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विजयनगर की जल-आवश्यकताओं को किस प्रकार पूरा किया जाता था?
विजयनगर की जल-आवश्यकताओं को मुख्य रूप में तुंगभद्रा नदी से निकलने वाली धाराओं पर बाँध बनाकर पूरा किया जाता था। बाँधों से विभिन्न आकार के हौज़ों का निर्माण किया जाता था। इस हौज़ के पानी से न केवल आस-पास के खेतों को सींचा जा सकता था बल्कि इसे एक नहर के माध्यम से राजधानी तक भी ले जाया जाता था। कमलपुरम् जलाशय नामक हौज़ सबसे महत्त्वपूर्ण हौज़ था। तत्कालीन समय के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण जल संबंधी संरचनाओं में से एक, हिरिया नहर के भग्नावशेषों को आज भी देखा जा सकता है। इस नहर में तुंगभद्रा पर बने बाँध से पानी लाया जाता था और इस धार्मिक केंद्र से शहरी केंद्र को अलग करने वाली घाटी को सिंचित करने में प्रयोग किया जाता था। इसके अलावा झील, कुएँ, बरसत के पानी वाले जलाशय तथा मंदिरों के जलाशय सामान्य नगरवासियों के लिए पानी की आवश्यकताओं को पूरा करते थे।
शहर के किलेबंद क्षेत्र में कृषि क्षेत्र को रखने के आपके विचार में क्या फ़ायदे और नुकसान थे?
फ़ायदे अथवा लाभ:
नुकसान तथा हानियाँ:
आपके विचार में महानवमी डिब्बा से संबद्ध अनुष्ठानों का क्या महत्त्व था?
चित्र विरुपाक्ष मन्दिर के एक अन्य स्तंभ का रेखाचित्र है। क्या आप कोई पुष्प-विषयक रूपांकन देखते हैं? किन जानवरों को दिखाया गया है? आपके विचार में उन्हें क्यों चित्रित किया गया है? मानव आकृतियों का वर्णन कीजिए।
चित्र: विरुपाक्ष मंदिर का स्तंभ
विरुपाक्ष मन्दिर के इस स्तम्भ को ध्यानपूर्वक देखने से पता लगता है कि इस स्तम्भ में विभिन्न प्रकार के फूलदार पौधों तथा पशु-पक्षियों का चित्रण किया गया है। इसमें मोर, घोड़ा बतख जैसे पक्षियों और पशुओं की आकृतियाँ स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं। इन्हें संभवत: प्रवेश द्वार को आकर्षक बनाने तथा लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए चित्रित किया गया हैं। इसके अतिरिक्त विभिन्न पशु-पक्षी, देवी-देवताओं के साथ वाहन के रूप में भी जुड़े हुए थे। इसलिए उन्हें भी पूजा का पात्र माना जाता था।
मानव आकृतियों में देवी-देवता तथा श्रद्धालु दोनों ही शालिम किए गए हैं। एक देवता को सिर पर घंटी, ताज तथा गले में मालाएँ पहने दिखाया गया हैं। इन्होंने अपने हाथ में गदा धारण की हुई हैं। ऐसा प्रतीत होता हैं की वह दुष्टों के संहारक हैं।एक अन्य चित्रण में एक श्रृद्धालु को शिवलिंग के सम्मुख विशेष नृत्य करते हुए दिखाया गया हैं। उसकी पूजा की विधि विचित्र हैं। यह किसी भी रूप में मान्य नहीं है।
''शाही केंद्र'' शब्द शहर के जिस भाग के लिए प्रयोग किए गए हैं क्या वे उस भाग का सही वर्णन करते हैं।
कमल महल और हाथियों के अस्तबल जैसे भवनों का स्थापत्य हमें उनके बनवाने वाले शासकों के विषय में क्या बताता है?
