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मियां नसीरुद्दीन को नानबाइयों का मसीहा क्यों कहा गया है?
मियाँ नसीरुद्दीन को नानबाइयों का मसीहा इसलिए कहा गया है क्योंकि वह अपने मसीहाई अंदाज से रोटी पकाने की कला का बखान करता है तथा इसमें वह अपनी खानदानी महारत बताता है । नानबाई रोटी बनाने की कला में माहिर है । अन्य नानबाई रोटियाँ तो पकाते हैं, पर मियाँ नसीरुद्दीन अपने पेशे को कला मानता है । वह अन्य नानबाइयों में स्वयं को सर्वश्रेष्ठ बताता है, अत: नानबाइयों का मसीहा कहा गया है ।
लेखिका मियाँ नसीरुद्दीन के पास क्यों गई थीं?
लेखिका मियाँ नसीरुद्दीन के पास इसलिए गई ताकि वह उसकी नानबाई कला के बारे में जानकारी प्राप्त कर सके । जब उसने एक मामूली अँधेरी-सी दुकान पर पटापट आटे का ढेर सनते देखा तो वह अपनी उत्सुकता रोक न सकी । उसे पता चला कि वह खानदानी नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन की दुकान पर खड़ी है तो वह उसके बारे में जानने को उत्सुक हो उठी और उसके पास जा पहुँची ।
बादशाह के नाम का प्रसंग आते ही लेखिका की बातों में मियाँ नसीरुद्दीन की दिलचस्पी क्यों खत्म होने लगी?
बादशाह के नाम का प्रसंग आते ही लेखिका की बातों में मियाँ नसीरुद्दीन को दिलचस्पी खत्म इसलिए होने लगी, क्योंकि उन्हें किसी खास बादशाह का नाम मालूम ही न था । वास्तव में उनके किसी बुजुर्ग ने किसी बादशाह के बावर्चीखाने में काम किया ही न था । वे तो सिर्फ अपनी हवा बनाने के लिए डींग हाँक रहे थे । बादशाह का प्रसंग आते ही मियाँ जी बेरुखी दिखाने लगते थे ।
लेखिका मियाँ नसीरुद्दीन से उनके बेटे-बेटियों के बारे में पूछना चाहती थी, पर मियाँ नसीरुद्दीन के चेहरे के हाव- भाव देखकर उसे यह सब पूछने की हिम्मत नहीं हुई । वे कुछ उखड़े से दिखाई दे रहे थे ।
इसे पूछने से पहले का प्रसंग भट्टी सुलगाने का है । मियाँ नसीरुद्दीन बब्बन मियाँ से भट्टी सुलगाने को कहते हैं । लेखिका के पूछने पर बताते हैं कि ये बब्बन मियाँ अपने करीगर हैं । बाद के प्रसंग में मियाँ नसीरुद्दीन अपने कारीगरों को दी जाने वाली मजदूरी के बारे में बताते हैंदो रुपए मन आटे की और चार रुपए मन मैदा की मजदूरी दी जाती है ।
पाठ में मियां नसीरुद्दीन का शब्दचित्र लेखक ने कैसे खींचा है?
पाठ में मियाँ नसीरुद्दीन यह शब्दचित्र खींचा गया है-मियाँ नसीरुद्दीन सत्तर वर्ष की आयु के हैं । वे चारपाई पर बैठकर बीड़ी पीने का मजा ले रहे हैं । मौसम की मार ने उनके चेहरे को पका दिया है । उनकी आँखों में काँइयाँपन और भोलेपन का मिश्रित प्रभाव झलकता है । उनकी पेशानी पर मँजे हुए कारीगर के तेवर हैं । वे बड़े सधे अंदाज में बातों का जवाब देते हैं । कभी-कभी पंचहजारी अंदाज में सिर हिलाते हैं 1 वे कभी दूसरे आदमी के सामने आँखों के कंचे फेरते हैं, कभी आँखें तरेरते हैं । बीड़ी के कश खींचने में वे माहिर हैं । बातों में वे बड़ी लंबी-लंबी फेंकते हैं ।
मियाँ नसीरुद्दीन की कौन-सी बातें आपको अच्छी लगीं?
मियाँ नसीरुद्दीन की निम्नलिखित बातें हमें अच्छी लगीं?
