Vasant Bhag 3 Chapter 3 बस की यात्रा
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    NCERT Solution For Class 8 Hindi Vasant Bhag 3

    बस की यात्रा Here is the CBSE Hindi Chapter 3 for Class 8 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 8 Hindi बस की यात्रा Chapter 3 NCERT Solutions for Class 8 Hindi बस की यात्रा Chapter 3 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 8 Hindi.

    Question 1
    CBSEENHN8000510

    “मैंने उस कंपनी के हिस्सेदार की तरफ पहली बार श्रद्धाभाव से देखा।”
    • लेखक के मन में हिस्सेदार साहब के लिए श्रद्धा क्यों जग गई?

    Solution
    पुलिया के ऊपर बस का टायर पंचर (फिस्स) हो गया। जिससे बस जोर से हिलकर रुक गई। अगर यह बस तेज गति से चल रही होती तो अवश्य ही उछलकर नाले में गिर जाती। ऐसे में लेखक ने कंपनी के हिस्सेदार की ओर श्रद्धाभाव से देखा। यह श्रद्धा इसलिए जागी क्योंकि हिस्सेदार केवल अपने स्वार्थ हेतु लाचार था। वह जानता था कि बस के टायर खराब हैं और कभी भी लोगों की जान खतरे में पड़ सकती है। फिर भी निरंतर बस को सड़क पर दौड़ा रहा था। यात्रियों की चिंता किए बिना धन बटोरने पर लगा था।
    Question 2
    CBSEENHN8000511

    “लोगों ने सलाह दी कि समझदार आदमी इस शाम वाली बस से सफर नहीं करते।”
    • लोगों ने यह सलाह क्यों दी?

    Solution
    ‘समझदार आदमी इस शाम वाली बस में सफर नहीं करते’ लोगों ने लेखक और उसके मित्रों को यह सलाह इसलिए दी क्योंकि वे जानते थे कि बस की हालत बहुत खराब है। रास्ते में बस कभी भी और कहीं भी धोखा दे सकती है।
    Question 3
    CBSEENHN8000512

    “ऐसा जैसे सारी बस ही इंजन है और हम इंजन के भीतर बैठे हैं।”
    • लेखक को ऐसा क्यों लगा?

    Solution
    जब बस को चालक ने स्टार्ट किया तो सारी बस में अजीब-सी धड़कन उत्पन्न हुई। ऐसे में लेखक और उसके मित्रों को लगा कि जैसे सारी बस ही इंजन है और हम इंजन के अंदर बैठ हैं। अर्थात् इंजन के स्टार्ट होने पर इंजन के पुर्जो की भाँति बस के यात्री हिल रहे थे और पूरी बस में इंजन का शोर गूँज रहा था।
    Question 4
    CBSEENHN8000513

    “गज़ब हो गया। ऐसी बस अपने आप चलती है।”
    • लेखक को यह सुनकर हैरानी क्यों हुई?

    Solution
    जब लेखक ने बस को जर्जर व क्षीण अवसर मे देखा तो उस यह विश्वास नहीं था कि वह सफर तय कर सकेगी। इसी कारण उसने कंपनी के हिस्सेदार से यह पूछा कि यह बस चलती भी है तो उन्होंने उत्तर दिया कि यह अपने-आप चलती है। यही लेखक की हैरानी का कारण था।
    Question 5
    CBSEENHN8000514

    “मैं हर पेड़ को अपना दुश्मन समझ रहा था।”
    • लेखक पेड़ों को दुश्मन क्यों समझ रहा था?

    Solution
    लेखक को हर पेड़ दुश्मन नजर आता यानी उस हर पड़ से डर लग रहा था। वास्तव मैं बस की दशा ऐसी थी कि उस जबरदस्ती चलाया जा रहा था। कभी भी इसकी ब्रेक फेल हो सकती थी या कोई पुर्जा खराब तो सकता था। इसीलिए लेखक को लग रहा था कि कहीं बस की किसी पेड़ से टक्कर न हो जाए।
    Question 6
    CBSEENHN8000515

    ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ किसके नेतृत्व में, किस उद्देश्य से तथा कब हुआ था? इतिहास की उपलब्ध पुस्तकों के आधार पर लिखिए।

    Solution
    सविनय अवज्ञा आंदोलन महात्मा गाँधीजी के नेतृत्व मैं सन 1930 मैं अंग्रेजों के खिलाफ हुआ। उस समय भारतीय समाज की दशा अत्यंत दयनीय थी। गरीब लोग केवल नमक के साथ रोटी खाकर पेट भर लेते थे। ऐसे में अंग्रेजों ने नमक पर भी टैक्स लगा दिया। इससे गाँधीजी तिलमिला उठे। उन्होंने गुजरात के साबरमती आश्रम से 250 किलोमीटर की पैदल यात्रा करके समुद्र किनारे बसे दांडी गाँव में नमक बनाकर कानून भंग किया। आज भी यह नमक गाँधी संग्रहालय में सुरक्षित है। इस आंदोलन में सरोजिनी नायडू ने उनका पूरा साथ दिया। इस दांडीयात्रा, नमक सत्याग्रह व सविनय अवज्ञा आदि नामों से पुकारा जाता है।
    Question 7
    CBSEENHN8000516

    सविनय अवज्ञा का उपयोग व्यंग्यकार ने किस रूप में किया है? लिखिए।

    Solution
    ‘सविनय अवज्ञा’ का उपयोग व्यंग्यकार ने बस के द्वारा दर्शाया है। लेखक जब जीर्ण-शीर्ण बस में बैठ जाता है तो बस के चलने पर उसे उसका एक भी हिस्सा सही नहीं प्रतीत होता, लेकिन थोड़ी देर के बाद बस इस प्रकार चलने लगती है जैसे सभी भाग मिलकर धीरे- धीरे एक हो गए हों। लेखक की यह बिल्कुल गाँधीजी के अंग्रेजीं के खिलाफ किए गए ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ की भाँति दिखाई देती है। जिसमें अंग्रेजों द्वारा भारत में नमक पर टैक्स लगाने पर गाँधीजी तिलमिला उठे थे क्योंकि वे जानते थे कि भारत की जनता तो नमक के साथ भी खाना खा लेती है। ऐसे में नमक पर टैक्स क्यों? उन्होंने इसके विरोध में सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की। उस समय देश धर्म, संप्रदाय, जातीयता, वर्ग आदि के भेदभावों में डूबा था। सभी को साथ लेकर चलना अत्यधिक कठिन था लेकिन उन्होंने कुशल भूमिका निभाई और गुजरात के साबरमती आश्रम से 250 किलोमीटर कोई पैदल यात्रा करके दांडी गाँव में समुद्री तट पर नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा। ऐसा करने पर सभी भारतीयों ने आपसी भेदभाव मिटाकर उनका पूरा साथ दिया।
    Question 8
    CBSEENHN8000517

