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NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Bhag Ii Chapter 18 बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर

बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर Here is the CBSE Hindi Chapter 18 for Class 12 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 12 Hindi बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर Chapter 18 NCERT Solutions for Class 12 Hindi बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर Chapter 18 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2025-26. You can save these solutions to your computer or use the Class 12 Hindi.

Question 1
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डॉ. आंबेडकर का जीवन-परिचय देते हुए उनके कार्यों का उल्लेख कीजिए तथा रचनाओं का नामोल्लेख कीजिए।

Solution

डॉ. भीमराव आंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को महू (मध्य प्रदेश) में हुआ था। प्राथमिक शिक्षा के बाद बड़ौदा नरेश के प्रोत्साहन पर वे उच्चतर शिक्षा के लिए न्यूयार्क (अमेरिका) फिर वहाँ से लंदन गए। पूरा वैदिक वाङ्मय अनुवाद के जरिये पढ़ा और ऐतिहासिक-सामाजिक क्षेत्र में अनेक मौलिक संस्थापनाएँ प्रस्तुत कीं। सब मिलाकर वे इतिहास-मीमांसक, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, शिक्षाविद् तथा धर्म-दर्शन के व्याख्याता बन कर उभरे। स्वदेश में कुछ समय उन्होंने वकालत भी की। समाज और राजनीति में बेहद सक्रिय भूमिका निभाते हुए उन्होंने अछूतों, स्त्रियों और मजदूरों को मानवीय अधिकार व सम्मान दिलाने के लिए अथक संघर्ष किया।

भारतीय संविधान के निर्माताओं में से एक डॉ. भीमराव आंबेडकर आधुनिक भारतीय चिंतन में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान के अधिकारी हैं। उन्होंने जीवन भर दलितों की मुक्ति एवं सामाजिक समता के लिए संघर्ष किया। उनका पूरा लेखन इसी संघर्ष और सरोकार से जुड़ा हुआ है। स्वयं दलित जाति में जन्मे डॉ. आंबेडकर को बचपन से ही जाति-आधारित उत्पीड़न-शोषण एवं अपमान से गुजरना पड़ा था। इसीलिए विद्यालय के दिनों मे जब एक अध्यापक ने उनसे पूछा कि “तुम पढ़-लिख कर क्या बनोगे?” तो बालक भीमराव ने जवाब दिया था मैं पढ़-लिखकर वकील बनूँगा, अछूतों के लिए नया कानून बनाऊँगा और छुआछूत को खत्म करूँगा। डॉ. आंबेडकर ने अपना पूरा जीवन इसी संकल्प के पीछे झोंक दिया। इसके लिए उन्होंने जमकर पढ़ाई की। व्यापक अध्ययन एवं चिंतन-मनन के बल पर उन्होंने हिंदुस्तान के स्वाधीनता संग्राम में एक नई अंतर्वस्तु भरने का काम किया। वह यह था कि दासता का सबसे व्यापक व गहन रूप सामाजिक दासता है और उस उन्मूलन के बिना-कोई भी स्वतंत्रता कुछ लोगों का विशेषाधिकार रहेगी इसीलिए अधूरी होगी।

उनके चिंतन व रचनात्मकता के मुख्यत: तीन प्रेरक रहे-बुद्ध, कबीर और (विशेषकर) ज्योतिबा फुले। जातिवादी उत्पीड़न के कारण हिंदू समाज से मोहभंग होने के बाद वे बुद्ध के समतावादी दर्शन में आश्वस्त हुए और 14 अक्टूबर, 1956 ई. को 5 लाख अनुयायियों के साथ बौद्ध मतानुयायी बन गए।

भारत के संविधान-निर्माण में उनकी महती भूमिका और एकनिष्ठ समर्पण के कारण ही हम आज उन्हें भारतीय संविधान का निर्माता कहकर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। उनकी समूची बहुमुखी विद्वत्ता एकांत ज्ञान-साधना की जगह मानव-मुक्ति व जन-कल्याण के लिए थी-यह बात वे अपने चिंतन और क्रिया के क्षणों से बराबर साबित करते रहे। अपने इस प्रयोजन में वे अधिकतर सफल भी हुए। उनका निधन 6 दिसम्बर, 1956 में हुआ।

