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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
रासबिहारी एवेन्यू की एक बिल्डिंग में मैंने एक कमरा भाई पर लिया था, वहां पर बच्चे इंटरव्यू के लिए आते थे । बहुत-से लड़के आए, लेकिन अपू की भूमिका के लिए मुझे जिस तरह का लड़का चाहिए था, वैसा एक भी नहीं था । एक दिन एक लड़का आया । उसकी गर्दन पर लगा पाउडर देखकर मुझे शक हुआ । नाम पूछने पर नाजुक आवाज में वह बोला-' टिया '। उसके साथ आए उसके पिताजी से मैंने पूछा,' क्या अभी-अभी इसके बाल कटवाकर यहाँ ले आए हैं?' वे सज्जन पकड़े गए । सच छिपा नहीं सके बोले, 'असल में यह मेरी बेटी है । अपू की भूमिका मिलने की आशा से इसके बाल कटवाकर आपके यहां ले आया हूं ।'
1. बच्चे इंटरव्यू के लिए कहाँ आते थे?
2. लेखक को किसकी तलाश थी?
3. एक सज्जन किस बात पर पकड़े गए?
1. लेखक (निर्देशक) ने रासबिहारी एवेन्यू की बिल्डिंग में एक कमरा किराए पर ले लिया था । वहीं पर बच्चे इंटरव्यू देने आते थे । वहाँ बहुत से लड़के इस काम के लिए आए।
2. लेखक को एक ऐसा लड़का चाहिए था जो अपू की भूमिका के लिए उपयुक्त हो । यह एक छोटा छह साल का लड़का होना चाहिए, पर काफी प्रयास के बाद उपयुक्त लड़का नहीं मिल पा रहा था ।
3. एक दिन एक सज्जन एक लड़की को लड़का बनाकर ले आए । उसकी गर्दन पर पाउडर लगा हुआ था, जिसे देखकर लेखक को शक हो गया । लड़की तभी लड़के की तरह बाल कटवाकर आई थी । लेखक ने उस सज्जन को पकड़ लिया ।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
शूटिंग की शुरूआत में ही एक गडबड हो गई । अपू और दुर्गा को लेकर हम कलकत्ता से सत्तर मील पर पालसिट नाम के एक गांव गए । वहाँ रेल-लाइन के पास काशफूलों से भरा एक मैदान था । अपू और दुर्गा पहली बार रेलगाड़ी देखते हैं-इस सीन की शूटिंग हमें करनी थी । यह सीन बहुत ही बड़ा था । एक दिन में उसकी शुटिंग पूरी होना नामुमकिन था । कम-से-कम दो दिन लग सकते थे । पहले दिन जगद्धात्री पूजा का त्योहार था । दुर्गा के पीछे-पीछे दौड़ते हुए अपू काशफूलों के वन में पहुंचता है । सुबह शूटिंग शुरू करके शाम तक हमने सीन का आधा भाग चित्रित किया । निर्देशक, छायाकार, छोटे अभिनेता-अभिनेत्री हम सभी इस क्षेत्र में नवागत होने के कारण थोड़े बौराए हुए ही थे, बाकी का सीन बाद में चित्रित करने का निर्णय लेकर हम घर पहुंचे । सात दिनों के बाद शूटिंग के लिए उस जगह गए, तो वह जगह हम पहचान ही नहीं पाए! लगा, ये कहां आ गए हैं हम? कहाँ गए वे सारे काशफूल । बीच के सात दिनों में जानवरों ने वे सारे काशफूल खा डाले थे! अब अगर हम उस जगह बाकी आधे सीन की शूटिंग करते, तो पहले आधे सीन के साथ उसका मेल कैसे बैठता? उसमें से 'कंटीन्यूइटी 'नदारद हो जाती!
1. लेखक को किस सीन की शूटिंग करनी थी?
2. पूरा सीन शूट करने में दिक्कत क्या थी?
3. बाद में क्या समस्या सामने आ गई?