    आप अपनी किसी यात्रा के खट्टे-मीठे अनुभवों को याद करते हुए एक लेख लिखिए।

    Solution
    पिछले वर्ष मैं अपने विद्यालय की ओर से जयपुर घूमने गया। हम पचास बच्चे थे व पाँच अध्यापिकाएँ हमारे साथ थीं। बड़ी खुशी-खुशी हमारी बस शाम को पाँच बजे जयपुर के लिए रवाना हुई। हमें कहा गया कि सुबह पाँच बजे तक हम लीग जयपुर पहुँच जाएँगे। जैसे ही बस चली ऐसा लगा कि जैसे मनचाही मुराद पूरी होने जा रही हो। हमने खूब खेल खेलने व नाच-गाना शुरू कर दिया। अध्यापिकाएँ भी बड़े आनंद भाव से हमारा साथ दे रही थीं। हमने नौ बजे अपने-अपने खाने के डिब्बे खोले और मजे से सब अपने मनपसंद भोजन का आनंद लेने लगे। फिर अध्यापिकाओं ने कहा कि हमें थोड़ी देर आराम करना चाहिए लेकिन हमें चैन, कहाँ हमने फिर अंताक्षरी खेलनी प्रारंभ कर दी। रात के दो बज गए लेकिन किसी की आँखो में नींद न थी। लगभग तीन बजे के करीब एकदम सुनसान जंगल में भरतपुर के पास अचानक हमारी बस का टायर पंचर हो गया। न चाहते हुए भी बस रोकनी पड़ी। हम सब डर गए थे। अचानक दो लुटेरे बस मै चढ़ आए उन्होंने हम सबसे नगदी बटोर ली। हम व हमारी अध्यापिकाएँ सभी डर गए। टायर के ठीक होते ही हम सोच में पड़ गए कि क्या करें? वापिस घरों की ओर जाएँ या जयपुर। तभी हमारी अध्यापिका ने प्रधानाचार्य को फोन किया तो उन्होंने कहा कि बच्चों का उत्साह बनाए रखो और सीधा जयपुर गोल्डन होटल में ही जाकर ठहरो। शाम तक वे स्वयं वहाँ आ रही हैं। उन्होंने शाम की वहाँ पहुँचकर जैसे सबके चेहरों को मुस्कुराहट दे दी और अगले दिन सुबह से लगातार तीन दिन तक हमें घुमाती रहीं और जिस बच्चे ने जो भी पसंद किया उन्होंने इसे लेकर दिया। हम लुटेरों की बात भूल भी गए और जयपुर का मजा लेन लगे।
    Question 9
    CBSEENHN8000518

    अनुमान कीजिए यदि बस जीवित प्राणी होती, बोल सकती तो वह अपनी बुरी हालत और भारी बोझ के कष्ट को किन शब्दों में व्यक्त करती? लिखिए।

    Solution
    यदि बस जीवित प्राणी होती तो अवश्य अपनी दर्दभरी गाथा अपने शब्दों मे कहती। वह स्पष्ट रूप से ही कह देती कि मेरी अवस्था अब ढल चुकी है। मैं अब सवारियां ढोने के काबिल नहीं रही। मेरा इंजन चल नहीं गाता। जब मूझे जबरदस्ती स्टार्ट किया जाता है तो मेरा अंग- अंग दर्द होता है। मैं रह-रह कर काँप जाती हूँ। मेरे शीशे टूट चुके हैं। मैरी हालत जर्जर है। टायर भी अब मेरा साथ नहीं देते, कभी भी कहीं भी धोखा दे देते हैं। मेरी आपसे विनंती है कि मुझे बस अब आराम से खड़ा रहने दें, मुझे पर सवार होकर मुझे कष्ट न दीजिए।
    Question 10
    CBSEENHN8000519

    बस, वश, बस तीन शब्द हैं - इनमें बस सवारी के अर्थ मैं, वश अधीनता के अर्थ मैं, और बस पर्याप्त (काफी) के अर्थ में प्रयुक्त होता है, जैसे-बस से चलना होगा। मेरे वश में नहीं है। अब बस करो।
    • उपर्युक्त वाक्य के समान तीनों शब्दों से युक्त आप भी दो-दो वाक्य बनाइए।

    Solution

    1. (क) बस चलते ही ठंडी हवा के झोंके आने लगे।
       (ख) बस चली और हमने राहत की साँस ली।
    2. (क) ईश्वर की करनी मनुष्य के वश में नहीं।
       (ख) आजकल औलाद पर माता-पिता का वश नहीं चलता।

    3. (क) बस करो, कितना खाओगे?
        (ख) अरे भई! अब बस भी करो, कितनी बहस करोगे।

    Question 11
    CBSEENHN8000520

    “हम पाँच मित्रों ने तय किया कि शाम चार बजे की बस से चलें। पन्ना से इसी कंपनी की बस सतना के लिए घंटे भर बाद मिलती है।”
    ने, की. से आदि शब्द वाक्य के दो शब्दों के बीच संबंध स्थापित कर रहे हैं। ऐसे शब्दों को कारक कहते हैं। इसी तरह जब दो वाक्यों को एक साथ जोड़ना होता है ‘कि’ का प्रयोग होता है।
    • कहानी में से दोनों प्रकार के चार वाक्यों को चुनिए।

