अध्याय के विभिन्न विवरणों से आप विजयनगर के सामान्य लोगों के जीवन की क्या छवि पाते हैं?
अध्याय के विभिन्न विवरणों से हमे विजयनगर के सामान्य लोगों के जीवन में यह जानकारी प्राप्त होती हैं:
- समाज में दास प्रथा का प्रचलन था। दस-दासियों का क्रय-विक्रय होता था। सामान्य लोगों के आवासों, जो अब अस्तित्व में नहीं है, का 16 वीं शताब्दी का पुर्तगाली यात्री बाइबोसा इस प्रकार वर्णन करता है: 'लोगों के अन्य आवास छप्पर के हैं, पर फिर भी सुदृढ़ है और व्यवसाय के आधार पर कई खुले स्थानों वाली लंबी गलियों में व्यवस्थित है।
- विजयनगर में विभिन्न सम्प्रदायों और विभिन्न समुदायों के लोग रहते थे। विजयनगर के लगभग सभी शासकवर्ग धर्म-सहिष्णु थे। उन्होंने बिना किसी भेद-भाव के सभी मंदिरों को अनुदान प्रदान किए। बारबोसा ने कृष्णदेव राय के साम्राज्य में प्रचलित न्याय और समानता के व्यवहार की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि राजा इतनी आजादी देता है कि कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छानुसार आ-जा सकता है और अपने धर्म के अनुसार जीवनव्यतीत कर सकता है।
- क्षेत्र-सर्वेक्षण से पता चलता है कि इस पूरे क्षेत्र में बहुत-से पूजा-स्थल और छोटे मंदिर थे जो विविध संप्रदायों से सम्बन्ध रखते थे। ये सम्भवत: विभिन्न समुदायों द्वारा संरक्षित थे। सर्वेक्षण से यह भी संकेत मिलता है कि कुएँ, बरसात के पानी वाले जलाशय तथा मंदिरों के जलाशय सम्भवत: सामान्य नगर-निवासियों के लिए जल का मुख्य स्रोत है।
- शाही क्षेत्र में 60 से अधिक मंदिर तथा पूरे साम्राज्य में 1000 से अधिक मंदिरों का होना इस बात कि पुष्टि करता है कि जान सामान्य की धर्म में रूचि थी। शासक उनकी भावनाओं का ध्यान रखते हुए शासन करता था। वह यह भी दिखाने का प्रयास करता था कि वह किसी एक वर्ग-विशेष का शासक नहीं है।
- विजयनगर के नायकों के वर्णन में यह बात भी सामने आती है कि वह नायक उसी क्षेत्र में सफल होता था जहाँ उसे स्थानीय सैनिकों व किसानों का समर्थन प्राप्त होता था। अत: इस बात से पता चलता है कि साम्राज्य में उनका भी महत्व था।
इसके अतिरिक्त बाज़ार में प्रत्येक चीज़ की उपलब्धता बड़े-बड़े कार्यकर्मों के लिए भवनों का निर्माण, उत्सवों में जनता की भागीदारी, इस प्रकार के विवरण विजयनगर के जनसामान्य के जीवन के सम्बन्ध में पर्याप्त जानकारी प्रदान करते हैं।