1. लेखक को एक बहुत लंबा सीन शूट करना था । इसमें अप्पू और दुर्गा पहली बार रेलगाड़ी देखते हैं । रेललाइन के पास काशफूलों से भरा एक मैदान था । लेखक अपू और दुर्गा को लेकर कलकत्ता से सत्तर मील दूर पालसिट नामक गाँव में इस सीन की शूटिंग करने गया था ।
2. पूरा सीन एक दिन में शूट करने में यह दिक्कत थी कि यह सीन बहुत लंबा था । एक दिन में उसकी शूटिंग नामुमकिन थी । इसमें कम-से-कम दो दिन लग सकते थे । एक दिन में आधा सीन ही शूट हो पाया ।
3. लेखक सीन का दूसरा भाग शूट करने के लिए शूटिंग-स्थल पर सात दिनों के बाद गया तो वहाँ का सारा प्राकृतिक दृश्य गायब था । बीच के सात दिनों में जानवरों ने मैदान के सारे काशफूल खा डाले थे । इससे फिल्म की कंटीन्युइटी नदारद हो गई।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
मूल उपन्यास में अपू और दुर्गा के 'भूलो 'नामक पालतू कुत्ते का उल्लेख है । गांव से ही हमने एक कुत्ता प्राप्त किया, और वह भी हमसे ठीक बर्ताव करने लगा । फिल्म में एक दृश्य ऐसा है - अपू की माँ सर्वजया अन् को भात खिला रही है । भूलो कुत्ता दरवाजे के सामने अगिन में बैठकर अपू का भात खाता देख रहा है । अपू के हाथ में छोटे तीर-कमान हैं । खाने में उसका पूरा ध्यान नहीं है । वह माँ की ओर पीठ करके बैठा हुआ है । वह तीर-कमान खेलने के लिए उतावला है ।
1. मूल उपन्यास में किस बात का उल्लेख है? वह कहाँ मिला?
2. फिल्म का दृश्य कैसा था?
3. अपू की क्या दशा है?
1. मूल उपन्यास में अपू और दुर्गा के पालतू कुत्ते 'भूलो 'का उल्लेख है । लेखक को ऐसा एक कुत्ता गाँव में ही मिल गया । वह ठीक से बर्ताव भी करने लगा ।
2. फिल्म का एक दृश्य ऐसा. था जिसमें अपू की माँ सर्वजया अपू को भात खिला रही है। भूलो (कुत्ता) दरवाजे के पास बैठकर अपू को भात खिलाना देख रहा है ।
3. अपू के हाथ में तीर-कमान हैं । उसका ध्यान भात खाने में नहीं है । वह माँ की ओर पीठ करके बैठा है । वह तीर-कमान खेलने के लिए उतावलापन दिखा रहा है ।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
आखिर एक दिन हुआ भी वैसा ही । शरद् ऋतु में भी आसमान में बादल छा गए और धुआँधार बारिश शुरू हुई । उसी बारिश में भीगकर दुर्गा भागती हुई आई और उसने पेड़ के नीचे भाई के पास आसरा लिया । भाई-बहन एक-दूसरे से चिपककर बैठे । दुर्गा कहने लगी-' नेत्-पाता करमचा, हे वृष्टी घरे जा! 'बरसात, ठंड, अपू का बदन खुला, प्लास्टिक के कपड़े से ढके कैमरे को खि लगाकर देखा, तो वह ठंड लगने के कारण सिहर रहा था । शॉट पूरा होने के बाद दूध में थोड़ी ब्रांडी मिलाकर दी और भाई-बहन का शरीर गरम किया । जिन्होंने 'पथेर पांचाली 'फिल्म देखी है, वे जानते ही हैं कि वह शॉट बहुत अच्छा चित्रित हुआ है ।
1. आखिर एक दिन कैसा हुआ?
2. दुर्गा ने क्या अभिनय किया?
3. शॉट पूरा होने के बाद क्या किया गया?
