भारत लोग और अर्थव्यवस्था Chapter 5 भू संसाधन तथा कृषि
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    NCERT Solution For Class 12 ������������������ भारत लोग और अर्थव्यवस्था

    भू संसाधन तथा कृषि Here is the CBSE ������������������ Chapter 5 for Class 12 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 12 ������������������ भू संसाधन तथा कृषि Chapter 5 NCERT Solutions for Class 12 ������������������ भू संसाधन तथा कृषि Chapter 5 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 12 ������������������.

    Question 6
    CBSEHHIGEH12025439

    निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें:

    बंजर भूमि तथा कृषि योग्य व्यर्थ भूमि में अंतर स्पष्ट करें।

    Solution

    बंजर भूमि: वह भूमि जो प्रचलित प्रौद्योगिकी की मदद से कृषि योग्य नहीं बनाई जा सकती, जैसे- बंजर पहाड़ी भ-भूभाग, मरुस्थल व खड्ड आदि।

    कृषि योग्य व्यर्थ भूमि: वह भूमि जो पिछले पाँच वर्षो तक या अधिक समय तक परती या कृषि-रहित है। भूमि उद्धार तकनीक द्वारा इसे सुधार कर कृषि योग्य बनाया जा सकता है।

    Question 7
    CBSEHHIGEH12025440

    निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें:

    निवल बोया गया क्षेत्र तथा सकल बोया गया क्षेत्र में अंतर बताएँ।

    Solution

    निवल बोया क्षेत्र: वह भूमि जिस पर फसलें उगाई व काटी जाती हैं, वह निवल बोया गया क्षेत्र कहलाता है।
    सकल बोया गया क्षेत्र: इसमें बोया गया शुद्ध क्षेत्र तथा शुद्ध क्षेत्र में जोड़ा गया वह क्षेत्र जिसमें किसी कृषि वर्ष अवधि में एक से अधिक बार फसलें उगाई जाती हैं, दोनों शामिल होते हैं।

    Question 8
    CBSEHHIGEH12025441

    निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें:

    भारत जैसे देश में गहन कृषि नीति अपनाने की आवश्यकता क्यों है?

    Solution

    भारत शुरुआत से ही एक कृषि-प्रधान देश रहा है। इसकी घनी आबादी तथा निरंतर बढ़ती हुई जनसंख्या के चलते खाद्यान्नों की आपूर्ति करना इसके लिए एक बड़ी चुनौती रहा है। इसलिए भारत को गहन कृषि नीति को अपनाने की आवश्यकता है क्योंकि इस नीति के तहत भूमि के कम क्षेत्र में अधिक उत्पादकता की जा सकती है।

    Question 9
    CBSEHHIGEH12025442

    निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें:

    शुष्क कृषि तथा आर्द्र कृषि में क्या अंतर हैं?

    Solution
    शुष्क कृषि आर्द्र कृषि
    1. शुष्क कृषि की फसल के लिए सिंचाई की कम आवश्यकता पड़ती है।   1. आर्द्र कृषि फसल को अत्याधिक सिंचाई की आवश्यकता होती हैं।  
    2. शुष्क कृषि के लिए वार्षिक वर्षा 75 सें.मी. से कम होनी चाहिए।  2. आर्द्र कृषि में फसलों की ज़रूरत से अधिक जल व वर्षा की आवश्यकता होती है। इसके लिए 150 सें.मी. से 200 सें.मी. वर्ष की आवश्यकता होती है।  
    3. इस कृषि में रागी, बाजरा, मूँग, चना तथा ग्वार आदि उगाई जाती है।  3. इसमें चावल, जूट, गन्ना आदि तथा ताजेपानी की जलकृषि भी की जाती है
    Question 10
    CBSEHHIGEH12025443

    निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर लगभग 150 शब्दों में दें:

    भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात विकास की महत्वपूर्ण नीतियों का वर्णन करें।

    Solution

    भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात कृषि विकास की महत्वपूर्ण नीतियाँ इस प्रकार हैं:

    1. उन्नत बीज: भारत में उन बीजों का आयत किया गया जिनसे अधिक उपज होती थी। इसके लिए भारत द्वारा  मेक्सिको से गेहूँ तथा फिलीपींस से चावल की विभिन्न किस्मों का आयत किया गया। इसके अतिरिक्त ज्वार, बाजरा तथा मक्का जैसी फसलों के बीजों का भी आयत किया गया। 
    2. उवर्रकों का प्रयोग: नई कृषि नीति के अंतर्गत रासयनिक अथवा महंगे उवर्रकों के प्रयोग को प्रोत्साहन दिया गया जिससे कृषि मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ी तथा फसलों का उत्पादन भी हुआ।
    3. हरित क्रांति: नई कृषि प्रौद्योगिकी की सफलता हेतु सिंचाई से निश्चित जल आपूर्ति पूर्व आपेक्षित थी। कृषि विकास की इस नीति से खाद्यान्नों के उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि 'हरित क्रांति' के नाम से जानी जाती है। कृषि विकास की इस नीति से देश खाद्यान्नों के उत्पादन मेंआत्म-निर्भर हुआ। 
    4. कीटनाशकों का प्रयोग: कीटनाशकों का प्रयोग फसलों को कीड़ों तथा बीमारियों से सुरक्षा प्रदान करने हेतु किया जाता है। हरित-क्रांति के अंतर्गत इन दवाइयों (Pesticides) के प्रयोग को प्रोत्साहन दिया गया जिससे उत्पादन में वृद्धि की जा सकें।
    5. आधुनिक कृषि-यंत्रो का प्रयोग: अब भारत में कृषि के परम्परागत तरीको और औज़ारों के स्थान पर नए और आधुनिक यंत्रो का इस्तेमाल करने पर बल दिया गया। इन कृषि यंत्रो के उपयोग ने खेती को सरल बना दिया। इन यंत्रो में ट्रेक्टर, सिंचली के लिए ट्यूबवेल, बिजली की मोटरें इत्यादि शामिल है। 
    6. कृषि जलवायु नियोजन: योजना आयोग ने 1988 में कृषि विकास में प्रादेशिक संतुलन को प्रोत्साहित करने हेतु कृषि जलवायु नियोजन प्रारंभ किया। इसने कृषि, पशुपालन तथा जलकृषि को विकास हेतु संसाधनों के विकास पर भी बल दिया।

    Question 11
    CBSEHHIGEH12025444

    निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर लगभग 150 शब्दों में दें:

    भारत में भूसंसाधनों की विभित्र प्रकार की पर्यावरणीय समस्याएँ कौन-सी हैं? उनका निदान कैसे किया जाए?

    Solution

    भारत में भू-संसाधनों का निम्नीकरण एक गंबीर समस्या है जो कृषि विकास की दोषपूर्ण नीतियों के कारण उत्पन्न हुई है। भारत में कृषि भूमि की अनेक पर्यावरणीय समस्याएँ है जिनमे: मृदा अपरदन, अत्याधिक सिंचाई, भूमि की गुणवत्ता में कमी, तीव्र हवाएँ, लवणीकरण इत्यादि शामिल है:

    1. मृदा अपरदन: कृषि योग्य भूमि की ऊपरी परत वर्षा के जल के साथ बहने से मृदा का अपरदन होता है। इससे मिट्टी की उर्वरता शक्ति कम होती है तथा भूमि योग्य नहीं रहती।
    2. भूमि की गुणवत्ता में कमी: एक ही भूमि पर बार-बार कृषि करने तथा फसल बोने से भूमि की गुणवत्ता में कमी आ जाती है। इसे मृदा में उत्पन्न सभी खनिज पदार्थो का विघटन होने लगता है अथवा भूमि कृषि योग्य भी नहीं रहती।
    3. अत्यधिक सिंचाई: किसानों द्वारा फसलों की अधिक सिंचाई से भूमि में जलभराव हो जाता है। अत्यधिक जलवाली भूमि से मृदा का अपघटन होता है जिससे भूमि योग्य नहीं रहती।
    4. लवणीकरण: अधिक सिंचाई के कारण जलभराव की भूमि के लवण ऊपरी स्तर पर आ जाते हैं, जो भूमि को अनुपजाऊ बना देते हैं। इस प्रकार की भूमि का उपयोग उत्पादन के लिए नहीं किया जा सकता।
    5. तीव्र पवनें: वे क्षेत्र जहाँ हवाएँ बहुत तेज गति से चलती हैं, वहाँ भूमि की ऊपरी परत पवनों के साथ ही बह जाती है, जिससे मिट्टी में उत्पन्न खनिज, जैसे पोटेशियम, कैल्शियम इत्यादि की कमी होने से भूमि कृषि- योग्य नहीं रहती।

    समस्यायों के निदान के उपाय:

    1. अत्यधिक वन लगाकर
    2. समय-समय पर मृदा में उचित खनिज मिलाकर,
    3. कृषि की उचित तकनीक अपनाकर

    उपरोक्त समस्याओं के निदान के साथ-साथ हमे इन समस्याओं को जन्म देने वाले क्रियाकलापों को नियंत्रित करना होगा।

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