राजनीतिक सिद्धांत Chapter 4 सामाजिक न्याय
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    NCERT Solution For Class 11 राजनीतिक विज्ञान राजनीतिक सिद्धांत

    सामाजिक न्याय Here is the CBSE राजनीतिक विज्ञान Chapter 4 for Class 11 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 11 राजनीतिक विज्ञान सामाजिक न्याय Chapter 4 NCERT Solutions for Class 11 राजनीतिक विज्ञान सामाजिक न्याय Chapter 4 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 11 राजनीतिक विज्ञान.

    Question 1
    CBSEHHIPOH11021801

    हर व्यक्ति को उसका प्राप्य देने का क्या मतलब है ? हर किसी को उसका प्राप्य देने का मतलब समय के साथ-साथ कैसे बदला ?

    Solution

    हर व्यक्ति को उसका प्राप्य देने का अर्थ है की जो व्यक्ति जिसका अधिकारी है, उसे वह देना ही न्याय है। इसमें जनता की भलाई की सुनिश्चितता में हर व्यक्ति को उसका वाजिब हिस्सा देना शामिल है।
    हर व्यक्ति को उसका प्राप्य देने का मतलब समय के साथ-साथ निरंतर बदलता रहा है: उदाहरण के लिए प्राचीन काल में प्रत्येक व्यक्ति को उसका प्राप्य देने का अर्थ था, कि यदि किसी व्यक्ति ने कोई गलत कार्य किया है, तो उससे दंड दिया जाए अथवा उसने अच्छा कार्य किया है, तो उससे पुरस्कार दिया जाए।  
    परन्तु आधुनिक समय में जर्मन दार्शनिक इमैनुएल कांट के अनुसार, हर मनुष्य की गरिमा होती है। अगर सभी व्यक्तियों की गरिमा स्वीकृत है, तो उनमें से हर एक का प्राप्य यह होगा कि उन्हें अपनी प्रतिभा के विकास और लक्ष्य की पूर्ति के लिए अवसर प्राप्त हो। न्याय के लिए जरूरी हैकि हम तमाम व्यक्तियों को समुचित और बराबर की अहमियत दें।

    Question 2
    CBSEHHIPOH11021802

    अध्याय में दिए गए न्याय के तीन सिद्धांतों की संक्षेप में चर्चा करो। प्रत्येक को उदाहरण के साथ समझाइये।

    Solution

    आधुनिक लोकतान्त्रिक राज्यों में न्याय एक बहुत महत्वपूर्ण धरना है। अध्याय में दिए गए न्याय के तीन सिद्धांत निम्नलिखित हैं:

    1. समान लोगों के प्रति समान बरताव: समाज के लिए समान व्यवहार अति महत्वपूर्ण और न्याय का आवश्यक सिद्धांत माना जाता है। माना जाता है कि मनुष्य होने के नाते सभी व्यक्तियों में कुछ समान चारित्रिक विशेषताएँ होती हैं। इसीलिए वे समान अधिकार और समान बरताव के अधिकारी हैं। आज अधिकांश उदारवादी जनतंत्रों में कुछ महत्त्वपूर्ण अधिकार दिए गए हैं। इनमें जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति केअधिकार जैसे नागरिक अधिकार शामिल हैं। इसमें समाज के अन्य सदस्यों के साथ समान अवसरों के उपभोग करने का सामाजिक अधिकार और मताधिकार जैसे राजनीतिक अधिकार भी शामिल हैं। ये अधिकार व्यक्तियों को राज प्रक्रियाओं में भागीदार बनाते हैं। 
    2. समानुपातिक न्याय: समानुपातिक न्याय, न्याय का एक अन्य महत्वपूर्ण सिद्धांत है। कभी-कभी कुछ ऐसी परिस्थितियाँ हो सकती हैं जिसमें सभी के साथ समान बरताव अपने आप में अन्याय साबित होगा। उदाहरण के लिए यदि किसी स्कूल में यह फैसला किया जाए, कि परीक्षा में शामिल होने वाले तमाम लोगों को बराबर के अंक दिए जाएँगे,क्योंकि सब एक ही स्कूल के विद्यार्थी हैं और सब ने एक ही परीक्षा दी है तो यह अन्याय ही होगा। लोगों को उनके प्रयास के पैमाने और अर्हता के अनुपात में ही पुरस्कृत किया जाना चाहिए।
    3. विशेष जरूरतों का विशेष ख्याल: न्याय के जिस तीसरे सिद्धांत को हम समाज के लिए मान्य करते हैं, वह पारिश्रमिक या कर्त्तव्यों का वितरण करते समय लोगों की विशेष जरूरतों का ख्याल रखने का सिद्धांत है। विशेष जरूरतों या विकलांगता वाले लोगों को कुछ खास मामलों में असमान और विशेष सहायता के योग्य समझा जा सकता है। हमारे देश में आमतौर पर देखा जाता है कि,अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य और ऐसी अन्य सुविधाओं तक पहुँच का अभाव जाति आधारित सामाजिक भेदभाव से जुड़ा है। इसीलिए संविधान में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लोगों के लिए सरकारी नौकरियों में तथा शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है।

    Question 3
    CBSEHHIPOH11021803

    क्या विशेष जरूरतों का सिद्धांत सभी के साथ समान बरताव के सिद्धांत के विरूद्ध है ?