1. लेखक बरसात में एक सीन की शुटिंग करना चाहता था, पर समस्या यह थी जब तक पैसों का इंतजाम हुआ तब तक बरसात बीत चुकी थी। अक्टूबर आ गया था। लेखक अकबर में शरद् की बरसात की प्रतीक्षा कर रहा था ताकि अपने सीन की शुटिंग कर सके। आखिर एक दिन शरद् ऋतु में धुआँधार बारिश हो ही गई और लेखक को अपना सीन सूट करने का मौका मिल गया।
2. दुर्गा बारिश में भीगती हुई आई और उसने पेड़ के नीचे अपने भाई के पास आसरा लिया। बहन- भाई एक-दूसरे से चिपटकर बैठे। दुर्गा कहती है-' नेबूर-पाता करमचा, हे वृष्टी घरे जा। 'अर्थात् नींबू के पत्ते खट्टे हो गए हैं, हे बादल अब अपने घर वापस जाओ। यह शॉट बहुत अच्छा चित्रित हुआ।
3. शॉट पूरा होने के बाद पता चला कि अपू ठंड लगने के कारण सिहर रहा है। अत: दूध में थोड़ी ब्रांडी मिलाकर उन्हे पिलाई गई। इस प्रकार भाई -बहन के शरीर को गरम किया गया।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
उस घर के एक हिस्से में एक के पास एक ऐसे कुछ कमरे थे। वे हमने फिल्म में नहीं दिखाए। उन कमरों में हम अपना सामान रखा करते थे। एक कमरे में रिकार्डिंग मशीन लेकर हमारे साउंड-रिकॉर्डिस्ट भूपेन बाबू बैठा करते थे। हम शूटिंग के वक्त उन्हें देख नहीं सकते थे, फिर भी उनकी आवाज सुन सकते थे। हर शॉट के बाद हम उनसे पूछते, 'साउंड ठीक है न? 'भूपेन बाजू इस पर 'हां या 'ना 'जवाब देते।
1. यहाँ किस घर का उल्लेख है?
2. सामान कहाँ रखा जाता था?
3. भूपेन बाबू क्या काम करते थे?
1. लेखक ने 'पथेर पांचाली 'की शूटिंग के लिए जो घर किराए पर लिया था, वह एकदम ध्वस्त अवस्था में था। उसके मालिक कलकत्ता में रहते थे। लेखक ने उस घर की मरम्मत करवाकर उसे शूटिंग के लायक बनवाया था। यहाँ उसी घर का उल्लेख है।
2. लेखक का फिल्म निर्माण संबंधी सामान घर के उन कमरों में रखा जाता था जिन्हें शूटिंग में नहीं दिखाया जाता था। वे कमरे बिकुल अलग से थे।
3. भूपेन बाबू साउंड रिकॉर्ड करने का काम करते थे। शूटिंग के वक्त वे दिखाई नहीं देते थे, फिर श्री उनकी आवाज सुनी जा सकती थी। हर शॉट के बाद उनसे पूछा जाता था कि साउंड ठीक है या नहीं? उनके 'हाँ 'कहने पर ही काम आगे चलता था।
पथेर पांचाली 'फिल्म की शूटिंग का काम ढाई साल तक इसलिए चला क्योंकि फिल्म बनाते समय कई प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ा । उस समय लेखक एक विज्ञापन कंपनी में नौकरी करता था । जब उसे नौकरी के काम से फुर्सत मिलती थी, तभी वह शूटिंग कर पाता था । लगातार शूटिंग कर पाना संभव न था ।
दूसरा कारण था धन का अभाव । लेखक के पास पैसे सीमित थे । जब वे पैसे खत्म हो जाते तब शुटिंग रुक जाती थी । फिर से पैसों का इंतजाम होने पर ही फिल्म की शूटिंग आगे बढ़ पाती थी । इस प्रकार ढाई साल का समय निकल गया ।
इस कथन के पीछे यह भाव है कि फिल्म में ककंन्टिन्यूइटीका बहुत महत्व है। एक सीन के दो हिस्से अलग-अलग दिनों में शूट होने पर इसका ध्यान रखना बहुत आवश्यक हो जाता, अन्यथा 'पैच वर्क 'जैसा प्रतीत होता है । दर्शकों को सीन में तारतम्यता चाहिए । उन्हें वास्तविक स्थिति का पता नहीं होता ।
किन दो दृश्यों में दर्शक यह पहचान नहीं पाते कि उनकी शुटिंग में कोई तरकीब अपनाई गई है?