    Solution

     कारक शब्द से निर्मित वाक्य-
    1. पन्ना से इसी कंपनी की बस सतना के लिए घंटे भर बाद मिलती है।
    2. यह बस पूजा के योग्य थी।
    3. बस कंपनी के एक हिस्सेदार भी उसी बस में जा रहे थे।
    4. नई नवेली बसों से ज्यादा विश्वसनीय है।
    • कि योजक शब्द से बनने वाले वाक्य-
    1 लोगों ने सलाह दी कि समझदार आदमी इस शाम वाली बस से सफर नहीं करते।
    2. हमें लग रहा था कि हमारी सीट के नीचे इंजन है।
    3. कभी लगता कि सीट को छोड्कर बॉडी आगे भागी जा रही है।
    4. मालूम हुआ कि पेट्रोल की टंकी में छेद हुआ है।

    Question 15
    CBSEENHN8000524

    लेखक व उसके मित्र कहाँ जा रहे थे? लोगों ने उन्हें शाम वाली बस से न जाने की सलाह क्यों दी?

    Solution
    लेखक व उसके मित्रों को जबलपुर जाना था। वे पन्ना किसी काम से आए थे। शाम को जाने वाली बस बड़ी ही जर्जर अवस्था में थी। वह कहीं भी चलते-चलते बंद हो सकती थी या दुर्घटना ग्रस्त हो सकती थी। इसीलिए लोगों ने उन्हें शाम वाली बस से जाने को मना किया।
    Question 16
    CBSEENHN8000525

    लेखक को बस वयोवृद्ध क्यों लगी?

    Solution
    बस देखने में अत्यधिक पुरानी व खस्ता हालत में थी। उसे देखकर ही लग रहा था कि वह बैठने की हालत में भी नहीं है। इसलिए लेखक ने उसे वयोवृद्ध कहा। उसका तो यह भी मानना था कि अगर हम इस पर सवार होंगे तो इसे कष्ट होगा।
    Question 17
    CBSEENHN8000526

    बस कंपनी के हिस्सेदार से लेखक ने यह क्यों पूछा कि क्या यह बस चलती है?

    Solution
    बस देखने में लग ही नहीं रही थी कि यह यात्रियों को बिठाकर चलने के लायक है। इसलिए लेखक ने पूछा कि क्या यह बस चलती है?

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    Question 18
    CBSEENHN8000527

    लेखक का यह कहना कहाँ तक उचित है कि यह बस गाँधीजी के असहयोग और सविनय अवज्ञा आदोलनों के वक्त अवश्य जवान रही होगी?

    Solution
    जब लेखक ने बस के चलने पर उसके किसी भी हिस्से का आपसी सहयोग न देखा तो उसे गाँधीजी के ‘असहयोग आंदोलन’ अर्थात् भारतीयों अंग्रेजों का साथ न देना याद आ गया। और बस का सही रूप में न चलना, बार-बार रुक कर विरोध करना, लेखक को ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ की याद दिलाता है। जिसमें गाँधीजी ने अंग्रेजों द्वारा नमक पर टैक्स लगाने पर दांडी यात्रा करके, समुद्री नमक बनाकर उनके कानून को तोड़ा था। इसीलिए लेखक ने कहा कि यह बस गाँधीजी के असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलन के वक्त जवान रही होगी अर्थात् अपने- आप को स्वतंत्र करवाने के सभी दावपेंच जानती है। लेखक का कहना पूर्णतया उचित है।
    Question 19
    CBSEENHN8000528

    हरिशंकर परसाई की रचना ‘बस की यात्रा’ आज के समाज में भी कैसे सार्थक है?

    Solution
    हरिशंकर परसाई की रचना ‘बस की यात्रा’ आज के समाज में भी सार्थक है क्योंकि आज भी हम कई बार देखते हैं कि सड़क पर पुराने वाहन धड़ाधड़ चल रहे होते हैं। उनके मालिकों को लोगों की जान की कोई परवाह नहीं होती। इस हेतु सरकार भी भरसक प्रयत्न करती है लेकिन फिर भी स्वार्थ हेतु लोग अपनी मनमानी करते रहते हैं।
    Question 20
    CBSEENHN8000529

    ‘बस की यात्रा’ पाठ से क्या संदेश मिलता है?

    Solution
    इस पाठ से यह संदेश मिलता है कि समयानुसार प्रत्येक वस्तु का नवीनीकरण आवश्यक है। जैस बस अब बिल्कुल भी चलने के लायक नहीं थी। बस के हिस्सेदारों का कर्तव्य बनता था कि वे उस बस को जबरदस्ती चलाने की बजाय नई बस लेते।
    Question 31
    CBSEENHN8000540

    नीचे लिखे गद्यांश को पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
    बस-कंपनी के एक हिस्सेदार भी उसी बस से जा रहे थे। हमने उनसे पूछा-“यह बस चलती भी है?” वह बोले-“चलती क्यों नहीं है जी। अभी चलेगी।” हमने कहा- “वही तो हम देखना चाहते हैं। अपने आप चलती है यह? हाँ जी, और कैसे चलेगी?”
    गज़ब हो गया। ऐसी बस अपने आप चलती है।
    हम आगा-पीछा करने लगे। डॉक्टर मित्र ने कहा- “डरो मत, चलो! बस अनुभवी है। नयी-नवेली बसों से ज्यादा विश्वसनीय है। हमें बेटों की तरह प्यार से गोद में लेकर चलेगी।”
    हम बैठ गए। जो छोड़ने आए थे, वे इस तरह देख रहे थे जैस अंतिम विदा दे रहे हैं। उनकी आँखें कह रही थीं- “आना-जाना तो लगा ही रहता है। आया है, सो जाएगा-राजा, रंक, फकीर। आदमी को कूच करने के लिए एक निमित्त चाहिए।”

    लेखक और उसके मित्रों ने जब बस को देखा तो उन्हें कैसा महसूस हुआ?
    • कि यह बस तो जल्दी पहुँचा देगी।
    • कि यह बस चलेगी भी या नहीं।
    • कि यह बस धीरे-धीरे चलेगी।
    • कि यह बस यात्रियों से ज्यादा ही भरी हुई है।

    Solution

    B.