प्रमुख रचनाएँ: दॅ कास्ट्स इन इण्डिया, देयर मेकेनिज्म, जेनेसिस एण्ड डेवलपमेंट (1917 प्रथम प्रकाशित कृति); दॅ अनटचेबल्स, हू आर दे? (1948); हू आर दॅ शूद्राज (1946); बुद्धा एंड हिच ध मा (1957); थाट्स ऑन लिंग्युस्टिक स्टेट्स (1955), दॅ प्रोब्लम ऑफ द रूपी (1923); द एबोलुशन ऑफ प्रोविंशियल फायनांस इन ब्रिटिश इंडिया (पी. एच. डी. की थीसिस 1916), द राइज एण्ड फॉल ऑफ द हिंदू वीमैन (1965); एनीहिलेशन ऑफ कास्ट (1936): लेबर एंड पार्लियामेंट्री डैमोक्रेसी (1943), बुद्धिज्म एण्ड कम्यूनिज्म (1956) (पुस्तकें व भाषण); मूक नायक, बहिष्कृत भारत, जनता (पत्रिका-संपादन)।

हिंदी में उनका संपूर्ण वाङ्मय भारत सरकार के कल्याण मंत्रालय से बाबा साहब आंबेडकर संपू र्ण वाङमय नाम से 21 खंडों में प्रकाशित हो चुका है।

Question 2
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यह विडंबना की ही बात है कि इस युग में भी ‘जातिवाद’ के पोषकों की कमी नहीं है। इसके पोषक कई आधारों पर इसका समर्थन करते हैं। समर्थन का एक आधार यह कहा जाता है कि आधुनिक सभ्य समाज ‘कार्य-कुशलता’ के लिए श्रम विभाजन को आवश्यक मानता है, और चूँकि जाति प्रथा भी श्रम विभाजन का ही दूसरा रूप है इसलिए इसमें कोई बुराई नहीं है। इस तर्क के संबंध में पहली बात तो यही आपत्तिजनक है, कि जाति प्रथा श्रम विभाजन के साथ-साथ श्रमिक-विभाजन का भी रूप लिए हुए है। श्रम विभाजन, निश्चय ही सभ्य समाज की आवश्यकता है, परंतु किसी भी सभ्य समाज में श्रम विभाजन की व्यवस्था श्रमिकों का विभिन्न वर्गों में अस्वाभाविक विभाजन नहीं करती। भारत की जाति प्रथा की एक और विशेषता यह है कि यह श्रमिकों का अस्वाभाविक विभाजन ही नहीं करती, बल्कि विभाजित विभिन्न वर्गों को एक-दूसरे की अपेक्षा ऊँच-नीच भी करार देती है, जो कि विश्व के किसी भी समाज में नहीं पाया जाता।

1) जातिवाद के पोषकों के समर्थन का आधार क्या है?

2) इस तर्क में क्या बात आपत्तिजनक है?

3) भारत की जाति-प्रथा क्या काम करती है?

4) कथा आप लेखक के मत से सहमत हैं? क्यों?

Average
Question 3
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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये-
जाति प्रथा पेशे का दोषपूर्ण पूर्वनिर्धारण ही नहीं करती बल्कि मनुष्य को जीवन-भर के लिए एक पेशे में बाँध भी देती है। भले ही पेशा अनुपयुक्त या अपर्याप्त होने के कारण वह भूखों मर जाए। आधुनिक युग में यह स्थिति प्राय: आतंकी है, क्योंकि उद्योग-धंधों की प्रक्रिया व टेक्निक में निरन्तर विकास और कभी-कभी अकस्मात् परिवर्तन हो जाता है, जिसके कारण मनुष्य को अपना पेशा बदलने की आवश्यकता पड़ सकती है और यदि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी मनुष्य को अपना पेशा बदलने की स्वतन्त्रता न हो तो इसके लिए भूखों मरने के अलावा क्या चारा रह जाता है? हिंदू धर्म की जाति प्रथा किसी भी व्यक्ति को ऐसा पेशा चुनने की अनुमति नहीं देती है, जो उसका पैतृक पेशा न हो, भले ही वह उसमें पारंगत हो। इस प्रकार पेशा परिवर्तन की अनुमति न देकर जाति प्रथा भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख व प्रत्यक्ष कारण बनी हुई है।

1. जाति प्रथा पेशे के बारे में क्या गलत काम करती है?
2. आधुनिक युग में यह स्थिति आतंकी क्यों है?
3. हिंदू धर्म की जाति प्रथा व्यक्ति को क्या अधिकार नहीं देती?
4. भारत में जाति प्रथा बेरोजगारी और भुखमरी का कारण क्यों बनी हुई है?