पहला दृश्य-रेलगाड़ी के दृश्य में दर्शक उसमें अपनाई गई तरकीब को नहीं पहचान पाते । रेलगाड़ी के शॉट के लिए तीन रेलगाड़ियों का प्रयोग किया गया था । अनिल बाबू इंजन ड्राइवर के केबिन में चढ़कर शूटिंग स्थल तक पहुँचने पर बायलर में कोयला डलवाते थे ताकि काला धुआँ निकले । सफेद काशफूलों की पृष्ठभूमि पर काला धुआँ दर्शाना था । दर्शक यह नहीं पहचान पाता कि इस सीन के लिए तीन रेलगाड़ियों का प्रयोग किया गया है ।
दूसरा दृश्य-' आभूलो' कुत्ते का दृश्य । इस दृश्य में पहले कुत्ते (भूलो) के बीच में मर जाने पर दूसरे कुत्ते से काम लिया गया । एक ही सीन में दो अलग- अलग कुत्तों से काम लेने को दर्शक नहीं पहचान पाते । लेखक की तकरीब काम आ गई ।
फिल्म में श्रीनिवास की क्या भूमिका थी और उनसे जुड़े बाकी दृश्यों को उनके गुजर जाने के बाद किस प्रकार फिल्माया गया?
पथेर पांचाली 'फिल्म में श्रीनिवास घूमते हुए मिठाई बेचने वाले की भूमिका में थे । उनसे मिठाई खरीदने के लिए अपू और दुर्गा के पास पैसे न थे 1 वे मिठाई वाले के पीछे-पीछे मुखर्जी के घर तक जाते हैं । मुखर्जी अमीर आदमी हैं, अत : वे मिठाई जरूर खरीदेंगे । अपू और दुर्गा को उनको मिठाई खरीदते देखकर ही खुशी मिल जाती है ।
फिल्म की शूटिंग कुछ महीनों के लिए रुक गई थी । इसी बीच श्रीनिवास की भूमिका करने वाले सज्जन की मृत्यु हो गई । बाद में उनसे मिलता-जुलता दूसरा आदमी ढूँढ़ा गया । चेहरा तो नहीं मिलता था, पर शरीर से वह उनके जैसा ही लगता था । नया आदमी कैमरे की ओर पीठ करके मुखर्जी के घर के गेट के अंदर आता है, अत : पहचाना नहीं जाता । लोगों को इस अंतर का पता ही नहीं चला ।
बारिश का दृश्य चित्रित करने में क्या मुश्किल आई और उसका समाधान किस प्रकार हुआ?
बारिश का दृश्य चित्रित करने में यह मुश्किल आई कि बरसात के दिनों में लेखक के पास पैसे नहीं थे, इस कारण शुटिंग बंद रखनी पड़ी । बाद में जब लेखक के पास पैसे आए तब तक अक्टूबर का महीना शुरू हो चुका था । शरद् ऋतु में बारिश होना चाँस पर निर्भर करता है । लेखक हर रोज देहात में जाकर बारिश होने की प्रतीक्षा करने लगा ।
आखिर एक दिन समस्या का समाधान हो ही गया । शरद् ऋतु में भी आसमान में बादल छा गए और धुआँधार बारिश शुरू हो गई । लेखक ने इस बारिश का पूरा फायदा उठाया और दुर्गा और अपू का बारिश में भीगने वाला दृश्य शूट कर लिया । फिल्म का यह दृश्य बहुत अच्छा चित्रित हुआ ।
किसी फिल्म की शूटिंग करते समय फिल्मकार को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है, उन्हें सूचीबद्ध कीजिए ।
फिल्म शुटिंग के समय फिल्मकार के सामने आने वाली समस्याएँ
1 उपयुक्त कलाकारों का चयन करना ।
2. पर्याप्त धन की व्यवस्था करना ।
3. कलाकारों की सुविधानुसार शूटिंग शेड्यूल तैयार करना ।
4. बाहर की लोकेशन को ढूँढ़ना एवं उपयुक्त अधिकारियों से स्वीकृति लेना ।
5. संगीत तैयार करवाना और उसके अनुसार उसकी शूटिंग कराना ।
तीन प्रसंगों में राय ने कुछ इस तरह की टिप्पणियाँ की हैं कि दर्शक पहचान नहीं पाते कि..... या फिल्म देखते हुए इस ओर किसी का ध्यान नहीं गया कि..... इत्यादि । ये प्रसंग कौन से हैं, चर्चा करें और इसपर भी विचार करें कि शुटिंग के समय की असलियत फिल्म को देखते समय कैसे छिप जाती है ।
ये प्रसंग हैं :-
1. भूलो कुत्ते के स्थान पर दूसरे कुत्ते को भूलो बनाकर प्रस्तुत करना ।
2. रेलगाड़ी से धुआँ उठवाने के लिए तीन रेलगाड़ियों का प्रयोग करना ।
3. काशफूलों को जानवरों द्वारा खा जाना और अगले मौसम में सीन के शेष भाग की शुटिंग पूरी करना ।
4. श्रीनिवास का पात्र निभाने वाले कलाकार की मृत्यु के बाद दूसरे व्यक्ति से उसका शेष काम पूरा करवाना । मिठाई वाला दृश्य ।
शूटिंग के समय कई प्रकार की दिक्कतें तो आती है। उन्हें री टेक करके दिया जाता है । पिछली कटि-ईटी का ध्यान रखा जाता है । कुछ दृश्य काटकर सीन को ठीक कर लिया जाता है ।
मान लीजिए कि आपको अपने विद्यालय पर एक डॉक्यूमैंट्री फिल्म बनानी है । इस तरह की फिल्म में आप किस तरह के दृश्यों को चित्रित -करेंगे? फिल्म बनाने से पहले और बनाते समय किन बातों पर ध्यान देंगे?