    कि यह बस चलेगी भी या नहीं।
    Question 32
    CBSEENHN8000541

    नीचे लिखे गद्यांश को पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
    बस-कंपनी के एक हिस्सेदार भी उसी बस से जा रहे थे। हमने उनसे पूछा-“यह बस चलती भी है?” वह बोले-“चलती क्यों नहीं है जी। अभी चलेगी।” हमने कहा- “वही तो हम देखना चाहते हैं। अपने आप चलती है यह? हाँ जी, और कैसे चलेगी?”
    गज़ब हो गया। ऐसी बस अपने आप चलती है।
    हम आगा-पीछा करने लगे। डॉक्टर मित्र ने कहा- “डरो मत, चलो! बस अनुभवी है। नयी-नवेली बसों से ज्यादा विश्वसनीय है। हमें बेटों की तरह प्यार से गोद में लेकर चलेगी।”
    हम बैठ गए। जो छोड़ने आए थे, वे इस तरह देख रहे थे जैस अंतिम विदा दे रहे हैं। उनकी आँखें कह रही थीं- “आना-जाना तो लगा ही रहता है। आया है, सो जाएगा-राजा, रंक, फकीर। आदमी को कूच करने के लिए एक निमित्त चाहिए।”

    डॉक्टर मित्र ने उसके बारे में क्या कहा?
    • यह अनुभवी है हमें प्यार से अपनी गोद में बिठाएगी, कहीं धोखा नहीं देगी।
    • इस बस का तो इलाज करवाना चाहिए।
    • यह बस सवारियाँ लादने के काबिल नहीं।
    • यह बस गंतव्य तक नहीं पहुंच पाएगी।

    Solution

    A.

    यह अनुभवी है हमें प्यार से अपनी गोद में बिठाएगी, कहीं धोखा नहीं देगी।
    Question 33
    CBSEENHN8000542

    नीचे लिखे गद्यांश को पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
    बस-कंपनी के एक हिस्सेदार भी उसी बस से जा रहे थे। हमने उनसे पूछा-“यह बस चलती भी है?” वह बोले-“चलती क्यों नहीं है जी। अभी चलेगी।” हमने कहा- “वही तो हम देखना चाहते हैं। अपने आप चलती है यह? हाँ जी, और कैसे चलेगी?”
    गज़ब हो गया। ऐसी बस अपने आप चलती है।
    हम आगा-पीछा करने लगे। डॉक्टर मित्र ने कहा- “डरो मत, चलो! बस अनुभवी है। नयी-नवेली बसों से ज्यादा विश्वसनीय है। हमें बेटों की तरह प्यार से गोद में लेकर चलेगी।”
    हम बैठ गए। जो छोड़ने आए थे, वे इस तरह देख रहे थे जैस अंतिम विदा दे रहे हैं। उनकी आँखें कह रही थीं- “आना-जाना तो लगा ही रहता है। आया है, सो जाएगा-राजा, रंक, फकीर। आदमी को कूच करने के लिए एक निमित्त चाहिए।”

    बस पर चढ़ने वाले लोग लेखक व उसके मित्रों को कैसी विदाई दे रहे थे?
    • भावभीनी विदाई
    • अंतिम रूप में दी जाने वाली सहानुभूतिपूर्ण विदाई
    • आत्मिय भाव की विदाई
    • सजल आँखों से दी जाने वाली विदाई

    Solution

    B.

    अंतिम रूप में दी जाने वाली सहानुभूतिपूर्ण विदाई
    Question 34
    CBSEENHN8000543

    नीचे लिखे गद्यांश को पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
    बस-कंपनी के एक हिस्सेदार भी उसी बस से जा रहे थे। हमने उनसे पूछा-“यह बस चलती भी है?” वह बोले-“चलती क्यों नहीं है जी। अभी चलेगी।” हमने कहा- “वही तो हम देखना चाहते हैं। अपने आप चलती है यह? हाँ जी, और कैसे चलेगी?”
    गज़ब हो गया। ऐसी बस अपने आप चलती है।
    हम आगा-पीछा करने लगे। डॉक्टर मित्र ने कहा- “डरो मत, चलो! बस अनुभवी है। नयी-नवेली बसों से ज्यादा विश्वसनीय है। हमें बेटों की तरह प्यार से गोद में लेकर चलेगी।”
    हम बैठ गए। जो छोड़ने आए थे, वे इस तरह देख रहे थे जैस अंतिम विदा दे रहे हैं। उनकी आँखें कह रही थीं- “आना-जाना तो लगा ही रहता है। आया है, सो जाएगा-राजा, रंक, फकीर। आदमी को कूच करने के लिए एक निमित्त चाहिए।”

    ‘आया है सो जाएगा राजा, रक, फकीर’ पंक्ति का क्या आशय है?


    • राजा, रंक एवं फकीर एक ही श्रेणी के माने हैं।
    • राजा, रंक एवं फकीर सभी को समान रूप से प्रेम करना चाहिए।
    • राजा हो, भिखारी हो या साधु संत सभी को एक-न-एक दिन मृत्यु को प्राप्त होना है।
    • इनमें से कोई नहीं।

    Solution

    C.

    राजा हो, भिखारी हो या साधु संत सभी को एक-न-एक दिन मृत्यु को प्राप्त होना है।
    Question 35
    CBSEENHN8000544

    नीचे लिखे गद्यांश को पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
    बस-कंपनी के एक हिस्सेदार भी उसी बस से जा रहे थे। हमने उनसे पूछा-“यह बस चलती भी है?” वह बोले-“चलती क्यों नहीं है जी। अभी चलेगी।” हमने कहा- “वही तो हम देखना चाहते हैं। अपने आप चलती है यह? हाँ जी, और कैसे चलेगी?”
    गज़ब हो गया। ऐसी बस अपने आप चलती है।
    हम आगा-पीछा करने लगे। डॉक्टर मित्र ने कहा- “डरो मत, चलो! बस अनुभवी है। नयी-नवेली बसों से ज्यादा विश्वसनीय है। हमें बेटों की तरह प्यार से गोद में लेकर चलेगी।”
    हम बैठ गए। जो छोड़ने आए थे, वे इस तरह देख रहे थे जैस अंतिम विदा दे रहे हैं। उनकी आँखें कह रही थीं- “आना-जाना तो लगा ही रहता है। आया है, सो जाएगा-राजा, रंक, फकीर। आदमी को कूच करने के लिए एक निमित्त चाहिए।”

    ‘कूच करने के लिए एक निमित्त चाहिए’ ऐसा लेखक ने क्यों कहा?