    Solution

    नहीं, विशेष जरूरतों का सिद्धांत सभी के साथ समान बरताव के सिद्धांत के विरूद्ध नहीं है। लोगों की विशेष जरूरतों को ध्यान में रखने का सिद्धांत समान बरताव के सिद्धांत को अनिवार्यतया खंडित नहीं, बल्कि उसका विस्तार ही करता है क्योंकि समकक्षों के साथ समान बरताव के सिद्धांत में यह अंतर्निहित है, कि जो लोग कुछ महत्त्वपूर्ण संदर्भों में समान नहीं हैं, उनके साथ भिन्न ढंग से बरताव किया जाए।

    उदहारण स्वरूप:

    1. विशेष जरूरतों या विकलांगता वाले लोगों को कुछ खास मामलों में असमान और विशेष सहायता के योग्य समझा जा सकता है। लेकिन इस पर सहमत होना हमेशा आसान नहीं होता, कि लोगों को विशेष सहायता देने के लिए उनकी किन असमानताओं को मान्यता दी जाय।
    2. शारीरिक विकलांगता, उम्र या अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँच न होना कुछ ऐसे कारक हैं, जिन्हें अनेक देशों में विशेष बरताव का आधार समझा जाता है।
    3. हमारे देश में आमतौर पर देखा जाता है कि अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य और ऐसी अन्य सुविधाओं तक पहुँच का अभाव जाति आधारित सामाजिक भेदभाव से जुड़ा है। इसीलिए संविधान में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लोगों के लिए सरकारी नौकरियों में तथा शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है।

    Question 4
    CBSEHHIPOH11021804

    सभी नागरिकों को जीवन की न्यूनतम बुनियादी स्थितियाँ उपलब्ध कराने के लिए राज्य की कार्यवाई को निम्न में से कौन से तर्क से वाजिब ठहराया जा सकता है ?

    (क) गरीब और ज़रूरतमंदों को निशुल्क सेवाएँ देना एक धर्म कार्य के रूप में न्यायोचित है।
    (ख) सभी नागरिकों को जीवन का न्यूनतम बुनियादी स्तर उपलब्ध करवाना अवसरों की समानता सुनिश्चित करने का एक तरीका है।
    (ग) कुछ लोग प्राकृतिक रूप से आलसी होते हैं और हमें उनके प्रति दयालु होना चाहिए।
    (छ) सभी के लिए बुनियादी सुविधाएँ और न्यूनतम जीवन स्तर सुनिश्चित करना साझी मानवता और मानव अधिकारों की स्वीकृति है।

    Solution

    (क) सभी नागरिकों को जीवन की बुनियादी स्थितियाँ उपलब्ध कराने के आधार पर राज्य का गरीबों और जरूरतमंदों को दान के रूप में निशुल्क सेवाएँ देना अनुचित है। क्योंकि ये सेवाएँ उनका अधिकार है। इन्हें भिक्षा या कृपा के रूप में प्रदान नहीं किया जा सकता।

    (ख) सभी नागरिकों को जीवन का न्यूनतम बुनियादी स्तर उपलब्ध करवाना अवसरों की समानता सुनिश्चित करने का एक तरीका है। यह तर्क बिल्कुल वाजिब ठहराया जा सकता है क्योंकि सभी नागरिकों को एक-समान अवसरों की उपलब्धता सुनिश्चित करना सरकार की ज़िम्मेदारी हैं। 

    (ग) कुछ लोग प्राकृतिक रूप से आलसी होते हैं और हमें उनके प्रति दयालु होना चाहिए। यह तर्क बिल्कुल वाजिब नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि प्राकृतिक रूप से आलसी होना किसी शारीरिक विकलांगता का परिचय नहीं देता। 

    (छ) सभी के लिए बुनियादी सुविधाएँ और न्यूनतम जीवन स्तर सुनिश्चित करना साझी मानवता और मानव अधिकारों की स्वीकृति है। यह तर्क बिल्कुल वाजिब ठहराया जा सकता है क्योंकि न्यूनतम बुनियादी स्थितियाँ उपलब्ध कराना राज्य के कार्यों के संबंध में न्यायसंगत हैं। 

    Question 5
    CBSEHHIPOH11021805

    आम तौर पर एक स्वस्थ और उत्पादक जीवन जीने के लिए व्यक्ति की न्यूनतम बुनियादी जरूरतें क्या मानी गई है ? इस न्यूनतम को सुनिश्चित करने में सरकार की क्या जिम्मेदारी है ?