विद्यालय पर डॉक्यूमैंट्री फिल्म में हम विद्यालय की समस्त गतिविधियों को चित्रित करेंगे । इसमें पढ़ाई के साथ-साथ प्रशासन की झलक भी दी जाएगी । विद्यालय के प्रयोगशाला, पुस्तकालय, स्टॉफ-रूम, मेडिकल रूम फिल्म बनाने से पहले भी सामग्री को ठीक प्रकार से व्यवस्थित करेंगे उन्हें किस कोण से शूट किया जाए, इसका विशेष ध्यान रखेंगे । फिल्म बनाते समय विद्यालय का कोई क्रिया-कलाप छूट न जाए, इम बात पर विशेष ध्यान देंगे ।
यदि आधी फिल्म बनने के बाद चुन्नी बाला देवी की अचानक मृत्यु हो जाती तो सत्यजित राय के सामने दो उपाय होते-
1 उनकी शक्ल-सूरत से मिलती-जुलती अन्य बूढ़ी स्त्री की खोज करके उससे अभिनय कराते ।
2. फिल्म मैं भी उसकी मृत्यु दिखाकर उस पात्र को समाप्त कर देते ।
पठित पाठ के आधार पर यह कह पाना कहां तक उचित है कि फिल्म को सत्यजित राय एक कला-माध्यम के रूप में देखते हैं, व्यावसायिक-माध्यम के रूप में नहीं?
यह कहना बिल्कुल उचित ही है कि सत्यजित फिल्म को एक कला-माध्यम के रूप में देखते थे । यही कारण था कि वे फिल्म के कलात्मक पक्ष पर विशेष ध्यान देते थे । वे ऐसी शूटिंग करते थे कि फिल्म बनावटी न लगाकर यथार्थ प्रतीत हो ।
व्यावसायिक-माध्यम में धन कमाने की ओर नजर रहती है । सत्यजित राय ने कभी फिल्म से धन कमाने की लालसा नहीं रखी । वे फिल्मों को व्यावसायिक बनाने के लिए मसाले का प्रयोग नहीं करते थे ।
पाठ में कई स्थानो पर तत्सम, तद्भव. क्षेत्रीय सभी प्रकार के शब्द एक साथ सहज भाव से आए हैं । ऐसी भाषा का प्रयोग करते हुए अपनी प्रिय फिल्म पर एक अनुच्छेद लिखें ।
मेरी प्रिय फिल्म 'अकुंर है । इसमें ग्रामीण पृष्ठभूमि पर जमींदारों के अत्याचारों को दर्शाया गया है । इस फिल्म की नायिका जमींदार को कोसते हुए उसे 'माटीमिले 'शब्द का प्रयोग करती है । इस फिल्म का नायक गंगा-बहरा है । उसकी इसी स्थिति का फायदा उठाकर जमींदार उसकी पत्नी के साथ संबंध स्थापित करना चाहता है । इसमें वह सफल नहीं हो पाता है । कहानी के अंत में विद्रोह का अंकुर पनपते दिखाया गया है ।
हर क्षेत्र में कार्य करने या व्यवहार करने की अपनी निजी या विशिष्ट प्रकार की शब्दावली होती है । जैसे 'अपू के साथ ढाई साल ' पाठ में फिल्म से जुड़े शब्द शुटिंग, शॉट, सीन आदि । फिल्म से जुड़ी शब्दावली में से किन्हीं दस की सूची बनाइए ।
1. प्ले बैक सिंगर 6. कोरियोग्राफर
2 कंटिन्यूटी 7. आइटम डांस
3. लाइट-साउंड स्टॉर्ट 8. आइटम गर्ल
4. मेकअप मैन 9. ग्लेमर
5. कैमरा मैन 10. डायरेक्टर
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नीचे दिए गए शब्दों के पर्याय इस पाठ में ढूँढी़ए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
इश्तहार, खुशकिस्मती, सीन, वृष्टि, जमा
इश्तहार-विज्ञापन ।
मैंने कल के अखबार में मैनेजर के लिए इश्तहार दिया है ।
खुशकिस्मती-सौभाग्य ।
खुशकिस्मती से मेरी मुलाकात गुरुजी से हो ही गई ।
सीन-दृश्य ।
फिल्म का यह सीन बहुत अच्छा शूट हुआ है ।
वृष्टि-वर्षा ।
इस बार अतिवृष्टि के कारण फसल बर्बाद हो गई है ।
जमा-जोड़ ।
तुमने बहुत धन जमा कर लिया है ।
सत्यजित रॉय को शुटिंग की दृष्टि से कौन-सा गांव अधिक उपयुक्त। लगा और क्यों?