    • आगे बढ़ने से पूर्व कुछ उद्देश्य होना चाहिए।
    • आगे बढ़ने से पहले सोचो।
    • आगे बढ्कर पीछे नहीं हटना चाहिए।
    • आगे बढ्कर हार के बारे में न सोचो।

    Solution

    A.

    आगे बढ़ने से पूर्व कुछ उद्देश्य होना चाहिए।
    Question 36
    CBSEENHN8000545

    नीचे लिखे गद्यांश को पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
    बस सचमुच चल पड़ी और हमें लगा कि यह गाँधीजी के असहयोग और सविनय अवज्ञा आदोलनों के वक्त अवश्य जवान रही होगी। उसे ट्रेनिंग मिल चुकी थी। हर हिस्सा दूसरे से असहयोग कर रहा था। पूरी बस सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौर से गुजर रही थी। सीट का बॉडी से असहयोग चल रहा था। कभी लगता सीट बॉडी को छोड्कर आगे निकल गई है। कभी लगता कि सीट को छोड़कर बॉडी आगे भागी जा रही है। आठ-दस मील चलने पर सारे भेदभाव मिट गए। यह समझ में नहीं आता था कि सीट पर हम बैठे हैं या सीट हम पर बैठी है।

    ऐसा लेखक ने क्यों कहा कि गाँधीजी के असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलनों के वक्त यह जवान रही होगी?
    • बस का साथ सभी लोग नहीं दे रहे थे।
    • जिस प्रकार असहयोग आंदोलन में लोग पहले, गाँधीजी का साथ नहीं दे रहे थे वैसे ही बस के सभी पुर्जे भी मिलकर नहीं चल रहे थे।
    • बस गाँधीजी के समय की थी।
    • बस पर अंकित चिन्ह स्वतंत्रता आंदोलन की कहानी कह रहे थे।

    Solution

    B.

    जिस प्रकार असहयोग आंदोलन में लोग पहले, गाँधीजी का साथ नहीं दे रहे थे वैसे ही बस के सभी पुर्जे भी मिलकर नहीं चल रहे थे।
    Question 37
    CBSEENHN8000546

    नीचे लिखे गद्यांश को पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
    बस सचमुच चल पड़ी और हमें लगा कि यह गाँधीजी के असहयोग और सविनय अवज्ञा आदोलनों के वक्त अवश्य जवान रही होगी। उसे ट्रेनिंग मिल चुकी थी। हर हिस्सा दूसरे से असहयोग कर रहा था। पूरी बस सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौर से गुजर रही थी। सीट का बॉडी से असहयोग चल रहा था। कभी लगता सीट बॉडी को छोड्कर आगे निकल गई है। कभी लगता कि सीट को छोड़कर बॉडी आगे भागी जा रही है। आठ-दस मील चलने पर सारे भेदभाव मिट गए। यह समझ में नहीं आता था कि सीट पर हम बैठे हैं या सीट हम पर बैठी है।

    हर हिस्सा दूसरे हिस्से से असहयोग क्यों कर रहा था?
    • क्योंकि बस बीचोबीच से टूट रही थी।
    • क्योंकि सभी हिस्से टूटे हुए थे।
    • क्योंकि बस का कोई हिस्सा दूसरे से मिलकर नहीं चल रहा था।
    • क्योंकि टूटी बस में लोग बैठ नहीं पा रहे थे।

    Solution

    C.

    क्योंकि बस का कोई हिस्सा दूसरे से मिलकर नहीं चल रहा था।
    Question 38
    CBSEENHN8000547

    नीचे लिखे गद्यांश को पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
    बस सचमुच चल पड़ी और हमें लगा कि यह गाँधीजी के असहयोग और सविनय अवज्ञा आदोलनों के वक्त अवश्य जवान रही होगी। उसे ट्रेनिंग मिल चुकी थी। हर हिस्सा दूसरे से असहयोग कर रहा था। पूरी बस सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौर से गुजर रही थी। सीट का बॉडी से असहयोग चल रहा था। कभी लगता सीट बॉडी को छोड्कर आगे निकल गई है। कभी लगता कि सीट को छोड़कर बॉडी आगे भागी जा रही है। आठ-दस मील चलने पर सारे भेदभाव मिट गए। यह समझ में नहीं आता था कि सीट पर हम बैठे हैं या सीट हम पर बैठी है।

    आठ- दस मील के बाद क्या हुआ?
    • बस सहज हो गई, बिल्कुल आराम से चलने लगी।
    • बस का टायर खराब हो गया।
    • बस धीमी गति से चलने लगी।
    • बस चलते-चलते बंद हो गई।

    Solution

    A.

    बस सहज हो गई, बिल्कुल आराम से चलने लगी।
    Question 39
    CBSEENHN8000548

    नीचे लिखे गद्यांश को पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
    बस सचमुच चल पड़ी और हमें लगा कि यह गाँधीजी के असहयोग और सविनय अवज्ञा आदोलनों के वक्त अवश्य जवान रही होगी। उसे ट्रेनिंग मिल चुकी थी। हर हिस्सा दूसरे से असहयोग कर रहा था। पूरी बस सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौर से गुजर रही थी। सीट का बॉडी से असहयोग चल रहा था। कभी लगता सीट बॉडी को छोड्कर आगे निकल गई है। कभी लगता कि सीट को छोड़कर बॉडी आगे भागी जा रही है। आठ-दस मील चलने पर सारे भेदभाव मिट गए। यह समझ में नहीं आता था कि सीट पर हम बैठे हैं या सीट हम पर बैठी है।

    बस की सीटों के बारे में लेखक ने क्या कहा?
    • बस की सीटें मजबूत थीं।
    • बस की सीटें सुंदर थीं।
    • बस की सीटें इतनी खराब थी कि बस चलने पर यह समझ पाना कठिन था कि वे सीटें पर बैठे है या सीटें उन पर।
    • इनमें से कोई नहीं।

    Solution

    C.