Easy
Question 4
CBSEENHN12026689

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये- 
श्रम विभाजन की दृष्टि से भी जाति प्रथा गंभीर दोषों से युक्त है। जाति प्रथा का श्रम विभाजन मनुष्य की स्वेच्छा पर निर्भर नहीं रहता। मनुष्य की व्यक्तिगत भावना तथा व्यक्तिगत रुचि का इसमें कोई स्थान अथवा महत्त्व नहीं रहता। ‘पूर्व लेख’ ही इसका आधार है। इस आधार पर हमें यह स्वीकार करना पड़ेगा कि आज के उद्योगों में गरीबी और उत्पीड़न इतनी बड़ी समस्या नहीं जितनी यह कि बहुत से लोग ‘निर्धारित’ कार्य को ‘अरुचि’ के साथ केवल विवशतावश करते हैं। ऐसी स्थिति स्वभावत: मनुष्य को दुर्भावना से ग्रस्त रहकर टालू काम करने व कम काम करने के लिए प्रेरित करती है। भारत में ऐसे अनेक व्यवसाय या उद्योग हैं जिन्हें ‘हिंदू लोग’ घृणित मानता है और इस कारण इनमें लगे हुए लोगों में अपने काम के प्रति अरुचि व विरक्ति बनी रहती है क्योंकि इन व्यवसायों को करने के कारण ही हिन्दू समाज उन्हें भी घृणित और त्याज्य समझता है, अत: प्रत्येक व्यक्ति ऐसे व्यवसायों से बचना व उनसे भागना चाहता है। ऐसी स्थिति में जहाँ काम करने वालों का न दिल लगता हो न दिमाग, कोई कुशलता कैसे प्राप्त की जा सकती है। अत: यह निर्विवाद रूप से सिद्ध हो जाता है कि आर्थिक पहलू से भी जाति प्रथा हानिकारक प्रथा है। क्योंकि यह मनुष्य की स्वाभाविक प्रेरणा, रुचि व आत्म-शक्ति को दबा कर उन्हें अस्वाभाविक नियमों में जकड़ा कर निष्क्रिय बना देती है।

1. जाति प्रथा का दोष क्या है?
2. आज की बड़ी समस्या क्या नहीं है और क्या है?
3. व्यक्ति किस प्रकार के व्यवसायों से बचना व भागना चाहता है?
4. क्या बात निर्विवाद रूप से सिद्ध है?


Easy
Question 5
CBSEENHN12026690

जाति प्रथा के पोषक, जीवन, शारीरिक-सुरक्षा तथा संपत्ति के अधिकार की स्वतंत्रता को तो स्वीकार कर लेंगे, परंतु मनुष्य के लक्षण एवं प्रभावशाली प्रयोग की स्वतंत्रता देने के लिए जल्दी तैयार नहीं होंगे, क्योंकि इस प्रकार की स्वतंत्रता का अर्थ होगा अपना व्यवसाय चुनने की स्वतंत्रता किसी को नहीं है, तो उसका अर्थ उसे ‘दासता’ में जकड़कर रखना होगा, क्योंकि ‘दासता’ केवल कानूनी पराधीनता को ही नहीं कहा जा सकता। ‘दासता’ में वह स्थिति भी सम्मिलित है जिसमें कुछ व्यक्तियों को दूसरे लोगों के द्वारा निर्धारित व्यवहार एवं कर्त्तव्यों का पालन करने के लिए विवश होना पड़ता है। यह स्थिति कानूनी पराधीनता न होने पर भी पाई जा सकती है। उदाहरणार्थ जाति-प्रथा की तरह ऐसे वर्ग होना संभव है, जहाँ कुछ लोगों को अपनी इच्छा के विरुद्ध पेशे अपनाने पड़ते हैं।

Average

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