शूटिंग की दृष्टि से गोपाल ग्राम की तुलना में बोडाल गाँव राय साहब को अधिक उपयुक्त लगा । अपू-दुर्गा का घर, अपू का स्कूल, गाँव के मैदान, खेत, पुकुर, आम के पेड़, बाँस की झुरमुट ये सभी बातें बोडाल गाँव में और आस-पास उन्हें मिलीं । अब उस गाँव में बिजली आ गई है, पक्के घर, पक्के रास्ते बने हैं । उस जमाने में वै नहीं । थे।
उस गांव में लेखक का परिचय किस विचित्र व्यक्ति से हुआ? उनका स्वभाव कैसा था?
उस गाँव मैं लेखक की बहुत बार जाना पड़ा । बहुत बार रहना भी पड़ा, इसलिए वहाँ के लोगों से भी उसका परिचय हुआ,. । उन लोगों में एक बहुत अदभूत सज्जन थे । उन्हें लेखक 'सुबोध दा कहकर पुकारते थे । वे साठ-पैंसठ साल के थे । उनका माथा गंजा था । वे अकेले ही एक झोपड़े में रहते और दरवाजे पर बैठकर खुद से ही कुछ-न-कुछ बड़बड़ाते रहते थे । लेखक उस गाँव में एक फिल्म की शूटिंग करने वाले हैं, यह जानकर वे गुस्सा हो गए । उन्हें देखने पर वे चिल्लाते-' फिल्मवाले आए हैं, मारो उनको लाठियों से!' पूछताछ करने पर लोगों ने बताया कि वे मानसिक रूप से बीमार हैं ।
अपू और भूलो से संबंधित किस दृश्य की शूटिंग करनी थी?
इस दृश्य में अपू खाते-खाते ही कमान से तीर छोड़ता है। उसके बाद खाना छोड्कर तीर वापस लाने के लिए जाता है । सर्वजया बाएँ हाथ में थाली और दाहिने हाथ में निवाला लेकर बच्चे के पीछे दौड़ती है, लेकिन बच्चे के भाव देखकर जान जाती है कि वह अब कुछ नहीं खाएगा । भूलो कुत्ता भी खड़ा हो जाता है । उसका ध्यान सर्वजया के हाथ में जै। भात की थाली है, उसकी ओर है।
इसके बाद वाले शॉट में ऐसा दिखाना था कि सर्वजया थाली में बचा भात एक गमले में डाल देती है, और भूलो वह भात खाता है । लेकिन यह शॉट उस दिन नहीं लिया जा सका, क्योंकि सूरज की रोशनी खत्म हुई और उसी के साथ लेखक के पास जो पैसे थे, वे भी खत्म हो गए ।
पैसों की कमी के कारण और कौन-से दृश्य को शुटिंग करने में मुश्किल आई? यह काम कब हो सका?