    बस की सीटें इतनी खराब थी कि बस चलने पर यह समझ पाना कठिन था कि वे सीटें पर बैठे है या सीटें उन पर।

    Sponsor Area

    Question 40
    CBSEENHN8000549

    नीचे लिखे गद्यांश को पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
    बस सचमुच चल पड़ी और हमें लगा कि यह गाँधीजी के असहयोग और सविनय अवज्ञा आदोलनों के वक्त अवश्य जवान रही होगी। उसे ट्रेनिंग मिल चुकी थी। हर हिस्सा दूसरे से असहयोग कर रहा था। पूरी बस सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौर से गुजर रही थी। सीट का बॉडी से असहयोग चल रहा था। कभी लगता सीट बॉडी को छोड्कर आगे निकल गई है। कभी लगता कि सीट को छोड़कर बॉडी आगे भागी जा रही है। आठ-दस मील चलने पर सारे भेदभाव मिट गए। यह समझ में नहीं आता था कि सीट पर हम बैठे हैं या सीट हम पर बैठी है।

    गद्याशं में ‘बस के जवान रहने’ से क्या तात्पर्य है?
    • बस का सही होना
    • बस का नई होना
    • बस का सही तरीके से चलना
    • दिए गए सभी

    Solution

    D.

    दिए गए सभी
    Question 41
    CBSEENHN8000550

    नीचे लिखे गद्यांश को पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
    बस की रफ्तार अब पंद्रह-बीस मील हो गई थी। मुझ उसके किसी हिस्से पर भरोसा नहीं था। ब्रेक फेल हो सकता है, स्टीयरिंग टूट सकता है। प्रकृति के दृश्य बहुत लुभावने थे। दोनों तरफ हरे- भरे पेड़ थे जिन पर पक्षी बैठ थे। मैं हर पेड़ को अपना दुश्मन समझ रहा था। जो भी पेड़ आता, डर लगता कि इससे बस टकराएगी। वह निकल जाता तो दूसरे पेड़ का इंतजार करता। झील दिखती तो सोचता कि इसमें बस गोता लगा जाएगी।

    बस किस रफ्तार से चल रही थी?
    • पंद्रह से बीस मील प्रति घंटा
    • पाँच से दस मील प्रति घंटा
    • दो से चार मील प्रति घंटा
    • आठ से दस मील प्रति घंटा

    Solution

    D.

    आठ से दस मील प्रति घंटा
    Question 42
    CBSEENHN8000551

    नीचे लिखे गद्यांश को पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
    बस की रफ्तार अब पंद्रह-बीस मील हो गई थी। मुझ उसके किसी हिस्से पर भरोसा नहीं था। ब्रेक फेल हो सकता है, स्टीयरिंग टूट सकता है। प्रकृति के दृश्य बहुत लुभावने थे। दोनों तरफ हरे- भरे पेड़ थे जिन पर पक्षी बैठ थे। मैं हर पेड़ को अपना दुश्मन समझ रहा था। जो भी पेड़ आता, डर लगता कि इससे बस टकराएगी। वह निकल जाता तो दूसरे पेड़ का इंतजार करता। झील दिखती तो सोचता कि इसमें बस गोता लगा जाएगी।

    लेखक को बस पर भरोसा क्यों नहीं रहा?
    • क्योंकि बस बीच-बीच में रुक रही थी?
    • क्योंकि उसने सोच लिया था कि कभी भी बस का ब्रेक फेल हो सकता है या स्टीरिंग टूट सकता है।
    • क्योंकि बस तेजी नहीं पकड़ रही थी।
    • क्योंकि ड्राइवर परेशान था।

    Solution

    B.

    क्योंकि उसने सोच लिया था कि कभी भी बस का ब्रेक फेल हो सकता है या स्टीरिंग टूट सकता है।
    Question 43
    CBSEENHN8000552

    नीचे लिखे गद्यांश को पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
    बस की रफ्तार अब पंद्रह-बीस मील हो गई थी। मुझ उसके किसी हिस्से पर भरोसा नहीं था। ब्रेक फेल हो सकता है, स्टीयरिंग टूट सकता है। प्रकृति के दृश्य बहुत लुभावने थे। दोनों तरफ हरे- भरे पेड़ थे जिन पर पक्षी बैठ थे। मैं हर पेड़ को अपना दुश्मन समझ रहा था। जो भी पेड़ आता, डर लगता कि इससे बस टकराएगी। वह निकल जाता तो दूसरे पेड़ का इंतजार करता। झील दिखती तो सोचता कि इसमें बस गोता लगा जाएगी।

    सड़क के दोनों और प्रकृति के कैसे दृश्य थे?
    • हरे-भरे पेड़ थे जिस पर पक्षी बैठ थे।
    • नदी बह रही थी।
    • झीलें ही झीलें थीं।
    • चारों ओर बादल छाए थे।

    Solution

    A.

    हरे-भरे पेड़ थे जिस पर पक्षी बैठ थे।
    Question 44
    CBSEENHN8000553

    नीचे लिखे गद्यांश को पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
    बस की रफ्तार अब पंद्रह-बीस मील हो गई थी। मुझ उसके किसी हिस्से पर भरोसा नहीं था। ब्रेक फेल हो सकता है, स्टीयरिंग टूट सकता है। प्रकृति के दृश्य बहुत लुभावने थे। दोनों तरफ हरे- भरे पेड़ थे जिन पर पक्षी बैठ थे। मैं हर पेड़ को अपना दुश्मन समझ रहा था। जो भी पेड़ आता, डर लगता कि इससे बस टकराएगी। वह निकल जाता तो दूसरे पेड़ का इंतजार करता। झील दिखती तो सोचता कि इसमें बस गोता लगा जाएगी।

    लेखक को हर पेड़ दुश्मन क्यों लग रहा था?
    • पेड़ बहुत अधिक थे।
    • उसे ऐसा लगता कि बस पेड़ से टकराएगी और हम मर जाएँगे।
    • रास्ता तंग था।
    • बस की ब्रेक फेल थे गई थी।

    Solution

    B.