1. काम के प्रति लगन । वे बार-बार काम की ओर ध्यान देते हैं ।
2. स्पष्ट बयानी । वे बात को स्पष्ट रूप से कहते हैं, घुमा-फिराकर नहीं ।
3. प्रत्येक बात का उत्तर नपे-तुले शब्दों में देते हैं ।
4. तरह-तरह की रोटियाँ बनाने की कला में महारत हासिल करना ।
लेखिका ने ' तालीम ' शब्द का प्रयोग दो बार किया है । पहली बार 'तालीम' शब्द का अर्थ 'काम की ट्रेनिंग' है । दूसरी बार 'तालीम' का अर्थ शिक्षा से है । दो बार प्रयोग से इसके प्रभाव में वृद्धि हुई है । हम दूसरी बार 'तालीम' की जगह 'शिक्षा' शब्द रख सकते हैं ।
मियां नसीरुद्दीन तीसरी पीढ़ी के हैं, जिसने अपने खानदानी व्यवसाय को अपनाया । वर्तमान समय में प्राय : लोग अपने पारंपरिक व्यवसाय को नहीं अपना रहे हैं । ऐसा क्यों?
मियाँ नसीरुद्दीन के दादा मियाँ कल्लन तथा वालिद (पिता) मियाँ बरकतशाही यही नानबाई का खानदानी व्यवसाय करतै थे । मियाँ नसीरुद्दीन ने भी अपना खानदानी व्यवसाय अपनाया । वर्तमान पीढ़ी में प्राय: लोग अपने पारंपरिक व्यवसाय को नहीं अपना रहे, इसका कारण यह है कि उस व्यवसाय में उनकी रुचि समाप्त हो जाती है । वे परिवर्तन चाहते हैं । उन्हैं दूसरा व्यवसाय ज्यादा आकर्षक एवं लाभप्रद प्रतीत होता है । अपना पैतृक व्यवसाय पुरातनपंथी लगता है ।
अखबारनीस पत्रकार को कहते हैं। ये लोग खोजी पत्रकारिता करते हैं। वे नई से नई विषय-सामग्री की खोज में रहते हैं। तभी उनकी पत्रकारिता चमकती है। अखबार वही अच्छा माना जाता है जो सबसे पहले खबर दे। पत्रकारों का खोजी होना एक वांछनीय गुण माना जाता है।
‣ पाठ में आए रोटियों के अलग- अलग नामों की सूची बनाएं और इनके बारे में जानकारी प्राप्त करें ।
रोटियों के नाम
- बाकराखानी - रूमाली - शीरमाल - गाव दीदां
- ताफ़तान - बेसनी - गाज़ेबान
- खमीरी - तुनकी
विद्यार्थी इनके बारे में जानकारी प्राप्त करें ।
तीन-चार वाक्यों में अनुकूल प्रसंग तैयार कर नीचे दिए गए वाक्यों का इस्तेमाल करें ।
(क) पंचहजारी अंदाज से सिर हिलाया ।
(ख) आँखों के कंचे हम पर फेर दिए ।
(ग) आ बैठे उन्हीं के ठीये पर ।
जब मैंने भट्टी पर बैठे कारीगर से प्रश्न किया तो उसने पंच- हजारी अंदाज में पहले तो अपना सिर हिलाया और फिर अपनी आँखों के कंचे हम पर फेर दिए । इसके बाद उनकी जुबान खुली और बोले कि हम तो अपने बाप-दादा के ठीये पर आ बैठे हैं ।
1. चटर-चटर बोलनावह चटर-चटर बोलती रहती है ।
2. मटक-मटककर चलना- अभिनेत्री का मटक-मटक कर चलना बड़ा अच्छा लगता है ।
3. धर-पकड़ करना --पुलिस ने आते ही धर-पकड़ शुरू कर दी ।
4. हँस-हँसकर बतियाना- आज तो यह स्त्री हँस-हँसकर बतिया रही है ।
नीचे दिए वाक्यों में अर्थ पर बल देने के लिए शब्द-क्रम परिवर्तित किया गया है । सामान्यत: इन वाक्यों को किस कम में लिखा जाता है? लिखें ।
(क) मियाँ मशहूर हैं छप्पन किस्म की रोटियाँ बनाने के लिए।
(ख) निकाल लेंगे वक्त थोड़ा।
(ग) दिमाग में चक्कर काट गई है बात।
(घ) रोटी जनाब पकती है आँच से।
(क) मियाँ छप्पन किस्म की रोटियाँ बनाने के लिए मशहूर हैं।
(ख) थोड़ा वक्त निकाल लेंगे।
(ग) बात दिमाग में चक्कर काट गई है।
(घ) जनाब, रोटी आँच से पकती है।
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मियाँ नसीरुद्दीन ने रोटियों की कौन-कौन सी किस्में लेखिका को बताई तथा वर्तमान समय में आए किस परिवर्तन का जिक्र किया?