पैसों की कमी के कारण ही बारिश का दृश्य चित्रित करने में बहुत मुश्किल आई थी । बरसात के दिन आए और गए, लेकिन लेखक के पास पैसे नहीं थे, इस कारण शुटिंग बंद थी । आखिर जब हाथ में पैसे आए, तब अकबर का महीना शुरू हो गया था और तभी शूटिंग का काम शुरू हो सका ।
इस पाठ में रूजवेल्ट, चर्चिल, हिटलर तथा अब्दुल गफ्फार खां के नाम आए हैं, उनका संक्षिप्त परिचय दीजिए।
इन चारों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है:
1. रूजवेल्ट-पूरा नाम फ्रैंकलिन डिलानो । अमेरिका के ३२वें राष्ट्रपति (1933 से 1945 तक), इन्हें एफडीआर. भी कहा जाता था । इन्हीं के कार्यकाल में एटमबम के मैनहटन प्रोजेक्ट पर काम शुरू हुआ था ।
2. चर्चिल (1874- 1965) -द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटेन के प्रधानमंत्री थे । 1953 में इन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार भी मिला था ।
3. हिटलर (1889 - 1945) -जर्मनी के तानाशाह चांसलर (1933 - 1945 तक) तथा नाजी पार्टी के लीडर थे ।
4. अक्ल मक्कार खान (1890- 1988) -ये पख्तूनों (अफगान) के नेता थे तथा भारत और पाकिस्तान के विभाजन के खिलाफ थे । जिसके कारण इन्हें अपना अंतिम समय पाकिस्तान की जेल में गुजारना पड़ा । इन्हें सीमांत गाँधी के नाम से भी जाना जाता है ।लेखक को धोबी के कारण क्या परेशानी होती थी?
जिस घर में शुटिंग करते थे, उसके पड़ोस में एक धोबी रहता था । उसके कारण उन्हें बहुत परेशानी होती थी । वह भी थोड़ा-सा पागल था और कभी भी 'भाइयो और बहनो!' कहकर किसी राजकीय मुद्दे पर लंबा भाषण शुरू कर देता था । फुर्सत के समय में उसके भाषण पर लेखक को कुछ आपत्ति नहीं थी, लेकिन अगर शूटिंग के समय वह भाषण शुरू करता, तो साउंड का काम प्रभावित हो सकता था । उस धोबी के रिश्तेदारों ने अगर लेखक की मदद न की होती, तो वह धोबी सचमुच ही एक सिरदर्द बन जाता!
'सुबोध दा 'कौन थे? उनसे परिचय होने पर स्थिति में क्या बदलाव आया?
सुबोध दा 60-65 साल के एक वृद्ध थे । वे हर वक्त कुछ न कुछ बड़बड़ाते रहते थे । वे मानसिक रूप से बीमार थे । पहले वे फिल्मवालों के विरोध में बोलते थे, पर बाद में 'सुबोध दा 'से लेखक का अच्छा परिचय हुआ । वे उन्हें पास बुलाकर, दरवाजे पर बैठकर वायलिन पर लोकगीतों की धुनें सुनाते थे । बीच-बीच में लेखक को कानों में फुसफुसाते, 'वो साइकिल पे जा रहा आदमी देख रहे हो न, यह कौन है, जानते हो? वह है रूजवेल्ट! पक्का पाजी, उनके मत से दूसरा एक था चर्चिल एक हिटलर, तो एक था अब्दूल गफ्फार खान! सभी उनके मतानुसार पाजी थे, उनके दुश्मन थे ।
लेखक को श्रीनिवास की मृत्यु के बाद जो व्यक्ति मिला उसकी क्या विशेषता थी? लेखक ने उस पर सीन कैसे शूट किया?
आखिर श्रीनिवास की भूमिका के लिए लेखक को जो सज्जन मिले, उनका चेहरा पहले वाले श्रीनिवास से मिलता-जुलता नहीं था, लेकिन शरीर से वे पहले श्रीनिवास जैसे ही थे । उन्हीं पर लेखक ने दृश्य का बाकी अंश चित्रित किया । फिल्म में दिखाई देता है कि एक नंबर श्रीनिवास बाँसवन से बाहर आता है, और अगले शॉट में दो नंबर श्रीनिवास कैमरे की ओर पीठ करके मुखर्जी के घर के गेट के अंदर जाता है । 'पथेर पांचाली 'फिल्म अनेक लोगों ने एक से अधिक बार देखी है, लेकिन श्रीनिवास के मामले में यह बात किसी के ध्यान में नहीं आई ।
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