    उसे ऐसा लगता कि बस पेड़ से टकराएगी और हम मर जाएँगे।
    Question 45
    CBSEENHN8000554

    नीचे लिखे गद्यांश को पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
    बस की रफ्तार अब पंद्रह-बीस मील हो गई थी। मुझ उसके किसी हिस्से पर भरोसा नहीं था। ब्रेक फेल हो सकता है, स्टीयरिंग टूट सकता है। प्रकृति के दृश्य बहुत लुभावने थे। दोनों तरफ हरे- भरे पेड़ थे जिन पर पक्षी बैठ थे। मैं हर पेड़ को अपना दुश्मन समझ रहा था। जो भी पेड़ आता, डर लगता कि इससे बस टकराएगी। वह निकल जाता तो दूसरे पेड़ का इंतजार करता। झील दिखती तो सोचता कि इसमें बस गोता लगा जाएगी।

    झील को देखते ही लेखक के मन में क्या ख्याल अाता था?
    • कि बस झील में डुबकी लगाएगी।
    • झील के पास बस खड़ी हो जाएगी।
    • झील का जल सड़क पर फैल जाएगा।
    • गर्मी अधिक होने के कारण लेखक झील में नहाना चाहता था।

    Solution

    A.

    कि बस झील में डुबकी लगाएगी।
    Question 48
    CBSEENHN8000557

    नीचे लिखे गद्यांश को पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
    क्षीण चांदनी में वृक्षों की छाया के नीचे वह बस बड़ी दयनीय लग रही थी। लगता जैसे कोई मग थककर बैठ गई हो। हमें ग्लानि हो रही थी कि बेचारी पर लदकर हम चले आ रहे हैं। अगर इसका प्राणांत हो गया तो इस बियाबान में हमें इसकी अंत्येष्टि करनी पड़ेगी।

    लेखक व उसके मित्र ग्लानि क्यों महसूस कर रहे थे?

    • उनका ड्राइवर से झगड़ा हो गया था।
    • उन्हें ऐसा लग रहा था कि बस एक वृद्धा है और हम उसमें बैठकर उसे सता रहे हैं।
    • उनका बस के हिस्सेदार से झगड़ा हो गया था।
    • उन्हें चालक ने बस से उतार दिया था।

    Solution

    B.

    उन्हें ऐसा लग रहा था कि बस एक वृद्धा है और हम उसमें बैठकर उसे सता रहे हैं।
    Question 49
    CBSEENHN8000558

    नीचे लिखे गद्यांश को पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
    क्षीण चांदनी में वृक्षों की छाया के नीचे वह बस बड़ी दयनीय लग रही थी। लगता जैसे कोई मग थककर बैठ गई हो। हमें ग्लानि हो रही थी कि बेचारी पर लदकर हम चले आ रहे हैं। अगर इसका प्राणांत हो गया तो इस बियाबान में हमें इसकी अंत्येष्टि करनी पड़ेगी।

    लेखक के मन में बस के बारे में क्या विचार आया?

    • यात्रियों को किसी दूसरी बस में बिठा देना चाहिए जिससे बस परेशान न हो।
    • बस को ठीक करने के लिए किसी अच्छे कारीगर को बुलाना चाहिए।
    • उसे लगा कि यदि इस वृद्धा का देहांत हो गया तो क्रिया-कर्म इसी जंगल में करना पड़ेगा अर्थात् यदि यहाँ बस ठस्स हो गई तो इसके पुर्जे भी हाथ न आएँगे।
    • इनमें से कोई नहीं।

    Solution

    C.

    उसे लगा कि यदि इस वृद्धा का देहांत हो गया तो क्रिया-कर्म इसी जंगल में करना पड़ेगा अर्थात् यदि यहाँ बस ठस्स हो गई तो इसके पुर्जे भी हाथ न आएँगे।
    Question 51
    CBSEENHN8000560

    नीचे लिखे गद्यांश को पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
    ऐेक पुलिया के ऊपर पहुँचे ही थे कि एक टायर फिस्स करके बैठ गया। वह बहुत जोर से हिलकर थम गई। अगर स्पीड में होती तो उछलकर नाले में गिर जाती। मैंने उस कंपनी के हिस्सेदार की तरफ पहली बार श्रद्धाभाव से देखा। वह टायरों की हालत जानते हैं फिर भी जान हथेली पर लेकर इसी बस से सफर कर रहे हैं। उत्सर्ग की ऐसी भावना दुर्लभ है। सोचा, इस आदमी के साहस और बलिदान भावना का सही उपयोग नहीं हो रहा है। इसे तो किसी क्रांतिकारी आंदोलन का नेता होना चाहिए। अगर बस नाले में गिर पड़ती और हम सब मर जाते तो देवता बाँहे पसारे उसका इंतजार करते। कहते- “वह महान आदमी आ रहा है जिसने एक टायर के लिए प्राण दे दिए। मर गया, पर टायर नहीं बदला।”

    पुलिया पर पहुँचते ही क्या हुआ?
    • बस ठस्स हो गई
    • बस बंद हो गई
    • बस पलट गई
    • बस का टायर पंचर हो गया

    Solution

    D.