मियाँ नसीरुद्दीन ने रोटियों की ये किस्में बताई:
'बाकराखानी-शीरमाल-ताफतान-बेसनी-खमीरी-रूमाली-गाव-दीदा-गाजेबान-तुनकी ।
फिर तेवर चढ़ा घूरकर कहा- 'तुनकी पापड़ से ज्यादा महीन होती है, महीन । हाँ-किसी दिन खिलाएँगे आपको ।'
एकाएक मियाँ की आँखों के आगे कुछ कौंध गया । एक लंबी साँस भरी और किसी गुमशुदा याद को ताजा करने को कहा- 'उतर गए वे जमाने और गए वे कद्रदान जो पकाने-खाने की क्रद्र करना जानते थे! मियाँ अब क्या रखा है.. .. .निकाली तंदूर से-निगली और हजम ।'
लेखिका ने मियाँ नसीरुद्दीन से वक्त की बात क्यों की? मियाँ ने क्या उत्तर दिया और अखबारनवीस पर क्या टिप्पणी की?
मियाँ नसीरुद्दीन से लेखिका ने पूछा- 'आपसे कुछ एक सवाल पूछने थे आपको वक्त हो तो.....'
मियाँ नसीरुद्दीन ने पंचहजारी अंदाज से सिर हिलाया- 'निकाल लेंगे वक्त थोड़ा, पर यह तो कहिए, आपको पूछना क्या है?'
फिर घूरकर देखा और अखबारनवीस पर टिप्पणी करते हुए कहा- 'मियाँ, कहीं अखबारनवीस तो नहीं हो? यह तो खोजियों की खुराफात है । हम तो अखबार बनाने वाले और अखबार पड़ने वाले-दोनों को ही निठल्ला समझते हैं । हाँ, कामकाजी आदमी को इससे क्या काम है । खैर, आपने यहाँ तक आने की तकलीफ उठाई ही है तो पूछिए-क्या पूछना चाहते हैं! '
पग घुँघरू बाँधि मीरां नाजी
मैं तौ मेरे नारायण सूं, आपहि हो गई साची
लोग कहै, मीरां भइ बावरी, न्यात कहै कुल-नासी
विस का प्याला राणा भेज्या, पीवत मीरां हाँसी न
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, सहज मिले अविनासी।
प्रसंग प्रस्तुत पद कृष्णभक्त कवयित्री मीराबाई द्वारा रचित है।। प्रेम दीवानी मीरा कां लोगों के ताना की कोई परवाह नहीं है।। वह तो अपने प्रिय कृष्ण की दीवानी है। उसी मस्ती में वह उनकी मूर्ति के सम्मुख नाचती रहती है।
व्याख्या - मीरा अपने पैरों मे घुँघरू बांधकर अपने प्यारे कृष्ण के सामने नाचती हैं। वह तो अपने नारायण (कृष्ण) के लिए हो दै-। इससे वह बिना किसी प्रयास के ही सच्ची हो गई है अर्थात् उसमें पवित्रता का समावेश ही गया है। यह देखकर लोग कहते है कि मीरा तो पागल हो गई हूं और कुटुंब के लोग कहते हैं कि मीरा ने कुल का नाश कर दिया है; गर मुझे इन बातों की कोई परवाह नहीं है। उसे अपने कृष्ण-प्रेम पर अटल विश्वास है। मीरा बताती है कि मुझे मारने के लिए मेरे देवर राणाजी ने पीने के लिए विष का प्याला भिजवाया। मीरा हँसकर उसे पी गई अर्थात् विष के प्याले को पीते हुए हँस पड़ी। मेरे कृष्ण के प्रति प्रेम ने उसे विष के स्थान पर अमृत बना दिया। उसे पीकर मैं अमर हो गई। मीरा को प्रभु के रूप में गिरधर नागर अर्थात् कृष्ण की प्राप्ति हो गई है। वे उसे बिना किसी विशेष प्रयास -के मिल गए हैं। वे अविनाशी भी हैं।
भाव यह है कि जो भगवान के प्रेम और भक्ति को पा लेता है उसके सभी संकट कट जाते हैं। उसे कोई चिंता नहीं रह जाती। विशेष-
1. मीरा की आनंदावस्था का वर्णन है।
2. मीरा लोक निंदा की परवाह नहीं करती। यहाँ उसका निडरस्वरूप उभरता है।
3. ‘कहै कुल’ में अनुप्रास अलंकार है।
4. ब्रज एवं राजस्थानी भाषा का मिश्रण प्रयुक्त है।
मीरा कृष्ण की उपासना किस रूप में करती है? वह रूप कैसा है?
