयाबी मिली। एक के बाद एक उसने अधीन यूरोपीय राष्ट्रीयताएँ उसके शिकंजे से निकलकर स्वतंत्रता की घोषणा करने लगीं।
(iii) अलग-अलग देशो द्वारा विभिन्न स्लावा राष्ट्रीय समूहों ने स्वतंत्र होने की कोशिश की बाल्कन क्षेत्र में गहरा टकराव होने लगा। राज्य में सभी एक दूसरे के प्रति ईष्या का भाव रखने लगे। हर एक राज्य अपने लिए अधिक से अधिक इलाका ईकट्ठा करने लगा। वही बाल्कन क्षेत्रों को हथियाने के लिए बड़ी शक्तियों मे भी होड़ लग गई। इसके परिणामस्वरूप अनेक युद्ध हुए। आखिरकार प्रथम विश्व युद्ध हुआ।
1832 की उस संधि का नाम लिखिए जिसने यूनान को एक स्वतंत्र राष्ट्र की मान्यता दी।
1832 की संधि:- कुस्तुनतुनिया की संधि
वियतनाम में फ्रांसीसियों की पराजय के बाद जनेवा में चली शांति वार्ताओं का क्या परिणाम निकला?
वियतनाम में फ्रांसीसियों की पराजय के बाद जनेवा में चली शांति वार्ताओं का वियतनाम का विभाजन(वियतनाम दो भागों में विभाजित किया गया - उत्तर और दक्षिण) हुआ।
फ्रांसीसियों के विरूध्द लड़ने के लिए समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा किए गए प्रयासों से वियतनाम में राष्ट्रवाद किस प्रकार उभरा? विश्लेषण कीजिए।
फ्रांसीसियों द्वारा वियतनाम के उपनिवेशीकरण ने देश के लोगों को जीवन के सभी क्षेत्रों में उपनिवेशियों के साथ संघर्ष करने का अवसर प्रदान किया। वियतनाम के लोगों को यह समझ आने लगी कि वे क्या-क्या खो चुके हैं। इस समझ से वियतनाम में राष्ट्रवाद के बीज पड़े। उपनिवेशी सरकार के प्रयत्नों के विरूध्द अध्यापक व विद्यार्थी उठ खड़े हुए। पश्चिम की उपस्थिति के प्रति कई धार्मिक आंदोलन विरूध्द हो गए। चीन के घटनाक्रम ने भी राष्ट्रवादियों के हौसले बड़ा दिए। वियतनामी विद्यार्थी फ्रांसीसियों के विरूध्द स्वतंत्रता आंदोलन के लिए एसोसिएशन के रूप में संगठित हुए।
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फ्रांसीसी लोगों के बीच सामूहिक पहचान की भावना पैदा करने के लिए फ्रांसीसी क्रांतिकारियों द्वारा प्रारम्भ किए गए उपायों और कार्यों का विश्लेषण कीजिए।
सामूहिक भावना पैदा करने के लिए फ्रान्सीसी क्रान्तिकारियों द्वारा किए गए उपाय और कार्य -
(i) पितृभूमि और नागरिक जैसे विचारों पर बल दिया गया।
(ii) एक नया फ्रांसीसी झंडा-तिरंगा चुना गया।
(iii) इस्टेट जेनरल का चुनाव सक्रीय नागरिकों के समूह द्वारा किया जाने लगा।
(iv) इसका नाम बदल कर नेशनल एसेम्बली कर दिया गया।
(v) नयी स्तुतियाँ रची गईं।
(vi) शपथें ली गईं।
(vii) शहीदों का गुणगान हुआ।
(viii) एक केंद्रीय प्रशासनिक व्यवस्था लागू की गई।
(ix) सभी के लिए समान क़ानून बनाए गए।
(x) भार तथा नापने की एक समान व्यवस्था लागू की गई।
(xi) फ्रेंच, राष्ट्र की भाषा बनी।
फ़्रांसीसी क्रांतिकारियों ने फ्रांसीसी लोगों में सामूहिक पहचान की भावना किस प्रकार पैदा की?
फ़्रांसीसी क्रांतिकारियों ने फ्रांसीसी लोगों में सामूहिक पहचान की भावना निम्लिखित हैं -
नेपोलियन द्वारा लागू किये गये प्रशासनिक सुधारों के विषय में बाताइये?
नेपोलियन द्वारा लागू किये गये प्रशासनिक सुधार निम्न हैं -
1804 की नागरिक संहिता के प्रावधानों का उल्लेख करो।
1804 की नागरिक संहिता के प्रावधान निम्न है -
यूरोप के कुलीन वर्ग की विशेषतायें बताओ?
यूरोप के कुलीन वर्ग की विशेषतायें निम्न है -
1815 की वियना संधि के उद्देश्य बताइये?
1815 की वियना संधि के उद्देश्य निम्न है -
औद्योगीकरण के विस्तार ने किस प्रकार यूरोप के सामाजिक और राजनैतिक समीकरण बदल दिये?
यूरोप के राष्ट्रवादी संघर्षो में महिलाओं की भूमिका क्या थी?
19वीं सदी में यूरोप में राष्ट्रवाद की लहर के क्या कारण थे?
19वीं सदी में यूरोप में राष्ट्रवाद की लहर के कारण निम्न है -
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