    बस का टायर पंचर हो गया
    Question 52
    CBSEENHN8000561

    नीचे लिखे गद्यांश को पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
    एक पुलिया के ऊपर पहुँचे ही थे कि एक टायर फिस्स करके बैठ गया। वह बहुत जोर से हिलकर थम गई। अगर स्पीड में होती तो उछलकर नाले में गिर जाती। मैंने उस कंपनी के हिस्सेदार की तरफ पहली बार श्रद्धाभाव से देखा। वह टायरों की हालत जानते हैं फिर भी जान हथेली पर लेकर इसी बस से सफर कर रहे हैं। उत्सर्ग की ऐसी भावना दुर्लभ है। सोचा, इस आदमी के साहस और बलिदान भावना का सही उपयोग नहीं हो रहा है। इसे तो किसी क्रांतिकारी आंदोलन का नेता होना चाहिए। अगर बस नाले में गिर पड़ती और हम सब मर जाते तो देवता बाँहे पसारे उसका इंतजार करते। कहते- “वह महान आदमी आ रहा है जिसने एक टायर के लिए प्राण दे दिए। मर गया, पर टायर नहीं बदला।”

    लेखक ने कंपनी के हिस्सेदार की ओर श्रद्धाभाव से क्यों देखा?
    • वह जानता था कि बस के पहिए खराब हैं।
    • उसे अपना लोभ-लालच सता रहा था।
    • उसे मालूम था कि बस की ऐसी अवस्था से लोगों की जान जा सकती है।
    • उपर्युक्त सभी।

    Solution

    D.

    उपर्युक्त सभी।
    Question 53
    CBSEENHN8000562

    नीचे लिखे गद्यांश को पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
    एक पुलिया के ऊपर पहुँचे ही थे कि एक टायर फिस्स करके बैठ गया। वह बहुत जोर से हिलकर थम गई। अगर स्पीड में होती तो उछलकर नाले में गिर जाती। मैंने उस कंपनी के हिस्सेदार की तरफ पहली बार श्रद्धाभाव से देखा। वह टायरों की हालत जानते हैं फिर भी जान हथेली पर लेकर इसी बस से सफर कर रहे हैं। उत्सर्ग की ऐसी भावना दुर्लभ है। सोचा, इस आदमी के साहस और बलिदान भावना का सही उपयोग नहीं हो रहा है। इसे तो किसी क्रांतिकारी आंदोलन का नेता होना चाहिए। अगर बस नाले में गिर पड़ती और हम सब मर जाते तो देवता बाँहे पसारे उसका इंतजार करते। कहते- “वह महान आदमी आ रहा है जिसने एक टायर के लिए प्राण दे दिए। मर गया, पर टायर नहीं बदला।”

    ‘उत्सर्ग की भावना दुर्लभ है’ इन शब्दों का क्या अर्थ है?


    • निरंतर आगे बढ़ने की चाह
    • मुश्किल से उद्देश्य पाना
    • कंपनी का बस के प्रति मोह न त्यागना और उस निरंतर चलाना
    • लोगों के प्रति सचेत न होना।

    Solution

    C.

    कंपनी का बस के प्रति मोह न त्यागना और उस निरंतर चलाना
    Question 54
    CBSEENHN8000563

    नीचे लिखे गद्यांश को पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
    एक पुलिया के ऊपर पहुँचे ही थे कि एक टायर फिस्स करके बैठ गया। वह बहुत जोर से हिलकर थम गई। अगर स्पीड में होती तो उछलकर नाले में गिर जाती। मैंने उस कंपनी के हिस्सेदार की तरफ पहली बार श्रद्धाभाव से देखा। वह टायरों की हालत जानते हैं फिर भी जान हथेली पर लेकर इसी बस से सफर कर रहे हैं। उत्सर्ग की ऐसी भावना दुर्लभ है। सोचा, इस आदमी के साहस और बलिदान भावना का सही उपयोग नहीं हो रहा है। इसे तो किसी क्रांतिकारी आंदोलन का नेता होना चाहिए। अगर बस नाले में गिर पड़ती और हम सब मर जाते तो देवता बाँहे पसारे उसका इंतजार करते। कहते- “वह महान आदमी आ रहा है जिसने एक टायर के लिए प्राण दे दिए। मर गया, पर टायर नहीं बदला।”

    कंपनी के हिस्सेदार के बारे में लेखक के मन में क्या भाव उठ रहे थे?

    • यह आदमी महान है।
    • इसमें इस जर्जर बस को चलवाने का साहस है।
    • यह अपना और लोगों का बलिदान देने को भी तैयार है।
    • उपर्युक्त सभी।

    Solution

    D.

    उपर्युक्त सभी।
    Question 55
    CBSEENHN8000564

    नीचे लिखे गद्यांश को पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
    एक पुलिया के ऊपर पहुँचे ही थे कि एक टायर फिस्स करके बैठ गया। वह बहुत जोर से हिलकर थम गई। अगर स्पीड में होती तो उछलकर नाले में गिर जाती। मैंने उस कंपनी के हिस्सेदार की तरफ पहली बार श्रद्धाभाव से देखा। वह टायरों की हालत जानते हैं फिर भी जान हथेली पर लेकर इसी बस से सफर कर रहे हैं। उत्सर्ग की ऐसी भावना दुर्लभ है। सोचा, इस आदमी के साहस और बलिदान भावना का सही उपयोग नहीं हो रहा है। इसे तो किसी क्रांतिकारी आंदोलन का नेता होना चाहिए। अगर बस नाले में गिर पड़ती और हम सब मर जाते तो देवता बाँहे पसारे उसका इंतजार करते। कहते- “वह महान आदमी आ रहा है जिसने एक टायर के लिए प्राण दे दिए। मर गया, पर टायर नहीं बदला।”

    बस के हिस्सेदार को क्रांतिकारी का नाम लेखक क्यों देना चाहता था?
    • उसे बस में बैठे लोगों की चिंता न थी।
    • जिस प्रकार क्रांतिकारी एक उद्देश्य से बढ़ते हैं वैसे ही बस का हिस्सेदार भी किसी की परवाह किए बिना केवल बस को चलाने व लाभ कमाने के उद्देश्य से प्रेरित था।
    • वह अपने उद्देश्य के प्रति कटिबद्ध था।
    • वह अपनी बुद्धि से सही-गलत सोच पाने में भी असमर्थ था।

    Solution

    B.

    जिस प्रकार क्रांतिकारी एक उद्देश्य से बढ़ते हैं वैसे ही बस का हिस्सेदार भी किसी की परवाह किए बिना केवल बस को चलाने व लाभ कमाने के उद्देश्य से प्रेरित था।

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