मीरा कृष्ण की उपासना प्रिय (पति) के रूप में करती हैं। यह रूप अत्यंत मनोहारी है। मीरा इस रूप पर बलिहारी जाती हैं। कृष्ण ने इस रूप में सिर पर मोर-मुकुट पहन रखा है। मीरा को कृष्ण का यही रूप प्रिय है। वह कृष्ण को अपना पति मानती हैं।
भाव व शिल्प सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
असुवन जल सींचि-सींचि, प्रेम-बेलि बोयी
अब त बेलि फैलि गई, आणंद फल होयी
भाव सौंदर्य - मीरा ने भारी कष्ट सहकर कृष्ण-प्रेम की बेल बाई हैं अर्थात् भारी कष्टों के मध्य मीरा के हृदय में कृष्ण-प्रेम उत्पन्न हुआ है। अब तो इस बैल के फलने-फूलने का समय आया है अर्थात् अब उसे कृष्ण-प्रेम के परिणामस्वरूप आनंद-रूपी फल को प्राप्ति होने वाली है, अत: वह इससे वंचित नहीं होता चाहेगी।
शिल्प-सौंदर्य- ‘सींचि-सींचि’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार
- ‘प्रेम -बेलि’ तथा ‘आणंद-फल’ में रूपक अलंकार है
- ब्रज एवं राजस्थानी भाषा का मिश्रित श्रेत रूप है।
भाव व शिल्प सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलोयी
दधि मथि मृत काढ़ि लियो, डारि दयी छोयी
भाव-सौंदर्य-इन काव्य- पंक्तियों में कवयित्री संसार पे सार तत्त्व को ग्रहण करने और व्यर्थ की बातों का त्याग करने पर बल देती है। ‘मथनी को प्रेम से बिलोना’ प्रयास करने का प्रतीक है। दही को मथकर ही घी मिलता है, इसी प्रकार प्रभु को पाने के लिए प्रयास तो करना ही पड़ता है।
शिल्प-सौंदर्य -कवयित्री ने दूध की मथानी का रूपक अत्यंत कुशलतापूर्वक बाँधा है। इसे प्रेमपूर्वक बिलोना पड़ता है-- लाक्षणिकता का समावेश हुआ है।
भाषा ब्रज एवं राजस्थानी का मिश्रण है।
लोग मीरा को बावरी क्यों कहते हैं?
रनोग मीरा को बावरी इसलिए कहते हैं क्योंकि वह कृष्ण प्रेम में पागल होकर उनकी मूर्ति के सम्मुख नाचती रहती है। वह कृष्ण को अपना पति मानती है। मीरा संतों की संगति में रहती है। इन बातों के कारण लोग मीरा को बावरी कहते हैं।
मीरा के देवर ने उन्हें मारने के लिए विष का प्याला भेजा ताकि उसे पीकर मीरा मर जाए और उनका कुल अपमान से बच जाए।
मीरा उस विष के प्याले को पीते हुए हँस रही थी अर्थात् कटाष्टा कर रही थी कि तुम मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। मीरा किसी की परवाह नहीं करती, उसे अपने प्रिय पर पुरा भरोसा है।
मीरा जगत को देखकर रोती क्यों हे?
मीरा जगत को देखकर इसलिए रोती है, क्योंकि संसार के रंग-ढंग ठीक नहीं हैं। जगत के झूठे धंधों में फँसे लोगों को देखकर मीरा को रोना आता है।
कल्पना करें, प्रेम प्राप्ति के लिए मीरा को किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा होगा?
मीरा को निम्नलिखित कठिनाइयों का सामना करना पड़ा होगा-
- लोगों के तरह-तरह के ताने झेलने पड़े होंगे।
- परिवारजनों की उपेक्षा का शिकार होना पड़ा होगा।
- भूख -प्यास को झेलना पड़ा होगा।
- मंदिरों में रहना पड़ा होगा।
लोक-लाज खोने का अभिप्राय क्या है?