अनेक पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य स्थित विजयनगर एक विशाल शहर था। इसमें अनेक भव्य महल, सुन्दर आवासस्थान, उपवन और झीलें थीं जिनके कारण नगर देखने में अत्यधिक आकर्षक एवं मनमोहक लगता था। बस्ती के दक्षिण-पश्चिमी भाग में शाही केन्द्र स्थित था जिसमें अनेक महत्त्वपूर्ण भवनों को बनाया गया था। लोटस महल अथवा कमल महल और हाथियों का अस्तबल इसी प्रकार की दो महत्त्वपूर्ण संरचनाएँ थीं। इन दोनों भवनों का स्थापत्य अलग-अलग तरह का हैं। इन दोनों संरचनाओं से हमें उनके निर्माता शासकों की अभिरुचियों एवं नीतियों के विषय में पर्याप्त जानकारी मिलती है।
कमल महल: शाही केन्द्र के भव्य महलों में सर्वाधिक सुन्दर कमल महल था। यह नामकरण इस महल की सुंदरता एवं भव्यता से प्रभावित होकर अंग्रेज़ यात्रियों द्वारा किया गया था। स्थानीय रूप से इस महल को चित्तरंजनी-महल के नाम से जाना जाता है। हालांकि यह नाम निश्चित रूप से रोमांचक है, लेकिन इतिहासकार इस बारे में निश्चित नहीं हैं कि यह भवन किस कार्य के लिए बना था। इसकी स्थिति के विभिन्न पक्षों को देखकर पता चलता हैं कि शासक इसके माध्यम से अपनी समृद्धि तथा राज्य के वास्तुविदों के कौशल को दुनिया के समक्ष रखना चाहता थे। ऐसा अनुमान लगाया जाता हैं कि शासक यहाँ अपने सलाहकारों से भेंट किया करता था। विभिन्न राजदूतों का स्वागतकक्ष भी यही था।
हाथियों के अस्तबल: हाथियों का विशाल फीलखाना (हाथियों का अस्तबल अथवा रहने का स्थान) कमल महल के समीप ही स्थित था। फीलखाना की विशालता से स्पष्ट होता है कि विजय नगर के शासक अपनी सेना में हाथियों को अत्यधिक महत्त्व देते थे। उनकी विशाल एवं सुसंगठित सेना में हाथियों की पर्याप्त संख्या थी। फीलखाना की स्थापत्य कला शैली पर इस्लामी स्थापत्य कला शैली का स्पष्ट प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। इसके निर्माण में भारतीय इस्लामी स्थापत्य कला शैली का अनुसरण किया गया है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि विजय नगर के शासक धार्मिक दृष्टि से उदार एवं सहनशील थे।
अध्याय के विभिन्न विवरणों से आप विजयनगर के सामान्य लोगों के जीवन की क्या छवि पाते हैं?
अध्याय के विभिन्न विवरणों से हमे विजयनगर के सामान्य लोगों के जीवन में यह जानकारी प्राप्त होती हैं:
इसके अतिरिक्त बाज़ार में प्रत्येक चीज़ की उपलब्धता बड़े-बड़े कार्यकर्मों के लिए भवनों का निर्माण, उत्सवों में जनता की भागीदारी, इस प्रकार के विवरण विजयनगर के जनसामान्य के जीवन के सम्बन्ध में पर्याप्त जानकारी प्रदान करते हैं।
पिछली दो शताब्दियों में हम्पी के भवनावशेषों के अध्ययन में कौन-सी पद्धतियों का प्रयोग किया गया है? आपके अनुसार यह पद्धतियाँ विरुपाक्ष मन्दिर के पुरोहितों द्वारा प्रदान की गई जानकारी का किस प्रकार पूरक रहीं?
हम्पी के भग्नावशेषों के अध्ययन में पिछली दो शताब्दियों में अनेक पद्धतियों का प्रयोग किया गया है जिनका उल्लेख निम्नलिखत हैं:
नि:संदेह ये पद्धतियाँ विरुपाक्ष मन्दिर के पुरोहितों द्वारा प्रदत्त सूचनाओं की पूरक थीं। उल्लेखनीय है कि मैकेन्जी द्वारा प्राप्त प्रारंभिक जानकारियाँ विरुपाक्ष मन्दिर और पम्पा देवी के मन्दिर के पुरोहितों की स्मृतियों पर आधारित थीं।
स्थापत्य की कौन-कौन-सी परंपराओं ने विजयनगर के वास्तुविदों को प्रेरित किया? उन्होंने इन परंपराओं में किस प्रकार बदलाव किए?
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