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चुनाव और प्रतिनिधित्व
भारत का लोकतंत्र अब अनगढ़ 'फर्स्ट पास्ट द पोस्ट' प्रणाली को छोड़कर समानुपातिक प्रतिनिध्यात्मक प्रणाली को अपनाने के लिए तैयार हो चुका है' क्या आप इस कथन से सहमत हैं? इस कथन के पक्ष अथवा विपक्ष में तर्क दें।
हमारी राय में भारतीय लोकतंत्र निम्नलिखित कारणों से समानुपातिक प्रतिनिध्यात्मक प्रणाली को अपनाने के लिए तैयार नहीं है:
- आनुपातिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली बहुत जटिल है। एक सामान्य व्यक्ति इस प्रणाली को आसानी से समझ नहीं सकता है। वोटों पर पसंद अंकित करना, कोटा निश्चित करना, वोटो की गिनती करना और वोटो को पसंद के अनुसार हस्तांतरित करना आदि ये सब बातें एक साधारण पढ़े-लिखें समझ नहीं पाते।
- आनुपातिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक है। इस प्रणाली के अंतर्गत छोटे-छोटे दलों को प्रोत्साहन मिलता हैं। अल्पसंख्यक जातियाँ भी अपनी भिन्नताएँ बनाये रखती हैं और दूसरी जातियों की साथ अपने हितों को मिलाना नहीं चाहती। परिणाम-स्वरूप राष्ट्र छोटे छोटे वर्गों और गुटों में बटँ जाता हैं।
- आनुपातिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली भारत जैसे बड़े देश के लिए उपयुक्त नहीं है। भारत में मतदाताओं की संख्या 100 करोड़ से अधिक है। यहाँ, चुनाव की इस प्रणाली का पालन करना बहुत मुश्किल है क्योंकि मतदाताओं को एक उम्मीदवार से दूसरे उम्मीदवार तक स्थानांतरित करना लगभग असंभव है।
- आनुपातिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली की अंतर्गत राजनीतिक दलों का महत्व बहुत अधिक होता है। मतदाता को किसी-न-किसी दल के पक्ष में वोट डालना होता हैं क्योंकि इस प्रणाली के अंतर्गत निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव नहीं लड़ सकते।
- इस प्रणाली के अंतर्गत निर्वाचन-क्षेत्र बहु सदस्यीय होते हैं और एक क्षेत्र में कई प्रतिनिधि होते हैं। चूँकि एक क्षेत्र का प्रतिनिधि निश्चित नहीं होता, इसलिए प्रतिनिधियों में उत्तरदायित्व की भावना पैदा नहीं होती।
अत: हम कह सकते हैं कि यह प्रणाली केवल ऐसे देश में ही लागू हो सकती है जहाँ लोग अधिक शिक्षित हो, साथ ही यह प्रणाली ऐसे राज्य की लिए कदाचित उचित नहीं ठहराई जा सकती, जहाँ पर संसदीय शासन लागू हो।
Some More Questions From चुनाव और प्रतिनिधित्व Chapter
निम्नलिखित में कौन प्रत्यक्ष लोकतंत्र के सबसे नजदीक बैठता है ?
इनमें कौन सा कार्य चुनाव आयोग नहीं करता ?
निम्नलिखित में कौन सी बात राज्य सभा और लोक सभा के सदस्यों के चुनाव की प्रणाली में समान है ?
फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट प्रणाली में वही प्रत्याशी विजेता घोषित किया जाता है जो -
पृथक निर्वाचन-मंडल और आरक्षित चुनाव क्षेत्र के बीच क्या अंतर है ? संविधान निर्माताओं ने पृथक निर्वाचन-मंडल को क्यों स्वीकार नहीं किया ?
निम्नलिखित में कौन-सा कथन गलत है ? इसकी पहचान करें और किसी एक शब्द अथवा पद को बदलकर, जोड़कर अथवा नये क्रम में सजाकर इसे सही करें।
(क) एक फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट प्रणाली ('जो सबसे आगे वही जीते प्रणाली') का पालन भारत केहर चुनाव में होता है।
(ख) चुनाव आयोग पंचायत और नगरपालिका के चुनावों का पर्यवेक्षण नहीं करता।
(ग) भारत का राष्ट्रपति किसी चुनाव आयुक्त को नहीं हटा सकता।
(घ) चुनाव आयोग में एक से ज़्यादा चुनाव आयुक्त की नियुक्ति अनिवार्य है।
भारत की चुनाव-प्रणाली का लक्ष्य समाज के कमज़ोर तबके की नुमाइंदगी को सुनिश्चित करना है। लेकिन अभी तक हमारी विधायिका में महिला सदस्यों की संख्या 10 प्रतिशत तक भी नहीं पहुँचती। इस स्थिति में सुधार के लिए आप क्या उपाय सुझाये ?
एक भूतपूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने एक राजनीतिक दल का सदस्य बनकर चुनाव लड़ा। इस मसले पर कई विचार सामने आये। एक विचार यह था कि भूतपूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एक स्वतंत्र नागरिक है। उसे किसी राजनीतिक दल में होने और चुनाव लड़ने का अधिकार है। दूसरे विचार के अनुसार, ऐसे विकल्प की संभावना कायम रखने से चुनाव आयोग की निष्पक्षता प्रभावित होगी। इस कारण, भूतपूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त को चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। आप इसमें किस पक्ष से सहमत हैं और क्यों ?
भारत का लोकतंत्र अब अनगढ़ 'फर्स्ट पास्ट द पोस्ट' प्रणाली को छोड़कर समानुपातिक प्रतिनिध्यात्मक प्रणाली को अपनाने के लिए तैयार हो चुका है' क्या आप इस कथन से सहमत हैं? इस कथन के पक्ष अथवा विपक्ष में तर्क दें।
एक नए देश के संविधान के बारे में आयोजित किसी संगोष्ठी में वक्ताओं ने निम्नलिखित आशाएँ जतायीं। प्रत्येक कथन के बारे में बताएँ कि उनके लिए फर्स्ट- पास्ट-द-पोस्ट ( सर्वााइधक मत से जीत वाली प्रणाली) उचित होगी या समानुपातिक प्रतिनिधित्व वाली प्रणाली ?
(क) लोगों को इस बात की साफ साफ जानकारी होनी चाहिए कि उनका प्रतिनिधि कौन है ताकि वे उसे निजी तौर पर जिम्मेदार ठहरा सकें।
(ख) हमारे देश में भाषाई रूप से अल्पसंख्यक छोटे-छोटे समुदाय हैं और देश भर में फैले हैं, हमें इनकी ठीक- ठीक नुमाइंदगी को सुनिश्चित करना चाहिए।
(ग) विभिन्न दलों के बीच सीट और वोट को लेकर कोई विसंगति नहीं रखनी चाहिए।
(घ) लोग किसी अच्छे प्रत्याशी को चुनने में समर्थ होने चाहिए भले ही वे उसके राजनीतिक दल को पसंद न करते हों।
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