लोक-लाज खोने का यह अभिप्राय है कि समाज की अपनी एक मर्यादा होती है। जब हम इसके विपरीत कार्य करते हैं तो लोक-लाज खोने की बात कही जाती है। मीरा ने भी कुल एवं समाज की इस झूठी मर्यादा की परवाह नहीं की। वह निडर थी।
मीरा ने ‘सहज मिले अविनासी’ क्यों कहा है?
मीरा ने ‘सहज मिले अविनासी’ इसलिए कहा है क्योंकि प्रभु अविनाशी है अर्थात् वह कभी नष्ट नहीं होता। उसे सहज भक्ति से प्राप्त किया जा सकता है। उसे पाने के लिए किसी विशेष प्रयास की आवश्यकता नहीं है।
लोग (समाज) तो उन्हें बावरी बताते हैं, क्योंकि उन्हें वह कृष्ण-प्रेम में पागल प्रतीत होती हैं। यह मुग्धावस्था का ही एक रूप है। न्यात अर्थात् परिवार जन (कुटुंब) उन्हें कुल का नाश करने वाली मानते हैं। उनके विचार में मीरा ने कुल की मर्यादा को नष्ट कर दिया है। मीरा की वजह से कुल (खानदान) को नीचा देखना पड़ता है।
किस पंक्ति से पता चलता है कि मीरा कृष्ण की अनन्य भक्त थी?
निम्नलिखित पंक्ति से पता चलता है कि मीरा श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त थी:
‘मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई।’
मीरा को आनंद फल प्राप्ति के लिए क्या-क्या करना पड़ा?
मीरा को आनंद फल प्राप्ति के लिए कुल की मर्यादा त्यागनी पड़ी, माता-पिता, भाई-बन्धु को छोड़ना पड़ा तथा साधु-संतों के पास बैठना पड़ा। उसने अपने आँसुओं से प्रेम-बेल को सींचा है तब आनंद फल प्राप्त हुआ है।
मीराबाई ने ‘कुल की कानि’ क्यों छोड़ दी?
पति की मृत्यु के बाद परिवार के लोगों ने उसे तंग करना शुरू कर दिया। उसकी कृष्ण- भक्ति पर तरह-तरह से रोक लगाते थे, अत: मीरा ने घर-बार का त्याग कर दिया और वह मंदिरों में रहने लगी। उसने परिवार एवं अन्य लोगों की परवाह करनी ही छोड़ दी।
मीरा के काव्य की भाषा क्या है?
मीरा के काव्य की भाषा राजस्थानी और ब्रज भाषा का मिला-जुला रूप है। इसमें गुजराती और पश्चिमी हिंदी के शब्द भी पाए जाते हैं।
भाव स्पष्ट कीजिए।
(क) अब तो बेल फैल गई, आणंद फल होई।
(ख) भगति देख राजि हुई, जगत देखि रोई।
(क) मीरा ने प्रभु- भक्ति की जो बेल लगाई थी, अब वह फल-फूल गई है। उसमें आनंद-फल भी लग गया है। भाव यह है कि प्रभु भक्ति का फल सदैव सुखद होता है।
(ख) इस पंक्ति का भाव यह है कि मीरा भक्तों को देखकर तो प्रसन्न होती है और संसार को देखकर रोती है। यह संसार किसी को सुखी नहीं देख सकता। यह सभी की आलोचना करता है, अत: इसकी उपेक्षा करना ही बेहतर है।
‘प्रेम बेलि’ के रूपक को स्पष्ट कीजिए।
बेल को बोना पड़ता है, उसे सींचना पड़ता है, तभी उस पर फल आता है। वह फल मधुर और आनंद देने वाला होता है। इसी प्रकार प्रेम में अनेक कष्ट सहन करने पड़ते हैं। प्रिय के तड़प में आँसू बहाने पड़ते हैं, तब जाकर कहीं साधना पूरी होती है। प्रिय के दर्शन होते हैं। इसके फलस्वरूप सच्चा आनंद प्राप्त होता है। इस प्रकार ‘प्रेम-बेलि’ का रूपक स्पष्ट है।
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‘भगत देख राजी भई, जगत देख रोई’-स्पष्ट करो।
मीरा को भक्तों को देखकर खुशी होती है क्योंकि भक्त संसार के मोह-जाल से मुक्त होते हैं। वे भगवान के प्यारे होते हैं। दूसरी ओर मीरा को संसार के लोगों को देखकर गुस्सा और रोना आता है। इसका कारण यह है कि संसार के लोग माया-मोह में फँसकर रोते हैं, फिर भी संसार की माया को नहीं छोड़ते।
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