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फ्रैंकफ़र्ट संसद
यूरोप के राष्ट्रों में स्वतंत्रता हेतु 19वीं के मध्य में संघर्ष तेजी से शुरू हो गया। इसका परिणाम यह हुआ कि जर्मनी में फ्रैंकफ़र्ट ने बड़ी संख्या में मिलकर एक सर्व-जर्मन नेशनल ऐसेंबली के पक्ष में मतदान का फैसला किया। 18 मई 1848 को, 831 निर्वाचित प्रतिनधियों ने एक सजे-धजे जुलूस में जाकर फ्रैंकफ़र्ट संसद में अपना स्थान ग्रहण किया। यह संसद सेंट पॉल चर्च में आयोजित हुई। एक जर्मन राष्ट्र के लिए एक संविधान का प्रारूप तैयार किया। इस राज्य की अध्यक्षता एक ऐसे राज्य को सौंपी गई जिसे संसद के अधीन रहना था। प्रशा के राजा फ़्रेडरिख विल्हेम चतुर्थ को ताज पहनने कि पेशकश की तो उसने उसे अस्वीकार कर दिया और उन राजाओ का समर्थन किया जो निर्वाचित सभा के विरोधी थे। कुलीन वर्ग और सेना का आधार कमजोर हुआ। संसद का सामाजिक ढांचा भी कमजोर हुआ संसद में मध्य वर्ग का प्रभाव बढ़ता ही चला गया। उन्होंने मज़दूरों और कारीगरों की मांग का विरोध किया जिससे वे समर्थन खो बैठे। अंत में हालत यह हो गए कि मजबूरन सैनिकों को बुला कर एसेम्बली को भंग कर दिया गया।