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इनमें कौन सा कार्य चुनाव आयोग नहीं करता ?
मतदाता सूची तैयार करना
उम्मीदवारों का नामांकन
मतदान-केंद्रों की स्थापना
आचार संहिता लागू करना
आचार संहिता लागू करना
E.
पंचायत के चुनावों का पर्यवेक्षण
निम्नलिखित में कौन सी बात राज्य सभा और लोक सभा के सदस्यों के चुनाव की प्रणाली में समान है ?
18 वर्ष से ज्यादा की उम्र का हर नागरिक मतदान करने के योग्य है।
विभिन्न प्रत्याशियों के बारे में मतदाता अपनी पसंद को वरीयता क्रम में रख सकता है।
प्रत्येक मत का समान मूल्य होता है।
विजयी उम्मीदवार को आधे से अधिक मत प्राप्त होने चाहिए।
C.
प्रत्येक मत का समान मूल्य होता है।
फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट प्रणाली में वही प्रत्याशी विजेता घोषित किया जाता है जो -
सर्वाधिक संख्या में मत अर्जित करता है।
देश में सर्वाधिक मत प्राप्त करने वाले दल का सदस्य हो।
चुनाव क्षेत्र के अन्य उम्मीदवारों से ज्यादा मत हासिल करता है।
50 प्रतिशत से अधिक मत हासिल करके प्रथम स्थान पर आता है।
C.
चुनाव क्षेत्र के अन्य उम्मीदवारों से ज्यादा मत हासिल करता है।
पृथक निर्वाचन-मंडल और आरक्षित चुनाव क्षेत्र के बीच क्या अंतर है ? संविधान निर्माताओं ने पृथक निर्वाचन-मंडल को क्यों स्वीकार नहीं किया ?
पृथक निर्वाचन-मंडल: पृथक निर्वाचन-मंडल के अंतर्गत एक चुनाव क्षेत्र से अलग-अलग जाति के उम्मीदवार खड़े होते हैं तथा प्रत्येक मतदाता अपनी जाति के उम्मीदवार को ही वोट देता है।
आरक्षित चुनाव क्षेत्र: इस व्यवस्था के अंतर्गत, किसी निर्वाचन क्षेत्र में सभी मतदाता वोट तो डालते हैं , लेकिन प्रत्याशी केवल उसी समुदाय या सामाजिक वर्ग का होता हैं जिसके लिए वह वह सीट आरक्षित है।
संविधान सभा के अनेक सदस्यों को पृथक निर्वाचन-मंडल प्रणाली पर शंका थी। उनका विचार था कि यह व्यवस्था हमारे उद्देश्यों को पूरा नहीं कर पाएगी। उनके मत में यह व्यवस्था भारत के लिए अभिशाप रही है, इसने देश की अपूरणीय क्षति की है। यह प्रणाली साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देती है और इससे समाज की एकता नष्ट होती हैं। पृथक निर्वाचन-मंडल प्रणाली से मतदाताओं का दृष्टिकोण होता है और मतदाता देश हित के स्थान पर अपने सम्प्रदाय के हित को महत्व देते हैं। इन सभी बातों के कारण पृथक निर्वाचन-मंडल को स्वीकार नहीं किया गया।
निम्नलिखित में कौन-सा कथन गलत है ? इसकी पहचान करें और किसी एक शब्द अथवा पद को बदलकर, जोड़कर अथवा नये क्रम में सजाकर इसे सही करें।
(क) एक फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट प्रणाली ('जो सबसे आगे वही जीते प्रणाली') का पालन भारत केहर चुनाव में होता है।
(ख) चुनाव आयोग पंचायत और नगरपालिका के चुनावों का पर्यवेक्षण नहीं करता।
(ग) भारत का राष्ट्रपति किसी चुनाव आयुक्त को नहीं हटा सकता।
(घ) चुनाव आयोग में एक से ज़्यादा चुनाव आयुक्त की नियुक्ति अनिवार्य है।
(क) यह कथन गलत हैं क्योंकि पी .टी.पी. प्रणाली का प्रयोग हर समय नहीं होता है। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, व राज्य सभा के सदस्यों का चुनाव एकल मत प्रणाली के द्वारा होता हैं। अन्य चुनावों में पी .टी.पी. प्रणाली का प्रयोग होता है।
(ख) यह कथन सही हैं।
(ग) यह कथन गलत हैं कि भारत का राष्ट्रपति किसी चुनाव आयुक्त को हटा नहीं सकता। चुनाव आयुक्त के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप सिद्ध होने पर राष्ट्रपति चुनाव आयुक्त को हटा सकता हैं।
(घ) यह कथन गलत हैं कि चुनाव आयोग में एक से ज़्यादा चुनाव आयुक्त की नियुक्ति अनिवार्य है। राष्ट्रपति अपनी इच्छा अनुसार एक या उससे अधिक ज़्यादा चुनाव आयुक्त की नियुक्ति कर सकता हैं।
भारत की चुनाव-प्रणाली का लक्ष्य समाज के कमज़ोर तबके की नुमाइंदगी को सुनिश्चित करना है। लेकिन अभी तक हमारी विधायिका में महिला सदस्यों की संख्या 10 प्रतिशत तक भी नहीं पहुँचती। इस स्थिति में सुधार के लिए आप क्या उपाय सुझाये ?