    Solution

    विभिन्न सरकारों और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) जैसे संगठनों ने लोगों की बुनियादी आवश्यकताओं की गणना के लिए विभिन्न तरीके ईजाद किए हैं। इसमें स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक पोषक तत्त्वों की बुनियादी मात्रा, आवास, शुद्ध पेयजल की आपूर्ति, शिक्षा और न्यूनतम मज़दूरी इन बुनियादी स्थितियों के महत्वपूर्ण हिस्से है।

    हालाँकि, नागरिकों के लिए इन बुनियादी शर्तों की पूर्ति, भारत जैसे गरीब देश में सरकार पर बोझ ड़ालती है। फिर भी गरीबों को उनके वर्ग, जाति, नस्ल या लिंग आधार पर बिना भेदभाव के न्यूनतम सुविधाएं मुहैया कराने की ज़िम्मेदारी सरकार की ही हैं:

    1. सरकार विभिन्न प्रकार के कानूनों का निर्माण करके ऐसी परिस्थितियाँ पैदा कर सकती है, जिससे सभी व्यक्तियों की न्यूनतम ज़रूरतें पूरी हों सकें।
    2. मुक़्त बाज़ार विचारधारा के समर्थक निजी एजेंसियों द्वारा वस्तुएँ और सेवाएँ प्रदान करने के पक्ष में हैं तथा राज्य की नीतियाँ इन सेवाओं को खरीदने के लिए लोगों को सशक्त बनाने की कोशिश करने की होनी चाहिए। हालाँकि अंत में मुक्त बाजार ताकतवर, धनी और प्रभावशाली लोगों के हित में काम करने को ही प्रवृत्त होता है।
    3. सरकार अर्थव्यवस्था के कुछ क्षेत्रों में निजी एजेंसियों के हस्तक्षेप की जाँच करती है ताकि वस्तुएँ और सेवाएँ बाजार में कमजोर वर्गों की पहुँच से बहार न हों।
    4. स्वास्थ्य सेवा और आवास के मामले में भी सच यही है। इन परिस्थितियों में सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ता है।

    Question 6
    CBSEHHIPOH11021806

    निष्पक्ष और न्यायपूर्ण वितरण को युक्तिसंगत आधार पर सही ठहराया जा सकता है। रॉल्स ने इस तर्क को आगे बढ़ाने में 'अज्ञानता के आवरण ' के विचार का उपयोग किस प्रकार किया।

    Solution

    रॉल्स ने निष्पक्ष और न्यायपूर्ण वितरण को युक्तिसंगत आधार पर सही ठहराते हुए 'अज्ञानता के आवरण' का उपयोग किया है:

    1. जॉन रॉल्स तर्क देते हैं कि निष्पक्ष और न्यायसंगत नियम तक पहुँचने का एकमात्र रास्ता यही है कि हम खुद को ऐसी परिस्थिति में होने की कल्पना करें जहाँ हमें यह निर्णय लेना है कि समाज को कैसे संगठित किया जाए।
    2. रॉल्स के अनुसार, हमें यह नहीं मालूम होगा, कि हम कौन होंगे और भविष्य के समाज में हमारे लिए कौन से विकल्प खुले होंगे, तब हम भविष्य के उस समाज के नियमों और संगठन के बारे में जिस निर्णय का समर्थन करेंगे, वह तमाम सदस्यों के लिए अच्छा होगा।
    3. चूँकि कोई नहीं जानता कि वह कौन होगा और उसके लिए क्या लाभप्रद होगा, इसलिए हर कोई सबसे बुरी स्थिति के मद्देनजर समाज की कल्पना करेगा।
    4. वह समाज के विषय में सोचते हुए इस बात का अवश्य ध्यान रखेगा, कि यदि किसी व्यक्ति का जन्म सुविधा सम्पन्न परिवार में होता है, तो उसे विकास के उचित अवसर प्राप्त होंगे, परन्तु यदि व्यक्ति का जन्म पिछड़े एवं समाज के अत्यधिक निचले वर्ग में होता हैं, तब क्या होगा ?
    5. रॉल्स कहते हैं , कि जब व्यक्ति खुद को इस स्थिति में रखकर सोचेगा, तब वह अवश्य ही ऐसे समाज की कल्पना करेगा जो समाज के कमज़ोर वर्गों के हितो की रक्षा कर सके। इस प्रयास से यह दिखेगा कि शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास जैसे महत्त्वपूर्ण संसाधन सभी लोगों को प्राप्त हों चाहे वे उच्च वर्ग के हो या न हों।
    6. अत: 'अज्ञानता के आवरण' के कारण प्रत्येक व्यक्ति के लिए अपने आपको को सबसे बुरी स्थिति में रखकर सोचना ही उसके लिए हितकर होगा।

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