चुनाव की कोई प्रणाली कभी आदर्श नहीं हो सकती। उसमें अनेक कमियाँ और सीमाएँ होती हैं। लोकतान्त्रिक समाज को अपने चुनावों को और अधिक स्वतंत्र और निष्पक्ष बनाने के तरीकों को बराबर खोजते रहना चाहिए।
भारतीय संविधान में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जन-जातियों के लोगों के लिए संसद व राज्यों की विधान सभाओं में सीटें आरक्षित की गई हैं। लेकिन संविधान में अन्य उपेक्षित या कमजोर वर्गों जैसे- महिलाओं के लिए इस प्रकार के आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं हैं। यह कथन सही कि महिलाओं कि जनसंख्या का 10 प्रतिशत भी प्रतिनिधित्व संसद व विधान-पालिकाओं में नहीं हो पाया है।
इस स्थिति में सुधार के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं:
इस उद्देश्य के लिए, हमें संविधान में संशोधन की आवश्यकता है। हालांकि संसद में कई बार इस तरह के संशोधन की लिए प्रस्ताव दिया गया है लेकिन अभी तक पारित नहीं किया गया है।
एक भूतपूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने एक राजनीतिक दल का सदस्य बनकर चुनाव लड़ा। इस मसले पर कई विचार सामने आये। एक विचार यह था कि भूतपूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एक स्वतंत्र नागरिक है। उसे किसी राजनीतिक दल में होने और चुनाव लड़ने का अधिकार है। दूसरे विचार के अनुसार, ऐसे विकल्प की संभावना कायम रखने से चुनाव आयोग की निष्पक्षता प्रभावित होगी। इस कारण, भूतपूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त को चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। आप इसमें किस पक्ष से सहमत हैं और क्यों ?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 (i) के अनुसार, चुनाव आयोग के लिए एक प्रावधान है, जो संघ संसद, राज्य विधानसभा, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव आयोजित करने के लिए जिम्मेदार बनाता हैं। चुनाव आयोग देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए एक स्वतंत्र और निष्पक्ष एजेंसी है।
हम दूसरे पक्ष के विचारों से सहमत हैं जिसके मत में भूतपूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त को चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं देनी चाहिए, क्योंकि चुनाव आयुक्त उस पद पर स्वयं रह चुके हैं जो चुनाव की प्रक्रिया को नियंत्रित करते हैं। ऐसे में यह उचित होगा कि मुख्य चुनाव आयुक्त राजीनीति से दूर रहे व किसी प्रकार का चुनाव आदि न लड़े।
अत: जिस प्रकार न्यायालयों को न्यायधीशों पर अवकाश प्राप्ति की बाद नीजि वकालत पर पाबन्दी हैं उसी प्रकार से मुख्य चुनाव आयुक्त व चुनाव आयुक्तों पर भी पाबन्दी रहनी चाहिए।
भारत का लोकतंत्र अब अनगढ़ 'फर्स्ट पास्ट द पोस्ट' प्रणाली को छोड़कर समानुपातिक प्रतिनिध्यात्मक प्रणाली को अपनाने के लिए तैयार हो चुका है' क्या आप इस कथन से सहमत हैं? इस कथन के पक्ष अथवा विपक्ष में तर्क दें।
हमारी राय में भारतीय लोकतंत्र निम्नलिखित कारणों से समानुपातिक प्रतिनिध्यात्मक प्रणाली को अपनाने के लिए तैयार नहीं है:
अत: हम कह सकते हैं कि यह प्रणाली केवल ऐसे देश में ही लागू हो सकती है जहाँ लोग अधिक शिक्षित हो, साथ ही यह प्रणाली ऐसे राज्य की लिए कदाचित उचित नहीं ठहराई जा सकती, जहाँ पर संसदीय शासन लागू हो।
एक नए देश के संविधान के बारे में आयोजित किसी संगोष्ठी में वक्ताओं ने निम्नलिखित आशाएँ जतायीं। प्रत्येक कथन के बारे में बताएँ कि उनके लिए फर्स्ट- पास्ट-द-पोस्ट ( सर्वााइधक मत से जीत वाली प्रणाली) उचित होगी या समानुपातिक प्रतिनिधित्व वाली प्रणाली ?
(क) लोगों को इस बात की साफ साफ जानकारी होनी चाहिए कि उनका प्रतिनिधि कौन है ताकि वे उसे निजी तौर पर जिम्मेदार ठहरा सकें।
(ख) हमारे देश में भाषाई रूप से अल्पसंख्यक छोटे-छोटे समुदाय हैं और देश भर में फैले हैं, हमें इनकी ठीक- ठीक नुमाइंदगी को सुनिश्चित करना चाहिए।
(ग) विभिन्न दलों के बीच सीट और वोट को लेकर कोई विसंगति नहीं रखनी चाहिए।
(घ) लोग किसी अच्छे प्रत्याशी को चुनने में समर्थ होने चाहिए भले ही वे उसके राजनीतिक दल को पसंद न करते हों।
(क) इस कथन के अनुरूप फर्स्ट- पास्ट-द-पोस्ट प्रणाली उचित होगी। क्योंकि इस प्रणाली में मतदाता तथा उम्मीदवार की बीच में सीधा सम्पर्क होता हैं जिस कारण मतदाता उम्मीदवारों को भली-भांति जान सकते हैं।
(ख) इस कथन के अनुसार समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली उचित होगी। क्योंकि इस प्रणाली का उद्देश्य प्रत्येक दल को उचित प्रतिनिधित्व दिलाना हैं जिससे अल्पसंख्यक वर्ग की लोगों की हितों की रक्षा होती हैं।
(ग) इस कथन के अनुसार समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली उचित होगी। क्योंकि इस प्रणाली के अंतर्गत हर पार्टी को प्राप्त मत के अनुपात में विधायिका में सीटें हासिल होती हैं।
(घ) इस कथन के अनुसार फर्स्ट- पास्ट-द-पोस्ट प्रणाली उचित होगी। क्योंकि इस प्रणाली के अंतर्गत नागरिक अपनी पसंद का उम्मीदवार चुन सकते हैं, भले ही वे उसके राजनीतिक दल को पसंद करते हों या नहीं।
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